वनाधिकार कानून के तहत वन गुर्जरों की दावा प्रक्रिया शुरू कराए प्रशासन

Written by Navnish Kumar | Published on: October 18, 2020
15 अक्टूबर को शिवालिक वनों में एकजुट हुए वन गुर्जर समुदाय के लोगों ने वनाधिकार कानून के तहत वन भूमि पर अधिकारों को मान्यता दिए जाने को प्रशासन से दावा प्रक्रिया शुरू कराने की मांग की हैं। शिवालिक के वन गुर्जर समुदाय के प्रतिनिधियों हाजी अब्दुल करीम कसाना, गुलाम नबी कसाना, नूर जमाल चैची तथा वन गुज्जर युवा संगठन उत्तराखंड के अध्यक्ष अमीर हमजा द्वारा लिखे व एसडीएम बेहट को संबोधित पत्र में वन गुर्जरो के वनाधिकार को सुनिश्चित करने की मांग की गई हैं। पत्र की प्रति डीएम, कमिश्नर सहारनपुर के साथ प्रदेश के मुख्य सचिव, वन मंत्री, मुख्यमंत्री व राज्यपाल को भी लिखा गया हैं। साथ ही केंद्रीय अनुसूचित जनजाति मंत्रालय, वन एवं पर्यावरण मंत्रालय, अल्पसंख्यक मंत्रालय व राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग आदि को भी कॉपी भेजी गई हैं।



वन गुर्जर प्रतिनिधियों द्वारा लिखे पत्र में कहा गया हैं कि शिवालिक वन प्रभाग के अंतर्गत बड़कला बादशाही बाग, मोहंड़ व शाकंभरी रेंज में करीब 1800 वन गुर्जर परिवार अपने माल मवेशियों के साथ आजादी से भी बहुत पहले से निवास करते आ रहे हैं। यहां कुछ साल पूर्व से फायरिंग रेंज की स्थापना होने व सेना के अभ्यास के चलते कई मर्तबा वन गुर्जर परिवारों को मवेशियों व जान-माल की क्षति भी उठानी पड़ी हैं जिसकी सूचना समय-समय पर ज़िला प्रशासन को दी गईं हैं। लेकिन पिछले दिनों वन प्रभाग को टाईगर रिजर्व के लिए प्रस्तावित किए जाने की बात सामने आई है जिसके लिए वन गुर्जर समुदाय की कोई जन सुनवाई अभी तक नहीं की गई हैं। 

इसी सब को लेकर उनका स्पष्ट तौर से कहना हैं कि वनाधिकार कानून के तहत, वन गुर्जर समुदाय के अधिकार सुनिश्चित किए बगैर, टाईगर रिजर्व के प्रस्ताव आदि का वह सब वन गुर्जर विरोध करते हैं। उनका कहना है कि इस बाबत लिखित रूप से सार्वजनिक सूचना देकर तथा सभी वन गुर्जर समुदाय के लोगों की वैधानिक रूप से सुनवाई कर, आगे की कार्यवाही की जाएं। 

महोदय वर्तमान में बिना वैध (कानूनी) अधिकार दिए ही स्थानीय वन विभाग, ब्लॉक व तहसील स्तरीय कर्मचारी-अधिकारी समुदाय के लोगो पर वन क्षेत्र से बाहर निकालने को अवैधानिक तौर से दबाव डाल रहे हैं।  

पत्र में उन्होंने आगे कहा, 'देश की संसद द्वारा 13 दिसम्बर 2005 में अनुसूचित जनजाति व परम्परागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) एवं अधिनियम 2006 व अधिनियम 2007 में निहित प्रावधानों के अन्तर्गत अध्याय-2 में वर्णित 03 (1)-(क) (ग) (घ) (ज) (झ) (त) आदि उक्त समुदाय के अधिकार सुरक्षित करता है। उक्त अधिनियम के अन्तर्गत जब तक किसी भी दावे का निस्तारण नहीं होता, तब तक किसी भी वनवासी को वन भूमि से बेदखल नहीं कर सकते हैं।' 

शिवालिक वन गुर्जर के प्रतिनिधियों ने पत्र में मांग करते हुए लिखा है कि 'हम समस्त परिवारों के दावे वनाधिकार कानून-2006 के अन्तर्गत डलवाने की प्रक्रिया प्रारम्भ कराई जाए और वनाधिकार कानून में निहित प्रावधानों के अन्तर्गत हम उपरोक्त सभी परिवारों के अधिकार सुनिश्चित किये बिना, अवैधानिक बेदखली का दबाव अविलम्ब रूकवाने की कृपा करें।'

गौरतलब हैं कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय में दायर रिट याचिका संख्या 3226/85 में पारित आदेश में भी उल्लेखित है कि किसी भी वन गुज्जर को बिना पुनर्वास के बेदखल नहीं किया जाए। उक्त कथनों के अनुसार हमारी समस्या पर त्वरित कार्यवाही करते हुए समाधान करने की कृपा करें और वनाधिकार की दावे फार्म की प्रक्रिया प्रारंभ करायी जाएं। 

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