गणेश चतुर्थी के अवसर पर अल्पसंख्यक समुदाय ने एकता, सहयोग और आपसी प्रेम की बेमिसाल झलक पेश की है.
एक तरफ़ देश में हिंसा और नफ़रत का माहौल उफ़ान पर है तो दूसरी तरफ़ गणेश चतुर्थी के अवसर पर देश के अनेक हिस्सों से साझा जश्न की ऐसी कहानियां सामने आई हैं जिसमें हिंदू-मुसलमानों ने साथ मिलकर त्योहार की ख़ुशी बांटी है. ऐतिहासिक रूप से बाल गंगाधर तिलक ने अवाम को एकजुट करने के लिए गणेश चतुर्थी को सार्वजनिक उत्सव का रूप दिया था. आज भी ये महाराष्ट्र राज्य का सबसे बड़ा त्योहार है हालांकि आस्था की ये धमक एकता के रंग में मिलकर पूरे देश में गूंजती है. इस साल भी गणपति पूजा का आयोजन और विसर्जन आपसी भाईचारे, सहिष्णुता और सद्भावना के लिहाज़ से काफ़ी ख़ास रहा है. नेता, अभिनेता से लेकर आमजन और विभिन्न संगठनों तक अल्पसंख्यक समुदायों ने भी इस उत्सव में अपनी भूमिका निभाकर देश को प्यार का नायाब पैग़ाम दिया है.
ईसाई और मुसलमान समुदाय में गणपति उत्सव की अलख
गणपति पूजा के आयोजन में मूर्तिकला के रंगबिरंगे व्यापार की अहम भूमिका है जिसमें मुसलमान क़ौम के भी एनेक मेधावी कलाकार सक्रिय हैं. मुंबई के भायंदर में मोहम्म्द कौसर शेख़ एक ऐसे ही कलाकार हैं जो पिछले 20 वर्षों से गणेश की मूर्तियां बनाने का काम कर रहे हैं. क्विंट की रिपोर्ट के अनुसार 40 वर्षीय कौसर पर्यावरण का लिहाज़ करते हुए इको-फ्रेंडली मूर्तियां गढ़ते हैं जिससे वातावरण को कोई नुक़सान पहुंचने का डर नहीं होता है. गणपति के दिन के लिए उनका सम्मान और नज़रिया आपसी सद्भाव की ख़ूबसूरत मिसाल है.
इसी तरह गोवा में भी उत्सव का अनोखा नज़ारा देखने को मिला. यहां कैथोलिक संप्रदाय की एक डोंगी में सवार हिंदू भक्त ने गणपति विसर्जन किया है जिसकी तस्वीर को सोशल मीडिया पर ख़ूब सराहा जा रहा है. इस डोंगी पर संत फ़्रांसिस का नाम उकेरा गया है जबकि इसपर बैठकर एक श्रद्धालु बड़े प्यार से गणपति विसर्जन कर रहा है.
अल्पसंख्यक संगठनों से मिला अपार सहयोग
इसी क्रम में सबरंग इंडिया ने शांति और सद्भाव क़ायम रखने की एक अन्य कोशिश पर प्रकाश डाला है. इस ख़बर के अनुसार मुंबई में कुछ मुसलमान समूहों ने पैग़म्बर मोहम्मद साहब के जन्मदिन यानि मिलादुन्नबी का जलूस 29 सितंबर के बजाय 28 सितंबर को आयोजित करने का फ़ैसला लिया है क्योंकि 28 सितंबर को इसका गणेश चतुर्थी से टकराव होने का ख़तरा था.
इन अल्पसंख्यक समूहों में ख़िलाफ़त कमेटी का भी नाम है जो कि अंग्रेज़ों के दौर में ख़िलाफ़त आंदोलन के तहत गठित की गई थी. ग़ौरतलब है कि ख़िलाफ़त कमेटी देश में मिलादुन्नबी का सबसे बड़ा जलूस आयोजित कराती रही है.
दायजीवर्ल्ड की ख़बर के अनुसार कर्नाटक के बेलगावी शहर में भी मुसलमानों ने जश्न-ए-मिलादुन्नबी के जलूस के लिए पूजा के बाद का दिन मुक़र्रर किया है. बेलागावी में पिछले 119 सालों से गणपति उत्सव बेहद धूमधाम से मनाया जाता रहा है जिसके मद्देनज़र मुसलमान संगठन अंजुमन-ए-इस्लाम के धार्मिक नेताओं ने ये फ़ैसला लिया है कि वो मिलादुन्न्बी का जलूस 1 अक्टूबर को निकालेंगे.
मुसलमान परिवारों ने भी मनाया गणपति उत्सव
महाराष्ट्र टाइम्स के मुताबिक़ बारामती में एक मुस्लिम शेख़ परिवार पिछले आठ सालों से हर गणपति उत्सव पर गणेश और गौरी की स्थापना करवाता है. इस वर्ष भी शाहबुद्दीन सिकंदर शेख़ के परिवार ने गंगा जमुनी तहज़ीब की एक बेमिसाल परिपाटी क़ायम कर देश को क़ौमी एकता का संदेश दिया है.
जबकि ABP Live की सूचना के अनुसार अलीगढ़ में एक परिवार ने पूरे धार्मिक नियम-क़ायदों के साथ गणपति पूजा में हिस्सा लिया. ये उत्सव यक़ीनन दूसरे धर्मों को एकता और परस्पर प्यार की भावना से बांधने की कोशिश है जिससे वो भी अपने से अलग धर्मों के त्योहारों में ऐसा ही जोश, ख़ुशी और सहयोग दिखाएं.
गणेश चतुर्थी का उत्सव मनाने वाले परिवारों की श्रृंखला में बॉलीवुड के भी अनेक परिवार शामिल हैं. रूमानियत के बादशाह शाहरूख़ ख़ान ने भी गणपति पूजा पर अपने बड़े दिल औऱ ऊंची सोच का परिचय देते हुए मुहब्ब्त का परचम लहराया है.
भारत जैसे विविध संस्कृति वाले देश में जहां मज़हब की भावना लोगों की रगों में शामिल है, वहां तरक़्क़ी के लिए ज़रूरी है कि सभी मज़हब के अनुयायी दूसरी आस्थाओं के लिए उदारता का परिचय दें. ये बात हिंदू और मुसलमान दोनों ही समुदायों पर एक बराबर लागू होती है.
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ईसाई और मुसलमान समुदाय में गणपति उत्सव की अलख
गणपति पूजा के आयोजन में मूर्तिकला के रंगबिरंगे व्यापार की अहम भूमिका है जिसमें मुसलमान क़ौम के भी एनेक मेधावी कलाकार सक्रिय हैं. मुंबई के भायंदर में मोहम्म्द कौसर शेख़ एक ऐसे ही कलाकार हैं जो पिछले 20 वर्षों से गणेश की मूर्तियां बनाने का काम कर रहे हैं. क्विंट की रिपोर्ट के अनुसार 40 वर्षीय कौसर पर्यावरण का लिहाज़ करते हुए इको-फ्रेंडली मूर्तियां गढ़ते हैं जिससे वातावरण को कोई नुक़सान पहुंचने का डर नहीं होता है. गणपति के दिन के लिए उनका सम्मान और नज़रिया आपसी सद्भाव की ख़ूबसूरत मिसाल है.
इसी तरह गोवा में भी उत्सव का अनोखा नज़ारा देखने को मिला. यहां कैथोलिक संप्रदाय की एक डोंगी में सवार हिंदू भक्त ने गणपति विसर्जन किया है जिसकी तस्वीर को सोशल मीडिया पर ख़ूब सराहा जा रहा है. इस डोंगी पर संत फ़्रांसिस का नाम उकेरा गया है जबकि इसपर बैठकर एक श्रद्धालु बड़े प्यार से गणपति विसर्जन कर रहा है.
अल्पसंख्यक संगठनों से मिला अपार सहयोग
इसी क्रम में सबरंग इंडिया ने शांति और सद्भाव क़ायम रखने की एक अन्य कोशिश पर प्रकाश डाला है. इस ख़बर के अनुसार मुंबई में कुछ मुसलमान समूहों ने पैग़म्बर मोहम्मद साहब के जन्मदिन यानि मिलादुन्नबी का जलूस 29 सितंबर के बजाय 28 सितंबर को आयोजित करने का फ़ैसला लिया है क्योंकि 28 सितंबर को इसका गणेश चतुर्थी से टकराव होने का ख़तरा था.
इन अल्पसंख्यक समूहों में ख़िलाफ़त कमेटी का भी नाम है जो कि अंग्रेज़ों के दौर में ख़िलाफ़त आंदोलन के तहत गठित की गई थी. ग़ौरतलब है कि ख़िलाफ़त कमेटी देश में मिलादुन्नबी का सबसे बड़ा जलूस आयोजित कराती रही है.
दायजीवर्ल्ड की ख़बर के अनुसार कर्नाटक के बेलगावी शहर में भी मुसलमानों ने जश्न-ए-मिलादुन्नबी के जलूस के लिए पूजा के बाद का दिन मुक़र्रर किया है. बेलागावी में पिछले 119 सालों से गणपति उत्सव बेहद धूमधाम से मनाया जाता रहा है जिसके मद्देनज़र मुसलमान संगठन अंजुमन-ए-इस्लाम के धार्मिक नेताओं ने ये फ़ैसला लिया है कि वो मिलादुन्न्बी का जलूस 1 अक्टूबर को निकालेंगे.
मुसलमान परिवारों ने भी मनाया गणपति उत्सव
महाराष्ट्र टाइम्स के मुताबिक़ बारामती में एक मुस्लिम शेख़ परिवार पिछले आठ सालों से हर गणपति उत्सव पर गणेश और गौरी की स्थापना करवाता है. इस वर्ष भी शाहबुद्दीन सिकंदर शेख़ के परिवार ने गंगा जमुनी तहज़ीब की एक बेमिसाल परिपाटी क़ायम कर देश को क़ौमी एकता का संदेश दिया है.
जबकि ABP Live की सूचना के अनुसार अलीगढ़ में एक परिवार ने पूरे धार्मिक नियम-क़ायदों के साथ गणपति पूजा में हिस्सा लिया. ये उत्सव यक़ीनन दूसरे धर्मों को एकता और परस्पर प्यार की भावना से बांधने की कोशिश है जिससे वो भी अपने से अलग धर्मों के त्योहारों में ऐसा ही जोश, ख़ुशी और सहयोग दिखाएं.
गणेश चतुर्थी का उत्सव मनाने वाले परिवारों की श्रृंखला में बॉलीवुड के भी अनेक परिवार शामिल हैं. रूमानियत के बादशाह शाहरूख़ ख़ान ने भी गणपति पूजा पर अपने बड़े दिल औऱ ऊंची सोच का परिचय देते हुए मुहब्ब्त का परचम लहराया है.
भारत जैसे विविध संस्कृति वाले देश में जहां मज़हब की भावना लोगों की रगों में शामिल है, वहां तरक़्क़ी के लिए ज़रूरी है कि सभी मज़हब के अनुयायी दूसरी आस्थाओं के लिए उदारता का परिचय दें. ये बात हिंदू और मुसलमान दोनों ही समुदायों पर एक बराबर लागू होती है.
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