7वें पत्र में लेखक रामराज्य के अर्थों को खोलता है और फिर भारतीय संस्कृति के अन्य विचारों से इसकी तुलना करता है. राम के साथ इस संवाद में लेखक ने अयोध्या मंदिर से जुड़े नैतिक पहलूओं को टटोलने की कोशिश की है जिससे धार्मिक खांचों से बाहर दया और समग्रता पर आधारित एक समाज की नींव रखी जा सके. एकता और सद्भावना के काव्यात्मक दृष्टिकोण के साथ ये पत्र एक समतावादी समाज की बात करता है जिसमें भगवान राम को दया और न्याय की अवधारणाओं को साथ रखा गया है. इसमें परीक्षण के लिए तर्क सहेजे गए हैं जिससे कि विविधता में एकता के मूल्यों को सहेजा जाता है.
[Sept 12, 2023]
प्रिय राम,
काफ़ी समय हुआ जबसे मैंने आपसे न तो बात की नही कुछ लिखा. मैनें आपसे राब्ता करने को सोचा लेकिन चीज़ें ख़राब हो गईं. हमारे प्रभावी नेताओं का दावा है कि वो आपके लिए एक मंदिर बनाने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं.
भगवान राम, आपको याद होगा कि यहां एक मस्जिद थी जिसे हमने तुम्हारे लिए जगह बनाने के लिए तोड़ दिया. हम दावा करते हैं कि आपका जन्म ठीक उसी जगह हुआ जहां मस्जिद खड़ी है. हिंदू समाज ने आपके लिए प्यार जताने के लिए प्रतिशोध का रास्ता चुना है.
ये जटिल मसअला है. क्योंकि हिंदुओं ने आपके लिए ज़मीन चुनी जबकि आप सर्वगाता हैं. (जो हर जगह निवास करता हो.)
आपके शिष्य के रूप में हम तुम्हारे हर जगह वास में यक़ीन रखते हैं, क्योंकि आप सर्वलोकपति (सारी दुनियाओं के भगवान), सर्वव्यापी (छोटी से बड़ी हर चीज़ में मौजूद) और सर्वभूतात्मन(हर जीवित की आत्मा) हैं.
तो भला क्यों हमें आपकी प्रार्थना करने के लिए किसी से कुछ लेने की ज़रूरत है?
आप सर्वभूतांत्रात्मा (हमारी आत्माओं में वास करने वाले) हैं और आप हमारे दिलों में रहते हैं (जैसा कि मेरी मां कहती है.) आपका मंदिर सिर्फ़ रीति रिवाजों में हिस्सा लेने की जगह है जिससे कि आपके जीवन का जश्न मनाया जाता है. यह जानते हुए कि आप हर जगह हैं हम आपको मंदिर तक सीमित कैसे कर सकते हैं.
अगर ईश्वार डटा रहता सब जगह, सब काल।
इसने बनवाकर मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर
ख़ुदा को कर दिया है बंद;
ये हैं ख़ुदा के जेल,
जिन्हें यह-देखो तो इसका व्यंग्यल-
कहती है श्रद्धा-पूजा के स्थाइन।
कहती है उनसे,
“आप यहीं करें आराम,
दुनिया जपती है आपका नाम,
मैं मिल जाऊँगी सुबह-शाम,
दिन-रात बहुत रहता है काम।”
अल्लाह पर लगा है ताला,
बंदे करें मनमानी, रँगरेल।
इस विचारपूर्ण अभिव्यक्ति में हरिवंशराय बच्चन पावन के सच्चे सेवाभाव के बारे में सवाल करते हैं. वह हमें भगवान को पवित्र स्थलों से परे दिलों और कायनात की असीम दुनिया में खोजने के लिए बुलाते हैं. वह अपने शब्दों के साथ खेलते हैं और हमसे कहते हैं कि मंदिर, चर्च, और मस्जिद असल मायनों में भगवान की ‘जेल’ हैं. इन पवित्र जगहों पर भगवान को क़ैद करना मानवता को धर्म के रास्ते से भटका देता है जिससे कि शिकायतें और निरंकुश रवैय्यों का जन्म होता है.
एक मस्जिद के ध्वानाशेषों पर बना आपका मंदिर आपकी गरिमा को कम करता है.
वो कहते हैं कि ये राम-राज्य की शुरूआत है.
क्या मुझे इस मंदिर के सिद्धांत से परे सभी के लिए इसकी उपयोगिता को देखना चाहिए. ये देश विविधता की बुनियाद पर बना है जो अलग- अलग पृष्ठभूमि के लोगों का ठिकाना भी है. हर पांच में से एक मुसलमान आबादी के साथ हमें जीवन को कोई तरीक़ा थोपने के बजाय अपने समाज की बहुआयामी बुनावट को अहमियत देनी चाहिए.
जब मैं इन मामलों के बारे में विचार करता हूं तो मुझे चिंता होती है कि क्या हमें सबको घर देने की ज़रूरत है? जबकि रामराज्य के विचार को एक कपोलकल्पना यानि यूटोपियन आदर्श माना जाता है. मैं सवाल करता हूं कि क्या ये सचमुच वही दर्शन है जिसकी आपने जीवन भर वकालत की है. लोग पूरी आज़ादी से आपकी ज़िंदगी और सीख की अपने जीवन के मुताबिक़ व्याख्या करते हैं. जिसका अर्थ है कि हमें इस यूटोपिया के दूसरे विचारों को भारतीय प्रसंग में और एक्सप्लोर करना होगा जिससे उसकी ज़रूरत और अहमियत साफ़ हो.
हमारे विविध और जटिल समाज में हम सहअस्तित्व के बेहतर क़ायदे तय कर सकते हैं जिससे हम एक समग्र और सद्भावपूर्ण भविष्य बुन सकें.
ये सिर्फ़ कुछ साल पहले की बात है जब मैंने अयोध्या के पुरातन शहर में क़दम रखा और ख़ुद को उत्साहपूर्ण पाया. सड़कें अनगिनत लैंप्स से सजी थीं और आसमान में पटाखे छूट रहे थे. उस समय क़स्बा रौश्नियों का त्योहार दीवाली मना रहा था जिसकी इस साल में ख़ास अहमियत थी. ये 14 साल वनवास के बाद भगवान राम(आप) के अयोध्या लौटने को इंगित कर रहा था.
हमें अदाएँ दिवाली की ज़ोर भाती हैं ।
कि लाखों झमकें हरएक घर में जगमगाती हैं ।।
चिराग जलते हैं और लौएँ झिलमिलाती हैं ।
मकां-मकां में बहारें ही झमझमाती हैं ।।
खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं ।
बताशे हँसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं ।।1।।
गुलाबी बर्फ़ियों के मुँह चमकते-फिरते हैं ।
जलेबियों के भी पहिए ढुलकते-फिरते हैं ।।
हर एक दाँत से पेड़े अटकते-फिरते हैं ।
इमरती उछले हैं लड्डू ढुलकते-फिरते हैं ।
18वीं सदी में अवाम के शायर के नाम से मशहूर उर्दू शायर नज़ीर अकबराबादी ने इसकी ख़ूबसूरत तस्वीर पेश की है. यहां शायर दीवाली के उस जश्न की ख़ूबसूरत व्याख्या करते हैं जब घर अनगिनत लैंप्स की रौश्नी से जगमगाते है. ये माहौल मोमबत्ती की झिलमिलाहट में ख़ुशी मनाता है और हर घर में त्योहार का माहौल होता है. खिलौने नाचते हैं, तस्वीरें संगीत के साथ चलती है और बताशे जैसी मिठाईयां हंसती और खिलखिलाती हैं, गुलाबी बर्फ़ी और घुमावदार जलेबियां घुमती और नाचती है जबकि पेड़े दांतों से चिपक जाते हैं, इमरती घूमती हैं और लड्डू ढुलकते नाचते हैं.
अयोध्या के लोगों के लिए दीवाली रौश्नियों और मिठाईयों से बढ़कर है. इसका अर्थ है कि धर्मपरायण का लौटना और राम-राज्य की स्थापना. जब मैंने स्थानीय लोगों से बात की तो उन्होंने राम के न्याय और प्रशासन के बारे में कहानियां बताईं जहां हर इंसान संतुष्ट था और किसी तरह की बुराई की कोई जगह नहीं थी. उन्होंने राम-राज्य को शासन का आदर्श रूप बताया जहां न्याय सर्वप्रमुख था और शासक अडिग समर्पण से काम करते थे. ये एक तरह का ऐसा यूटोपिया था जिसे अनेक लोग अब भी हासिल करना चाहते हैं.
मैं केरल से हूं लेकिन मैं तमिल बोलता हूं. हम ओणम मनाते हैं और ये एक ख़ूबसूरत त्योहार है. पिछले साल ओणम के समय मैं केरल में था और ओणम का जश्न पूरे उरूज पर था जिसमें जलूस, रंगबिरंगे संगीत और परंपरागत नृत्यों का आयोजन किया गया था.
दीवाली के मशहूर त्योहार से अलग ओणम में राजा महाबली को सम्मानित किया जाता है जो कि एक राक्षस राजा हैं. मुझे इस प्रश्न में रूचि हुई कि क्यों इस प्रतीक का जश्न इतने उत्साह से मनाते हैं.
केरल में ओणम के समय परंपरागत कपड़े त्योहार की रूह की झलक देते हैं. औरतें इस रोज़ ऑफ़ व्हाइट साड़ी, सोने के आभूषण और बालों में गजरा पहनती हैं जबकि पुरूष सफ़ेद शर्ट के साथ गोल्डेन बार्डर वाला मुंडू पहनते हैं. त्योहार का माहौल बनाने के लिए घरों के बाहर फूलों के डिज़ाइन वाले रंगबिरंगे पोक्कलम भी सजाए जाते हैं.
वो कहते हैं- ‘वामन ने राजा के विश्वास को तोड़ा था.’ उनके विषय असुर राजा को भगवान (वामन) से ज़्यादा प्यार करते हैं. इस बात ने ही मुझे सोचने पर मजबूर किया.
रामराज्य और महाबली के राज्य ने यूटोपियन आदर्शों को चरित्रार्थ किया था जिसकी बुनियाद बेहद विशेष थी. रामराज्य का अर्थ था पवित्र शासन जिसमें धर्म और बुराई पर अच्छाई की जीत पर बल दिया गया था. हालांकि इसपर नीची मानी जाने वाली जातियों और स्त्रियों के साथ असमान व्यवहार की छाप भी है. सीता की अग्निपरीक्षा और शंबूक की हत्या इसकी मिसाल है.
मैं आपके फ़ैसले पर सवाल नहीं कर रहा हूं भगवान, लेकिन हमें अन्य विचारों के प्रसंग में भी आपकी जगह को देखना चाहिए. आपने रामराज्य के विचार पर कोई दावा नहीं किया है लेकिन एक छोटे से समूह ने ऐसे विचारों को तय किया है जो कि औरों के लिए प्रासंगिक हो सकता है.
इससे बिल्कुल उल्टी धार में केरल के महाबली समतावाद के प्रतीक हैं. एक असुर राजा होने के बावजूद महाबली ने एक जातिविहीन समाज बनाया था जिसमें राजा और प्रजा के बीच में आपसी प्यार और सम्मान बेहद सर्वोपरि था. राम का अयोध्या लौटना जहां एक अनंत चीज़ हैं वहीं दूसरी तरफ़ महाबली का आगमन तेज़ी से बीत जाता है, फिर भी ओणम के समय उन्हें जो प्रेम मिलता है वो नायाब है. लोग ख़ुद को केवल गर्व के लिए ही नहीं वरन अपने प्रिय सम्राट की ख़ुशी के लिए भी सजाते हैं. ओणम एक राजा की समानाता के दृष्टिकोण का उत्सव है और अगर इसका मतलब पवित्र परंपराओं को तोड़ना भी हो तो भी इसका अर्थ यही है.
बेगम पुरा शहर को नाऊ।
दूख अंदोह तहिं न ठाऊ।।
ना तहिं बेरा, ना तहिं जाह।
ना तहिं बाद, ना तहिं गाह।।
अब मोहि बूलन हरि बेगम।
अस गह तहाँ न जाई न तेगम।।
इस कविता का नाम ‘बेगमपुरा’ है. संत रविदास बेगमपुरा नामक एक यूटोपियन राज्य की कल्पना करते हैं जिसका नाम बेगमपुरा है. जिसका अनुवाद है – ‘बिना दुख का एक शहर’. एक ऐसा शहर जिसमें पीड़ा, चिंता, दुख या जाति (बेरा) और वर्ग (जाह) पर आधारित भेदभाव की कोई जगह नहीं हैं. ये एक समन्वयवादी जगह है जहां झगड़े (बाद) और कर (गाह) का कोई वजूद नहीं है.
संत रविदास हरि (भगवान का नाम) द्वारा इस दुखरहित जगह पर बुलाए जाने की गहरी अभिलाषा जताते हैं. ये एक ऐसी जगह है जहां कोई तलवार (तेगम) दुखों को जन्म नहीं दे सकती है. इसमें कवि ऐसी जगह की कल्पना कर रहा है जहां शांति और सद्भाव है और जहां जाति या आर्थिक स्तर की बुनियाद पर कोई असमान व्यवहार नहीं होता है. इसमें एक ऐसे समतावादी समाज का सपना है जहां ख़ुशी और शांति किसी का व्यक्तिगत तजरबा न होकर समुदाय के साझा अनुभव माने जाते हैं. ये एकता और भाईचारे पर आधारित समाज के सपने की बेहतरीन अभिव्यक्ति है जिसमें भेदभाव और पीड़ा की कोई जगह नहीं होगी.
रामराज्य, महाबली का राज्य और बेगमपुरा. भगवान राम के शासन के मुताबिक, रामराज्य एक दैवीय शासन है जिसमें धर्म पर ज़ोर दिया जाता है और असमानता की आलोचना की जाती है.
ओणम के दौरान महाबली के राज्य में एक समतावादी समाज की तस्वीरकशी की जाती है जिसमें शासक और प्रजा आपसमें प्यार और सम्मान का गहरा रिश्ता बनाते हैं जिसमें समानता की स्थापना के लिए दैवीय परंपराओं से इंकार कर दिया जाता है. संत रविदास के सिद्दांतों के मुताबिक़ बेगमपुरा एक ऐसे राज्य की कल्पना है जिसमें दुख, भेदभाव और आर्थिक असमानता नहीं होगी. ये सांप्रदायिक सद्भाव और शांति का चरम भी होगा. यूटोपिया सिर्फ़ अभिलाषा से भरा हुआ सिद्धांत ही नहीं वरन इसमें एक ऐसी व्यवस्था भी है जिसे समाज चुनना चाहता है.
एक विविध समाज में जीवन जीने का सिर्फ़ एक तरीक़ा उचित नहीं है और भारत जैसे राज्य में तो ये विचार अपने आप में भेदभावपूर्ण है. बेगमपुरा में एक ऐसे अप्रोच की कल्पना की गई है जिससे सबको फ़ायदा होता है जबकि रामराज्य में नियम ऐसे तय किए जाते हैं जिससे केवल कुछ विशेषाधिकार प्राप्त लोगों को फ़ायदा पहुंचे. शंबूक के ख़िलाफ़ कृत्य पर विवाद एक दूसरे समय की कहानी है. आपने एक पुरूष राजा की भूमिका निभाई जिसमें आपने एक भगवान से अपेक्षित पूर्णता के बजाय एक पुरूष की अपूर्णता दिखाई.
हे भगवान राम, आपको कर्णसागर (दया का सागर) के रूप में जाना जाता है. ये कहा जाता है कि आप सर्वभूताहिदे रत (सभी के कल्याण में रत) हैं और हर जीवित शय के सर्वोच्च मालिक हैं. मैं सिर्फ़ एक समातावादी समाज के वाहक के तौर पर आपकी कल्पना कर सकता हूं, एक अवतार जो दुनिया में दमकती एक अलग दुनिया की कल्पना कर सकता है और जो भेदभाव से रहित है.
अयोध्या के सुनहरे दरबार में, एक दयालु और न्यायप्रिय शासक,
भगवान राम ने दया भरी दृष्टि से, अपनी प्रजा की सेवा की।
उसने सबसे कमजोर की आवाज़ सुनी, उसने आँसू पोंछे,
उसके दयालु शासन में, सभी भय मिट गए।
अयोध्या के स्वर्ण दरबार में भगवान राम ने एक दयालु और न्यायप्रिय शासक के तौर पर लोगों की अपने दयालू मन से सेवा की. उन्होंने सबसे कमज़ोर वर्ग के आंसू पोंछे और अपने प्रेमपूर्ण प्रशासन के दौरान सारे डर दूर कर दिए.
आपके आशीष की उम्मीद में,
(लेखक फ़ाइनांशियल प्रोफ़ेश्नल हैं और उन्होंने अर्थशास्त्र में मास्टर डिग्री हासिल की है. वह कला और अकादमिक मुद्दों के अलाव विकास और मानवाधिकारों से जुड़े मुद्दों में गहरी दिलचस्पी रखते हैं.)
Trans: Bhaven
[Sept 12, 2023]
प्रिय राम,
काफ़ी समय हुआ जबसे मैंने आपसे न तो बात की नही कुछ लिखा. मैनें आपसे राब्ता करने को सोचा लेकिन चीज़ें ख़राब हो गईं. हमारे प्रभावी नेताओं का दावा है कि वो आपके लिए एक मंदिर बनाने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं.
भगवान राम, आपको याद होगा कि यहां एक मस्जिद थी जिसे हमने तुम्हारे लिए जगह बनाने के लिए तोड़ दिया. हम दावा करते हैं कि आपका जन्म ठीक उसी जगह हुआ जहां मस्जिद खड़ी है. हिंदू समाज ने आपके लिए प्यार जताने के लिए प्रतिशोध का रास्ता चुना है.
ये जटिल मसअला है. क्योंकि हिंदुओं ने आपके लिए ज़मीन चुनी जबकि आप सर्वगाता हैं. (जो हर जगह निवास करता हो.)
आपके शिष्य के रूप में हम तुम्हारे हर जगह वास में यक़ीन रखते हैं, क्योंकि आप सर्वलोकपति (सारी दुनियाओं के भगवान), सर्वव्यापी (छोटी से बड़ी हर चीज़ में मौजूद) और सर्वभूतात्मन(हर जीवित की आत्मा) हैं.
तो भला क्यों हमें आपकी प्रार्थना करने के लिए किसी से कुछ लेने की ज़रूरत है?
आप सर्वभूतांत्रात्मा (हमारी आत्माओं में वास करने वाले) हैं और आप हमारे दिलों में रहते हैं (जैसा कि मेरी मां कहती है.) आपका मंदिर सिर्फ़ रीति रिवाजों में हिस्सा लेने की जगह है जिससे कि आपके जीवन का जश्न मनाया जाता है. यह जानते हुए कि आप हर जगह हैं हम आपको मंदिर तक सीमित कैसे कर सकते हैं.
अगर ईश्वार डटा रहता सब जगह, सब काल।
इसने बनवाकर मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर
ख़ुदा को कर दिया है बंद;
ये हैं ख़ुदा के जेल,
जिन्हें यह-देखो तो इसका व्यंग्यल-
कहती है श्रद्धा-पूजा के स्थाइन।
कहती है उनसे,
“आप यहीं करें आराम,
दुनिया जपती है आपका नाम,
मैं मिल जाऊँगी सुबह-शाम,
दिन-रात बहुत रहता है काम।”
अल्लाह पर लगा है ताला,
बंदे करें मनमानी, रँगरेल।
इस विचारपूर्ण अभिव्यक्ति में हरिवंशराय बच्चन पावन के सच्चे सेवाभाव के बारे में सवाल करते हैं. वह हमें भगवान को पवित्र स्थलों से परे दिलों और कायनात की असीम दुनिया में खोजने के लिए बुलाते हैं. वह अपने शब्दों के साथ खेलते हैं और हमसे कहते हैं कि मंदिर, चर्च, और मस्जिद असल मायनों में भगवान की ‘जेल’ हैं. इन पवित्र जगहों पर भगवान को क़ैद करना मानवता को धर्म के रास्ते से भटका देता है जिससे कि शिकायतें और निरंकुश रवैय्यों का जन्म होता है.
एक मस्जिद के ध्वानाशेषों पर बना आपका मंदिर आपकी गरिमा को कम करता है.
वो कहते हैं कि ये राम-राज्य की शुरूआत है.
क्या मुझे इस मंदिर के सिद्धांत से परे सभी के लिए इसकी उपयोगिता को देखना चाहिए. ये देश विविधता की बुनियाद पर बना है जो अलग- अलग पृष्ठभूमि के लोगों का ठिकाना भी है. हर पांच में से एक मुसलमान आबादी के साथ हमें जीवन को कोई तरीक़ा थोपने के बजाय अपने समाज की बहुआयामी बुनावट को अहमियत देनी चाहिए.
जब मैं इन मामलों के बारे में विचार करता हूं तो मुझे चिंता होती है कि क्या हमें सबको घर देने की ज़रूरत है? जबकि रामराज्य के विचार को एक कपोलकल्पना यानि यूटोपियन आदर्श माना जाता है. मैं सवाल करता हूं कि क्या ये सचमुच वही दर्शन है जिसकी आपने जीवन भर वकालत की है. लोग पूरी आज़ादी से आपकी ज़िंदगी और सीख की अपने जीवन के मुताबिक़ व्याख्या करते हैं. जिसका अर्थ है कि हमें इस यूटोपिया के दूसरे विचारों को भारतीय प्रसंग में और एक्सप्लोर करना होगा जिससे उसकी ज़रूरत और अहमियत साफ़ हो.
हमारे विविध और जटिल समाज में हम सहअस्तित्व के बेहतर क़ायदे तय कर सकते हैं जिससे हम एक समग्र और सद्भावपूर्ण भविष्य बुन सकें.
ये सिर्फ़ कुछ साल पहले की बात है जब मैंने अयोध्या के पुरातन शहर में क़दम रखा और ख़ुद को उत्साहपूर्ण पाया. सड़कें अनगिनत लैंप्स से सजी थीं और आसमान में पटाखे छूट रहे थे. उस समय क़स्बा रौश्नियों का त्योहार दीवाली मना रहा था जिसकी इस साल में ख़ास अहमियत थी. ये 14 साल वनवास के बाद भगवान राम(आप) के अयोध्या लौटने को इंगित कर रहा था.
हमें अदाएँ दिवाली की ज़ोर भाती हैं ।
कि लाखों झमकें हरएक घर में जगमगाती हैं ।।
चिराग जलते हैं और लौएँ झिलमिलाती हैं ।
मकां-मकां में बहारें ही झमझमाती हैं ।।
खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं ।
बताशे हँसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं ।।1।।
गुलाबी बर्फ़ियों के मुँह चमकते-फिरते हैं ।
जलेबियों के भी पहिए ढुलकते-फिरते हैं ।।
हर एक दाँत से पेड़े अटकते-फिरते हैं ।
इमरती उछले हैं लड्डू ढुलकते-फिरते हैं ।
18वीं सदी में अवाम के शायर के नाम से मशहूर उर्दू शायर नज़ीर अकबराबादी ने इसकी ख़ूबसूरत तस्वीर पेश की है. यहां शायर दीवाली के उस जश्न की ख़ूबसूरत व्याख्या करते हैं जब घर अनगिनत लैंप्स की रौश्नी से जगमगाते है. ये माहौल मोमबत्ती की झिलमिलाहट में ख़ुशी मनाता है और हर घर में त्योहार का माहौल होता है. खिलौने नाचते हैं, तस्वीरें संगीत के साथ चलती है और बताशे जैसी मिठाईयां हंसती और खिलखिलाती हैं, गुलाबी बर्फ़ी और घुमावदार जलेबियां घुमती और नाचती है जबकि पेड़े दांतों से चिपक जाते हैं, इमरती घूमती हैं और लड्डू ढुलकते नाचते हैं.
अयोध्या के लोगों के लिए दीवाली रौश्नियों और मिठाईयों से बढ़कर है. इसका अर्थ है कि धर्मपरायण का लौटना और राम-राज्य की स्थापना. जब मैंने स्थानीय लोगों से बात की तो उन्होंने राम के न्याय और प्रशासन के बारे में कहानियां बताईं जहां हर इंसान संतुष्ट था और किसी तरह की बुराई की कोई जगह नहीं थी. उन्होंने राम-राज्य को शासन का आदर्श रूप बताया जहां न्याय सर्वप्रमुख था और शासक अडिग समर्पण से काम करते थे. ये एक तरह का ऐसा यूटोपिया था जिसे अनेक लोग अब भी हासिल करना चाहते हैं.
मैं केरल से हूं लेकिन मैं तमिल बोलता हूं. हम ओणम मनाते हैं और ये एक ख़ूबसूरत त्योहार है. पिछले साल ओणम के समय मैं केरल में था और ओणम का जश्न पूरे उरूज पर था जिसमें जलूस, रंगबिरंगे संगीत और परंपरागत नृत्यों का आयोजन किया गया था.
दीवाली के मशहूर त्योहार से अलग ओणम में राजा महाबली को सम्मानित किया जाता है जो कि एक राक्षस राजा हैं. मुझे इस प्रश्न में रूचि हुई कि क्यों इस प्रतीक का जश्न इतने उत्साह से मनाते हैं.
केरल में ओणम के समय परंपरागत कपड़े त्योहार की रूह की झलक देते हैं. औरतें इस रोज़ ऑफ़ व्हाइट साड़ी, सोने के आभूषण और बालों में गजरा पहनती हैं जबकि पुरूष सफ़ेद शर्ट के साथ गोल्डेन बार्डर वाला मुंडू पहनते हैं. त्योहार का माहौल बनाने के लिए घरों के बाहर फूलों के डिज़ाइन वाले रंगबिरंगे पोक्कलम भी सजाए जाते हैं.
वो कहते हैं- ‘वामन ने राजा के विश्वास को तोड़ा था.’ उनके विषय असुर राजा को भगवान (वामन) से ज़्यादा प्यार करते हैं. इस बात ने ही मुझे सोचने पर मजबूर किया.
रामराज्य और महाबली के राज्य ने यूटोपियन आदर्शों को चरित्रार्थ किया था जिसकी बुनियाद बेहद विशेष थी. रामराज्य का अर्थ था पवित्र शासन जिसमें धर्म और बुराई पर अच्छाई की जीत पर बल दिया गया था. हालांकि इसपर नीची मानी जाने वाली जातियों और स्त्रियों के साथ असमान व्यवहार की छाप भी है. सीता की अग्निपरीक्षा और शंबूक की हत्या इसकी मिसाल है.
मैं आपके फ़ैसले पर सवाल नहीं कर रहा हूं भगवान, लेकिन हमें अन्य विचारों के प्रसंग में भी आपकी जगह को देखना चाहिए. आपने रामराज्य के विचार पर कोई दावा नहीं किया है लेकिन एक छोटे से समूह ने ऐसे विचारों को तय किया है जो कि औरों के लिए प्रासंगिक हो सकता है.
इससे बिल्कुल उल्टी धार में केरल के महाबली समतावाद के प्रतीक हैं. एक असुर राजा होने के बावजूद महाबली ने एक जातिविहीन समाज बनाया था जिसमें राजा और प्रजा के बीच में आपसी प्यार और सम्मान बेहद सर्वोपरि था. राम का अयोध्या लौटना जहां एक अनंत चीज़ हैं वहीं दूसरी तरफ़ महाबली का आगमन तेज़ी से बीत जाता है, फिर भी ओणम के समय उन्हें जो प्रेम मिलता है वो नायाब है. लोग ख़ुद को केवल गर्व के लिए ही नहीं वरन अपने प्रिय सम्राट की ख़ुशी के लिए भी सजाते हैं. ओणम एक राजा की समानाता के दृष्टिकोण का उत्सव है और अगर इसका मतलब पवित्र परंपराओं को तोड़ना भी हो तो भी इसका अर्थ यही है.
बेगम पुरा शहर को नाऊ।
दूख अंदोह तहिं न ठाऊ।।
ना तहिं बेरा, ना तहिं जाह।
ना तहिं बाद, ना तहिं गाह।।
अब मोहि बूलन हरि बेगम।
अस गह तहाँ न जाई न तेगम।।
इस कविता का नाम ‘बेगमपुरा’ है. संत रविदास बेगमपुरा नामक एक यूटोपियन राज्य की कल्पना करते हैं जिसका नाम बेगमपुरा है. जिसका अनुवाद है – ‘बिना दुख का एक शहर’. एक ऐसा शहर जिसमें पीड़ा, चिंता, दुख या जाति (बेरा) और वर्ग (जाह) पर आधारित भेदभाव की कोई जगह नहीं हैं. ये एक समन्वयवादी जगह है जहां झगड़े (बाद) और कर (गाह) का कोई वजूद नहीं है.
संत रविदास हरि (भगवान का नाम) द्वारा इस दुखरहित जगह पर बुलाए जाने की गहरी अभिलाषा जताते हैं. ये एक ऐसी जगह है जहां कोई तलवार (तेगम) दुखों को जन्म नहीं दे सकती है. इसमें कवि ऐसी जगह की कल्पना कर रहा है जहां शांति और सद्भाव है और जहां जाति या आर्थिक स्तर की बुनियाद पर कोई असमान व्यवहार नहीं होता है. इसमें एक ऐसे समतावादी समाज का सपना है जहां ख़ुशी और शांति किसी का व्यक्तिगत तजरबा न होकर समुदाय के साझा अनुभव माने जाते हैं. ये एकता और भाईचारे पर आधारित समाज के सपने की बेहतरीन अभिव्यक्ति है जिसमें भेदभाव और पीड़ा की कोई जगह नहीं होगी.
रामराज्य, महाबली का राज्य और बेगमपुरा. भगवान राम के शासन के मुताबिक, रामराज्य एक दैवीय शासन है जिसमें धर्म पर ज़ोर दिया जाता है और असमानता की आलोचना की जाती है.
ओणम के दौरान महाबली के राज्य में एक समतावादी समाज की तस्वीरकशी की जाती है जिसमें शासक और प्रजा आपसमें प्यार और सम्मान का गहरा रिश्ता बनाते हैं जिसमें समानता की स्थापना के लिए दैवीय परंपराओं से इंकार कर दिया जाता है. संत रविदास के सिद्दांतों के मुताबिक़ बेगमपुरा एक ऐसे राज्य की कल्पना है जिसमें दुख, भेदभाव और आर्थिक असमानता नहीं होगी. ये सांप्रदायिक सद्भाव और शांति का चरम भी होगा. यूटोपिया सिर्फ़ अभिलाषा से भरा हुआ सिद्धांत ही नहीं वरन इसमें एक ऐसी व्यवस्था भी है जिसे समाज चुनना चाहता है.
एक विविध समाज में जीवन जीने का सिर्फ़ एक तरीक़ा उचित नहीं है और भारत जैसे राज्य में तो ये विचार अपने आप में भेदभावपूर्ण है. बेगमपुरा में एक ऐसे अप्रोच की कल्पना की गई है जिससे सबको फ़ायदा होता है जबकि रामराज्य में नियम ऐसे तय किए जाते हैं जिससे केवल कुछ विशेषाधिकार प्राप्त लोगों को फ़ायदा पहुंचे. शंबूक के ख़िलाफ़ कृत्य पर विवाद एक दूसरे समय की कहानी है. आपने एक पुरूष राजा की भूमिका निभाई जिसमें आपने एक भगवान से अपेक्षित पूर्णता के बजाय एक पुरूष की अपूर्णता दिखाई.
हे भगवान राम, आपको कर्णसागर (दया का सागर) के रूप में जाना जाता है. ये कहा जाता है कि आप सर्वभूताहिदे रत (सभी के कल्याण में रत) हैं और हर जीवित शय के सर्वोच्च मालिक हैं. मैं सिर्फ़ एक समातावादी समाज के वाहक के तौर पर आपकी कल्पना कर सकता हूं, एक अवतार जो दुनिया में दमकती एक अलग दुनिया की कल्पना कर सकता है और जो भेदभाव से रहित है.
अयोध्या के सुनहरे दरबार में, एक दयालु और न्यायप्रिय शासक,
भगवान राम ने दया भरी दृष्टि से, अपनी प्रजा की सेवा की।
उसने सबसे कमजोर की आवाज़ सुनी, उसने आँसू पोंछे,
उसके दयालु शासन में, सभी भय मिट गए।
अयोध्या के स्वर्ण दरबार में भगवान राम ने एक दयालु और न्यायप्रिय शासक के तौर पर लोगों की अपने दयालू मन से सेवा की. उन्होंने सबसे कमज़ोर वर्ग के आंसू पोंछे और अपने प्रेमपूर्ण प्रशासन के दौरान सारे डर दूर कर दिए.
आपके आशीष की उम्मीद में,
(लेखक फ़ाइनांशियल प्रोफ़ेश्नल हैं और उन्होंने अर्थशास्त्र में मास्टर डिग्री हासिल की है. वह कला और अकादमिक मुद्दों के अलाव विकास और मानवाधिकारों से जुड़े मुद्दों में गहरी दिलचस्पी रखते हैं.)
Trans: Bhaven