पेलमा सेक्टर-2 कोयला खदान: ग्रामीणों के विरोध बावजूद अडानी के लिए पुनः कराई जा रही जनसुनवाई !

Written by Anuj Shrivastava | Published on: September 23, 2019
14 गाँवों को प्रभावित करने वाले गारे पेलमा सेक्टर-2 में महाराष्ट्र पॉवर लिमिटेड(महाजनको) परियोजना की पर्यावरणीय जनसुनवाई 27 सितम्बर को ग्राम डोलेसरा ज़िला तमनार में होने वाली है. इस जनसुनवाई का इलाके के ग्रामीण लगातार विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. यदि ये परियोजना शुरू हो जाती है तो पाता, सराई टोला, टिहरी रामपुर, डोलेसरा, सारसमाल, लिबरा, गारे, चित्वाही, कुंजेमुरा, मुड़ागांव, रोड़ोपाली, बांधापली, बजरमुडा, और झिंकाबहाल ये 14 गँव सबसे अधिक प्रभावित होंगे. इन गाँवों के रहवासियों का कहना है कि जनसुनवाई के विरोध में जो भी प्रदर्शन व बैठकें आदि हो रही हैं, अडानी कंपनी के लोग वहां पहुंच कर उस पर नज़र रखते हैं और मानसिक रूप से ग्रामीणों पर दबाव बनाने की कोशिश करते हैं. बैठकों में मौजूद लोगों के पीछे कंपनी अपने आदमी लगा देती है और उनकी गतिविधियों की जासूसी करवाती है. 



ग्रामीणों ने बताया कि कुछ युवकों को लालच देकर गांव वालों के विरूद्ध भड़काया जा रहा है ताकि लोग आपस में लड़ें और कंपनी अपने मंसूबे में कामयाब हो जाए. ग्रामीणों का आरोप है कि कंपनी इन गाँवों में कोयले की अंधाधुंध खुदाई करना चाहती है. पहले से ही प्रदूषण की मार झेल रहे इस इलाके में यदि इसी तरह नई खदानें बनती रहीं तो पर्यावरण भयानक स्तर पर प्रदूषित हो जाएगा. पहले ही विस्थापन इन इलाकों की बहुत बड़ी समस्या है, पर्यावरणीय नुकसान के साथ-साथ नई खदानों से विस्थापित लोगों की समस्या और भी बढ़ जाएगी. पर्यावरण और आम ग्रामीणों के जीवन को ताक पे रख कर किए जाने वाले विनाश कार्यों का ये ग्रामीण विरोध कर रहे हैं.

गौर करने वाली महत्वपूर्ण बात ये है कि पिछले 3 सालों से इन्हीं 14 प्रभावित गांवों की ग्राम सभाओं ने इस परियोजना के ख़िलाफ़ असहमति प्रस्ताव पारित किए हैं. पिछली रिपोर्ट्स ने पर्यावरणीय नज़रिए से भी इस जगह को पहले से चल रहे कोयला खदान और पॉवर प्लांट की वजह से अति प्रदूषित बताया है. यहां तक कि सरकारी संस्था नीरी ने भी इन 14 गांवों में पानी और हवा में प्रदूषित तत्वों को सामान्य से अधिक मात्रा में खतरनाक स्तर पर पाया है.

एनजीटी में चल रहे प्रकरणों से भी पिछले महीने एक हाई लेवल टीम ने इस क्षेत्र का जायज़ा लिया था. ये बात समझ से परे है कि इतनी समस्याओं के बावजूद भी सरकार FRA, PESA और पर्यावरणीय नियमों की अनदेखी करते हुए ये जनसुनवाई क्यों करवा रही है? नई कांग्रेस सरकार को ख़ुद ही इसका विरोध करना चाहिए था, परन्तु रमन सरकार की तरह ही भूपेश सरकार भी आदिवासियों के हित में ठोस फ़ैसले लेती नज़र नहीं आ रही है. 

विरोध प्रदर्शन में मौजूद मानव अधिकार कार्यकर्ता पुष्पा कलाप्रेमी ने सबरंग से ये जानकारियाँ साझा करते हुए बताया कि बस्तर से लेकर हसदेव अरण्य व रायगढ़ तक अडानी की दादागिरी चल रही है और प्रशासनिक महकमा ख़ामोश बैठा है.

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