कहानियां अब बोगीबील पुल की होंगी, गंगा पुल की पुरानी पड़ चुकी हैं

Written by Ravish Kumar | Published on: December 26, 2018
सरकारी नौकरी से संबंधित समस्याओं को देखकर लगता है कि एक समस्या खुद नौजवान भी हैं। अलग-अलग भर्ती परीक्षा के नौजवान अपनी परीक्षा के आंदोलन में तो जाते हैं मगर दूसरी परीक्षा के पीड़ित नौजवानों से कोई सहानुभूति नहीं रखते। उन्हें यह बात समझनी चाहिए कि जब तक पारदर्शी और विश्वसनीय परीक्षा व्यवस्था के लिए नहीं लड़ेंगे, इस तरह की मीडियाबाज़ी और ट्वीटरबाज़ी से कुछ नहीं होगा। स्थानीय अख़बार छाप भी रहे हैं, मगर चयन आयोगों पर कोई असर नहीं हो रहा है। नौजवानों को यह भी समझना चाहिए कि ट्वीटर पर मंत्री अपने प्रचार के लिए हैं न कि उनकी समस्याओं को पढ़ने के लिए।



उत्तर प्रदेश के पुलिस भर्ती बोर्ड का क़िस्सा सुनिए। 2013 में ग्यारह हज़ार पदों की भर्ती निकली। इनमें से आठ हज़ार नौजवानों ने सारी प्रक्रियाएँ पूरी कर ली हैं। कई बार धरना प्रदर्शन किया मगर सरकारों पर कोई असर नहीं। कोर्ट से भी मुकदमा जीत आए कि सबको नियुक्ति मिले मगर कुछ नहीं हो रहा है। सोमवार को पुलिस भर्ती बोर्ड के सामने धरना दिया लेकिन कोई नतीजा नहीं। परीक्षा पास कर आठ हज़ार से अधिक नौजवान धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं। पाँच साल बीत चुके हैं। सरकार के भीतर से किसी को इनकी बात सुननी चाहिए और हफ्ते भर के भीतर समाधान करना चाहिए।

इसी तरह 12460 शिक्षकों की नियुक्ति का मामला है। इन लोगों ने भी कई धरना प्रदर्शन किए मगर अभी भी कई हज़ार नौजवानों को नियुक्ति पत्र नहीं मिला है। कम से कम इन पीड़ितों को भी पुलिस भर्ती के लिए संघर्ष कर रहे नौजवानों की सभा में जाना चाहिए था और सिपाही भर्ती वालों को बीटीसी शिक्षकों के धरने में। अकेले की लड़ाई से सिस्टम नहीं बदल रहा है।

उधर रेलवे के परीक्षार्थी परेशान हो गए हैं। आपको याद होगा कि इस साल रेलवे ने साठ हज़ार पदों की भर्ती निकाली थी। अगस्त और सितंबर में परीक्षा हुई। इस परीक्षा में पाँच लाख से अधिक छात्र पास होते हैं। इसका रिज़ल्ट दो बार क्यों निकलता है? एक ही साथ सारा रिज़ल्ट क्यों नहीं निकला? मेरी समझ में नहीं आ रहा। छात्रों ने त्राहीमाम संदेश भेजे हैं कि पहले पाँच लाख वाले रिजल्ट में पास हो गया था लेकिन बारह लाख से अधिक छात्रों का निकला तो फ़ेल कर दिया गया। जो भी व्यवस्था हो, इन्हें साफ़ साफ़ क्यों नहीं बताया जाता है। ये क्या तमाशा चल रहा है?

इसका एक दूसरा पक्ष छात्रों की ही तरफ से आया है।

“ जब पहली बार रिजल्ट आया तो कुल 5 लाख लड़के पास हुए। रेलवे के नियम से मिनिमम 40% जनरल,30% ओबीसी और शायद 20% sc/st को लाना था। जब रिजल्ट आया तो लड़के इतना नंबर ला ही नही पाए । क्वेश्चन पेपर में कुछ क्वेश्चन गलत थे फाइनल मार्किंग के बाद भी(1 या 2 वो भी किसी 1,2 शिफ्ट में)। जब लड़कों ने कंप्लेन किया, तब रेलवे ने सब लड़को का कुछ ना कुछ नंबर बढ़ा दिया । किसी किसी का 1 ,2 नंबर घटा भी, मेरा खुद 1 नंबर घटा लेकिन घाटा किसी को नही हुआ। जो रेलवे का नियम था कि हर जोन में 15 गुना कैंडिडेट cbt2 के लिए होंगे उसके लिए रेलवे ने minimum क्राइटेरिया पार करने वाले सभी को क्वालीफाई कर दिया। जिससे भोपाल में 40 गुना लोग क्वालीफाई,allahabad में 29 गुना। कोई ऐसा नही है जो फैल हो गया जो पास था पहले। अब सर् नंबर और normalized नंबर में फर्क है। पेपर 75 का हुआ था और मार्किंग 100 पे होती है पेपर के लेवल के अनुसार normalized किया जाता है।”

तो क्या मुझे गुमराह किया गया? फिर भी रेलवे सभी छात्रों को अपनी प्रक्रिया के बारे में सही सही जानकारी छात्रों को दे। बताए कि क्यों रिज़ल्ट की समीक्षा की गई ? छात्र रेलबोर्ड और रेल मंत्री को ट्वीट कर रहे हैं। उन्हें कोई जवाब नहीं मिलता। ये किस दौर के नौजवान हैं जिन्हें इतनी सी बात नहीं मालूम कि मंत्रियों ने ट्वीटर पर अपने प्रचार के लिए खाता खोला है न कि उनकी समस्याओं को पढ़ कर समाधान के लिए। क्या ये नौजवान वाक़ई इन चीज़ों को समझने लायक नहीं हैं? तो जाकर टाइम लाइन खुद चेक कर लें कि लोग किस किस तरह की शिकायतें लिख रहे हैं और सुनवाई किस तरह की होती है। मंत्री किसी शिकायत पर डायपर भिजवा कर मीडिया में वाहवाही लूट लेता है। बाकी सारी बातें जस की तस।

अब आते हैं मीडिया पर। ज़ाहिर है नौजवानों की ज़िंदगी दाँव पर है तो वे हर जगह हाथ-पाँव मारेंगे। टीवी के एंकरों को ट्वीट कर रहे हैं। हताश हैं कि मीडिया ने नहीं दिखाया। अब एक सवाल वे ख़ुद से पूछें। वे टीवी पर क्या देखते हैं? क्या जब दूसरे समूह के धरना-प्रदर्शन की ख़बरें आती हैं तो देखते हैं, सोचते हैं कि सरकार ऐसा कैसे कर सकती है? जब वे ख़ुद नहीं देखते, हिन्दू मुस्लिम डिबेट में लगे रहेंगे तो यह मीडिया उनकी क्यों सुनेगा? तो कुल मिलाकर नौजवान अपनी नागरिक शक्ति को कबाड़ में बदल रहे हैं। मेरे हिसाब से उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए। यह भी भयावह है कि आठ आठ हज़ार नौजवान परीक्षा पास कर चुके हैं मगर नियुक्ति पत्र नहीं मिल रहा। हज़ारों नौजवान पास कर चुके हैं लेकिन उन्हें फ़ेल कर दिया जाता है। ये एक राज्य की बात नहीं है। हर राज्य की बात है। अब मैं इस पर कितनी पोस्ट लिख चुका हूँ। कितनी बार एक ही बात कहूँ।

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