कोरोना संक्रमण का सामना संयम से कर रहे हैं लोग, कई तबकों का किरदार निखर कर आया है सामने

Written by Ravish Kumar | Published on: April 5, 2020
इसे कामयाबी कहना चाहिए कि भारत की आबादी के बड़े हिस्से ने सामाजिक दूरी का पालन सख़्ती से किया है। उसने कोरोना के ख़तरे को ठीक से समझ लिया है और अनुशासित तरीके से पालन कर रहा है। लोग वाकई ज़रूरी काम के लिए ही निकल रहे हैं। अपने आस-पास की दुकानों में ख़रीदारी की होड़ नहीं देख रहा हूं। कर्फ्यू और तालाबंदी के एलान के वक्त आपा-धापी मची थी लेकिन लोग अब स्थिर हो गए हैं। मास्क भी लगा रहे हैं और दूर दूर भी चल रहे हैं। यह अनुभव और अभ्यास आगे के दिनों में काफी काम आएगा। इसके लिए लोगों को बधाई।



बेशक पुलिस की बर्बरता के कई वीडियो सामने आए लेकिन अब पुलिस का काम लोगों ने आसान कर दिया है। लोग भी पुलिस को मौका नहीं दे रहे हैं। लोग पुलिस को चकमा देकर इस गली से निकल कर उस गली के रास्ते हाइवे पर पहुंचने का प्रयास नहीं कर रहे हैं। कई पुलिस वाले सहयोग भी कर रहे हैं। उन्हें भी अपनी सुरक्षा की चिन्ता है लेकिन वे बैरिकेड पर डटे हैं।

छोटे दुकानदारों के चेहरे पर ख़रीदार का इंतज़ार देख कर बुरा लगता है। लेकिन इस वक्त उनके चेहरे पर एक झिझक भी दिख रही है। ज़्यादा दाम बताते वक्त उनकी नज़रें छिप जा रही हैं। इसका मतलब है कि वे अपनी तरफ से ज़्यादा कमाने का प्रयास नहीं कर रहे हैं। मंडी से कोई चीज़ महंगी मिली होगी तो उसका वे क्या कर सकते हैं। ज़रूर चीज़ें महंगी हो गई है लेकिन दुकानदार ज़्यादा से ज़्यादा कमाने के चक्कर में नहीं दिखता है। आपूर्ति में समस्या के कारण दाम बढ़े होंगे लेकिन अभी तक इसकी शिकायत नहीं आई है कि फलां दुकानदार ज़्यादा दाम ले रहा है। ठेले पटरी वालों पर गर्व हो रहा है। वे भी कितने तकलीफ में हैं। चीज़ें भी कम बिक रही है फिर भी वे ज्यादा दाम नहीं वसूल रहे। संकट हमारे भीतर के बुरे किरदार को भी सामने लाता है और अच्छे किरदार को भी।

बैंकर अपनी सुरक्षा को लेकर चिन्तित हैं। सामाजिक सुरक्षा के पैसे आने से बैंकों में भीड़ बढ़ी है। यहां पर सामाजिक दूरी के नियम टूट रहे हैं। बैंकरों ने कई तस्वीरें भेजी हैं जिसमें शाखा के बाहर काफी भीड़ दिखाई दे रही है और लोग सामाजिक दूरी का पालन नहीं कर रहे हैं। यह चिन्ताजनक है। अगर लोगों को बताया जाए कि बैंक कल भी खुलेगा तो फिर वे हड़ब़ड़ी नहीं करेंगे। दूसरा जैसे ऑड एंड ईवन होता है उसी तरह बैंकर खातों के नंबरों के हिसाब से बाहर नोटिस लगा सकते हैं, आस पास के इलाके में लगवा सकते हैं कि इस नंबर से इस नंबर तक के लोग इस दिन आ सकते हैं। यदि संभव हो तो। ध्यान रहे कोरोना से सतर्कता का अभ्यास हमें लंबे समय के लिए करना होगा। इसलिए इसके नियम बनाते रहने चाहिए। बैंकर की मदद करें। काउंटर पर भीड़ न करें।

जिनकी नौकरी जा रही है, सैलरी कम हो रही है उनके मैसेज देखकर बहुत बुरा लग रहा है। अफसोस होता है। आज किसी ने बिहार से मैसेज किया। बिजली विभाग से जुड़ी प्राइवेट कंपनी ने 200 लोगों को निकाल दिया है। इस तरह से न जाने कितने लोगों की नौकरी गई होगी। एक विमान कंपनी ने 50 प्रतिशत सैलरी कम कर दिए है। किसी के साथ ऐसा न हो लेकिन कोरोना के कारण जिस तरह अर्थव्यवस्था तबाह हुई है उसका परिणाम सभी को भुगतना होगा। मुझे भी और आपको भी।

लेकिन मिडिल क्लास के इस हिस्से की भी तारीफ करना चाहूंगा। नौकरी जाने और सैलरी कम होने के बाद भी वह अधीर नहीं हुआ है। सरकार को गाली नहीं दे रहा है। बल्कि सरकार के साथ है। इक्का दुक्का लोगों ने ही नौकरी जाने की बात को लेकर मुझे मैसेज किया है। मेरे इनबाक्स का मैसेज ठीक ठाक सैंपल है। हर रोज़ एक हज़ार से अधिक मैसेज आते हैं। यह साधारण बात नहीं है। नौकरी जाना सबसे बड़ा आघात है। आर्थिक के साथ साथ मानसिक भी। लेकिन किसी तरह का आक्रोश लोगों में नहीं है। किसी से नाराज़गी नहीं है। ईएमआई को लेकर शुरू में मैसेज आए थे वो अब बंद हो गए हैं। लोगों ने हालात समझ लिए हैं।


कोरोना के संकट ने मिडिल क्लास के भीतर से बेहतर किरदार को निकाला है। अमरीका में एक करोड़ लोग बेरोज़गार हुए हैं। यह संख्या उससे भी अधिक हो सकती है। लेकिन 1 करोड़ वह संख्या है जिसने 1200 डॉलर के महंगाई भत्ते के लिए आवेदन किया है। भारत में ऐसा कुछ नहीं मिला है और न ही मिडिल क्लास ने मांग की है। यहां पर मैं मिडिल क्लास की इस सहनशीलता और देश के प्रति योगदान की तारीफ करना चाहूंगा। यह जानते हुए कि वे इस वक्त किस कदर परेशान होंगे। कल की चिन्ता पहाड़ सी होगी। यह वो क्लास है जिसके हाथ में ट्विटर है। चाहता तो एक मिनट में ट्रेंड कराकर प्रधानमंत्री के पीछे पड़ जाता कि हमारी नौकरी कहां हैं।


यह बिल्कुल साधारण बात नहीं है। इस संकट को भारत की जनता ने बहुत खूबी से आपस में बांट लिया है। विपक्ष की भी तारीफ करनी चाहिए। ज़रूरी आलोचनाओं के अलावा विपक्ष चुप है। यह भी भारत के विपक्ष का अच्छा किरदार है। इसकी भी तारीफ होनी चाहिए। जब लोग विपक्ष को सुनना बंद कर दें तो विपक्ष को भी महीने भर के लिए चुप रहना चाहिए ।

डाक्टर लोगों की भी तारीफ बनती है। उनके पास कोई सुविधा नहीं है। 4 अप्रैल तक कई अस्पतालों के नर्स और डाक्टर जरूरी उपकरणों को लेकर आवाज़ उठा रहे हैं लेकिन इनके साथ कोई बड़ा डॉक्टर नहीं है। बड़े डॉक्टर पूरी तरह सरकार के साथ हैं। वरना वही चाहते तो अपने स्तर पर पूंजी जमा कर पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट की व्यवस्था कर सकते थे। दवा कंपनियां दे सकती थीं। तारीफ की बात है यह है कि नर्स और जूनियर डाक्टरों ने दबाव के लिए काम ज़रूर बंद किया मगर वे जल्दी ही लौट आए। हड़ताल पर नहीं गए।

डाक्टरों की बिरादरी बहुत सक्षम है। राजनीति में भी और समाज में भी। वो चाहती तो ट्विटर पर ट्रेंड कराकर सरकार को एक्सपोज़ कर देती। इक्का दुक्का डाक्टरों ने आवाज उठाई है लेकिन ज्यादातर सरकार के साथ है। बहुत कम डाक्टरों ने मुझे मैसेज किया है कि हमारी स्थिति की आवाज़ उठाइये। अभी भी अस्पतालों की तैयारी बेहद खराब है। मीडिया ने इन सवालों को ज़्यादा तवज्जों नहीं दिया है। यह थोड़ा उचित नहीं है। लेकिन इसके बारे में कौन नहीं जानता है। कह सकते हैं कि वाकई डाक्टरों ने भी अपनी सुरक्षा को खतरे में डाल सीमा पर मोर्चा संभाला है। सभी को बधाई।

जनता के रूप में हमारा किरदार पहले ही बदल चुका था। आगे कैसा बदलेगा कोई नहीं जानता। किसी को पता नही हैं कि दुनिया कैसी होगी। उस दुनिया में कौन कौन होगा। व्हाट्स एप यूनिवर्सिटी में हिन्दू मुस्लिम चल रहा है मगर व्यापक जनता का ध्यान कोरोना पर है। वो सतर्कता का पालन कर रही है। फिलहाल जनता का उतना बुरा प्रदर्शन नहीं है।

अवश्य ही कई जगहों से भी सामाजिक दूरी तोड़ने की तस्वीरें आ रही हैं। उम्मीद है वे भी समझेंगे।

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