2 अक्टूबर, 2014 को भारत सरकार ने स्वच्छ भारत अभियान की शुरूआत की थी। इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लक्ष्य रखा था कि 2019 में स्वच्छ भारत के रूप में महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि अर्पित की जाएगी। आज मोदी भारत को ओडीएफ घोषित करेंगे। सरकार की नजर में भले ही देश स्वच्छ हो गया हो लेकिन मैनुअल स्क्वैंजिंग की समस्या अभी भी एक बीमारी के रुप में बनी हुई है। सीवर औऱ सेप्टिक टैंक बगैर सुरक्षा उपकरणों के साफ कराए जाते हैं। इसमें आए दिन सफाई कर्मी अपनी जान गंवाते हैं। इन जान गंवाने वाले सफाई कर्मियों को मौत के बाद उनके परिवार को जो मुआवजा व न्याय को लेकर क्या प्रावधान है औऱ कितना मिलता है इसके बारे में पीपल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स (PUDR) ने पिछले दो सालों के दौरान दिल्ली में सीवर/ सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान हुई मजदूरों की मौतों पर अपनी रिपोर्ट क्रोनिक 'एक्सीडेंट्स' : डेथस ऑफ़ सीवर/ सेप्टिक टैंक वर्कर्स, दिल्ली जारी की है।
पीयूडीआर ने कहा कि महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि के रूप में ‘स्वच्छ’ भारत का लक्ष्य प्राप्त करने का उद्देश्य आज की वास्तविकता से फिलहाल बहुत दूर है। बल्कि यह दिवस मध्य प्रदेश में शिवपुरी के एक तथाकथित ‘ODF’ (खुले में शौच मुक्त) गाँव में दो दलित बच्चों की खुले में शौच करने के लिए प्रभावशाली जाति के दो व्यक्तियों के द्वारा पीट के मार दिये जाने की खबर के साये में ढका रहेगा।
PUDR ने 2017 से 2019 के बीच हुई अख़बारों में आयी मौत की 6 घटनाओं पर तथ्यपरक जांच करते हुए अपनी रिपोर्ट पेश की। इस रिपोर्ट में न केवल घटनाओं के तथ्यों की जांच की बल्कि घटनाओं के कारणों व परिस्थितियों को समझने का भी प्रयास किया है। रिपोर्ट ने घटनाओं के आधार पर दिखाया है कि किस प्रकार नगरीय योजनाओं और नीतियों में सीवर और सेप्टिक टैंकों के रख रखाव या प्रतिपालन और इस से जुड़े मज़दूरों के लिए प्रावधानों कि कमी इस प्रकार कि घटनाओं के लिए जिम्मेदार है।
इन मज़दूरों के लिए सुरक्षा की व्यवस्था न होना भी इन सभी घटनाओं में एक आम बात थी। और दोषी नियोक्ताओं (जो मजदूरों को यह जोखिम वाला काम बिना सुरक्षा के इंतेजाम के करने भेजते हैं) के ऊपर कानूनी कार्यवाही ढंग से लगभग किसी भी घटना में नहीं हुई। हालांकि, आजकल दिल्ली में 2014 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार इन घटनाओं में मुआवज़ा मिलने लगा है। पर मुआवज़ा कानूनी कार्यवाही या दोषी को सज़ा का स्थान नहीं ले सकता है, दोनों का होना न्याय के लिए ज़रूरी है (पृष्ठ 10-12)।
रिपोर्ट में स्वच्छकार मजदूरों के संगठनों के द्वारा संघर्षों का उल्लेख है और इनके और अन्य सामाजिक संगठनों के प्रयासों से सीवर/सेप्टिक टैंक सफाई में शामिल मजदूरों के पक्ष में कानूनों और कोर्ट के आदेशों पर चर्चा किया गया है। इनमें प्रोहिबिशन ऑफ एम्प्लॉयमेंट ऐज मैन्युअल स्केवेंजिंग एंड रिहैबिलिटेशन एक्ट 2013 और सुप्रीम कोर्ट का ‘सफाई कर्मचारी एवं अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया’ केस पर 2014 का आदेश विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि इन में सीवर और सेप्टिक टैंक सफाई के काम को ‘मैनुअल स्केवेंजिंग’(या हाथ से मल-मूत्र साफ़ करने) का दर्जा दिया गया है। ऐसे काम में लोगों को नियुक्त करने वाले और भेजने वाले नियोक्ताओं पर सख्त सज़ा का प्रावधान रखा है (पृष्ठ 12-14)। रिपोर्ट यह भी दर्शाती है कि इन सख्त क़ानूनों की नियमित रूप से अवहेलना ही होती है। दिल्ली के नगर योजना पर विशेष ध्यान देते हुए रिपोर्ट सीवर व्यवस्था के रखरखाव के लिए आयोजन की कमी, और इस कार्य में शामिल स्वछकार मजदूरों के कार्य के हालातों की ओर सम्पूर्ण अवहेलना की चर्चा करती है और प्रमाण प्रस्तुत करती है (पृष्ठ 16-17)।
रिपोर्ट के अंतिम हिस्से में राजकीय और सामाजिक संस्थाओं द्वारा इस मुद्दे से जूझने के लिए अपनाए गए समाधानों की आलोचनात्मक परीक्षण किया गया है। यह रिपोर्ट ‘स्वच्छ भारत अभियान’ जैसी नीतियों पर प्रश्न उठाती है (पृष्ठ 17-18)।
सीवर/सेप्टिक टैंकों के संदर्भ में मौतें बार बार क्यों होती हैं? इस प्रकार के हाथ से किए जाने वाले जोखिम वाले काम के खिलाफ क़ानूनों का लगातार उल्लंघन क्यों होता है? और क्या इन परिस्थितियों में हुई यह मौतें वाकई अप्रत्याशित ‘दुर्घटनाएँ’ हैं? रिपोर्ट इस प्रकार के प्रश्नों को उठाती है और इनके जवाब खोजते हुए, इनके जाति आधारित मनोदृष्टि के साथ संबंध की ओर संकेत करती है।
भारत में जाति आधारित मनोदृष्टि की जड़ें बहुत गहरी हैं और यह पूर्ण रूप से भारत में सफाई एवं सफाई कर्मचारियों की ओर सामाजिक और राजनैतिक रवैये और नीतियों को प्रभावित करती है। रिपोर्ट के निष्कर्ष में आग्रह किया गया है कि देश को ‘स्वच्छ’ करने की सभी नीतियों और सफाई और नगरीय विकास की योजनाओं को आँकने के सीवर/सेप्टिक टैंकों की सफाई के दौरान हुई मजदूरों की मौतों के बारे में चिंतन को प्रमुख स्थान दिया जाए और इन्हें रोकने के लिए राजनैतिक और सामाजिक इच्छाशक्ति ज़ाहिर हो।
पीयूडीआर ने कहा कि महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि के रूप में ‘स्वच्छ’ भारत का लक्ष्य प्राप्त करने का उद्देश्य आज की वास्तविकता से फिलहाल बहुत दूर है। बल्कि यह दिवस मध्य प्रदेश में शिवपुरी के एक तथाकथित ‘ODF’ (खुले में शौच मुक्त) गाँव में दो दलित बच्चों की खुले में शौच करने के लिए प्रभावशाली जाति के दो व्यक्तियों के द्वारा पीट के मार दिये जाने की खबर के साये में ढका रहेगा।
PUDR की यह रिपोर्ट इस प्रकार के कुछ अन्य तथ्यों की सूची के ओर ध्यान आकर्षित करती है जिनसे जूझे बगैर ‘स्वच्छ’ भारत का लक्ष्य प्राप्त नहीं हो सकता है– यानि सीवर या सेप्टिक टैंक साफ़ करने के लिए भेजे गए मजदूरों की काम करने के दौरान मौतें। यह बार-बार होने वाली, चिरकालिक ‘दुर्घटनाएँ’ हैं, जो स्वच्छकार मज़दूरों के साथ भारत को ‘स्वच्छ’ करने से संबन्धित एक महत्त्वपूर्ण काम को करने की प्रक्रिया में होती हैं।
PUDR ने 2017 से 2019 के बीच हुई अख़बारों में आयी मौत की 6 घटनाओं पर तथ्यपरक जांच करते हुए अपनी रिपोर्ट पेश की। इस रिपोर्ट में न केवल घटनाओं के तथ्यों की जांच की बल्कि घटनाओं के कारणों व परिस्थितियों को समझने का भी प्रयास किया है। रिपोर्ट ने घटनाओं के आधार पर दिखाया है कि किस प्रकार नगरीय योजनाओं और नीतियों में सीवर और सेप्टिक टैंकों के रख रखाव या प्रतिपालन और इस से जुड़े मज़दूरों के लिए प्रावधानों कि कमी इस प्रकार कि घटनाओं के लिए जिम्मेदार है।
इन मज़दूरों के लिए सुरक्षा की व्यवस्था न होना भी इन सभी घटनाओं में एक आम बात थी। और दोषी नियोक्ताओं (जो मजदूरों को यह जोखिम वाला काम बिना सुरक्षा के इंतेजाम के करने भेजते हैं) के ऊपर कानूनी कार्यवाही ढंग से लगभग किसी भी घटना में नहीं हुई। हालांकि, आजकल दिल्ली में 2014 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार इन घटनाओं में मुआवज़ा मिलने लगा है। पर मुआवज़ा कानूनी कार्यवाही या दोषी को सज़ा का स्थान नहीं ले सकता है, दोनों का होना न्याय के लिए ज़रूरी है (पृष्ठ 10-12)।
रिपोर्ट में स्वच्छकार मजदूरों के संगठनों के द्वारा संघर्षों का उल्लेख है और इनके और अन्य सामाजिक संगठनों के प्रयासों से सीवर/सेप्टिक टैंक सफाई में शामिल मजदूरों के पक्ष में कानूनों और कोर्ट के आदेशों पर चर्चा किया गया है। इनमें प्रोहिबिशन ऑफ एम्प्लॉयमेंट ऐज मैन्युअल स्केवेंजिंग एंड रिहैबिलिटेशन एक्ट 2013 और सुप्रीम कोर्ट का ‘सफाई कर्मचारी एवं अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया’ केस पर 2014 का आदेश विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि इन में सीवर और सेप्टिक टैंक सफाई के काम को ‘मैनुअल स्केवेंजिंग’(या हाथ से मल-मूत्र साफ़ करने) का दर्जा दिया गया है। ऐसे काम में लोगों को नियुक्त करने वाले और भेजने वाले नियोक्ताओं पर सख्त सज़ा का प्रावधान रखा है (पृष्ठ 12-14)। रिपोर्ट यह भी दर्शाती है कि इन सख्त क़ानूनों की नियमित रूप से अवहेलना ही होती है। दिल्ली के नगर योजना पर विशेष ध्यान देते हुए रिपोर्ट सीवर व्यवस्था के रखरखाव के लिए आयोजन की कमी, और इस कार्य में शामिल स्वछकार मजदूरों के कार्य के हालातों की ओर सम्पूर्ण अवहेलना की चर्चा करती है और प्रमाण प्रस्तुत करती है (पृष्ठ 16-17)।
रिपोर्ट के अंतिम हिस्से में राजकीय और सामाजिक संस्थाओं द्वारा इस मुद्दे से जूझने के लिए अपनाए गए समाधानों की आलोचनात्मक परीक्षण किया गया है। यह रिपोर्ट ‘स्वच्छ भारत अभियान’ जैसी नीतियों पर प्रश्न उठाती है (पृष्ठ 17-18)।
सीवर/सेप्टिक टैंकों के संदर्भ में मौतें बार बार क्यों होती हैं? इस प्रकार के हाथ से किए जाने वाले जोखिम वाले काम के खिलाफ क़ानूनों का लगातार उल्लंघन क्यों होता है? और क्या इन परिस्थितियों में हुई यह मौतें वाकई अप्रत्याशित ‘दुर्घटनाएँ’ हैं? रिपोर्ट इस प्रकार के प्रश्नों को उठाती है और इनके जवाब खोजते हुए, इनके जाति आधारित मनोदृष्टि के साथ संबंध की ओर संकेत करती है।
भारत में जाति आधारित मनोदृष्टि की जड़ें बहुत गहरी हैं और यह पूर्ण रूप से भारत में सफाई एवं सफाई कर्मचारियों की ओर सामाजिक और राजनैतिक रवैये और नीतियों को प्रभावित करती है। रिपोर्ट के निष्कर्ष में आग्रह किया गया है कि देश को ‘स्वच्छ’ करने की सभी नीतियों और सफाई और नगरीय विकास की योजनाओं को आँकने के सीवर/सेप्टिक टैंकों की सफाई के दौरान हुई मजदूरों की मौतों के बारे में चिंतन को प्रमुख स्थान दिया जाए और इन्हें रोकने के लिए राजनैतिक और सामाजिक इच्छाशक्ति ज़ाहिर हो।