युवा पत्रकार प्रियभाँशु रंजन ने प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया में आठ साल पूरे करने के मौक़े पर जो फ़ेसबुक पोस्ट लिखी है, वह तमाम टीवी चैनलों और कथित मुख्यधारा पत्रकारिता को आईना दिखाने जैसा है। एक ज़माने में मोटी सैलरी के चक्कर में ना जाने कितने बड़े-छोटे पत्रकार कॉरपोरेट पत्रकारिता के साथ नत्थी हुए, लेकिन बीते दस-बारह सालों में ख़ुद को बचाये रखने और ‘कॉरपोरेट एजेंडा’ पूरा करने के लिए पत्रकारिता के मूल विचार की उन्होंने जिस तरह ऐसी-तैसी की है, उसकी मिसाल नहीं मिलती। नतीजा यह है कि प्रियभाँशु जैसे युवा पत्रकार पीटीआई जैसी एजेंसी में काम करते हुए ख़ुद को ज़्यादा सुखी मान रहे हैं।
प्रियभाँशु ने नाम तो नहीं लिखा, लेकिन इशारा सीधे एबीपी न्यूज़ की ओर है। क्या एबीपी के संपादक अपनी छवि को लेकर चिंतित होंगे, या फिर वे इस ‘बिगाड़’ में ही क़ामयाबी का जुगाड़ देख रहे हैं। बहरहाल, अगर उन्हें इस ख़बर पर कोई आपत्ति है तो वे mediavigilindia@gmail.com पर लिखित प्रतिवाद भेज सकते हैं। मीडिया विजिल उसे निश्चित ही छापेगा- संपादक।
पढ़ें प्रियभाँशु की पोस्ट–
“योगी के बाल नहीं उगने की वजह जानने, गोशाला की गायें गिनने या मोदी के सोने के घंटे जानने के लिए जर्नलिज्म में नहीं आया था।
पूरी तरह सोच समझकर असल खबरों से जुड़ा काम करने के लिए जर्नलिज्म में आया था। ये काम आज भी कर रहा हूं। शान से कर रहा हूं।
शायद इसलिए 8 साल बाद भी PTI में हूं। मीडिया में जब तक रहूंगा, PTI या इसकी तरह ही गंभीर काम में यकीन रखने वाली किसी संस्था में रहूंगा।
ऐसा नहीं है कि मैंने PTI को छोड़कर कहीं और नौकरी करने की कोशिश नहीं की। बिल्कुल की। जब जर्नलिज्म में बमुश्किल दो साल हुए थे, उस वक्त दो बड़े न्यूज़ चैनलों के एडिटर से मिला था। पर बात बनी नहीं और फिर मैंने कभी कहीं कोशिश भी नहीं की।
कोशिश नहीं करने की एक वजह शायद ये भी रही कि PTI देश के उन चुनिंदा मीडिया हाउस में है, जहां Working Journalist Act पर बहुत हद तक अमल होता है, जिससे सैलरी, इंक्रीमेंट, प्रमोशन और छुट्टियों के लिए मगज़मारी नहीं करनी पड़ती।
बहरहाल, मोदी को PM कैंडिडेट घोषित करने के बाद जिस तरह न्यूज़ चैनलों में मोदी भक्ति का दौर शुरू हुआ, उससे शायद मेरा मोहभंग हो गया और मुझे गंभीर काम की जरूरत और अहमियत समझ आ गई।
लिहाज़ा, अब तय किया है कि जब तक जर्नलिज्म में हूं, अपने काम के स्तर से समझौता नहीं करूंगा।
Note: ये भाषण उनके लिए लिखा जो मिलते ही सवाल दागते हैं कि अरे प्रियभांशु, अभी भी PTI में ही हो।
Courtesy: Media Vigil
प्रियभाँशु ने नाम तो नहीं लिखा, लेकिन इशारा सीधे एबीपी न्यूज़ की ओर है। क्या एबीपी के संपादक अपनी छवि को लेकर चिंतित होंगे, या फिर वे इस ‘बिगाड़’ में ही क़ामयाबी का जुगाड़ देख रहे हैं। बहरहाल, अगर उन्हें इस ख़बर पर कोई आपत्ति है तो वे mediavigilindia@gmail.com पर लिखित प्रतिवाद भेज सकते हैं। मीडिया विजिल उसे निश्चित ही छापेगा- संपादक।
पढ़ें प्रियभाँशु की पोस्ट–
“योगी के बाल नहीं उगने की वजह जानने, गोशाला की गायें गिनने या मोदी के सोने के घंटे जानने के लिए जर्नलिज्म में नहीं आया था।
पूरी तरह सोच समझकर असल खबरों से जुड़ा काम करने के लिए जर्नलिज्म में आया था। ये काम आज भी कर रहा हूं। शान से कर रहा हूं।
शायद इसलिए 8 साल बाद भी PTI में हूं। मीडिया में जब तक रहूंगा, PTI या इसकी तरह ही गंभीर काम में यकीन रखने वाली किसी संस्था में रहूंगा।
ऐसा नहीं है कि मैंने PTI को छोड़कर कहीं और नौकरी करने की कोशिश नहीं की। बिल्कुल की। जब जर्नलिज्म में बमुश्किल दो साल हुए थे, उस वक्त दो बड़े न्यूज़ चैनलों के एडिटर से मिला था। पर बात बनी नहीं और फिर मैंने कभी कहीं कोशिश भी नहीं की।
कोशिश नहीं करने की एक वजह शायद ये भी रही कि PTI देश के उन चुनिंदा मीडिया हाउस में है, जहां Working Journalist Act पर बहुत हद तक अमल होता है, जिससे सैलरी, इंक्रीमेंट, प्रमोशन और छुट्टियों के लिए मगज़मारी नहीं करनी पड़ती।
बहरहाल, मोदी को PM कैंडिडेट घोषित करने के बाद जिस तरह न्यूज़ चैनलों में मोदी भक्ति का दौर शुरू हुआ, उससे शायद मेरा मोहभंग हो गया और मुझे गंभीर काम की जरूरत और अहमियत समझ आ गई।
लिहाज़ा, अब तय किया है कि जब तक जर्नलिज्म में हूं, अपने काम के स्तर से समझौता नहीं करूंगा।
Note: ये भाषण उनके लिए लिखा जो मिलते ही सवाल दागते हैं कि अरे प्रियभांशु, अभी भी PTI में ही हो।
Courtesy: Media Vigil