अब भले उत्तर प्रदेश के संभल में जिला प्रशासन ने नए कृषि कानूनों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन व प्रचार की एवज में किसान नेताओं को दिए गए मुचलका बांड के नोटिस, दबाव के चलते वापस ले लिए हो लेकिन किसानों को डराने धमकाने, समझाने और आंदोलन में प्रतिभाग करने से रोकने का यह सिलसिला बखूबी जारी है। उत्तर प्रदेश का पुलिस प्रशासन साम दाम दंड भेद की तर्ज पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गांव-गांव किसानों की घेराबंदी की कोशिशों में जुटा है!
किसान नेताओं के अनुसार पुलिस कहीं मुकदमे की धमकी दे रही तो किसी को आंदोलन में शामिल न होने की हिदायत दी जा रही है। अमर उजाला की एक रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली की सीमा पर चल रहे किसान आंदोलन में भाग लेने से रोकने के लिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पुलिस का 'ऑपरेशन देहात' चल रहा है। इस गोपनीय अभियान में किसी किसान को मुकदमे की धमकी दी जा रही है तो किसी को आंदोलन में शामिल न होने की हिदायत दी जा रही है। गांवों में अलग-अलग गुट बन गए हैं। एक भाजपा के समर्थन में तो दूसरा किसान आंदोलन की पैरवी कर रहा है।
दरअसल सियासत से जुड़े लोगों का मानना है कि दिल्ली किसान आंदोलन तभी सफल हो सकता है, जब इसमें पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान शामिल हों। ऐसे में पश्चिमी उप्र के किसानों को आंदोलन में जाने से रोकने के लिए पुलिस प्रशासन को मैदान में उतार दिया गया है। इसके लिए पुलिस ने देहात के इलाकों में चक्रव्यूह बनाना शुरू किया है। कोशिश यही है कि यहां के किसान आंदोलन में नहीं पहुंचने चाहिए।
कई दिन से देहात इलाकों में थाना स्तर से पुलिस किसान नेताओं व सक्रिय किसानों की निगरानी कर रही है। उन्हें समझाया जा रहा है, हिदायत दी जा रही कि किसान आंदोलन में शामिल होने से पहले पुलिस को बताएं, नहीं तो उनके खिलाफ मुकदमे दर्ज होंगे। आंदोलन में शामिल होने पर उनके खिलाफ कार्रवाई हो सकती है। कोई भी शंका हो तो वे संबंधित थाना पुलिस को ज्ञापन दे सकते हैं, जिसे शासन-प्रशासन को भिजवा दिया जाएगा।
गांव स्तर पर बीट कांस्टेबल रोजाना थाने में रिपोर्ट दे रहा है। किस गांव में कौन नेता और किसान नेता सक्रिय है और किसान आंदोलन में जाने की तैयारी कर रहा है, अब इसका पूरा डाटा थाना स्तर पर तैयार हो रहा है। यह सब गतिविधियां देहात के थानों में तेजी से चल रही हैं। थानों की सीमाओं पर चेकिंग के साथ वरिष्ठ अधिकारी डीएम व एसएसपी जिलों के बोर्डरों को खाक छान रहे हैं। पिछले दिनों गांव स्तर पर किसान नेताओं की नजरबंदी आदि की कवायद भी इसी चक्रव्यूह की देन थी।
गांव-गांव में किसान आंदोलन को लेकर चल रही गतिविधियों से संबंधित रिपोर्ट स्थानीय खुफिया इकाई (एलआईयू) से भी ली जा रही है। कौन-कौन सा गांव और कौन-कौन नेता किसान आंदोलन या फिर भाजपा के समर्थन में बात कर रहे हैं, इस पर एलआईयू की रिपोर्ट रोजाना लखनऊ भेजी जा रही है। पुलिस गोपनीय तरीके से डराने धमकाने समझाने आदि से किसानों की घेराबंदी करने में लगी है। मकसद, समझा बुझाकर किसानो को आंदोलन में भाग लेने से रोकना है।
उधर, पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने शनिवार को केंद्र पर आरोप लगाया कि केंद्र सरकार द्वारा कमीशन एजेंटों जिन्हें आढ़तिया कहा जाता है उन्हें धमकाने की कोशिश की जा रही है, क्योंकि वो नए कृषि कानूनों के विरोध में आंदोलनरत किसानों का समर्थन कर रहे हैं।
कैप्टन ने कहा कि पंजाब के कुछ आढ़तियों के खिलाफ आयकर छापे उनके लोकतांत्रिक अधिकार और स्वतंत्रता को रोकने के लिए एक स्पष्ट दबाव रणनीति है, उन्होंने कहा कि छापों के जरिए आढ़तियों को ''डराने-धमकाने'' की कोशिश की जा रही है और इस तरह की ''दमनकारी'' कार्रवाई का भाजपा के लिए उल्टा परिणाम होगा।
सीएम कार्यालय ने बयान में कहा कि पंजाब भर में कुल 14 आढ़तियों को आईटी विभाग से नोटिस मिला है। कई प्रमुख आढ़तियों के परिसर में कर छापे मारे गए, वो भी नोटिसों के जवाब की प्रतीक्षा किए बिना ही।
मुख्यमंत्री ने कहा कि यह स्पष्ट है कि कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के लंबे समय तक जारी विरोध को समाप्त करने में, किसानों को मनाने में, उन्हें विभाजित करने में और गुमराह करने में विफल रहने के बाद केंद्र सरकार अब आढ़तियों को निशाना बनाकर उनके संघर्ष को कमजोर करने की कोशिश कर रही है।
यह सब तब हो रहा है जब सुप्रीम कोर्ट ने शांतिपूर्ण तरीके से विरोध करने के लोगों के अधिकार को बरकरार रखा है। दूसरी ओर, सरकार खुद भी विपक्ष की साजिश के नाम पर, किसानों पर परोक्ष निशाना साधने से बाज नहीं आ रही है। विपक्ष के बहाने सरकार के मंत्री भी किसानों पर परोक्ष हमलों में जुटे हैं। जबकि किसान नेता अनेकों बार स्पष्ट कर चुके हैं कि दिल्ली आंदोलन किसानों का किसानों के द्वारा किसानों के लिए है।
अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति ने शनिवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को पत्र लिखकर कहा कि वर्तमान में चल रहे किसानों के विरोध प्रदर्शन किसी भी राजनीतिक दल से संबद्ध नहीं है। मोदी और तोमर को हिंदी में अलग-अलग लिखे गए पत्रों में समिति ने कहा कि सरकार की यह गलतफहमी है कि तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन को विपक्षी दलों द्वारा प्रायोजित किया जा रहा है। किसान संगठन की तरफ से ये पत्र तब लिखे गए जब एक दिन पहले प्रधानमंत्री ने विपक्षी दलों पर किसानों को तीन कृषि कानूनों को लेकर गुमराह करने का आरोप लगाया था।
किसान नेताओं के अनुसार पुलिस कहीं मुकदमे की धमकी दे रही तो किसी को आंदोलन में शामिल न होने की हिदायत दी जा रही है। अमर उजाला की एक रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली की सीमा पर चल रहे किसान आंदोलन में भाग लेने से रोकने के लिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पुलिस का 'ऑपरेशन देहात' चल रहा है। इस गोपनीय अभियान में किसी किसान को मुकदमे की धमकी दी जा रही है तो किसी को आंदोलन में शामिल न होने की हिदायत दी जा रही है। गांवों में अलग-अलग गुट बन गए हैं। एक भाजपा के समर्थन में तो दूसरा किसान आंदोलन की पैरवी कर रहा है।
दरअसल सियासत से जुड़े लोगों का मानना है कि दिल्ली किसान आंदोलन तभी सफल हो सकता है, जब इसमें पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान शामिल हों। ऐसे में पश्चिमी उप्र के किसानों को आंदोलन में जाने से रोकने के लिए पुलिस प्रशासन को मैदान में उतार दिया गया है। इसके लिए पुलिस ने देहात के इलाकों में चक्रव्यूह बनाना शुरू किया है। कोशिश यही है कि यहां के किसान आंदोलन में नहीं पहुंचने चाहिए।
कई दिन से देहात इलाकों में थाना स्तर से पुलिस किसान नेताओं व सक्रिय किसानों की निगरानी कर रही है। उन्हें समझाया जा रहा है, हिदायत दी जा रही कि किसान आंदोलन में शामिल होने से पहले पुलिस को बताएं, नहीं तो उनके खिलाफ मुकदमे दर्ज होंगे। आंदोलन में शामिल होने पर उनके खिलाफ कार्रवाई हो सकती है। कोई भी शंका हो तो वे संबंधित थाना पुलिस को ज्ञापन दे सकते हैं, जिसे शासन-प्रशासन को भिजवा दिया जाएगा।
गांव स्तर पर बीट कांस्टेबल रोजाना थाने में रिपोर्ट दे रहा है। किस गांव में कौन नेता और किसान नेता सक्रिय है और किसान आंदोलन में जाने की तैयारी कर रहा है, अब इसका पूरा डाटा थाना स्तर पर तैयार हो रहा है। यह सब गतिविधियां देहात के थानों में तेजी से चल रही हैं। थानों की सीमाओं पर चेकिंग के साथ वरिष्ठ अधिकारी डीएम व एसएसपी जिलों के बोर्डरों को खाक छान रहे हैं। पिछले दिनों गांव स्तर पर किसान नेताओं की नजरबंदी आदि की कवायद भी इसी चक्रव्यूह की देन थी।
गांव-गांव में किसान आंदोलन को लेकर चल रही गतिविधियों से संबंधित रिपोर्ट स्थानीय खुफिया इकाई (एलआईयू) से भी ली जा रही है। कौन-कौन सा गांव और कौन-कौन नेता किसान आंदोलन या फिर भाजपा के समर्थन में बात कर रहे हैं, इस पर एलआईयू की रिपोर्ट रोजाना लखनऊ भेजी जा रही है। पुलिस गोपनीय तरीके से डराने धमकाने समझाने आदि से किसानों की घेराबंदी करने में लगी है। मकसद, समझा बुझाकर किसानो को आंदोलन में भाग लेने से रोकना है।
उधर, पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने शनिवार को केंद्र पर आरोप लगाया कि केंद्र सरकार द्वारा कमीशन एजेंटों जिन्हें आढ़तिया कहा जाता है उन्हें धमकाने की कोशिश की जा रही है, क्योंकि वो नए कृषि कानूनों के विरोध में आंदोलनरत किसानों का समर्थन कर रहे हैं।
कैप्टन ने कहा कि पंजाब के कुछ आढ़तियों के खिलाफ आयकर छापे उनके लोकतांत्रिक अधिकार और स्वतंत्रता को रोकने के लिए एक स्पष्ट दबाव रणनीति है, उन्होंने कहा कि छापों के जरिए आढ़तियों को ''डराने-धमकाने'' की कोशिश की जा रही है और इस तरह की ''दमनकारी'' कार्रवाई का भाजपा के लिए उल्टा परिणाम होगा।
सीएम कार्यालय ने बयान में कहा कि पंजाब भर में कुल 14 आढ़तियों को आईटी विभाग से नोटिस मिला है। कई प्रमुख आढ़तियों के परिसर में कर छापे मारे गए, वो भी नोटिसों के जवाब की प्रतीक्षा किए बिना ही।
मुख्यमंत्री ने कहा कि यह स्पष्ट है कि कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के लंबे समय तक जारी विरोध को समाप्त करने में, किसानों को मनाने में, उन्हें विभाजित करने में और गुमराह करने में विफल रहने के बाद केंद्र सरकार अब आढ़तियों को निशाना बनाकर उनके संघर्ष को कमजोर करने की कोशिश कर रही है।
यह सब तब हो रहा है जब सुप्रीम कोर्ट ने शांतिपूर्ण तरीके से विरोध करने के लोगों के अधिकार को बरकरार रखा है। दूसरी ओर, सरकार खुद भी विपक्ष की साजिश के नाम पर, किसानों पर परोक्ष निशाना साधने से बाज नहीं आ रही है। विपक्ष के बहाने सरकार के मंत्री भी किसानों पर परोक्ष हमलों में जुटे हैं। जबकि किसान नेता अनेकों बार स्पष्ट कर चुके हैं कि दिल्ली आंदोलन किसानों का किसानों के द्वारा किसानों के लिए है।
अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति ने शनिवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को पत्र लिखकर कहा कि वर्तमान में चल रहे किसानों के विरोध प्रदर्शन किसी भी राजनीतिक दल से संबद्ध नहीं है। मोदी और तोमर को हिंदी में अलग-अलग लिखे गए पत्रों में समिति ने कहा कि सरकार की यह गलतफहमी है कि तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन को विपक्षी दलों द्वारा प्रायोजित किया जा रहा है। किसान संगठन की तरफ से ये पत्र तब लिखे गए जब एक दिन पहले प्रधानमंत्री ने विपक्षी दलों पर किसानों को तीन कृषि कानूनों को लेकर गुमराह करने का आरोप लगाया था।