परभणी पुलिस जांच के घेरे में: फैक्ट-फाइंडिंग रिपोर्ट ने क्रूरता, अवैधता और संवैधानिक उल्लंघन के आरोपों को उजागर किया

Written by CJP Team | Published on: January 24, 2025
संविधान की प्रतिकृति के अपमान के बाद महाराष्ट्र के परभणी में पुलिस की क्रूरता, जाति-आधारित भेदभाव और प्रशासनिक विफलताओं को उजागर करने वाली फैक्ट-फाइंडिंग रिपोर्ट दलित समुदायों के खिलाफ प्रणालीगत अन्याय और जवाबदेही, पारदर्शिता और सुधार की तत्काल आवश्यकता को उजागर करती है।



संविधान की प्रतिकृति के अपमान के बाद 10 दिसंबर, 2024 को महाराष्ट्र के परभणी में मानवाधिकारों के उल्लंघन और पुलिस अत्याचारों को उजागर करने वाली एक फैक्ट-फाइंडिंग रिपोर्ट जारी की गई है। हिरासत में हिंसा, जाति-आधारित भेदभाव और प्रशासनिक विफलताओं ने देश की संवेदना को झकझोर दिया है। कानूनी विशेषज्ञों, कार्यकर्ताओं और पत्रकारों की एक टीम द्वारा तैयार किए गए रिपोर्ट दलित समुदायों के खिलाफ प्रणालीगत अन्याय की एक गंभीर तस्वीर पेश करती है। रिपोर्ट का शीर्षक है, अनफेटर्ड पुलिस ब्रुटलिटिज : परभणी- फैक्ट-फाइंडिंग रिपोर्ट ऑन एलिगेशन ऑफ ब्रुट, अननॉफुल एंड एंटी-कंस्टिच्यूशनल कंडक्ट बाइ परभणी पुलिस (10-15 दिसंबर, 2024) [ पुलिस की इंतहा क्रूरता: परभणी - परभणी पुलिस द्वारा क्रूर, गैरकानूनी और संविधान विरोधी आचरण के आरोपों पर फैक्ट-फाइंडिंग रिपोर्ट]

डॉ. बी.आर. अंबेडकर की प्रतिमा के सामने संविधान की प्रतिकृति के बेअदबी के बाद विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया था। अपमान की घटना की निंदा करने के लिए दलित संगठनों द्वारा बुलाए गए बंद के दौरान कुछ बाहरी तत्व आए और हिंसा में शामिल हो गए। इस घटना के आरोपी को पुलिस ने उसकी गिरफ्तारी से पहले "मानसिक रूप से विक्षिप्त" माना था। पुलिस ने आंदोलन के दौरान करीब एक घंटे तक अनियंत्रित भीड़ को उत्पात मचाने दिया। और इस घटना को हथियार बनाकर दलित बस्तियों को निशाना बनाया, तलाशी अभियान चलाया, क्रूर बल का प्रयोग किया और हिंसा में शामिल रही। वहीं पुलिस ने डॉ. बी.आर. अंबेडकर की प्रतिमा के सामने संविधान के अपमान के बाद विरोध प्रदर्शन के दौरान हुई संपत्ति के नुकसान के मामले में एफआईआर दर्ज की। पुलिस हिंसा की बारह निजी शिकायतें अभी भी स्वीकार नहीं की गई हैं।

रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष

1. सोमनाथ सूर्यवंशी की हिरासत में मौत: 35 वर्षीय कानून के छात्र और एलआईसी एजेंट सोमनाथ को 11 दिसंबर को गिरफ्तार किया गया था और हिरासत में उन्हें टॉर्चर का सामना करना पड़ा था। 15 दिसंबर को उनकी मौत हो गई और पोस्टमार्टम रिपोर्ट में "गंभीर रूप से चोटिल होने के बाद सदमे" में आने की बात कही गई। शिकायत दर्ज कराने के बावजूद, उनके परिवार ने पाया कि पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। उनकी मां विजयबाई सूर्यवंशी ने सरकार द्वारा दिए गए 10 लाख रूपये के मुआवजे के प्रस्ताव को खारिज कर दिया है और जिम्मेदार लोगों के लिए आजीवन कारावास की मांग की है।

2. पुलिस की व्यापक बर्बरता: रिपोर्ट में भीम नगर, प्रियदर्शिनी नगर और सारंग नगर जैसे दलित-बहुल इलाकों में पुलिस की तलाशी अभियान के भयावह हालात को रिकॉर्ड किया गया है। लोगों ने बताया कि पुलिस ने घरों में घुसकर नाबालिग और बुजुर्ग पुरुषों और महिलाओं पर हमला किया और जाति-सूचक गालियां दीं। महिलाओं ने भारी हिंसक कार्रवाई के मामले बताए, जिसमें उनके निजी अंगों पर चोट पहुंचाना भी शामिल हैं और हिरासत में बंदियों को कथित तौर पर दिखाई देने वाली चोटों को छिपाने के लिए उनके पैरों और हथेलियों पर वार करके प्रताड़ित किया गया। तलाशी अभियान और उसके बाद हिरासत में महिलाओं और युवाओं की पिटाई के दौरान पुलिस द्वारा दिखाई गई क्रूर हिंसा और बेलगाम क्रूरता ने हिरासत में मौजूद लोगों के प्रति पुलिस के आचरण पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों सहित सभी कानूनों का उल्लंघन किया है।

3. शिकायतों के निपटारे में विफलता: पीड़ितों और उनके परिवारों ने पुलिस अत्याचारों और पुलिस क्रूरता के उदाहरणों को उजागर करते हुए बारह शिकायतें दर्ज की हैं, लेकिन उनमें से किसी भी शिकायत पर एफआईआर नहीं हुआ है। इसके बजाय, पुलिस हिरासत में हिंसा और दुर्व्यवहार की शिकायतों को अनदेखा करके एफआईआर विरोध प्रदर्शनों के दौरान हुई संपत्ति के नुकसान पर नजर बनाए हुए है।

4. प्रशासनिक चूक: टीम ने पाया कि इस बेअदबी से पहले, घटनास्थल के पास एक अति दक्षीणपंथी हिंदुत्ववादी कार्यक्रम हुआ था। उक्त चरमपंथी कार्यक्रम में भड़काऊ भाषण दिए गए थे। रिपोर्ट में पाया गया है कि प्रशासन ने हिंदू एकता मोर्चा को अनुमति दी, जो एक ऐसे संगठन द्वारा आयोजित कार्यक्रम है जिसका इतिहास ऐसे वक्ताओं को बुलाने का है जो कानून का उल्लंघन करते हैं और सामाजिक शांति को भंग करते हैं। पर्याप्त निवारक उपायों के बिना इसे करने की अनुमति दी। अशांति से बचने के लिए भाषणों की वीडियोग्राफी या सीआरपीसी की धारा 144 (बीएनएसएस की धारा 163) लगाने जैसे कोई कदम नहीं उठाए गए। पुलिस दत्ता सोपान पवार की भूमिका की जांच करने में भी विफल रही, जिन्होंने संविधान की प्रतिकृति का अपमान किया और औपचारिक मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन के बिना ही उन्हें तुरंत "मानसिक रूप से विक्षिप्त" घोषित कर दिया गया।

5. कार्यकर्ताओं और दलित नेताओं को निशाना बनाया गया: प्रमुख दलित कार्यकर्ताओं और नेताओं को खास तौर पर निशाना बनाया गया। कथित तौर पर पुलिस की लगातार धमकी के कारण मृतक सोमनाथ के अंतिम संस्कार में शामिल होने के कुछ समय बाद ही कार्यकर्ता विजय वाकोडे की दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई। अन्य पीड़ितों में कानून के छात्र धम्मदीप मोगले शामिल हैं, जिन पर हमला किया गया और उन्हें चुप रहने के लिए धमकाया गया और कार्यकर्ता वत्सलाबाई मनवटे, जिन्हें तलाशी अभियान के दौरान क्रूर हिंसा का सामना करना पड़ा।

सिफारिशें और मांगें

फैक्ट-फाइंडिंग टीम ने इन उल्लंघनों को दूर करने के लिए तत्काल और व्यापक कार्रवाई का आह्वान किया है:
 
  • पुलिस अत्याचारों के लिए जवाबदेही: हिंसा में शामिल अधिकारियों के खिलाफ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत तत्काल एफआईआर दर्ज की जानी चाहिए। अदालत की निगरानी में दोषी अधिकारियों का निलंबन और जांच होनी चाहिए।
  • पारदर्शिता और सार्वजनिक जवाबदेही: पुलिस ऑपरेशन और प्रतिनियुक्ति रजिस्टर में कमांड जिम्मेदारी के बारे में पुलिस के आदेशों का सार्वजनिक किया जाए ताकि यह पता लगाया जा सके कि कानून, भारतीय संविधान और अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून का उल्लंघन करने वाले तलाशी अभियान के लिए कौन जिम्मेदार था। इसके अलावा, हिंदू एकता मोर्चा की वीडियो रिकॉर्डिंग और पुलिस स्टेशनों से सीसीटीवी फुटेज का खुलासा किया जाना चाहिए। पुलिस स्टेशनों में सीसीटीवी लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों का अनुपालन सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
  • परभणी के पुलिस स्टेशन में मौजूद पुलिसकर्मियों का सार्वजनिक खुलासा, जहां कथित तौर पर घोर मानवाधिकार हनन हुआ है, इन सभी कार्रवाइयों के पीछे एसपी और उनके वरिष्ठों द्वारा दिए गए निर्देशों की केस डायरियां।
  • मुआवजा और पुनर्वास: पुलिस की बर्बरता के सभी पीड़ितों को वित्तीय मुआवज़े और चिकित्सा व मनोवैज्ञानिक देखभाल तक पहुंच के रूप में पर्याप्त क्षतिपूर्ति मिलनी चाहिए। सोमनाथ के भाई-बहनों को पुनर्वास प्रयासों के तहत सरकारी नौकरी दी जानी चाहिए।
  • संविधान के अपमान की स्वतंत्र जांच: दत्ता सोपान पवार की भूमिका और अन्य लोगों की संभावित संलिप्तता की गहन जांच की जानी चाहिए और निष्कर्षों को सार्वजनिक किया जाना चाहिए।
व्यवस्थागत सुधार: राज्य को कानून प्रवर्तन के भीतर जाति-आधारित भेदभाव को समाप्त करने, मानवाधिकार कानूनों का सख्ती से पालन सुनिश्चित करने और उल्लंघनों के लिए जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए।

दिसंबर 2024 में दुखद घटनाओं के कुछ दिन बाद, एडवोकेट अभय टकसाल (सीपीआई), एडवोकेट पवन जोंधले, युवा अंबेडकरवादी नेता सुधीर साल्वे, कॉमरेड विकास गायकवाड़, कॉमरेड प्रीतम घागवे और अंबेडकरवादी नेता राहुल प्रधान ने परभणी में पीड़ितों, प्रत्यक्षदर्शियों से साक्षात्कार करने और यहां तक कि अधिकारियों से बातचीत करने में काफी समय बिताया। इसी आधार पर फैक्ट-फाइंडिंग रिपोर्ट तैयार की गई है। तीस्ता सेतलवाड़, सचिव, सिटीजन फॉर जस्टिस एंड पीस और राजू पारुलेकर, कवि, लेखक और राजनीतिक टिप्पणीकार ने इस प्रयास का मार्गदर्शन किया।

परभणी की घटनाएं संवैधानिक मूल्यों और कानून के शासन के साथ एक भयानक विश्वासघात का उदाहरण है। पीड़ित, मुख्य रूप से वंचित दलित समुदायों से हैं और न्याय का इंतजार कर रहे हैं। जबकि दोषी लोग प्रणालीगत पूर्वाग्रह और प्रशासनिक उदासीनता के कारण बचे हुए हैं। फैक्ट-फाइंडिंग टीम ने जवाबदेही, पारदर्शिता और प्रणालीगत सुधार की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इस तरह के अत्याचार कभी न दोहराए जाएं। देश को पीड़ितों के साथ एकजुटता से खड़ा होना चाहिए और परभणी के लिए न्याय की मांग करनी चाहिए।

प्रारंभिक फैक्ट-फाइंडिंग रिपोर्ट यहां पढ़ी जा सकती है:





सुनील अभिमान अवचार द्वारा ये आर्टवर्क किया गया है। 

 

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