एक तरफ तो प्रधानमंत्री कह रहे हैं, ".... मैं किसानों को आश्वस्त करना चाहता हूं कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) व किसानों की उपज की सरकारी खरीद जारी रहेगी।" दूसरी तरफ वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने गए साल नवंबर में कहा था, हम चाहते हैं कि राज्य APMC मंडियों को ख़त्म कर दें। Ravish Kumar ने हिन्दू बिजनेस लाइन की खबर का अनुवाद पोस्ट किया है। उनकी पोस्ट से निर्मला सीतारमन ने जो कहा था उसे जानिए और प्रधानमंत्री जो कह रहे हैं उसे सुनना, मानना और उसपर यकीन करना राष्ट्रीय मजबूरी है।
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खबर यह भी है कि बिहार में किसानों का समर्थन करने वालों को पीटा गया।
दिल्ली में नाबार्ड के छठे ग्रामीण और कृषि वित्त के छठे विश्व कांग्रेस में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन बोल रही थीं। वित्त मंत्री साफ़ साफ़ कह रही हैं कि APMC की मंडियां ख़त्म हो जानी चाहिए इसके लिए सरकार राज्यों को समझा रही है। निर्मला सीतारमन का यह बयान यू ट्यूब पर है। जिसे ब्लूमवर्ग क्विंट ने प्रसारित किया था। पेश है हिन्दी अनुवाद। मूल खबरों का लिंक आखिर में :-
“मैं ई-नाम पर ज़ोर देना चाहती हूँ। केंद्र सरकार इसका प्रचार कर रही है और कई राज्यों ने इसे अपने स्तर पर शुरू करने के लिए रज़ामंदी दे दी है। इसके साथ ही हम ये सुनिश्चित कर रहे हैं कि राज्यों को समझाया जाए कि APMC को रिजेक्ट कर दें। एक समय पर एपीएमसी ने अपना काम किया है इस बात में कोई शक नहीं है। मगर आज इसमें कई परेशानियाँ हैं। और राज्य के स्तर पर भी ये इतना कारगर नहीं है। (इसमें और भी चीज़ें शामिल हैं मगर मैं बहुत ज़्यादा डिटेल में नहीं जाना चाहती हूँ) मगर मैं चाहती हूँ कि राज्य - और हम उनसे बात कर रहे हैं - इसे ख़त्म करें और किसानों के लिए ई-नाम को अपनाएँ।” (निर्मला सीतारमन, 12 नवंबर 2019)
केंद्र सरकार ने खेती को लेकर तीन कानून बनाए हैं। इस कानून को लेकर किसानों के बीच कई तरह के सवाल हैं। उनकी पहली आशंका यही है कि मंडी सिस्टम ख़त्म किया जा रहा है। सरकार की तरफ से प्रधानमंत्री आगे आते हैं और कहते हैं कि विपक्ष झूठ फैला रहा है। मंडी सिस्टम ख़त्म किया जा रहा है। प्रधानमंत्री को भी पता नहीं होगा कि उनकी वित्त मंत्री 10 महीने पहले कह चुकी हैं कि राज्यों को समझाया जा रहा है कि APMC मंडी सिस्टम ख़त्म कर दिया जाए।
प्रधानमंत्री अख़बार को चाहिए कि वे पहले अपने वित्त मंत्री से पूछें कि किन राज्यों से APMC ख़त्म करने की बात चल रही थी, बातचीत की प्रगति क्या थी? तब उन्हें अख़बारों में अपने नाम के साथ विज्ञापन देना चाहिए कि मंडियां ख़त्म नहीं होंगी। वित्त मंत्री निजी राय कह कर खंडन करने से पहले ठीक से अपने बयान को सुन लें। वे साफ साफ कह रही हैं कि APMC की उपयोगिता समाप्त हो चुकी है। राज्यों को समझाया जा रहा है कि वे इसे ख़त्म कर दें। अगर सरकार की यह राय थी तो दस महीने बाद प्रधानमंत्री ने किस आधार पर गारंटी दी है कि मंडियां ख़त्म नहीं होंगी। किसान कैसे किसी पर आसानी से भरोसा कर ले।
14 अप्रैल 2016 को मंडियों को एक प्लेटफार्म पर लाने के लिए ई-नाम की योजना लाई गई। चार साल में 1000 मंडियां ही जुड़ पाई हैं, जबकि देश में करीब 7000 मंडियां हैं। मंडियों के ख़त्म करने के वित्त मंत्री के बयान के एक महीना बाद 12 दिसंबर 2019 को हुकूमदेव नारायण की अध्यक्षता वाली कृषि मामलों की स्थायी समिति अपनी एक रिपोर्ट पेश करती है। हुकूमदेव नारायण बीजेपी के सांसद थे। इस रिपोर्ट के अनुसार इस वक्त 469 किलोमीटर के दायरे में कृषि बाज़ार है। जबकि हर पांच किलोमीटर की परिधि में एक मंडी होनी चाहिए। इस तरह भारत में कम से कम 41 हज़ार संयुक्त कृषि बाज़ार होने चाहिए, तभी किसानों को सही मूल्य मिलेगा। अगर इस ज़रूरत के चश्मे से देखेंगे तो पता चलेगा कि 2014 से लेकर 2020 तक मोदी सरकार ने किसानों के बाज़ार के लिए कितनी गंभीरता से काम किया है। 13 मई 2020 की विवेक मिश्रा की रिपोर्ट आप देख सकते हैं जो डाउन टू अर्थ के हिन्दी संस्करण में छपी है।
सरकार मंडियों के विकास पर कितना खर्च कर रही है इसे समझने के लिए 2018 और 2019 के बजट में जाकर देखिए। बजट में एग्रीकल्चर मार्केटिंग के लिए राशि दी जाती है। एग्रीकल्चर मार्केटिंग में बीज ख़रीदने से लेकर फ़सल बेचने तक वो सब क्रियाएँ शामिल हैं जो फ़सल को खेतों से उपभोक्ता तक पहुँचाती हैं। इसमें मंडियों की व्यवस्था, स्टोरेज, वेयरहाउस, ट्रांसपोर्ट आदि सब शामिल होते हैं।
2018 के बजट में एग्रीकल्चर मार्केटिंग के लिए 1050 करोड़ का प्रावधान किया गया था। संशोधित बजट में 500 करोड़ कर दिया गया। आख़िर में मिले 458 करोड़ ही।
एग्रीकल्चर मार्केटिंग के लिए 2019 के बजट में 600 करोड़ का प्रावधान किया गया था। संशोधित बजट में यह राशि घटाकर 331 करोड़ कर दी। 50 प्रतिशत कम हो गई।
ज़रूरत के हिसाब से 1050 करोड़ का बजट भी कम है, उसमें से भी 50 प्रतिशत कम हो जाता है। किसान नेताओं का कहना है कि नए कानून के अनुसार जो प्राइवेट सेक्टर की मंडियां खुलेगी उनमें टैक्स नहीं लगेंगे। सरकारी मंडी में तरह-तरह के टैक्स लगते हैं और उस पैसे से मंडियों का विकास होता है। यानी मंडियों के विकास का पैसा हमारा किसान भी देता है। इससे तो दो तरह की मंडियां हो जाएंगी। एक में टैक्स होगा, एक में टैक्स नहीं होगा। ज़ाहिर है जिसमें टैक्स होगा वो मंडी खत्म हो जाएगी।
इसलिए किसानों को चाहिए कि वे मंडियों को लेकर सरकार से और सवाल करें और सरकार को चाहिए कि वे किसानों के सवालों के जवाब और स्पष्टता से दे लेकिन उसके पहले मोदी जी अपने वित्त मंत्री से सवाल करें कि किसकी इजाज़त से उनकी सरकार के भीतर मंडियों को ख़त्म करने की कवायद चल रही थी? अब आप ये मत कहिएगा कि इतने बड़े मामले में सरकार पहल कर रही है और मोदी जी को ख़बर नहीं है।
नोट- निर्मला सीतारमन के भाषण का लिंक आप खुद भी सुन लें और हिन्दू बिज़नेस लाइन की रिपोर्ट भी पढ़ लें।
https://www.thehindubusinessline.com/.../article29953045.ece
https://www.youtube.com/watch?v=-gweXZdnPZs
प्रधानमंत्री के आश्वासन से संबंधित खबर और ट्वीट का लिंक
https://www.india.com/.../pm-modi-on-farm-bills-2020.../
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खबर यह भी है कि बिहार में किसानों का समर्थन करने वालों को पीटा गया।
दिल्ली में नाबार्ड के छठे ग्रामीण और कृषि वित्त के छठे विश्व कांग्रेस में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन बोल रही थीं। वित्त मंत्री साफ़ साफ़ कह रही हैं कि APMC की मंडियां ख़त्म हो जानी चाहिए इसके लिए सरकार राज्यों को समझा रही है। निर्मला सीतारमन का यह बयान यू ट्यूब पर है। जिसे ब्लूमवर्ग क्विंट ने प्रसारित किया था। पेश है हिन्दी अनुवाद। मूल खबरों का लिंक आखिर में :-
“मैं ई-नाम पर ज़ोर देना चाहती हूँ। केंद्र सरकार इसका प्रचार कर रही है और कई राज्यों ने इसे अपने स्तर पर शुरू करने के लिए रज़ामंदी दे दी है। इसके साथ ही हम ये सुनिश्चित कर रहे हैं कि राज्यों को समझाया जाए कि APMC को रिजेक्ट कर दें। एक समय पर एपीएमसी ने अपना काम किया है इस बात में कोई शक नहीं है। मगर आज इसमें कई परेशानियाँ हैं। और राज्य के स्तर पर भी ये इतना कारगर नहीं है। (इसमें और भी चीज़ें शामिल हैं मगर मैं बहुत ज़्यादा डिटेल में नहीं जाना चाहती हूँ) मगर मैं चाहती हूँ कि राज्य - और हम उनसे बात कर रहे हैं - इसे ख़त्म करें और किसानों के लिए ई-नाम को अपनाएँ।” (निर्मला सीतारमन, 12 नवंबर 2019)
केंद्र सरकार ने खेती को लेकर तीन कानून बनाए हैं। इस कानून को लेकर किसानों के बीच कई तरह के सवाल हैं। उनकी पहली आशंका यही है कि मंडी सिस्टम ख़त्म किया जा रहा है। सरकार की तरफ से प्रधानमंत्री आगे आते हैं और कहते हैं कि विपक्ष झूठ फैला रहा है। मंडी सिस्टम ख़त्म किया जा रहा है। प्रधानमंत्री को भी पता नहीं होगा कि उनकी वित्त मंत्री 10 महीने पहले कह चुकी हैं कि राज्यों को समझाया जा रहा है कि APMC मंडी सिस्टम ख़त्म कर दिया जाए।
प्रधानमंत्री अख़बार को चाहिए कि वे पहले अपने वित्त मंत्री से पूछें कि किन राज्यों से APMC ख़त्म करने की बात चल रही थी, बातचीत की प्रगति क्या थी? तब उन्हें अख़बारों में अपने नाम के साथ विज्ञापन देना चाहिए कि मंडियां ख़त्म नहीं होंगी। वित्त मंत्री निजी राय कह कर खंडन करने से पहले ठीक से अपने बयान को सुन लें। वे साफ साफ कह रही हैं कि APMC की उपयोगिता समाप्त हो चुकी है। राज्यों को समझाया जा रहा है कि वे इसे ख़त्म कर दें। अगर सरकार की यह राय थी तो दस महीने बाद प्रधानमंत्री ने किस आधार पर गारंटी दी है कि मंडियां ख़त्म नहीं होंगी। किसान कैसे किसी पर आसानी से भरोसा कर ले।
14 अप्रैल 2016 को मंडियों को एक प्लेटफार्म पर लाने के लिए ई-नाम की योजना लाई गई। चार साल में 1000 मंडियां ही जुड़ पाई हैं, जबकि देश में करीब 7000 मंडियां हैं। मंडियों के ख़त्म करने के वित्त मंत्री के बयान के एक महीना बाद 12 दिसंबर 2019 को हुकूमदेव नारायण की अध्यक्षता वाली कृषि मामलों की स्थायी समिति अपनी एक रिपोर्ट पेश करती है। हुकूमदेव नारायण बीजेपी के सांसद थे। इस रिपोर्ट के अनुसार इस वक्त 469 किलोमीटर के दायरे में कृषि बाज़ार है। जबकि हर पांच किलोमीटर की परिधि में एक मंडी होनी चाहिए। इस तरह भारत में कम से कम 41 हज़ार संयुक्त कृषि बाज़ार होने चाहिए, तभी किसानों को सही मूल्य मिलेगा। अगर इस ज़रूरत के चश्मे से देखेंगे तो पता चलेगा कि 2014 से लेकर 2020 तक मोदी सरकार ने किसानों के बाज़ार के लिए कितनी गंभीरता से काम किया है। 13 मई 2020 की विवेक मिश्रा की रिपोर्ट आप देख सकते हैं जो डाउन टू अर्थ के हिन्दी संस्करण में छपी है।
सरकार मंडियों के विकास पर कितना खर्च कर रही है इसे समझने के लिए 2018 और 2019 के बजट में जाकर देखिए। बजट में एग्रीकल्चर मार्केटिंग के लिए राशि दी जाती है। एग्रीकल्चर मार्केटिंग में बीज ख़रीदने से लेकर फ़सल बेचने तक वो सब क्रियाएँ शामिल हैं जो फ़सल को खेतों से उपभोक्ता तक पहुँचाती हैं। इसमें मंडियों की व्यवस्था, स्टोरेज, वेयरहाउस, ट्रांसपोर्ट आदि सब शामिल होते हैं।
2018 के बजट में एग्रीकल्चर मार्केटिंग के लिए 1050 करोड़ का प्रावधान किया गया था। संशोधित बजट में 500 करोड़ कर दिया गया। आख़िर में मिले 458 करोड़ ही।
एग्रीकल्चर मार्केटिंग के लिए 2019 के बजट में 600 करोड़ का प्रावधान किया गया था। संशोधित बजट में यह राशि घटाकर 331 करोड़ कर दी। 50 प्रतिशत कम हो गई।
ज़रूरत के हिसाब से 1050 करोड़ का बजट भी कम है, उसमें से भी 50 प्रतिशत कम हो जाता है। किसान नेताओं का कहना है कि नए कानून के अनुसार जो प्राइवेट सेक्टर की मंडियां खुलेगी उनमें टैक्स नहीं लगेंगे। सरकारी मंडी में तरह-तरह के टैक्स लगते हैं और उस पैसे से मंडियों का विकास होता है। यानी मंडियों के विकास का पैसा हमारा किसान भी देता है। इससे तो दो तरह की मंडियां हो जाएंगी। एक में टैक्स होगा, एक में टैक्स नहीं होगा। ज़ाहिर है जिसमें टैक्स होगा वो मंडी खत्म हो जाएगी।
इसलिए किसानों को चाहिए कि वे मंडियों को लेकर सरकार से और सवाल करें और सरकार को चाहिए कि वे किसानों के सवालों के जवाब और स्पष्टता से दे लेकिन उसके पहले मोदी जी अपने वित्त मंत्री से सवाल करें कि किसकी इजाज़त से उनकी सरकार के भीतर मंडियों को ख़त्म करने की कवायद चल रही थी? अब आप ये मत कहिएगा कि इतने बड़े मामले में सरकार पहल कर रही है और मोदी जी को ख़बर नहीं है।
नोट- निर्मला सीतारमन के भाषण का लिंक आप खुद भी सुन लें और हिन्दू बिज़नेस लाइन की रिपोर्ट भी पढ़ लें।
https://www.thehindubusinessline.com/.../article29953045.ece
https://www.youtube.com/watch?v=-gweXZdnPZs
प्रधानमंत्री के आश्वासन से संबंधित खबर और ट्वीट का लिंक
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