कृषि बिल: खेती छोड़ आन्दोलन की तैयारी में भारतीय किसान

Written by Dr. Amrita Pathak | Published on: October 16, 2020
पूंजीवादी व्यवस्था में निजीकरण को फैलने देने का सीधा मतलब है दीमक को घर में जगह देना जो धीरे-धीरे अपने क्षेत्र का विस्तार कर उस जगह को ही नष्ट कर देता है. कुछ ऐसी ही स्थिति वर्तमान में लाए गए सरकारी फरमान में देखा जा सकता है जो जनता की जमीन, जिन्दगी व् स्वाभिमान पर गहरा प्रहार साबित होगा. इस बिल के खिलाफ़ देश के अन्नदाता किसान सरकार से आमने सामने की लड़ाई लड़ रहे हैं और जनविरोधी इस बिल के खिलाफ़ लगातार चल रहे आन्दोलन को तीव्र करने का एलान कर चुके हैं. 




भारत सरकार द्वारा कृषि कानून बनाए जाने के बाद से ही देश के अन्नदाता दिल्ली से लेकर पंजाब, बंगाल से लेकर हरियाणा तक गली, चौक-चौराहों, रेलवे स्टेशनों पर प्रदर्शन करने के लिए बैठे हैं. किसान खरीफ फसल की कटाई के समय में सड़कों पर उतर कर विरोध कर रहे है. भारतीय किसान खेती छोड़ कर सड़कों पर सोने के लिए मजबूर हो गए हैं. केंद्र सरकार की किसान विरोधी कानून के संसद में पारित करवाए जाने के खिलाफ पंजाब सहित पूरा देश आंदोलित हो चूका है. किसान अमृतसर, मोगा पंजाब के रेलवे स्टेशन, पटरियों पर बैठे हैं, सिरसा के किसान लगातार सड़कों पर बैठे हैं. दिल्ली के जंतर मंतर से अपनी आवाज केंद्र सरकार तक पहुचाने की कोशिस में 12 अक्टूबर 2020 को प्रदर्शन किए जिसमे दिल्ली की सरकार अरविन्द केजरीवाल ने सिरकत की और किसानों के हक़ के लिए आवाज उठाई. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने कहा “इस क़ानून के ज़रिए सरकार खेती को किसान से छीनकर कंपनियों को देना चाहती है. मैं कहना चाहता हूं कि आज़ादी के बाद जब अनाज की दिक्कत थी तब कंपनियां नहीं, किसान काम आया था और हरित क्रांति की थी, वर्तमान में खरीफ़ फ़सल  धान को काटने का समय है लेकिन किसान प्रदर्शन करने के लिए मजबूर है.” 
    
नए कृषि बिल पर राष्ट्रपति ने हस्ताक्षर कर मुहर लगा दिया है. इस बिल के विरोध में जहाँ विपक्ष लगातार केंद्र सरकार पर हमलावर हो रही है वहीँ देश के अलग अलग हिस्सों में किसान का आन्दोलन भी तीव्र हो रहा है. किसान लगातार अपनी जमीन, फसल के MSP, व् कृषि क्षेत्र में कॉर्पोरेट की दख़लअंदाजी को लेकर चिंतित हैं. 14 नवम्बर 2020 को देश के किसानों द्वारा MSP अधिकार दिवस मनाया गया. 
 
रेमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित पत्रकार पी साईंनाथ जो देश की सामाजिक आर्थिक असमानता, गरीबी सहित कृषि से सम्बंधित मुद्दों पर लम्बे वक्त से काम कर रहे है. इन्होने किसानों को मिलने वाले न्यूनतम समर्थन मूल्य व् इस कृषि बिल पर विस्तार से बात की है. केंद्र सरकार लगातार यह कह रही है कृषि बिल 2020 MSP को समाप्त करने के लिए नहीं है जिसे मीडिया के माध्यम से प्रचारित भी करवाया गया. पी साईनाथ का मानना है कि “ मोदी सरकार को एक और नया बिल लाने की जरुरत है जो किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) जिसका जिक्र स्वामीनाथन रिपोर्ट में किया गया है और उसे लागू करने का वादा 2014 में ही सरकार ने किया था, उसकी गारंटी दे सके. उसके द्वारा यह तय किया जाए कि बड़े व्यापारी या कम्पनियाँ या कोई नए खरीददार एमएसपी से कम दाम पर माल नहीं खरीद सकेंगे. मुख्तारी की गारंटी हो ताकि एमएसपी एक मजाक बन कर न रह जाए और यह नया बिल किसानों के कर्ज को ख़ारिज कर दे- वरना कोई और तरीका ही नहीं है जिसके जरिए सरकार 2022 तो क्या वर्ष 2032 तक भी किसानों की आय दोगुनी कर पाए”
 
आज सरकार देश के किसानों का भरोसा खो चुकी है. कृषकों को डर है कि सरकार इतने जोर शोर से कृषि क्षेत्र को निजीकारण की तरफ धकेल रही है तो किसानों के फसल बेचने के सरकारी ठिकाने ख़त्म न हो जाए. इन्हें लगता है कि लिखित में MSP की गारंटी नहीं दी गयी तो सरकार पर भी विश्वास किया जाना मुश्किल है. 

पी साईनाथ कहते हैं कि आज भी इस देश में किसान अपने खेत में ही अपना अनाज बेचता है कोई बिचौलिया या साहूकार उसके खेत में जाता है और उसकी उपज को खरीद लेता है. कुल किसानों का सिर्फ 6 से 8 प्रतिशत ही इन अधिसूचित थौक बाजारों में जाता है इसलिए किसानों की असल समस्या फसलों का उचित मूल्य का नहीं मिलना है. वे कहते हैं किसानों को अपनी फसल के लिए भारी मोल भाव करना पड़ता है लेकिन क्या पारित किए गए इनमे से कोई भी बिल ऐसा है जो फसलों की रेट को तय करने की बात करता हो? निजीकरण को लेकर उन्होंने कहा कि वर्तमान कृषि बिल के अनुबंधों में किसान के पास कॉर्पोरेट से सौदेबाजी की ताकत नहीं होगी इसमें लिखित दस्तावेज को आवश्यक नहीं रखा गया है, सिविल अदालतों में इस मामले को लेकर जाया नहीं जा सकता तो ये ऐसा होगा जैसे किसान ख़ुद को गुलामों में बदलने का ठेका ले रहे हों. व्यापारियों और कम्पनियों का आधार मुनाफा पर टिका हुआ होता है वो किसानों की सेवा करने के लिए क्यूँ कृषि क्षेत्र में आना चाहेगी यह आज समझने का विषय है.” 

किसानों के प्रति सरकारी उदासीनता और तुगलकी फरमान कृषि बिल का संसद में पारित किए जाने के खिलाफ अखिल भारतीय किसान संघर्ष समिति (AIKSCC) लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं इनके अनुसार देशभर के 250 छोटे बड़े किसान संगठन इनसे जुड़े हैं. 14 अक्टूबर 2020 को कृषि भवन नयी दिल्ली में एक बैठक केन्द्रीय मंत्रियों के साथ हुई. सरकारी प्रतिनिधि द्वारा किसानों के सवालों का जवाब नहीं दे पाने और सरकार की तरफ से कृषि बिल पर सख्त होते रवैये के कारण बैठक को बीच में छोड़ कर ही किसान संगठन के प्रतिनिधि बाहर आ गए. केंद्र सरकार के किसानों के प्रति उदासीन रवैया और कृषि बिल के खिलाफ आक्रोश लगातार बढ़ता जा रहा है. अखिल भारतीय किसान संघर्ष समिति (AIKSCC) ने 26-27 नवम्बर 2020 को दिल्ली के लिए मार्च करने का आह्वाहन किया है जिसे देश के मजदुर संगठन व् संविधान में विश्वास रखने वाले अन्य संगठनों का सहयोग प्राप्त होने की उम्मीद है. 

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