देश में 25 देशों से आयात किया जा रहा 1.21 लाख मीट्रिक टन प्लास्टिक कचरा- रिपोर्ट

Written by sabrang india | Published on: August 1, 2019
देश में एक ओर प्लास्टिक से पर्यावरण को हो रहे नुकसान को नियंत्रित करने के बारे में चर्चा की जा रही है। वहीं दूसरी ओर 25 से ज्यादा देशों का करीब 1.21 लाख मीट्रिक टन प्लास्टिक कचरा खपाया गया है। गैर-सरकारी संगठन पंडित दीनदयाल उपाध्याय स्मृति मंच की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पर्यावरणविदों का कहना है कि कंपनियों के इस कदम से प्लास्टिक प्रदूषण घटाने की पहल को बड़ा झटका लग सकता है। इसलिए उन्होंने सरकार से इन कंपनियों के खिलाफ सख्त कदम उठाने के लिए अनुरोध किया है। 

पर्यावरणविदों का कहना है कि यह बड़ी चिंता की बात है कि कुछ कम्पनियाँ निजी लाभ के लिए चोरी छिपे प्लास्टिक कचरे का आयात कर रही हैं। संगठन की रिपोर्ट के अनुसार सिर्फ पाकिस्तान और बांग्लादेश से ही 55 हजार मीट्रिक टन प्लास्टिक कचरे का आयात किया गया था। इसके अलावा मध्य पूर्व, यूरोप और अमेरिका समेत 25 से ज्यादा देशों से ऐसे कचरे का आयात किया जा रहा है। साथ ही अगर रिपोर्ट की माने जाए तो उत्तर प्रदेश में 28,846 मीट्रिक टन, दिल्ली में 19,517 मीट्रिक टन, महाराष्ट्र में 19,375 मीट्रिक टन, गुजरात में 18,330 मीट्रिक टन और तमिलनाडु में 10, 689 मीट्रिक टन प्लास्टिक कचरे का आयात किया गया है। 

आयात किए गए इन कचरे की बात करें तो अप्रैल, 2018 से फरवरी, 2019 के बीच में हुए एक अध्ययन पर आधारित रिपोर्ट के अनुसार इसमें ज़्यादातर प्लास्टिक की बेकार बोतलें होती हैं। 

पंडित दीनदयाल उपाध्याय स्मृति मंच की रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर निजी कंपनियों द्वारा प्लास्टिक कचरे के आयात पर रोक लगा दी जाए तो ये कम्पनियाँ देश में मौजूद कचरे को ही रिसाइक्लिंग करने पर मजबूर हो जाएंगी। इससे एक ओर बेकार हो चुकी प्लास्टिक बोतलों को दोबारा इस्तेमाल में लाने की संभावना 99 फीसदी तक बढ़ जाएगी। वहीं कूड़ा बीनने वाले 40 लाख लोगों को रोजगार भी मिल सकेगा। 

इस पर भारतीय प्रदूषण नियंत्रण संगठन के चेयरमैन आशीष जैन कहते हैं कि “एक ओर तो सरकार प्लास्टिक पर पाबंदी लगा रही है, वहीं दूसरी ओर निजी कंपनियां चोरी-छिपे विदेशों से प्लास्टिक कचरे का आयात कर रही हैं। वैसे रिसाइक्लिंग कंपनियां इसलिए भी कचरे का ज्यादा आयात इसलिए करती हैं, क्योंकि बाहरी देशों से इन्हें मुफ्त में यह कचरा मिल जाता है। कंपनियों को सिर्फ इसकी ढुलाई का ही खर्च उठाना पड़ता है।” इसके अलावा पर्यावरणविदों का यह भी मानना है कि स्थानीय कचरा जुटाने के मुकाबले में आयात किया हुआ कचरा ज्यादा सस्ता पड़ता है। साथ ही उनका दावा है कि सैकड़ों टन ऐसा कचरा धरती और समुद्र में दफनाया जा रहा है।

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