"सरकारी आंकड़ों में देश में बेरोजगारी दर 6 साल के सबसे निचले स्तर 3.2 प्रतिशत पर आ गई है लेकिन लेबर सर्वेक्षण में कई नई चिंताएं उभरकर सामने आई हैं। मसलन, जहां स्थायी नौकरियां घट रही हैं वहीं गुजरात मध्यप्रदेश आदि आधा दर्जन राज्यों में मजदूरी, राष्ट्रीय औसत से काफी नीचे है। सबसे खतरनाक इस दौरान सामाजिक सुरक्षा भी सिकुड़ रही है। यह भी तब जब शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी सेवाओं का लगातार निजीकरण हो रहा हो और ये मुनाफा प्रेरित सेवाओं में तब्दील हो गई हों और परिवहन लगातार महंगा होता जा रहा हो, सामाजिक सुरक्षाओं का सिकुड़ना गंभीर चिंता का पहलू है।"
भारत सरकार के पीरियॉडिक लेबर फोर्स सर्वे (PLFS) से सामने आया यह आंकड़ा बहुत चिंताजनक है कि देश की श्रमशक्ति में 2022-23 में सिर्फ 21 प्रतिशत ऐसे कर्मचारी थे, जिन्हें नियमित तनख्वाह मिलती हो। 2019-20 में यह संख्या 23 प्रतिशत थी। यानी तीन साल में स्थायी नौकरी वाले कर्मचारियों की संख्या दो प्रतिशत गिर गई है।
सामाजिक सुरक्षा सिकुड़ी
PLFS सर्वे में सामने आई चिंता की दूसरी बात यह है कि इन कर्मचारियों के बीच सिर्फ 46 प्रतिशत ऐसे हैं, जिन्हें सामाजिक सुरक्षाएं मिली हुई हैं। सामाजिक सुरक्षाओं से तात्पर्य पेंशन, स्वास्थ्य बीमा, मातृत्व लाभ और ग्रैच्युटी है। 2018-19 में नियमित तनख्वाह वाले 49 प्रतिशत कर्मचारियों को ऐसी सुविधाएं मिली हुई थीं। ये आंकड़े देश की कैसी तस्वीर पेश करते हैं, इसे समझने के लिए हमें इनको बड़े संदर्भ में देखना चाहिए। भारत में श्रम शक्ति उम्र वर्ग (15 से 60 वर्ष) में तकरीबन 95 करोड़ लोग हैं। लेकिन श्रम शक्ति में (यानी वे लोग जिन्हें रोजगार मिला हुआ है या रोजगार की तलाश में हैं) इस उम्र वर्ग के 45-46 प्रतिशत लोग हैं।
यानी लगभग 45 करोड़। उनके बीच 21 प्रतिशत- यानी साढ़े आठ करोड़ लोगों को नियमित तनख्वाह वाला काम मिला हुआ है। उनके 46 प्रतिशत यानी तकरीबन साढ़े चार करोड़ लोगों को सामाजिक सुरक्षाएं हासिल हैं। बाकी लोग या तो पारिवारिक सहायता (अगर परिवार सक्षम हो तो) निर्भर हैं, या फिर भगवान भरोसे हैं। जिस दौर में शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी सेवाओं का लगातार निजीकरण होता गया हो- यानी जब ये सेवाएं मुनाफा प्रेरित सेवाओं में तब्दील हो गई हों और परिवहन लगातार महंगा होता जा रहा हो, आम शख्स की माली हालत का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। ये उसी दौर की कहानी है, जब भारत दुनिया में, जैसा कि बताया जाता है, कथित तौर पर सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बन गया है और कुछ वर्षों के अंदर ही दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने वाला है। ये उपलब्धियां अपनी जगह गर्व की बात हो सकती हैं। लेकिन यह मुद्दा लगातार प्रासंगिक है कि अगर ये सफलताएं आम जन की जिंदगी को अधिक सुरक्षित और संपन्न नहीं बनाती हैं, तो फिर इनका कितना महत्त्व रह जाएगा?
गुजरात मध्य प्रदेश में श्रमिकों को सबसे कम दिहाड़ी, राष्ट्रीय औसत से भी कम
भारतीय रिज़र्व बैंक की ओर से संकलित आंकड़े बताते हैं कि मध्य प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में पुरुष कृषि श्रमिकों को सिर्फ़ 229.2 रुपये की दैनिक मज़दूरी मिली, जबकि मार्च 2023 को समाप्त वर्ष के लिए राष्ट्रीय औसत 345.7 रुपये था। इसके बाद गुजरात था, जहां ऐसे श्रमिकों को 241.9 रुपये की दैनिक मज़दूरी मिलती है। जी हां, हाल ही में (17 नवंबर को) मतदान से गुजरे मध्य प्रदेश को लेकर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा संकलित आंकड़े बताते हैं कि यहां ग्रामीण कृषि श्रमिकों को देश में सबसे कम दैनिक वेतन मिलता है, जो राष्ट्रीय औसत से काफी कम है।
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, जहां मार्च 2023 को समाप्त वर्ष में राष्ट्रीय औसत 345.7 रुपये था, वहीं मध्य प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में पुरुष कृषि श्रमिकों को केवल 229.2 रुपये की दैनिक मजदूरी मिली। दूसरा राज्य जहां सबसे कम दैनिक मजदूरी दर्ज की गई, वह गुजरात था। गुजरात में पुरुष कृषि श्रमिकों को 241.9 रुपये की दैनिक मजदूरी मिलती है।
कम भुगतान करने वाले अन्य राज्यों में उत्तर प्रदेश और ओडिशा हैं, जहां ग्रामीण कृषि श्रमिकों को 2021-22 में औसत दैनिक वेतन क्रमश: 309.3 रुपये और 285.1 रुपये मिला, जबकि औद्योगिक राज्य कहे जाने वाले महाराष्ट्र में पुरुष कृषि श्रमिकों को प्रतिदिन 303.5 रुपये मिले। केंद्रीय बैंक के आंकड़ों के मुताबिक, मध्य प्रदेश में एक ग्रामीण कृषि श्रमिक अगर 25 दिन काम करता है तो उसे प्रति माह लगभग 5,730 रुपये की मासिक आय होगी। गुजरात में एक खेतिहार मजदूर की वार्षिक आय लगभग 6,047 रुपये रही होगी।
इसकी तुलना में केरल में एक ग्रामीण कृषि मजदूर को सबसे अधिक भुगतान होता है, जो 764.3 रुपये प्रति दिन प्रति व्यक्ति है। इस तरह एक महीने में 25 दिनों के काम के लिए औसतन केरल में 19,107 रुपये मिलते हैं।
आंकड़ों में कहा गया है कि पुरुष गैर-कृषि श्रमिकों के मामले में भी सबसे कम मजदूरी मध्य प्रदेश में ही देखी गई, जिसका औसत 246.3 रुपये है। वहीं, गुजरात में श्रमिकों को 273.1 रुपये और त्रिपुरा में 280.6 रुपये की दैनिक मजदूरी मिली। हालांकि, राष्ट्रीय औसत 348 रुपये था। गैर-कृषि श्रमिकों की दैनिक मजदूरी के मामले में केरल 696.6 रुपये प्रति व्यक्ति के साथ सबसे आगे है। इसके बाद मार्च 2023 को समाप्त वर्ष के लिए जम्मू कश्मीर (517.9 रुपये), तमिलनाडु (481.5 रुपये) और हरियाणा (451 रुपये) का नंबर आता है।
ग्रामीण पुरुष निर्माण श्रमिकों के मामले में गुजरात और मध्य प्रदेश एक बार फिर सबसे निचले और राष्ट्रीय औसत 393.3 रुपये से नीचे हैं। मार्च 2023 को समाप्त वित्त वर्ष के दौरान गुजरात में ग्रामीण निर्माण श्रमिकों को औसत वेतन 323.2 रुपये, मध्य प्रदेश में 278.7 रुपये और त्रिपुरा में 286.1 रुपये प्रति दिन मिला।
आंकड़ों में कहा गया है कि इसकी तुलना में केरल में ग्रामीण निर्माण श्रमिकों की दैनिक मजदूरी 852.5 रुपये, जम्मू कश्मीर में 534.5 रुपये, तमिलनाडु में 500.9 रुपये और हिमाचल प्रदेश में 498.3 रुपये थी। आरबीआई की रिपोर्ट में कहा गया है कि चरम मौसम की घटनाएं एक प्रमुख कारक बनी हुई हैं, क्योंकि ग्रामीण नौकरियां कृषि पर निर्भर हैं, जो मानसून और रबी तथा खरीफ उत्पादन पर निर्भर है।
आरबीआई की रिपोर्ट में कहा गया है कि कृषि और गैर-कृषि श्रमिकों की वेतन वृद्धि की गति में बढ़ोतरी दर्ज की गई है। यह वर्ष के बीच में अपने चरम क्रमश: जनवरी 2023 में 7.7 फीसदी और नवंबर 2022 में 5.6 फीसदी के शिखर पर पहुंच गई थी। जबकि मार्च 2023 में नरम पड़ गई थी। लेकिन इस सबसे खास सरकारी फाइलों में मौसम गुलाबी है।
सरकारी आंकड़ों में देश में बेरोजगारी दर 6 साल के निचले स्तर 3.2 प्रतिशत पर
देश में जुलाई 2022 से जून 2023 के बीच 15 वर्ष और उससे अधिक आयु की बेरोजगारी दर छह साल के निचले स्तर 3.2 प्रतिशत पर रही। सरकारी सर्वेक्षण में यह बात सामने आई। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) की ओर से जारी आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण वार्षिक रिपोर्ट 2022-2023 के अनुसार जुलाई 2022 से जून 2023 के बीच राष्ट्रीय स्तर पर 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के लोगों के लिए सामान्य स्थिति में बेरोजगारी दर (यूआर) 2021-22 में 4.1 प्रतिशत से घटकर 2022-23 में 3.2 प्रतिशत हो गई।
खास है कि पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे (PLFS) के सोमवार को जारी आंकड़ों के अनुसार बेरोजगारी दर 2020-21 में 4.2 प्रतिशत, 2019-20 में 4.8 प्रतिशत, 2018-19 में 5.8 प्रतिशत और 2017-18 में छह प्रतिशत थी। समय अंतराल पर श्रम बल आंकड़े उपलब्ध होने के महत्व को ध्यान में रखते हुए एनएसएसओ ने अप्रैल 2017 में आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) शुरुआत की थी।
रिपोर्ट के अनुसार, ‘‘ ग्रामीण क्षेत्रों में 2017-18 में बेरोजगारी दर 5.3 प्रतिशत से घटकर 2022-23 में 2.4 प्रतिशत हो गई। शहरी क्षेत्रों के लिए यह 7.7 प्रतिशत से घटकर 5.4 प्रतिशत हो गई।’’ मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, सर्वेक्षण में सामने आया, ‘‘ भारत में पुरुषों में बेरोजगारी दर 2017-18 में 6.1 प्रतिशत से घटकर 2022-23 में 3.3 प्रतिशत हो गई। महिलाओं में बेरोजगारी दर 5.6 प्रतिशत से घटकर 2.9 प्रतिशत रही।’’
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भारत सरकार के पीरियॉडिक लेबर फोर्स सर्वे (PLFS) से सामने आया यह आंकड़ा बहुत चिंताजनक है कि देश की श्रमशक्ति में 2022-23 में सिर्फ 21 प्रतिशत ऐसे कर्मचारी थे, जिन्हें नियमित तनख्वाह मिलती हो। 2019-20 में यह संख्या 23 प्रतिशत थी। यानी तीन साल में स्थायी नौकरी वाले कर्मचारियों की संख्या दो प्रतिशत गिर गई है।
सामाजिक सुरक्षा सिकुड़ी
PLFS सर्वे में सामने आई चिंता की दूसरी बात यह है कि इन कर्मचारियों के बीच सिर्फ 46 प्रतिशत ऐसे हैं, जिन्हें सामाजिक सुरक्षाएं मिली हुई हैं। सामाजिक सुरक्षाओं से तात्पर्य पेंशन, स्वास्थ्य बीमा, मातृत्व लाभ और ग्रैच्युटी है। 2018-19 में नियमित तनख्वाह वाले 49 प्रतिशत कर्मचारियों को ऐसी सुविधाएं मिली हुई थीं। ये आंकड़े देश की कैसी तस्वीर पेश करते हैं, इसे समझने के लिए हमें इनको बड़े संदर्भ में देखना चाहिए। भारत में श्रम शक्ति उम्र वर्ग (15 से 60 वर्ष) में तकरीबन 95 करोड़ लोग हैं। लेकिन श्रम शक्ति में (यानी वे लोग जिन्हें रोजगार मिला हुआ है या रोजगार की तलाश में हैं) इस उम्र वर्ग के 45-46 प्रतिशत लोग हैं।
यानी लगभग 45 करोड़। उनके बीच 21 प्रतिशत- यानी साढ़े आठ करोड़ लोगों को नियमित तनख्वाह वाला काम मिला हुआ है। उनके 46 प्रतिशत यानी तकरीबन साढ़े चार करोड़ लोगों को सामाजिक सुरक्षाएं हासिल हैं। बाकी लोग या तो पारिवारिक सहायता (अगर परिवार सक्षम हो तो) निर्भर हैं, या फिर भगवान भरोसे हैं। जिस दौर में शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी सेवाओं का लगातार निजीकरण होता गया हो- यानी जब ये सेवाएं मुनाफा प्रेरित सेवाओं में तब्दील हो गई हों और परिवहन लगातार महंगा होता जा रहा हो, आम शख्स की माली हालत का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। ये उसी दौर की कहानी है, जब भारत दुनिया में, जैसा कि बताया जाता है, कथित तौर पर सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बन गया है और कुछ वर्षों के अंदर ही दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने वाला है। ये उपलब्धियां अपनी जगह गर्व की बात हो सकती हैं। लेकिन यह मुद्दा लगातार प्रासंगिक है कि अगर ये सफलताएं आम जन की जिंदगी को अधिक सुरक्षित और संपन्न नहीं बनाती हैं, तो फिर इनका कितना महत्त्व रह जाएगा?
गुजरात मध्य प्रदेश में श्रमिकों को सबसे कम दिहाड़ी, राष्ट्रीय औसत से भी कम
भारतीय रिज़र्व बैंक की ओर से संकलित आंकड़े बताते हैं कि मध्य प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में पुरुष कृषि श्रमिकों को सिर्फ़ 229.2 रुपये की दैनिक मज़दूरी मिली, जबकि मार्च 2023 को समाप्त वर्ष के लिए राष्ट्रीय औसत 345.7 रुपये था। इसके बाद गुजरात था, जहां ऐसे श्रमिकों को 241.9 रुपये की दैनिक मज़दूरी मिलती है। जी हां, हाल ही में (17 नवंबर को) मतदान से गुजरे मध्य प्रदेश को लेकर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा संकलित आंकड़े बताते हैं कि यहां ग्रामीण कृषि श्रमिकों को देश में सबसे कम दैनिक वेतन मिलता है, जो राष्ट्रीय औसत से काफी कम है।
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, जहां मार्च 2023 को समाप्त वर्ष में राष्ट्रीय औसत 345.7 रुपये था, वहीं मध्य प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में पुरुष कृषि श्रमिकों को केवल 229.2 रुपये की दैनिक मजदूरी मिली। दूसरा राज्य जहां सबसे कम दैनिक मजदूरी दर्ज की गई, वह गुजरात था। गुजरात में पुरुष कृषि श्रमिकों को 241.9 रुपये की दैनिक मजदूरी मिलती है।
कम भुगतान करने वाले अन्य राज्यों में उत्तर प्रदेश और ओडिशा हैं, जहां ग्रामीण कृषि श्रमिकों को 2021-22 में औसत दैनिक वेतन क्रमश: 309.3 रुपये और 285.1 रुपये मिला, जबकि औद्योगिक राज्य कहे जाने वाले महाराष्ट्र में पुरुष कृषि श्रमिकों को प्रतिदिन 303.5 रुपये मिले। केंद्रीय बैंक के आंकड़ों के मुताबिक, मध्य प्रदेश में एक ग्रामीण कृषि श्रमिक अगर 25 दिन काम करता है तो उसे प्रति माह लगभग 5,730 रुपये की मासिक आय होगी। गुजरात में एक खेतिहार मजदूर की वार्षिक आय लगभग 6,047 रुपये रही होगी।
इसकी तुलना में केरल में एक ग्रामीण कृषि मजदूर को सबसे अधिक भुगतान होता है, जो 764.3 रुपये प्रति दिन प्रति व्यक्ति है। इस तरह एक महीने में 25 दिनों के काम के लिए औसतन केरल में 19,107 रुपये मिलते हैं।
आंकड़ों में कहा गया है कि पुरुष गैर-कृषि श्रमिकों के मामले में भी सबसे कम मजदूरी मध्य प्रदेश में ही देखी गई, जिसका औसत 246.3 रुपये है। वहीं, गुजरात में श्रमिकों को 273.1 रुपये और त्रिपुरा में 280.6 रुपये की दैनिक मजदूरी मिली। हालांकि, राष्ट्रीय औसत 348 रुपये था। गैर-कृषि श्रमिकों की दैनिक मजदूरी के मामले में केरल 696.6 रुपये प्रति व्यक्ति के साथ सबसे आगे है। इसके बाद मार्च 2023 को समाप्त वर्ष के लिए जम्मू कश्मीर (517.9 रुपये), तमिलनाडु (481.5 रुपये) और हरियाणा (451 रुपये) का नंबर आता है।
ग्रामीण पुरुष निर्माण श्रमिकों के मामले में गुजरात और मध्य प्रदेश एक बार फिर सबसे निचले और राष्ट्रीय औसत 393.3 रुपये से नीचे हैं। मार्च 2023 को समाप्त वित्त वर्ष के दौरान गुजरात में ग्रामीण निर्माण श्रमिकों को औसत वेतन 323.2 रुपये, मध्य प्रदेश में 278.7 रुपये और त्रिपुरा में 286.1 रुपये प्रति दिन मिला।
आंकड़ों में कहा गया है कि इसकी तुलना में केरल में ग्रामीण निर्माण श्रमिकों की दैनिक मजदूरी 852.5 रुपये, जम्मू कश्मीर में 534.5 रुपये, तमिलनाडु में 500.9 रुपये और हिमाचल प्रदेश में 498.3 रुपये थी। आरबीआई की रिपोर्ट में कहा गया है कि चरम मौसम की घटनाएं एक प्रमुख कारक बनी हुई हैं, क्योंकि ग्रामीण नौकरियां कृषि पर निर्भर हैं, जो मानसून और रबी तथा खरीफ उत्पादन पर निर्भर है।
आरबीआई की रिपोर्ट में कहा गया है कि कृषि और गैर-कृषि श्रमिकों की वेतन वृद्धि की गति में बढ़ोतरी दर्ज की गई है। यह वर्ष के बीच में अपने चरम क्रमश: जनवरी 2023 में 7.7 फीसदी और नवंबर 2022 में 5.6 फीसदी के शिखर पर पहुंच गई थी। जबकि मार्च 2023 में नरम पड़ गई थी। लेकिन इस सबसे खास सरकारी फाइलों में मौसम गुलाबी है।
सरकारी आंकड़ों में देश में बेरोजगारी दर 6 साल के निचले स्तर 3.2 प्रतिशत पर
देश में जुलाई 2022 से जून 2023 के बीच 15 वर्ष और उससे अधिक आयु की बेरोजगारी दर छह साल के निचले स्तर 3.2 प्रतिशत पर रही। सरकारी सर्वेक्षण में यह बात सामने आई। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) की ओर से जारी आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण वार्षिक रिपोर्ट 2022-2023 के अनुसार जुलाई 2022 से जून 2023 के बीच राष्ट्रीय स्तर पर 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के लोगों के लिए सामान्य स्थिति में बेरोजगारी दर (यूआर) 2021-22 में 4.1 प्रतिशत से घटकर 2022-23 में 3.2 प्रतिशत हो गई।
खास है कि पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे (PLFS) के सोमवार को जारी आंकड़ों के अनुसार बेरोजगारी दर 2020-21 में 4.2 प्रतिशत, 2019-20 में 4.8 प्रतिशत, 2018-19 में 5.8 प्रतिशत और 2017-18 में छह प्रतिशत थी। समय अंतराल पर श्रम बल आंकड़े उपलब्ध होने के महत्व को ध्यान में रखते हुए एनएसएसओ ने अप्रैल 2017 में आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) शुरुआत की थी।
रिपोर्ट के अनुसार, ‘‘ ग्रामीण क्षेत्रों में 2017-18 में बेरोजगारी दर 5.3 प्रतिशत से घटकर 2022-23 में 2.4 प्रतिशत हो गई। शहरी क्षेत्रों के लिए यह 7.7 प्रतिशत से घटकर 5.4 प्रतिशत हो गई।’’ मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, सर्वेक्षण में सामने आया, ‘‘ भारत में पुरुषों में बेरोजगारी दर 2017-18 में 6.1 प्रतिशत से घटकर 2022-23 में 3.3 प्रतिशत हो गई। महिलाओं में बेरोजगारी दर 5.6 प्रतिशत से घटकर 2.9 प्रतिशत रही।’’
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