अच्छे दिन? स्पेशल ट्रेनों के नाम पर लूट, लोग बोले, मोदी जी रेलवे और हवाई जहाज का किराया बराबर कर देंगे!

Written by Navnish Kumar | Published on: November 18, 2023
दिवाली और छठ पूजा आदि त्योहारों पर ट्रेनों और उनके महंगे किरायों की सूची आजकल सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही है। तरह तरह के कमेंट्स हैं तो कई कई गुणा किराए से भविष्य में प्राइवेटाइजेशन को लेकर अजीब चिंताएं भी हैं। एक ओर स्पेशल के नाम पर जनरल ट्रेनों का महंगा किराया वसूला जा रहा है तो दूसरी ओर, जनरल और स्लीपर की बोगियां कम करके एसी डब्बे बढ़ाए जा रहे हैं। महंगे टिकटों का आलम यह है कि कई जगह ट्रेन का किराया हवाई जहाज को भी मात दे रहा है। लोग सवाल उठा रहे हैं कि वाह! क्या खूब अच्छे दिन आए हैं। चप्पल वाले को हवाई सफर का अपना वादा पूरा करने के लिए, लगता है मोदी जी रेलवे और हवाई जहाज का किराया बराबर कर देंगे!




भड़ास फॉर मीडिया पर कुछ कमेंट्स इस प्रकार हैं। अजय प्रकाश लिखते हैं कि ...ध्यान रहे मुंह से आपके उफ न निकले रेल का किराया देखकर। आपको अभी और अच्छे दिनों का इंतजार करना है, अभी मोदी जी को रेलवे को हवाई जहाज बनाना है…किराया बराबर करना है…। असीमा भट्ट टिकट की फोटो शेयर करते हुए कहती हैं कि यह पटना से मुम्बई रेल टिकट है जिसका किराया है 9500 (नौ हज़ार पांच सौ रुपए)। अगर हम अब भी नहीं बोले तो यह देश ग़रीबों (90%) के जीने लायक तो नहीं ही बचेगा। मैं दुर्गा पूजा से बिहार (घर) जाना चाहती थी और रेल और हवाई जहाज़ दोनों का किराया मेरे बस के बाहर था इसलिए नहीं जा पायी। इस टिकट की तस्वीर ट्विटर से ली है।

रविशंकर उपाध्याय खिड़कियों से ट्रेनों में घुसती भीड़ की फोटो के साथ लिखते हैं कि …छपरा छठ मनाने जाएंगे और भीड़ के कारण मर जाएंगे! बाघ एक्सप्रेस से हावड़ा से छपरा आ रहे मजदूर दिनेश महतो की मौत हो गयी। खबर आई है कि अत्यधिक भीड़ में उसे सांस लेने में दिक्कत हुई और उसकी मौत हो गयी। इसका जिम्मेदार कौन है? इसके पहले सूरत में एक मजदूर की मौत हो गई थी। लाखों लोग टिकट का पैसा दे रहे हैं लेकिन व्यवस्था कहां है! छठ जैसे लोकपर्व में डायनेमिक फेयर वसूल रहे हैं। क्या देश मे केवल कुछ राज्यों की ही चिंता की जाएगी, बाकी राज्य इनके उपनिवेश हैं?

*बिहार में छठ स्पेशल ट्रेन का किराया हवाई टिकट के बराबर* 

नहाय-खाय के साथ छठ महापर्व की पर देश के विभिन्न हिस्सों से लोग सफर की मुसीबत झेलकर जैसे-तैसे बिहार में अपने घर पहुंचे। हालांकि अब इन्हें चार दिन बाद उन्हीं शहरों में लौटना होगा जहां से आए थे। बिहार की एक बड़ी आबादी मुंबई में रहती है। लेकिन पटना से मुंबई जाने वाली छठ स्पेशल ट्रेनों को देखें तो सुविधा एक्सप्रेस जैसी ट्रेनों का किराया भी आसमान छूने लगा है।

नियमित ट्रेनों में एसी थ्री का किराया 1795 रुपए है। वहीं, एसी टू का किराया 2600 रुपये के आसपास है, जबकि स्लीपर का किराया लगभग 670 रुपये है। पटना से मुंबई के बीच चलने वाली सुविधा एक्सप्रेस का अधिकतम किराया तय नहीं होने से इसका किराया आश्चर्यजनक तरीके से बढ़ गया है।

स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, स्पेशल ट्रेनों में डायनामिक फेयर लिया जाता है, जो अपने मूल किराए का डेढ़ गुना से अधिक नहीं हो सकता है। देश भर में स्पेशल ट्रेनों अथवा दूसरे ट्रेनों के किराए पर इस तरह का प्रतिबंध है। इस संबंध में मुख्य जनसंपर्क अधिकारी वीरेंद्र कुमार से बात की गई, परंतु बात नहीं हो सकी।



*ट्रेन का किराया फ्लाइट से ज्यादा* 

मुंबई से पटना जाने वाली सुविधा ट्रेन का सेकंड AC का किराया 9394 रुपये बताया गया है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार भारतीय रेलवे, सुविधा एक्सप्रेस ट्रेनों में राजधानी शताब्दी ट्रेनों की तरह डायनेमिक किराया वसूल रहा है। मुंबई से पटना जा रही सुविधा एक्सप्रेस ट्रेन में सेकंड एसी का बेस फेयर 2950 रुपये इस पर जीएसटी 448 रुपये लगाकर डायनेमिक चार्जेस 5900 रुपये बैठता है। यानी सुविधा एक्सप्रेस में 200 फीसदी चार्जेस वसूला जा रहा है।

थर्ड एसी मुंबई पटना का किराया 6655 रुपये है। वहीं सुविधा एक्सप्रेस स्लीपर क्लास का किराया 2655 रुपये है। रेलवे कई ऐसी सुविधा एक्सप्रेस ट्रेन चल रहा है जिनमें पैसेंजर से बेतहाशा किराया वसूला जा रहा है। इसी तरह जयपुर से यशवंतपुर कल 18 नवंबर को जाने का 2nd AC का किराया 11,230 रुपये लग रहा है।

*दिल्ली-दुबई से अधिक पटना- दिल्ली का विमान किराया* 

बिहार आने वाले विमानों का किराया भी चरम पर है। डीडब्लू की रिपोर्ट के अनुसार, 17 नवंबर के लिए दिल्ली से पटना का किराया 18555 रुपये तक व मुंबई से पटना का किराया 20777 रुपये तक पहुंच गया। इस दिन जितने पैसे में कोई व्यक्ति दिल्ली से पटना पहुंचेगा, उससे तीन हजार कम यानी 15077 में वह दुबई से दिल्ली चला आएगा। साफ है, दुबई से दिल्ली का सफर चार घंटे का है जबकि दिल्ली से पटना का सफर महज डेढ़ घंटे का। दरअसल, ट्रेनों के फुल होने का फायदा विमानन कंपनियां उठा रही हैं। आम दिनों की तुलना में यह किराया तीन गुणा है। ममता ट्रैवल्स के प्रबंधक कुमुद रंजन इसकी वजह फ्लाइंग आवर पर विमान के न्यूनतम तथा अधिकतम किराये में कैपिंग खत्म होना बताते हैं. सहरसा के अजय कुमार कहते हैं, "मेरे छोटे भाई को दिल्ली से आना था। लेकिन उसे न तो ट्रेन में जगह मिली और न ही बस में, फ्लाइट का किराया हम दे नहीं सकते। मैंने मां से झूठ बोल दिया कि उसे कंपनी के काम से बाहर जाना पड़ गया है। इस बार वह नहीं आ पाएगा।"



*छठ से पहले कितना था किराया?* 

छठ के ठीक पहले 17 नवंबर को इस ट्रेन में मुंबई से पटना वातानुकूलित द्वितीय श्रेणी का किराया जहां 9355 रुपये था। वहीं, एसी थ्री का किराया 6655 रुपये रहा। स्लीपर का किराया 910 रुपये, एसी थ्री इकोनामी श्रेणी का किराया 6335 रुपये था। यही हाल मुंबई लौटने के समय का है। 22 नवंबर को पटना से मुंबई का किराया वातानुकूलित द्वितीय श्रेणी का 9395 है। जबकि एसी थ्री का किराया 6655 एवं एसी थ्री इकोनामी का किराया 6335 रुपये है।

किराए में सर्वाधिक वृद्धि पटना से मुंबई के स्लीपर श्रेणी में दिख रही है। पटना आने में जहां अधिकतम किराया 17 नवंबर को स्लीपर में 910 रुपये था, वहीं जाने में 22 नवंबर का किराया 2625 रुपये तक पहुंच गया है। अभी इसमें और भी बढ़ोत्तरी का अनुमान है। आम दिनों में पाटलिपुत्र स्टेशन से एलटीटी का एसी टू का किराया 2645 रुपये है।

*लूट के साथ अहसान भी जता रही सरकार* 
 

भदोही वाला शीर्षक से एक्स पर टिप्पणी है कि सरकार त्योहार स्पेशल ट्रेन चलाकर ऐसा प्रचार करती है कि जैसे कोई एहसान कर रही हो। सच तो यह है कि इस एहसान के आड़ में सरकार आम जनता का काट रही होती है। अब देखिए, भदोही से लखनऊ तक का 3rd AC का किराया एक्सप्रेस ट्रेन से 555 रुपए है जबकि त्योहार स्पेशल का 860 रुपए। दिल्ली से पटना तक एक्सप्रेस ट्रेन में 3rd AC का किराया 1350 रुपए है और त्योहार स्पेशल ट्रेन से यही किराया 1715 रुपए है। और त्योहार स्पेशल ट्रेन ज़्यादा समय भी ले रही है। यात्री जानवरों की तरह ट्रेनों में ठूंसकर घर जा रहे। 

दिवाली पर घर जा रहा था। थर्ड AC स्लीपर क्लास बना हुआ था। एक बार भी ना झांकने वाले टीटी चार-चार बार टिकट चेक कर रहे थे और 400, 500 रुपए लेकर सबको कहीं भी बैठने की छूट दे रहे थे। इतना पैसा देकर भी वे बिना सीट वाले थे। अब टिकट वाले लोग अपने हिसाब से निपटें। सरकार भी सालभर त्योहारों का इंतज़ार करती रहती है। उसे पता है कि आम आदमी ट्रेन से घर जाएगा। धक्के सहेगा, चंद ख़ुशियों के लिए सैकड़ों किमी दूर अपनों के पास जाएगा, इससे बढ़िया हलाल करने का मौक़ा मिलेगा नहीं।



*भीड़: घर लौटने की परेशानी बता रही पलायन के दर्द की कहानी* 

बिहार से रोजी-रोटी कमाने बाहर गए लोगों का त्योहार के इस मौसम में घर लौटने का क्रम दशहरा व दिवाली से ही जारी है। चार दिवसीय छठ महापर्व के समीप आते-आते यह चरम पर पहुंच जाता है। इस बार भी लाखों की संख्या में देश के कोने-कोने से लोग बिहार के विभिन्न जिलों में अपने-अपने घर लौट रहे हैं। लेकिन ट्रेन हो या बस या फिर विमान, मारामारी इतनी है कि उनके लिए घर पहुंच पाना जंग जीतने से कम नहीं होता। ऐसे कई वीडियो इंटरनेट पर वायरल हो रहे हैं। वहीं, ट्रेन लेट होने की स्थिति भी कम भयानक नहीं है।

देशभर के भिन्न-भिन्न शहरों में स्टेशन व बस अड्डों पर भीड़ उमड़ रही है। ट्रेनों में जगह नहीं है, घुसने भर के लिए मारामारी हो रही है। छठ पूजा में घर आने के लिए सूरत में ताप्ती एक्सप्रेस पकड़ने के लिए उमड़ी भीड़ से अफरातफरी मच गई। कुछ लोग बेहोश हो गए, कुछ भीड़ में फंस गए जिनमें एक व्यक्ति की मौत हो गई। 



आलम यह है कि लोग बस किसी तरह ट्रेन में लटककर घर यानी बिहार पहुंचना चाहते हैं। इसी तरह बीते बुधवार को हावड़ा से काठगोदाम जाने वाली काठगोदाम एक्सप्रेस की जनरल बोगी में इतनी भीड़ थी कि सारण जिले के एक व्यक्ति की जान चली गई। ट्रेन के अंदर की स्थिति भी भेड़िया धसान की तरह रहती है। एसी और जनरल बोगी का फर्क नहीं रह जाता है। जो भी ट्रेन महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, असम या राजस्थान से बिहार पहुंच रही, वह खचाखच भरी रहती है। ऐसा नहीं है कि सरकार की तरफ से भीड़ को देखते हुए रेलगाड़ियों की व्यवस्था नहीं की गई है। कई पूजा स्पेशल ट्रेन चलाई गई हैं। पूर्व मध्य रेलवे के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी वीरेंद्र कुमार के अनुसार, ‘‘इस साल 82 स्पेशल ट्रेन चलाई गई है। पिछले वर्ष ऐसी 56 ट्रेन चलाई गई थी। ये सभी 1400 फेरे लगाएंगी। रेगुलर डेढ़ लाख बर्थ के अतिरिक्त एक लाख 75 हजार बर्थ की व्यवस्था की गई है। कोविड के बाद दूसरी बार छठ मनाया जा रहा है, इसलिए भीड़ काफी है।'' 

*पीएमओ तक पहुंचा ट्रेन की लेटलतीफी का मामला* 

इससे इतर यात्रियों की दुर्दशा यह बताती है कि रेलवे की तमाम व्यवस्थाओं के बाद ट्रेनों में भीड़ बेकाबू है। स्पेशल ट्रेन के बारे में यात्री कहते हैं कि इन ट्रेनों का कोई "माई-बाप" नहीं होता। बीते 13 तारीख को हैदराबाद से चलकर पटना पहुंचे तनव राज कहते हैं, "हमारी स्पेशल ट्रेन को 14 तारीख की शाम साढ़े पांच बजे पटना पहुंचना था, लेकिन यह नौ घंटे 43 मिनट की देरी से पहुंची।" कई तो 24-24 घंटे विलंब से चल रहीं. किसी में पानी नहीं होता, तो किसी का एसी काम नहीं कर रहा होता तो किसी बोगी में लाइट तक नहीं होती। तभी तो बुधवार को पंजाब के सरहिंद से बिहार के सहरसा जाने वाली ट्रेन के 16 घंटे से ज्यादा लेट होने का मामला पीएमओ तक पहुंच गया और रेल मंत्री अश्विन वैष्णव को रेलवे बोर्ड के चार अधिकारियों को तलब करना पड़ गया। रैक को लेकर भी यात्रियों का आरोप है कि स्पेशल के नाम पर पैसे ले लिए जाते हैं पर देखने-सुनने वाला कोई नहीं होता। लोगों का कहना है कि यात्रियों की सुरक्षा की भी अनदेखी की जाती है। नई दिल्ली-दरभंगा क्लोन एक्सप्रेस में उत्तर प्रदेश के इटावा में स्लीपर बोगी में लगी आग और दिल्ली से सहरसा जा रही वैशाली एक्सप्रेस की स्लीपर कोच में लगी आग का कारण लोग रिजेक्टेड रैक का इस्तेमाल किया जाना बता रहे हैं। वैशाली एक्सप्रेस में 19 लोगों के झुलसने की सूचना है।

*भीड़ बता रही पलायन की कहानी!* 

वाकई, हर राज्य का अपना विशेष पर्व होता है, लेकिन कभी वहां से ऐसा कुछ देखने या सुनने में नहीं आता है। लेकिन किसी भी पर्व के मौके पर बिहार आने वाली ट्रेनों में जगह मिलनी मुश्किल होती है। इसकी वजह बिहारी प्रवासियों की संख्या अधिक होना ही है। दरअसल, रोजी-रोटी की तलाश में लाखों लोग देश के अन्य हिस्सों का रुख करते हैं और विशेष दिवस पर अपने-अपने घर लौटना चाहते हैं। इससे ही यह स्थिति पैदा होती है। डीडब्लू के अनुसार, सामाजिक कार्यकर्ता व आरटीआई एक्टिविस्ट प्रशांत पुष्पम कहते हैं, "यह स्थिति बिहार सरकार के इस दावे को झुठलाने के लिए पर्याप्त है कि राज्य से पलायन की दर में कमी आई है। बेरोजगारी का दंश झेल रहे बिहार के संबंध में यह सब कुछ केवल पलायन की वजह से ही है।" यही नहीं, दिल्ली से आने वाली बसें भी खचाखच भरी आ रहीं हैं। एक-एक बस से 80-100 यात्री आ रहे। एक-एक सीट पर तीन यात्रियों को बैठना पड़ रहा है। गोपालगंज जिले के बलथरी चेकपोस्ट पर तो कई ट्रकों में लोग बैठे दिखे। इनमें महिलाएं व बच्चे भी थे। जब ट्रेन या बस में जगह नहीं मिल रही तो लोग ट्रक का सहारा ले रहे हैं।

पुष्पम कहते हैं, "1990 के दशक से बिहार से पलायन का जो सिलसिला शुरू हुआ वह लगातार जारी है। सामाजिक न्याय के नाम पर बनी सरकारों ने रोजगार के लिए कुछ भी नहीं किया। आज भी उद्योग धंधों की स्थिति चौपट है। खेतों की जोत छोटी है, परिवार के सदस्यों की संख्या अधिक। इसलिए खेती से पेट भर नहीं रहा। लोग नौकरी के लिए मजबूर हैं। स्किल्ड या अनस्किल्ड, काम या नौकरी दोनों यहां मिल नहीं रही तो लाचारी में वे बाहर जा रहे हैं। कोविड के दौरान बातें तो बड़ी-बड़ी की गईं, लेकिन उसकी तुलना में काम कुछ भी नहीं हुआ।"

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