नई दिल्ली। बीजेपी की भोपाल से प्रत्याशी साध्वी प्रज्ञा की मुश्किलें रुकने का नाम ही नहीं ले रही हैं। हाल ही में ऑल इंडिया एवं सेंट्रल सर्विस के पूर्व कर्मचारियों ने प्रधानमंत्री मोदी को चिट्टी लिखकर साध्वी का नामांकन रद्द करने की मांग की है। ख़त पर 71 पूर्व कर्मचारियो के हस्ताक्षर हैं। मालेगांव में 2008 के ब्लास्ट मामले को लेकर साध्वी प्रज्ञा पर मुकदमा चल रहा है। इसके बावजूद बीजेपी ने उन्हें प्रत्याशी बनाया है।
पूर्व कर्मचारियों ने साध्वी प्रज्ञा को चुनाव में उतारने के निर्णय पर नाराज़गी जताई है। साध्वी प्रज्ञा ने प्रत्याशी घोषित होते ही कई सांप्रदायिक और आपत्तिजनक बयान दिए थे। ख़त में लिखा है "लोकसभा चुनाव में भोपाल सीट पर प्रज्ञा ठाकुर के नामांकन पर हम खेद जताते हैं। भारत के प्रधानमंत्री जिन्होंने उनके नामांकन को तहज़ीब का प्रतीक बताया उनके द्वारा ही यह निर्णय निरस्त किया जा सकता है।
पूर्व सरकारी कर्मचारियों ने पूर्व एटीएस प्रमुख शहीद हेमंत करकरे पर दिए बयान की भी निंदा की। हेमंत करकरे 26/11 के मुंबई हमलों के दौरान आतंकियों से लड़ते हुए शहीद हो गए थे। भोपाल में हुई 19 अप्रैल की रैली में प्रज्ञा ठाकुर ने दावा किया था की उनकी बद्दुआओं के कारण करकरे की मृत्यु हुई। मालेगांव 2008 के ब्लास्ट जिसमें प्रज्ञा ठाकुर का नाम शामिल है, हेमंत उस मामले की जाँच कर रहे थे। उनके बयान की सभी ओर आलोचना हुई थी खासकर आईपीएस एसोसिएशन ने भी इस पर ऐतराज जताया था। एसोसिएशन ने ट्वीट किया था "अशोक चक्र से सम्मानित श्री हेमंत करकरे ने आतंकियों से लड़ते हुए सर्वोच्च त्याग दिया था। हम सभी वर्दी वाले प्रत्याशी द्वारा दिए बयान की निंदा करते हैं और शहीद के प्रति सम्मान की अभिलाषा करते हैं।"
ख़त के माध्यम से पूर्व कर्मचारियों ने प्रज्ञा ठाकुर के बयान का विरोध करने और बीजेपी से उनका नामांकन निरस्त करने का आग्रह किया है इसके अलावा अन्य नागरिक भी इसका विरोध कर रहे हैं। इतना ही नहीं प्रधानमंत्री को पद ग्रहण करते वक्त की शपथ याद दिलाते हुए चुनाव के दौरान सांप्रदायिकता के नाम पर फैल रहे भय को खत्म करने की अपील की है।
साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के नाम पर अभी गैरकानूनी गतिविधियां प्रतिबंध कानून के सेक्शन 16 और 18 के तहत आतंकी गतिविधियां कराने एवं साजिशों में हिस्सा लेने, IPC के तहत हत्या और समाज में समुदायों के मध्य विद्वेष फैलाने का इल्ज़ाम है। साम्प्रदायिकता के नाम पर अशांति फैलाने वाले ऐसे प्रत्याशी को चुनाव मैदान में उतार कर वर्तमान सरकार ने अपनी हिंदुत्व की विचारधारा को बढ़ावा देने का एकमात्र उद्देश्य सिद्ध कर दिया है।
पूर्व कर्मचारियों ने साध्वी प्रज्ञा को चुनाव में उतारने के निर्णय पर नाराज़गी जताई है। साध्वी प्रज्ञा ने प्रत्याशी घोषित होते ही कई सांप्रदायिक और आपत्तिजनक बयान दिए थे। ख़त में लिखा है "लोकसभा चुनाव में भोपाल सीट पर प्रज्ञा ठाकुर के नामांकन पर हम खेद जताते हैं। भारत के प्रधानमंत्री जिन्होंने उनके नामांकन को तहज़ीब का प्रतीक बताया उनके द्वारा ही यह निर्णय निरस्त किया जा सकता है।
पूर्व सरकारी कर्मचारियों ने पूर्व एटीएस प्रमुख शहीद हेमंत करकरे पर दिए बयान की भी निंदा की। हेमंत करकरे 26/11 के मुंबई हमलों के दौरान आतंकियों से लड़ते हुए शहीद हो गए थे। भोपाल में हुई 19 अप्रैल की रैली में प्रज्ञा ठाकुर ने दावा किया था की उनकी बद्दुआओं के कारण करकरे की मृत्यु हुई। मालेगांव 2008 के ब्लास्ट जिसमें प्रज्ञा ठाकुर का नाम शामिल है, हेमंत उस मामले की जाँच कर रहे थे। उनके बयान की सभी ओर आलोचना हुई थी खासकर आईपीएस एसोसिएशन ने भी इस पर ऐतराज जताया था। एसोसिएशन ने ट्वीट किया था "अशोक चक्र से सम्मानित श्री हेमंत करकरे ने आतंकियों से लड़ते हुए सर्वोच्च त्याग दिया था। हम सभी वर्दी वाले प्रत्याशी द्वारा दिए बयान की निंदा करते हैं और शहीद के प्रति सम्मान की अभिलाषा करते हैं।"
ख़त के माध्यम से पूर्व कर्मचारियों ने प्रज्ञा ठाकुर के बयान का विरोध करने और बीजेपी से उनका नामांकन निरस्त करने का आग्रह किया है इसके अलावा अन्य नागरिक भी इसका विरोध कर रहे हैं। इतना ही नहीं प्रधानमंत्री को पद ग्रहण करते वक्त की शपथ याद दिलाते हुए चुनाव के दौरान सांप्रदायिकता के नाम पर फैल रहे भय को खत्म करने की अपील की है।
साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के नाम पर अभी गैरकानूनी गतिविधियां प्रतिबंध कानून के सेक्शन 16 और 18 के तहत आतंकी गतिविधियां कराने एवं साजिशों में हिस्सा लेने, IPC के तहत हत्या और समाज में समुदायों के मध्य विद्वेष फैलाने का इल्ज़ाम है। साम्प्रदायिकता के नाम पर अशांति फैलाने वाले ऐसे प्रत्याशी को चुनाव मैदान में उतार कर वर्तमान सरकार ने अपनी हिंदुत्व की विचारधारा को बढ़ावा देने का एकमात्र उद्देश्य सिद्ध कर दिया है।