साधो, साध्वी प्रज्ञा ने बापू के हत्यारे गोडसे को फिर से देशभक्त कह दिया। लोग नाराज हो रहे हैं। इन नाराज होने वाले भले मानुषों को यह नहीं पता कि सांसद प्रज्ञा ठाकुर सिर्फ अपना काम कर रही हैं।
साधो, अब तुम पूछोगे कि गोडसे को देशभक्त कहना कैसा काम है ? कोई बापू के हत्यारे को देशभक्त कैसे कह सकता है ? दरअसल साधो, हर व्यक्ति का अपना एक उद्देश्य, लक्ष्य होता है जिसको पूरा करना उसकी जिम्मेदारी होती है। अब कौन नहीं जानता कि साध्वी प्रज्ञा का इतिहास क्या है ? उनके ऊपर लगे आरोप, प्रसिद्धि और माइंड हैक कर बनाये गए रोबोट्स को खुश रखने के लिए ही उन्हें भोपाल से लोकसभा का टिकट भाजपा ने दिया था। वह जीत गई हैं। साहेब और और अमित शाह जानते थे कि जनता क्या चुनेगी। उन्होंने वही चुनने के लिए दिया।
साधो, अब आते हैं साध्वी प्रज्ञा के बयानों पर। वे अक्सर कुछ ऐसा कहती रहती हैं जिससे मीडिया से लेकर सोशल मीडिया में छाई रहती हैं। वे कभी गाय को ब्लड प्रेशर कम करने वाला जीव बता देती हैं। प्रगतिशील, लिबरल, सेकुलर वर्ग जो शिक्षा, स्वास्थ्य पर बात कर रहा होता है वह अब साध्वी को मूर्ख बताने में अपनी ऊर्जा व्यय करने लगता है। उसे लगता है साध्वी को विज्ञान की समझ नहीं है। लेखक वर्ग बड़े बड़े लेख लिखकर बताने लगता है कि किस तरह गाय से ब्लड प्रेशर का कोई लेना देना नहीं है। प्रसिद्ध न्यूज़ चैनल सारे मुद्दे छोड़ साध्वी के बयान को हेडलाइन के तौर पर चलाने लगते हैं। माइंड हैक्ड बेरोजगार युवा वाह वाह कर साध्वी की तारीफ करने लगते हैं। वे रोजगार नहीं मांगते गौ की महानता साध्वी के मुंह से सुन तृप्त हो जाते हैं। और इस तरह साध्वी प्रज्ञा अपने उद्देश्य को पूरा कर लेती हैं।
साधो, अब गोडसे वाले बयान को ही ले लेते हैं। चारों तरह गोडसे छाया है। लोग JNU फीस हाइक की चर्चा भूल गए, कश्मीर भूल गए, हैदराबाद में हुई हैवानियत पर चर्चा नहीं है। सब गोडसे और साध्वी पर बहस कर रहे हैं। यही सरकार चाहती है। मुख्य मुद्दे से ध्यान हटाये रखा जाए। जीडीपी की दशा पिछले 6 सालों की तुलना में सबसे निचले स्तर पर है। यह चर्चा का विषय न हो इसलिए बीच में गोडसे को ला दिया जाता है। साध्वी के मुंह से देशभक्त कहलवाने से फुटेज भी अधिक मिलता है। सब मुख्य काम छोड़ देशभक्त, नॉन देशभक्त वाले मोड पर आ जाते हैं। व्हाट्सएप से रोबोट बनाये गए लोग जिन्होंने गांधी से संबंधित एक भी किताब नहीं पढ़ी, 100 रुपये किलो प्याज खरीदते हुए कहते मिल जाएंगे- गांधी गद्दार था, पाकिस्तान परस्त था। साध्वी प्रज्ञा सही कहती हैं । गोडसे ने अच्छा काम किया गांधी को मारकर।
साधो, ऐसे लोगों को प्याज के 100 रुपये किलो हो जाने का दुःख नहीं है। गोडसे को देशभक्त कहने का सुख है । देशभक्ति, व्यक्तिभक्ति महंगाई का एहसास नहीं होने देती।
साधो, अधिकतर गोडसे समर्थक से यदि पूछा जाए कि गांधी के बारे में क्या जानते हो तो कहेगा कि मुस्लिम परस्त, पाकिस्तान परस्त थे। पाकिस्तान को 65 करोड़ दिलवा दिया....... । यदि पूछ लो कि गांधी से संबंधित कौन सी किताब अबतक पढ़ी है तो अक्सर जवाब मिलता है एक भी नहीं। साधो, यह गोडसे समर्थकों की महानता है कि किसी को बिना पढ़े जाने उसके बारे में राय बना लेते हैं।
साधो, इस पूरे प्रकरण में प्रधानमंत्री जी का अहम रोल होता है। वे वन लाइनर लिखने वाले को मैटेरिया उपलब्ध करवाते हैं। वो कह देते हैं कि मैं साध्वी को मन से माफ नहीं कर पाऊंगा। इस एक सूक्ति वाक्य से लाखों मीम , चुटकुले तैयार हो जाते हैं। मैं हमेशा उम्मीद करता हूँ कि साध्वी के बयान के बाद प्रधानमंत्री कुछ न कहें। पर वह कह देते हैं और लोगों को कच्चा मटेरियल मिल जाता है। दस दिन के महत्वपूर्ण मुद्दे गधे की सींग हो जाते हैं।
पर क्या करें साधो ? यही तो रणनीति है। उलूल जुलूल बयान आते रहें और सरकार चलती रहे। सरकार बनाना ही चाणक्य नीति नहीं है। सरकार बनाकर विफलताओं से जनता का ध्यान भटकाए रखना ही असली चाणक्य नीति है।
साधो, अब तुम पूछोगे कि गोडसे को देशभक्त कहना कैसा काम है ? कोई बापू के हत्यारे को देशभक्त कैसे कह सकता है ? दरअसल साधो, हर व्यक्ति का अपना एक उद्देश्य, लक्ष्य होता है जिसको पूरा करना उसकी जिम्मेदारी होती है। अब कौन नहीं जानता कि साध्वी प्रज्ञा का इतिहास क्या है ? उनके ऊपर लगे आरोप, प्रसिद्धि और माइंड हैक कर बनाये गए रोबोट्स को खुश रखने के लिए ही उन्हें भोपाल से लोकसभा का टिकट भाजपा ने दिया था। वह जीत गई हैं। साहेब और और अमित शाह जानते थे कि जनता क्या चुनेगी। उन्होंने वही चुनने के लिए दिया।
साधो, अब आते हैं साध्वी प्रज्ञा के बयानों पर। वे अक्सर कुछ ऐसा कहती रहती हैं जिससे मीडिया से लेकर सोशल मीडिया में छाई रहती हैं। वे कभी गाय को ब्लड प्रेशर कम करने वाला जीव बता देती हैं। प्रगतिशील, लिबरल, सेकुलर वर्ग जो शिक्षा, स्वास्थ्य पर बात कर रहा होता है वह अब साध्वी को मूर्ख बताने में अपनी ऊर्जा व्यय करने लगता है। उसे लगता है साध्वी को विज्ञान की समझ नहीं है। लेखक वर्ग बड़े बड़े लेख लिखकर बताने लगता है कि किस तरह गाय से ब्लड प्रेशर का कोई लेना देना नहीं है। प्रसिद्ध न्यूज़ चैनल सारे मुद्दे छोड़ साध्वी के बयान को हेडलाइन के तौर पर चलाने लगते हैं। माइंड हैक्ड बेरोजगार युवा वाह वाह कर साध्वी की तारीफ करने लगते हैं। वे रोजगार नहीं मांगते गौ की महानता साध्वी के मुंह से सुन तृप्त हो जाते हैं। और इस तरह साध्वी प्रज्ञा अपने उद्देश्य को पूरा कर लेती हैं।
साधो, अब गोडसे वाले बयान को ही ले लेते हैं। चारों तरह गोडसे छाया है। लोग JNU फीस हाइक की चर्चा भूल गए, कश्मीर भूल गए, हैदराबाद में हुई हैवानियत पर चर्चा नहीं है। सब गोडसे और साध्वी पर बहस कर रहे हैं। यही सरकार चाहती है। मुख्य मुद्दे से ध्यान हटाये रखा जाए। जीडीपी की दशा पिछले 6 सालों की तुलना में सबसे निचले स्तर पर है। यह चर्चा का विषय न हो इसलिए बीच में गोडसे को ला दिया जाता है। साध्वी के मुंह से देशभक्त कहलवाने से फुटेज भी अधिक मिलता है। सब मुख्य काम छोड़ देशभक्त, नॉन देशभक्त वाले मोड पर आ जाते हैं। व्हाट्सएप से रोबोट बनाये गए लोग जिन्होंने गांधी से संबंधित एक भी किताब नहीं पढ़ी, 100 रुपये किलो प्याज खरीदते हुए कहते मिल जाएंगे- गांधी गद्दार था, पाकिस्तान परस्त था। साध्वी प्रज्ञा सही कहती हैं । गोडसे ने अच्छा काम किया गांधी को मारकर।
साधो, ऐसे लोगों को प्याज के 100 रुपये किलो हो जाने का दुःख नहीं है। गोडसे को देशभक्त कहने का सुख है । देशभक्ति, व्यक्तिभक्ति महंगाई का एहसास नहीं होने देती।
साधो, अधिकतर गोडसे समर्थक से यदि पूछा जाए कि गांधी के बारे में क्या जानते हो तो कहेगा कि मुस्लिम परस्त, पाकिस्तान परस्त थे। पाकिस्तान को 65 करोड़ दिलवा दिया....... । यदि पूछ लो कि गांधी से संबंधित कौन सी किताब अबतक पढ़ी है तो अक्सर जवाब मिलता है एक भी नहीं। साधो, यह गोडसे समर्थकों की महानता है कि किसी को बिना पढ़े जाने उसके बारे में राय बना लेते हैं।
साधो, इस पूरे प्रकरण में प्रधानमंत्री जी का अहम रोल होता है। वे वन लाइनर लिखने वाले को मैटेरिया उपलब्ध करवाते हैं। वो कह देते हैं कि मैं साध्वी को मन से माफ नहीं कर पाऊंगा। इस एक सूक्ति वाक्य से लाखों मीम , चुटकुले तैयार हो जाते हैं। मैं हमेशा उम्मीद करता हूँ कि साध्वी के बयान के बाद प्रधानमंत्री कुछ न कहें। पर वह कह देते हैं और लोगों को कच्चा मटेरियल मिल जाता है। दस दिन के महत्वपूर्ण मुद्दे गधे की सींग हो जाते हैं।
पर क्या करें साधो ? यही तो रणनीति है। उलूल जुलूल बयान आते रहें और सरकार चलती रहे। सरकार बनाना ही चाणक्य नीति नहीं है। सरकार बनाकर विफलताओं से जनता का ध्यान भटकाए रखना ही असली चाणक्य नीति है।