CJP की पहल पर मुंबई पहुंचे असम के NRC पीड़ित, बताई आपबीती

Written by sabrang india | Published on: October 12, 2019
मुंबई: असम में एनआरसी के फाइनल ड्राफ्ट से 19 लाख से ज्यादा लोगों का जीवन अधर में लटक गया है। उन्हें विदेशी घुसपैठिये करार दिया गया है। इस बीच बहुत सारे लोग ऐसे हैं जिन्हें प्रशासनिक लापरवाही का खामियाजा उठाना पड़ा। कुछ को एक छोटी सी गलती के कारण सालों जेल में रहना पड़ा तो किसी के परिवार का सहारा ही एक झटके में छिन गया। ऐसे ही कुछ प्रभावित लोग शुक्रवार को मुंबई पहुंचे और सिटीजंस फॉर जस्टिस एंड पीस (सीजेपी) व पीपुल्स यूनियन ऑफ सिविल लिबर्टीज (PUCL) के तत्वाधान में आयोजित एकजुटता बैठक में आपबीती वहां मौजूद लोगों के सामने रखी। 



सीजेपी असम में दो साल से काम कर रही है। 1000 से अधिक स्वयंसेवकों, मोटिवेटर्स और सामुदायिक स्वयंसेवकों की हमारी टीम फाइनल ड्राफ्ट से बाहर रखे गए नागरिकों की मदद कर रही है। इसके साथ ही NRC की यातनापूर्ण प्रक्रिया से लड़ने में उनकी मदद कर रही है।

असम की अनिमा डे ने अपने साथ बीती त्रासदी साझा करते हुए बताया कि उन्होंने गोलपारा हिरासत शिविर में अपने बेटे सुब्रत को खो दिया। उन्होंने कहा कि राज्य के छह डिटेंशन सेंटर्स में गोलपारा हिरासत शिविर सबसे घातक है। इस हिरासत शिविर में 10 कैदियों को मृत पाया गया है जिनमें उनका बेटा भी शामिल था। अनिमा ने बताया, "जब भी मैं उनसे मिलने जाती तो अपने बेटे से खुलकर बात नहीं हो पाती थी क्योंकि गार्ड हमेशा आसपास रहते थे। अनीमा आगे बताती हैं कि अपने बेटे को मृत्यु से चार दिन पहले, मैंने आश्वासन दिया था कि हम गुवाहाटी उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाएंगे और हमें न्याय मिलने की उम्मीद थी। जिस वक्त वे अपने बेटे से मिलने गईं तो वे ठीक थे और किसी तरह की गंभीर बीमारी का कोई लक्षण नजर नहीं आ रहा था। "हमें सुब्रत की मौत के अस्पष्ट कारण बताए गए थे और मृत्यु प्रमाण पत्र या पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी नहीं दी गई।"

सुश्री डे को इसके बाद और भी ज्यादा कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। क्योंकि उनके परिवार NRC में शामिल नहीं किया गया है। सुश्री डे को न्यायाधिकरण की कार्यवाही के लिए कई किलोमीटर की यात्रा करनी होती है। आर्थिक प्रभाव विनाशकारी रहा है, क्योंकि सुब्रत अल्प आय वाले परिवार में एकमात्र कमाने वाले सदस्य थे। उनके बेटे बिकी को अपनी शिक्षा छोड़कर एक दर्जी के प्रशिक्षु के रूप में काम करने के लिए मजबूर होना पड़ा। सुश्री डे और उनकी बहू कपड़े के थैले बनाती हैं जिससे उनकी प्रतिदिन की आय सिर्फ 48 रुपये बैठती है। उनके परिवार की सारी पूंजी और आय के अन्य साधन एनआरसी प्रक्रिया की बलि चढ़ चुके हैं। 

ऐसे ही एक अन्य पीड़ित हसन अली ने भी आपबीती यहां साझा की। हसन अली ने पिछले साल आत्महत्या का प्रयास किया था जब उनका नाम जुलाई 2018 में प्रकाशित एनआरसी के मसौदे से बाहर रखा गया था। हसन अली ने अपना अनुभव साझा करते हुए कहा, "मेरे दोस्तों ने मुझे समय के साथ बचा लिया, लेकिन सीजेपी ने मुझमे एक उम्मीद जगाई। सीजेपी के अथक प्रयासों के कारण ही हमें पता चला कि नागरिक सेवा केंद्र के कर्मियों ने मेरे वैध दस्तावेजों को डी वोटर के दस्तावेजों के ढेर में डाल दिया था!"

रश्मिनारा बेगम, जो तीन महीने की गर्भवती थी, उन्हें जन्म की तारीख में मामूली विसंगति के कारण हिरासत शिविर में भेज दिया गया था। इसके अलावा सकेन अली ने अपना अनुभव साझा करते हुए कहा कि उन्हें अपने नाम की वर्तनी में एक छोटी सी गलती के कारण पांच साल तक हिरासत में रहना पड़ा था। 

गोपाल दास ने भी सीजेपी को धन्यवाद दिया कि पिछले साल ड्राफ्ट से हटाए जाने के बाद सीजेपी ने उनके पूरे परिवार को एनआरसी में शामिल करने में मदद की। उन्होंने बताया, “मेरे पिता और मेरी पत्नी के दादा के नाम एक समान हैं। अधिकारियों को लगा कि हम नकली दस्तावेजों का उपयोग कर रहे हैं। लेकिन सीजेपी ने सुनवाई प्रक्रिया में हमारी मदद की, और अब मेरे पूरे परिवार को अंतिम एनआरसी में शामिल कर लिया है।"

सीजेपी के सदस्यों ने कहा, ''एनआरसी के अंतिम ड्राफ्ट के प्रकाशन के बाद CJP की असम में नागरिकों की मदद करने पर और अधिक ध्यान केंद्रित करने की योजना है। अब, हम फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल्स (FT) के समक्ष अपनी नागरिकता की रक्षा के लिए अंतिम NRC से छूटे हुए लोगों की मदद कर रहे हैं। यह मदद पैरालीगल्स को FT में जाने से पहले लोगों को प्रशिक्षित कर की जा रही है।''  

असम की स्थिति के बारे में बात करते हुए, सीजेपी सचिव तीस्ता सीतलवाड़ ने कहा, "नागरिकता के मुद्दे पर एनआरसी के जरिए 'डी' वोटर या 'संदिग्ध विदेशियों' के रूप में देश के सामने मानवीय संकट उत्पन्न हुआ है। यह दुर्भाग्यपूर्ण भी है कि सरकार और नौकरशाही, ने किस तरह से अपने ही लोगों को पूरी तरह से धोखा दिया है। दस्तावेज़ की शक्ति का उपयोग किसी व्यक्ति के अस्तित्व को एक भारतीय या विदेशी के रूप में स्थापित करने के लिए किया जा रहा है। विदेशी ट्रिब्यूनल अनप्रोफेशनल तरीके से काम करता नजर आ रहा है। सबसे बुरी तरह प्रभावित लोग वे हैं जो ऐतिहासिक रूप से उत्पीड़ित और हाशिए के समुदायों से हैं। इनमे से कई लोग बेघर हैं, और प्रभावित लोगों में 69 प्रतिशत महिलाएं हैं।"



CJP के सदस्यों ने कहा कि वे NRC से प्रभावित लोगों की मदद जारी रखेंगे। देशभर में इस तरह की और बैठकें की जाएंगी जिनमें NRC की संवैधानिक व्यवहार्यता पर सवाल उठाने के लिए याचिका दायर करना, और अपील दायर करने के इच्छुक लोगों को परामर्श सेवाएं और कानूनी सहायता प्रदान करने के बारे में जागरुक किया जाएगा। 



बैठक में कई अन्य मानवाधिकार समूहों के प्रतिनिधियों की भी उपस्थिति रही। इस सवाल पर एक पैनल डिस्कसन के साथ बैठक समाप्त हुई कि "क्या NRC वास्तव में अवैध अप्रवासियों की पहचान के लिए है या यह मौजूदा राजनीति का मुख्य हिस्सा है?"

 

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