बैंच बदलते ही बदला कोर्ट का नजरिया, मिश्रा सहित बीजेपी नेताओं पर FIR के लिए 1 महीने का समय

Written by Sabrangindia Staff | Published on: February 28, 2020
नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट में दंगों के मामले मामले की बुधवार और गुरुवार की कार्यवाहियों के अंतर ने स्पष्ट कर दिया है कि कैसे अदालत में बेंच की संरचना किसी मामले के नतीजे को प्रभावित कर सकती है, दो अलग-अलग दृष्ट‌िकोणों को भी जन्म दे सकती है।



दिल्ली हाई कोर्ट ने भड़काऊ या नफरत फैलाने वाले भाषणों (हेट स्पीच) के खिलाफ की गई कार्रवाई पर जानकारी देने के लिए गुरुवार को केंद्र सरकार को एक महीने समय दिया है। आरोपों में कहा जा रहा है कि इन्हीं भाषणों की वजह से दिल्ली में हिंसा भड़की है। हिंसा में कम से कम 35 लोगों की मौत होने और 200 से ज्यादा लोगों के घायल होने की सूचना है। 

एक दिन पहले, न्यायमूर्ति एस मुरलीधर की अध्यक्षता वाली दो सदस्यीय पीठ ने दिल्ली पुलिस से कहा था कि हेट स्पीच के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने में देरी नहीं होनी चाहिए। पीठ ने चारों बीजेपी नेताओं कपिल मिश्रा, अनुराग ठाकुर, अभय वर्मा और प्रवेश वर्मा के भाषण के वीडियो भी कोर्ट में चलवाए थे। कोर्ट ने पुलिस की कार्यशैली पर उसे फटकार लगाते हुए कहा था कि हम 1984 जैसे हालात फिर से बनने की अनुमति नहीं देंगे।

मामले की सुनवाई के दौरान, दिल्ली पुलिस और केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस मामले में एफआईआर दर्ज करने के लिए और समय मांगते हुए कहा कि याचिकाकर्ता "सिर्फ कुछ चुनिंदा भाषणों को नहीं चुन सकता है।"

उन्होंने कोर्ट को बताया, "याचिकाकर्ता ने सिर्फ तीन चुनिंदा वीडियो का हवाला दिया है। मैं ध्यान दिलाना चाहता हूं कि याचिकाकर्ता याचिका में भाषणों का चयन नहीं कर सकता है। हमें इन भाषणों के अलावा भी कई और भाषण मिले हैं। भाषणों के मामले में हम सिलेक्टिव नहीं हो सकते हैं।" 

मेहता ने कहा, "मौजूदा परिस्थितियों में, अभी एफआईआर दर्ज नहीं की जा सकती है। सही वक्ता पर पुलिस कार्रवाई करेगी। अभी ये समय इस तरह की कार्रवाई के लिए नहीं है।"

याचिकाकर्ता हर्ष मंदर ने अपनी याचिका में कथित रूप से भड़काऊ भाषण देने वाले बीजेपी नेताओं की गिरफ्तारी की मांग की थी। उनके वकील ने आज कोर्ट से बिना किसी देरी के इन लोगों की गिरफ्तार सुनिश्चित करने का अनुरोध किया है। 

 

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