पतंजलि को डाबर च्यवनप्राश के खिलाफ ‘अपमानजनक’ और ‘भ्रामक’ विज्ञापन प्रसारित करने से दिल्ली हाईकोर्ट ने रोक दिया है। यह आदेश डाबर द्वारा दायर याचिका पर जारी किया गया जिसमें आरोप लगाया गया था कि ‘पतंजलि स्पेशल च्यवनप्राश’ के विज्ञापन डाबर उत्पाद को निशाना बना रहे हैं।

दिल्ली हाईकोर्ट ने 3 जुलाई गुरुवार को पतंजलि को डाबर च्यवनप्राश के खिलाफ आपत्तिजनक और भ्रामक विज्ञापन प्रसारित करने से रोकने का आदेश दिया। यह निर्देश जस्टिस मिनी पुष्कर्णा ने डाबर द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए जारी किया।
द वायर ने पीटीआई की रिपोर्ट के हवाले से लिखा, डाबर ने अपनी याचिका में दावा किया था कि पतंजलि द्वारा प्रचारित ‘पतंजलि स्पेशल च्यवनप्राश’ के विज्ञापन न केवल डाबर च्यवनप्राश को निशाना बना रहे हैं, बल्कि पूरे च्यवनप्राश उत्पाद को नीचा दिखा रहे हैं।
याचिका में कहा गया है कि पतंजलि के विज्ञापनों में यह दावा किया गया है कि ‘कोई अन्य निर्माता च्यवनप्राश बनाना जानता ही नहीं,’ जो एक सामान्य रूप से सभी को अपमानित करने वाला वक्तव्य है।
याचिका में यह भी उल्लेख किया गया कि पतंजलि के विज्ञापनों में अन्य सभी च्यवनप्राश उत्पादों को ‘साधारण’ कहकर प्रस्तुत किया गया है, जिससे यह संदेश जाता है कि वे गुणवत्ता में ‘निम्न स्तर’ के हैं। इसके अलावा, यह दावा करना कि अन्य कंपनियों को आयुर्वेदिक ग्रंथों और च्यवनप्राश निर्माण की विधियों की जानकारी नहीं है, पूरी तरह से भ्रामक है।
अदालत ने मामले की अगली सुनवाई की तारीख 14 जुलाई तय की है।
च्यवनप्राश विवाद
यह विवाद उस समय शुरू हुआ जब पतंजलि ने बाबा रामदेव के साथ एक विज्ञापन प्रसारित किया, जिसमें बाजार में उपलब्ध अन्य च्यवनप्राश उत्पादों की प्रामाणिकता पर सवाल उठाए गए। विज्ञापन में कहा गया था, "जिन्हें आयुर्वेद और वेदों का ज्ञान नहीं है, वे चरक, सुश्रुत, धन्वंतरि और च्यवन ऋषि की परंपरा में 'ओरिजिनल' च्यवनप्राश कैसे बना सकते हैं?"
डाबर ने इस विज्ञापन में ‘40 हर्ब वाला च्यवनप्राश’ को ‘साधारण’ कहे जाने पर भी आपत्ति जताई है।
डाबर का कहना है कि ‘40 से ज्यादा जड़ी-बूटियों’ का दावा सीधे तौर पर उसके उत्पाद की ओर संकेत करता है। उल्लेखनीय है कि च्यवनप्राश बाजार में डाबर की हिस्सेदारी 60 प्रतिशत से अधिक है।
पतंजलि को अदालत की बार-बार फटकार
यह पहला मौका नहीं है जब किसी अदालत ने पतंजलि को उसके विज्ञापनों के प्रसारण पर रोक लगाने का आदेश दिया हो।
इसी वर्ष अप्रैल में दिल्ली हाईकोर्ट ने पतंजलि को निर्देश दिया था कि वह हमदर्द के लोकप्रिय पेय रूह अफजा को ‘शरबत जिहाद’ कहने वाले सभी विज्ञापनों को तुरंत हटा ले।
सोशल मीडिया पर साझा किए गए एक पोस्ट के जरिए, पतंजलि के गर्मियों के पेय के विज्ञापन में बाबा रामदेव ने उसका रूह अफजा से तुलना करते हुए दावा किया था कि प्रतिस्पर्धी कंपनी द्वारा कमाया गया मुनाफा ‘मस्जिदों और मदरसों के निर्माण’ में लगाया जाता है।
इसके बाद हमदर्द लेबोरेट्रीज ने अदालत में पतंजलि के खिलाफ ट्रेडमार्क की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के आरोप में याचिका दायर की। कंपनी ने बाबा रामदेव पर अपने उत्पाद को निशाना बनाकर मानहानिकारक और सांप्रदायिक टिप्पणियां करने का आरोप लगाया।
अदालत ने इस मामले में बाबा रामदेव को कड़ी फटकार भी लगाई थी।
पतंजलि के उत्पादों के विज्ञापन अक्सर विवादों में घिरे रहे हैं। पिछले साल उत्तराखंड में भ्रामक विज्ञापन आरोपों के कारण पतंजलि के 14 उत्पादों के लाइसेंस रद्द कर दिए गए थे।
वहीं, 2024 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा नोटिस जारी किए जाने के बाद, पतंजलि ने भ्रामक विज्ञापनों के लिए माफी भी मांगी थी।

दिल्ली हाईकोर्ट ने 3 जुलाई गुरुवार को पतंजलि को डाबर च्यवनप्राश के खिलाफ आपत्तिजनक और भ्रामक विज्ञापन प्रसारित करने से रोकने का आदेश दिया। यह निर्देश जस्टिस मिनी पुष्कर्णा ने डाबर द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए जारी किया।
द वायर ने पीटीआई की रिपोर्ट के हवाले से लिखा, डाबर ने अपनी याचिका में दावा किया था कि पतंजलि द्वारा प्रचारित ‘पतंजलि स्पेशल च्यवनप्राश’ के विज्ञापन न केवल डाबर च्यवनप्राश को निशाना बना रहे हैं, बल्कि पूरे च्यवनप्राश उत्पाद को नीचा दिखा रहे हैं।
याचिका में कहा गया है कि पतंजलि के विज्ञापनों में यह दावा किया गया है कि ‘कोई अन्य निर्माता च्यवनप्राश बनाना जानता ही नहीं,’ जो एक सामान्य रूप से सभी को अपमानित करने वाला वक्तव्य है।
याचिका में यह भी उल्लेख किया गया कि पतंजलि के विज्ञापनों में अन्य सभी च्यवनप्राश उत्पादों को ‘साधारण’ कहकर प्रस्तुत किया गया है, जिससे यह संदेश जाता है कि वे गुणवत्ता में ‘निम्न स्तर’ के हैं। इसके अलावा, यह दावा करना कि अन्य कंपनियों को आयुर्वेदिक ग्रंथों और च्यवनप्राश निर्माण की विधियों की जानकारी नहीं है, पूरी तरह से भ्रामक है।
अदालत ने मामले की अगली सुनवाई की तारीख 14 जुलाई तय की है।
च्यवनप्राश विवाद
यह विवाद उस समय शुरू हुआ जब पतंजलि ने बाबा रामदेव के साथ एक विज्ञापन प्रसारित किया, जिसमें बाजार में उपलब्ध अन्य च्यवनप्राश उत्पादों की प्रामाणिकता पर सवाल उठाए गए। विज्ञापन में कहा गया था, "जिन्हें आयुर्वेद और वेदों का ज्ञान नहीं है, वे चरक, सुश्रुत, धन्वंतरि और च्यवन ऋषि की परंपरा में 'ओरिजिनल' च्यवनप्राश कैसे बना सकते हैं?"
डाबर ने इस विज्ञापन में ‘40 हर्ब वाला च्यवनप्राश’ को ‘साधारण’ कहे जाने पर भी आपत्ति जताई है।
डाबर का कहना है कि ‘40 से ज्यादा जड़ी-बूटियों’ का दावा सीधे तौर पर उसके उत्पाद की ओर संकेत करता है। उल्लेखनीय है कि च्यवनप्राश बाजार में डाबर की हिस्सेदारी 60 प्रतिशत से अधिक है।
पतंजलि को अदालत की बार-बार फटकार
यह पहला मौका नहीं है जब किसी अदालत ने पतंजलि को उसके विज्ञापनों के प्रसारण पर रोक लगाने का आदेश दिया हो।
इसी वर्ष अप्रैल में दिल्ली हाईकोर्ट ने पतंजलि को निर्देश दिया था कि वह हमदर्द के लोकप्रिय पेय रूह अफजा को ‘शरबत जिहाद’ कहने वाले सभी विज्ञापनों को तुरंत हटा ले।
सोशल मीडिया पर साझा किए गए एक पोस्ट के जरिए, पतंजलि के गर्मियों के पेय के विज्ञापन में बाबा रामदेव ने उसका रूह अफजा से तुलना करते हुए दावा किया था कि प्रतिस्पर्धी कंपनी द्वारा कमाया गया मुनाफा ‘मस्जिदों और मदरसों के निर्माण’ में लगाया जाता है।
इसके बाद हमदर्द लेबोरेट्रीज ने अदालत में पतंजलि के खिलाफ ट्रेडमार्क की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के आरोप में याचिका दायर की। कंपनी ने बाबा रामदेव पर अपने उत्पाद को निशाना बनाकर मानहानिकारक और सांप्रदायिक टिप्पणियां करने का आरोप लगाया।
अदालत ने इस मामले में बाबा रामदेव को कड़ी फटकार भी लगाई थी।
पतंजलि के उत्पादों के विज्ञापन अक्सर विवादों में घिरे रहे हैं। पिछले साल उत्तराखंड में भ्रामक विज्ञापन आरोपों के कारण पतंजलि के 14 उत्पादों के लाइसेंस रद्द कर दिए गए थे।
वहीं, 2024 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा नोटिस जारी किए जाने के बाद, पतंजलि ने भ्रामक विज्ञापनों के लिए माफी भी मांगी थी।