आपको उन्हीं चैनलों के पास अपनी समस्या लेकर जाना चाहिए जो सरकार के हाथों खेल रहे हैं- रवीश कुमार

Written by Ravish Kumar, NDTV | Published on: August 9, 2017
राज्य सभा चुनाव से फुर्सत पाने के बाद अब तमाम मंत्री बेरोज़गार युवाओं के लिए मार्च करने वाले हैं। इसके लिए त्रिपुरा गुजरात के बाद दूसरे राज्यों के विरोधी दलों के विधायकों को तोड़ कर अपने पाले में मिलाया जाने वाला होगा। मीडिया इसे कमाल बताते हुए गुणगान करेगा। भारत की राजनीति का खेल सत्तर के दशक के स्तर से आगे नहीं गया है। लेवल वही है।

Ravish Kumar
 
आपने कल रात कई घंटे तक न्यूज़ चैनलों पर जो देखा वो क्या था? आपका मज़ाक उड़ाने के लिए नेताओं मंत्रियों का रचा तमाशा था। एक ही बात बोलने के लिए अनेक मंत्री पहुँच गए ताकि टीवी पर फुटेज खाया जा सके। विश्लेषण करने वाले सारे एक्सपर्ट पूरे दिन तक एक ही बात करते रहे। कल इन जानकारों ने लाखों रुपया कमाया। इतने में कई रिपोर्टर रख लिये जाते और आम लोगों की बात की रिपोर्टिंग होती। पर आप भी तो उसी में उलझे थे। आपको भी यही अच्छा लगता है।

लोकतंत्र की हत्या बग़ैर लोक के सहयोग के नहीं होती है। इस तमाशे को हाई प्रोफ़ाइल बनाया गया। तमाशे की सघनता ने आपके दिमाग़ में प्राथमिकता पैदा कर दी कि इस वक्त यही देश की सबसे बड़ी स्टोरी है जबकि वो उस वक्त भारतीय राजनीति की सबसे शर्मनाक, ओछी और ग़लीज़ स्टोरी थी। कोई यह सवाल करने की हिम्मत ही नहीं करेगा कि दूसरे दल से नेताओं को तोड़ने के कितने पैसे लगते हैं? दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी को भ्रष्ट दलों के दलबदलुओं की लत क्यों लगी है? क्या आयकर विभाग भारत की राजनीतिक नियति तय करेगा? एक दिन कोई राजनीतिक दल देश भर के आयकर विभाग के दफ्तरों के सामने प्रदर्शन करना शुरू कर देगा। क्या दलबदलू मुफ़्त में आ रहे हैं ? मीडिया इस पर चुप रहेगा।
 
बहरहाल, मूल समस्याओं पर किसी की जवाबदेही न हो इसलिए कल का ईंवेंट था। ऐसा ईंवेंट फिर आएगा। यही पैटर्न है। आने वाले कल के ईंवेंट में अमित शाह की हार का बदला होगा या कुछ और। आप यक़ीन मानिए ये सब आपको उल्लू बनाने के लिए किया जा रहा है। टीवी का इतना असर तो है ही कि सारे सवाल पीछे चले जाते हैं। मैने कल अपना विषय नहीं बदला और न ही खुद को प्रासंगिक बनाए रखने के लिए रात भर एंकरिंग की। बीस साल में यही सीखा हूँ कि ये सब नौटंकी है। आराम से दस बजे बस्ता उठा कर घर आ गया । दिल्ली की लड़ाई relevant होने की है, मैं इसमें शामिल नहीं हूं।
 
इसका मतलब यह नहीं कि आप भारत की हर समस्या के लिए मुझे ही व्हाट्स अप करेंगे। आपकी परेशानी से सहानुभूति हैं लेकिन आपका खेल समझता हूँ। आपको उन्हीं चैनलों के पास अपनी समस्या लेकर जाना चाहिए जो सरकार के हाथों खेल रहे हैं। क्या पता सरकार की नज़र पड़ जाए! नहीं तो मैं हूँ ही , आपके संतोष के लिए कर दूँगा। शिक्षा मित्र हौसला न हारे। आम्रपाली बिल्डर ने जिन चार हज़ार लोगों को ठगा है, मैं दावे से कह सकता हूँ कि उनमें से सत्तर फीसदी हिन्दू मुस्लिम हिन्दू मुस्लिम करते रहे होंगे। उम्मीद है कि उनके इस राजनीतिक यक़ीन से आम्रपाली वाला उनकी मेहनत की कमाई वापस कर देगा। सरकार को सब पता है उसमें किस किस का पैसा है। उनका कुछ नहीं होगा दोस्तो।
 
आपकी नियति में नौटंकी है, खुश रहिए। लेख के अंत में जो पोस्टर लगाया है उसे करोड़ों लोगों तक पहुँचा दीजिये। केबल नहीं कटवा सकते तो कम से कम न्यूज़ चैनल तो देखना बंद कीजिये । टीवी भयानक प्रभावशाली माध्यम है, मगर आपके लिए नहीं, आयकर विभाग और दारोगा की ताकत से लैस सत्ता के लिए।

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(ये लेखक के निजी विचार हैं। रवीश कुमार एनडीटीवी के सीनियर एडिटर हैं। ये लेख उनके फेसबुक पेज से लिया गया है।)

साभार: नेशनल दस्तक

 

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