नक्सली दहशत के साये में छत्तीसगढ़ चुनाव

Written by Sabrangindia Staff | Published on: November 12, 2018
पत्रकार प्रभात सिंह कहते हैं कि छत्तीसगढ़ में चुनाव कराना आज भी उतना ही कठिन हैं जितना १५ साल पहले था। चुनाव आयोग के कर्मचारियों के लिए परिस्थितियां उतनी ही विपरीत हैं जितनी कि पहले थीं।

पिछले १५ सालो में भाजपा सरकार हर मोर्चे पर विफल रही है। जिस सरकार का दायित्व था कि नक्सली समस्या का निवारण करे उसने उस समस्या को सलवा जुडूम बना कर हालात इतने बुरे कर दिए हैं, कि १००० से भी ज्यादा आदिवासियों की जानें अब तक जा चुकी हैं। सरकार या फोर्स जिसे आम नागरिकों की सुरक्षा करनी थी वह स्वयं अपनी सुरक्षा करने में भी अक्षम हैं। चुनावी मौसम में सरकार बार बार बूथ शिफ्ट करने के लिए विवश हैं, अब तो अंदरूनी क्षेत्र में सुरक्षित चुनाव करवाना सरकार के बस में रहा ही नहीं। आलम यह है कि अकेले दंतेवाड़ा में, जहाँ पिछली बार २० बूथ शिफ्ट करने पड़े थे इस बार २१ बूथ शिफ्ट किये गए हैं। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह कहते हैं कि वे नक्सलवाद पर ८५ प्रतिशत तक नियंत्रण पा चुके हैं, जबकि उल्टे स्वयं भाजपा के प्रत्याशी नन्दलाल मुदामि जो टिकट के हक़दार थे नक्सली हमले की वजह से आईसीयू में हैं। लोगो में नाराजगी इस कदर है कि बस्तर में सत्ताधारी सरकार को अब कोई वोट नहीं देना चाहता है। इस चुनाव में राशन, बिजली, सड़क और पानी प्रमुख मुद्दे हैं और ये वे मूलभूत सुविधाये हैं जिसे आज भी भाजपा सरकार आदिवासियों को मुहैया नहीं करा पाई है। 

 

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