मोदी सरकार की 10 बड़ी विफलताएं

Written by Sabrangindia Staff | Published on: December 3, 2018
नई दिल्ली: 26 मई 2014 वो तारीख है जिस दिन बहुत बड़े वादों के साथ नरेंद्र मोदी पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आए। भारत की जनता ने एक नये बदलाव को देखते हुए बीजेपी को केंद्र की सत्ता सौंपी थी और नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री चुना था। बीजेपी के स्टार प्रचारकों में शामिल नरेंद्र मोदी ने इतने भारी भरकम और लोक लुभावन वादे किये थे कि पार्टी को बाद में उन्हें चुनावी जुमले करार देना पड़ा। मोदी सरकार को सत्ता में आए साढ़े चार साल हो चुके हैं ऐसे में कामकाज की समीक्षा करना आवश्यक है लेकिन बीजेपी और पीएम मोदी को यह मंजूर नहीं है। हम बता रहे हैं मोदी सरकार की 10 बड़ी विफलताएं... 

1. नोटबंदी/कालाधन
2014 के चुनावी प्रचार में बीजेपी के हर नेता ने और पीएम मोदी ने 100 दिनों के अंदर विदेशों में जमा कालेधन को वापास लाने और प्रत्येक भारतीय के बैंक अकाउंट में 15 से 20 लाख रुपये जमा कराने का वायदा किया था। भारत सरकार और स्विस बैंक के बीच कालेधन को लेकर कुछ समझौते भी हुए। मगर परिणाम न बराबर ही देखने को मिला। दो दिसंबर को रिटायर हुए मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक इंटरव्यू में पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा कि नोटबंदी से काले धन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है. उन्होंने कहा, ‘नोटबंदी के बाद हमने चुनावों के दौरान भारी मात्रा में धन पकड़ा है. मौजूदा समय में पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में लगभग 200 करोड़ रुपये जब्त किए गए हैं. यह दर्शाता है कि चुनावों के दौरान पैसा ऐसी जगहों से आ रहा है जहां पर ऐसे कदमों का कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा है.’

2. रोजगार
प्रधानमंत्री मोदी ने 2014 में नौजावनों को रोजगार दिलाने के लिए कई चुनावी वादे किये थे। मगर इन दिनों भारत में बेरोजगारी का स्तर ये हो गया कि लोगों को नौकरी तक से निकाला गया। पिछले साल टेलीकॉम, आईटी और बैंकिंग और वित्तीय सेवाओं की नौकरियों में भारी छंटनी हुई. 2017 में अर्थव्यवस्था के आठ प्रमुख गैर-कृषि क्षेत्रों में सिर्फ 2.3 लाख नौकरियां जुड़ीं। इन आठ सेक्टरों में विनिर्माण, निर्माण, व्यापार, परिवहन, आवास और रेस्तरां, आईटी / बीपीओ, शिक्षा और स्वास्थ्य शामिल हैं। जिनमें करीब दो करोड़ लोग काम करते हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ ( यूएन ) के इटरनेशनल लेबर आफर्गेनाइजेशन के रिपोर्ट के अनुसार पिछले साल की तुलना में 2017-18 में बेरोजगारी ज्यादा होगी। रिपोर्ट के अनुसार पिछले साल जो बेरोजगारों की संख्या 1.77 करोड थी वो इस साल 1.78 करोड़ तक जा सकती है।

3. भूमि अधिग्रहण बिल
मोदी सरकार ने भारत में विदेशी निवेश को बढ़ाने के लिए यूपीए सराकार के भूमि अधिग्रहण बिल में कुछ बदलाव करना चाहे। नए भूमि बिल को पारित करवाने के लिए मोदी सरकार कई बार अध्यदेश भी पारित किये। मोदी सरकार किसानों के विकास का दावा करती है। लेकिन पिछले चार साल में किसानों के जितने प्रदर्शन हुए हैं वे किसी भी सरकार में सबसे ज्यादा हैं। किसानों ने हाल ही में दिल्ली में दो दिन का मार्च किया और अपनी मांगें सरकार के सामने रखने की कोशिश की। यूपीए के भूमि अधिग्रहण बिल से 'किसानों की सहमति' और 'सामाजिक प्रभाव के आंकलन' की अनिवार्यता को मोदी सरकार ने अपने नये बिल से हटा दिया था। वहीं विपक्ष के कडे विरोध के बाद सरकार को बिल में कुछ बदलाव को वापस लेना पड़ा, अभी भी इसमें ऐसे बदलाव है जो अंतरिक रूप से बिजनेसमैनस को सबसे ज्यादा फायदा पहुंचाते हैं।


4. किसान आत्महत्या दर बढ़ी
मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान किसान आत्महत्या दर तेजी से बढ़ी है। बीजेपी ने अपने अंतिम बजट में न्यूनतम समर्थन मूल्य 50% की मांग पर एक संस्करण दिया जिससे किसान संतुष्ट नहीं हैं। इसके अलावा, मोदी सरकार ने बिना सोचे गेहूं और दालों का आयात किया- घरेलू उपज की कीमतों में कमी आई। इसके अलावा भूमि अधिग्रहण बिल का मुद्दा भी अधर में ही है। पीएम मोदी ने लाइव कांफ्रेंसिंग के दौरान किसानों की आय जानने का कार्यक्रम किया जो पूरी तरह प्रोपोगंडा साबित हुआ और कुछ किसानों को जवाब रटाकर पीएम मोदी किसान हितैषी होने का सर्टिफिकेट लेते नजर आए। 

5. वन रैंक वन पैंशन
सेना से रिटायर्ड एक्स-सर्विसमेन ने वन रैंक वन पेंशन के लिए बहुस संघर्ष किया, अपनी चुनावी वायदों में मोदी सरकार ने रिडायर्ड एक्स-सर्विसमेन के लिए खास योजनना लागू करने का फैसला किया था। मगर सत्ता में आते ही सरकार चुपी मार कर बैठ गई। सर्जिकल स्ट्राइक का श्रेय खुद लेकर बैठने वाली मोदी सरकार ने पूर्व सैनिकों की मांग को सालों तक नजरअंदाज किया। हालांकि कुछ समय बाद सरकार ने वन रैंक वन पेंशन लागू तो किया, मगर लागू किये जाने वाले फैसला सच्चाई से एक दम परे है। दिल्ली के जतंर-मंतर पर पिछले 700 दिनों से एक्स-सर्विसमेन सरकार द्वारा लागू किये गये फैसले के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं। एक्स-सर्विसमेन द्वारा ये आंदोलन सरकार की सच्चाई की पोल खोलता है।

6. सीजफायर
यूपीए के समय बीजेपी ने हर दिन पाकिस्तान के द्वारा हो रहे सीजफायर के उल्लंघन का मुद्दा उठाया। साथ ही यूपीए सरकार से कठोर कदम उठाने की मांग करते रहे। मगर जिस बीजेपी की सरकार ने पाकिस्तान को मुंह तोड़ जवाब देने का फैसला किया था। वही सरकार हर रोज सीजफायर के उल्लंघन को लेकर चुप बैठी रहती है। इतना ही नहीं, पीएम मोदी तत्कालीन पीएम नवाज शरीफ से मिलने बिन बुलाए/बताए पाकिस्तान पहुंच गए। लेकिन सीमा पर शांति के लिए कुछ करते नजर नहीं आए। 2016-17 में सबसे ज्यादा सीजफायर का उल्लघंन किया गया।  

7. मेक इन इंडिया
मेक इन इंडिया मोदी सरकार के महत्वपूर्ण योजनाओं में से एक योजना रही है। मगर इस योजना का फायदा कहां हुआ और किस वर्ग को हुआ इसका आंकडा संदिग्ध है। मेक इन इंडिया के द्वारा कुछ विदेशी कंपनियां भारत में निवेश करने के लिए आकृषित हुईं। मेक इन इंडिया का हश्र ऐसा हुआ कि मोदी सरकार की चुनावी रैलियों में भी यह मुद्दा गायब है। 

8. कानून व्यवस्था
खुद को हर मोर्चे पर मजबूत माने वाली बीजेपी की सरकार के राज में भी कानून व्यवस्था बदतर ही नजर आई। हर दिन गौरक्षा के नाम पर हिंसा, नक्सलवाद और रेप जैसी आपारधिक घटनायें हर दिन देखने और सुनने को मिलती हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकडों के अनुसार पूरे देश में छोटे-बड़े अपराध 28,51,563 हुए। अकेले एमपी में 2,72,423 हुए। हत्या-अपहरण के मामले में यूपी नंबर वन है। लूट के मामलों में महाराष्ट्र देश में पहले नंबर पर है। ये सभी आंकडे मोदी सरकार की कानून व्यवस्था की सच्चाई बताती हैं। 2016 में गुजरात के उना मे हुई दलितों की पिटाई के बाद उपजे जनआक्रोश के बाद पीएम का केरल में जाकर कहना, 'मुझे मार लो लेकिन मेरे दलित भाइयों को मत मारो' नरेंद्र मोदी की प्रशासनिक विफलता को दर्शाता है। 

9. गंगा सफाई
बीजेपी और प्रधानमंत्री मोदी गंगा को लेकर शुरू से गंभीर दिखने की कोशिश करते रहे हैं। गंगा की सफाई को लेकर मोदी सरकार ने गंगा सफाई अभियान को भी चलाया। बीजेपी गंगा सफाई का दावा कागजों पर भी कर देती लेकिन गंगा सफाई को लेकर 112 दिनों से अनशन पर बैठे पर्यावरणविद् जीडी अग्रवाल के निधन ने इसकी सारी पोल खोल दी। जीडी अग्रवाल कानपुर के इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के फैकल्टी मेंबर थे। पिछले 22 जून से अग्रवाल गंगा सफाई की मांग को लेकर ‘आमरण अनशन’ पर बैठे हुए थे.  

10. राफेल डील
मोदी सरकार राफेल डील को लेकर भी घिरी हुई है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी लगातार चुनावी रैलियों में सार्वजनिक रूप से चौकीदार ही चोर है का नारा लगा रहे हैं। इसके बावजूद भी बीजेपी राफेल डील पर कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है। फ्रांस के तत्कालीन राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने भी बयान दे दिया कि राफेल डील में अनिल अंबानी की कंपनी को भारत सरकार द्वारा आगे किया गया था। इसलिए उनके पास रिलायंस के साथ ऑफसेट डील करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। राहुल गांधी का आरोप है कि खुद पीएम मोदी ने अनिल अंबानी को फायदा पहुंचाने के लिए व्यक्तिगत रूप से राफेल डील मूल कीमत से कई गुना ज्यादा दाम में की। 
 

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