सेंसरशिप: भारत के विश्वसनीय समाचार-विश्लेषण पोर्टल 'द वायर' को ब्लॉक किया गया, चारों तरफ निंदा की गई

Written by sabrang india | Published on: May 10, 2025
एक दशक पहले सिद्धार्थ वरदराजन, एमके वेणु और सिद्धार्थ भाटिया द्वारा स्थापित द वायर को 9 मई की सुबह भारत सरकार द्वारा ब्लॉक करने ऑर्डर दिए गए। सेंसरशिप की इस कार्रवाई की बड़े पैमाने पर निंदा की गई।



9 मई की सुबह मोदी सरकार द्वारा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर नकेल कसने की खबर आई। इस दिन 8,000 ट्विटर (एक्स) अकाउंट, पाकिस्तानी राय तक पहुंच और द वायर को मिले ब्लॉक करने के ऑर्डर दिए गए जिसकी चारों तरफ निंदा की गई। एक दशक पहले सिद्धार्थ वरदराजन, एमके वेणु और सिद्धार्थ भाटिया द्वारा स्थापित द वायर को अब से तीन दिन बाद 12 मई को दस साल पूरा हो जाएगा। इस वेब प्लेटफॉर्म को 9 मई की सुबह भारत सरकार द्वारा ब्लॉक करने के ऑर्डर दिए गए और इस सेंसरशिप की कार्रवाई की व्यापक रूप से निंदा की गई।

द वायर के संस्थापक सिद्धार्थ वरदराजन ने अपने प्लेटफॉर्म और भसीन के अकाउंट के खिलाफ की गई कार्रवाई की निंदा की है। उन्होंने वेबसाइट और अकाउंट को ब्लॉक करने को भारत में प्रेस की स्वतंत्रता का उल्लंघन बताया। वरदराजन ने बयान में कहा है:

"द वायर के प्रिय पाठकों, प्रेस की स्वतंत्रता की संवैधानिक गारंटी का स्पष्ट उल्लंघन करते हुए भारत सरकार ने पूरे भारत में thewire.in के एक्सेस को ब्लॉक कर दिया है।"


चेन्नई प्रेस क्लब ने एक कड़े बयान में द वायर और मकतूब मीडिया दोनों को ब्लॉक करने की निंदा की है

चेन्नई प्रेस क्लब का बयान नीचे पढ़ा जा सकता है

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने कड़े शब्दों में इस कार्रवाई की निंदा की। “एक महत्वपूर्ण मोड़ पर मीडिया को चुप कराना लोकतंत्र की भावना को कमजोर करता है। मुझे उम्मीद है कि केंद्र सरकार फिर से विचार करेगी और @thewire_in पर से प्रतिबंध हटाएगी। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में प्रेस की स्वतंत्रता का गला नहीं घोंटा जाना चाहिए।



सीपीआई (एम) के नवनिर्वाचित महासचिव कॉमरेड एमए बेबी ने एक ट्वीट में सेंसरशिप के कृत्य की कड़ी निंदा की है। बेबी ने लिखा, “जब मीडिया आउटलेट जो लगातार ऑपरेशन सिंदूर पर फर्जी खबरें फैला रहे हैं, उन्हें बिना किसी रुकावट के चलने दिया जा रहा है, लेकिन विश्वसनीय समाचार पोर्टलों को ब्लॉक किया जा रहा है। प्रेस की स्वतंत्रता पर इस तरह के हमले स्वीकार्य नहीं हैं।



द वायर की संपादक सीमा चिश्ती ने ट्वीट किया, "प्रेस की आजादी आम जनता के लिए जरूरी क्यों है, ये एक निबंध का विषय हो सकता है। लेकिन संक्षेप में कहें तो, प्रेस की आवाजें उस कोयले की खदान में मौजूद कैनरी जैसी होती हैं। जो चीज प्रेस की रक्षा करती है, वही आम नागरिक की भी हिफाजत करती है। अगर आप प्रेस को चुप करवाने दिया, तो असल में आप खुद को भी नीचे गिरने दे रहे हैं।"



डिजिपब ने द वायर की वेबसाइट को ब्लॉक करने की निंदा की, सीपीआई के डी. राजा ने अश्विनी वैष्णव को लिखा

'हम मंत्रालय से सांप्रदायिक नफरत को बढ़ावा देने वाले और झूठ फैलाने वाले चैनलों और प्लेटफार्मों के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई करने का आग्रह करते हैं। उन प्लेटफार्मों तक पहुंच बहाल की जानी चाहिए जो राष्ट्रीय एकता बनाए रखने के लिए काम करते हैं और जिम्मेदार हैं।'

सरकार द्वारा द वायर की वेबसाइट तक यूजर्स की पहुंच को रोकने के बाद भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव डी. राजा ने केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री को पत्र लिखा है, जबकि डिजिटल समाचार बॉडी डिजिपब ने इस कदम की निंदा की है।

द वायर को ये पता चला है कि उसकी वेबसाइट को ब्लॉक करने का आदेश सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने दिया है। अलग अलग इंटरनेट सेवा देने वाली कंपनियां इस बारे में अलग-अलग बातें कह रही हैं।

राजा का पत्र

मंत्री अश्विनी वैष्णव को लिखे अपने पत्र में डी. राजा ने इस बात का जिक्र किया है कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान गलत सूचनाओं को फैलने दिया गया।

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की ओर से मैं ऑपरेशन सिंदूर के बाद कई टेलीविजन न्यूज चैनलों द्वारा प्रसारित की जा रही भड़काऊ और भ्रामक सामग्री पर अपनी गहरी चिंता व्यक्त करता हूं। जबकि राष्ट्र आतंकवाद के खिलाफ एकजुट है, हम एक खतरनाक प्रवृत्ति देख रहे हैं जहां कुछ चैनल इस मुद्दे को सांप्रदायिक बना रहे हैं, सरकार या सशस्त्र बलों की ओर से किसी भी आधिकारिक पुष्टि के बिना असत्यापित दावे फैला रहे हैं और युद्ध उन्माद को बढ़ावा दे रहे हैं।

राजा ने कहा कि इस तरह की कवरेज से दहशत और डर पैदा होता है। यहां उन्होंने बताया कि इसके उलट द वायर जैसे जिम्मेदार न्यूज पोर्टल को ब्लॉक कर दिया गया है।

इस तरह की कवरेज न केवल जिम्मेदार पत्रकारिता को कमजोर करती है बल्कि राष्ट्रीय एकता के लिए भी सीधा खतरा पैदा करती है। युद्धोन्माद और समुदायों को निशाना बनाना विश्वास को खत्म करता है, नागरिकों में डर पैदा करता है और देश को अस्थिर करने की कोशिश करने वालों के हाथों में खेलता है। जनता की चिंता को भड़काया जा रहा है, उसे सुलझाया नहीं जा रहा है। यहां तक कि पब्लिक ब्रॉडकास्टर ने भी इस गैरजिम्मेदाराना लहजे को दोहराया है, जो लोगों को सटीकता और गरिमा के साथ जानकारी देने के मूल कर्तव्य को पूरा करने में असफल रहे हैं। सशस्त्र बलों को खुद कई मौकों पर ऐसे न्यूज चैनलों द्वारा किए गए दावों का काउंटर करना पड़ा। साथ ही, द वायर जैसे जिम्मेदार न्यूज पोर्टल तक पहुंच को ब्लॉक कर दिया गया है।

राजा ने कहा कि सीपीआई पहलगाम की त्रासदी को नफरत और विभाजन के तमाशे में बदलने के प्रयासों को खारिज करती है। उन्होंने लिखा, "तनाव को तथ्यों से ध्यान भटकाने या साथी नागरिकों को बदनाम करने का साधन नहीं बनना चाहिए। इस तरह के नैरेटिव की कीमत आम लोगों को असुरक्षा, ध्रुवीकरण और लोकतांत्रिक ताने-बाने को दीर्घकालिक नुकसान के रूप में चुकानी पड़ती है।"

उन्होंने सरकार से साफ और ठोस बयान देने की मांग की।

हम मंत्रालय से सांप्रदायिक नफरत को बढ़ावा देने वाले और झूठ फैलाने वाले चैनलों और प्लेटफार्मों के खिलाफ ठोस कार्रवाई करने की अपील करते हैं। उन प्लेटफार्मों तक पहुंच बहाल की जानी चाहिए जो राष्ट्रीय एकता को बनाए रखने के लिए जिम्मेदार हैं और उसके लिए काम करते हैं। हम यह भी मांग करते हैं कि आपका मंत्रालय, रक्षा, गृह और विदेश मंत्रालयों के साथ मिलकर, समय-समय पर और तथ्यों पर आधारित ब्रीफिंग्स करें ताकि झूठी जानकारी का मुकाबला किया जा सके और जनता को सही और भरोसेमंद अपडेट्स मिल सकें।

राजा ने कहा कि यह सही कहा गया है कि युद्ध में सबसे पहले सच्चाई की बलि दी जाती है, लेकिन "आज, युद्ध होने से पहले ही सच्चाई की बलि दी जा रही है। सच्चाई अब शोर, पूर्वाग्रह और सनसनीखेजता के नीचे दब गई है।"

जब देश को शांति और स्पष्टता की आवश्यकता है, तो प्रसारण को विकृति का युद्धक्षेत्र नहीं बनना चाहिए। हमें उम्मीद है कि चुनौतीपूर्ण समय में राष्ट्रीय एकता से संबंधित इस जरूरी और महत्वपूर्ण मामले पर आपका तत्काल ध्यान जाएगा।

इस मुश्किल वक्त में देश को शांति और स्पष्ट जानकारी की जरूरत है, ऐसे में हमें हवा में झूठ और गड़बड़ी फैलाने का माहौल नहीं बनने देना चाहिए। हमें उम्मीद है कि यह मुद्दा सरकार का तुरंत ध्यान खींचेगा, क्योंकि ये राष्ट्रीय एकता के लिए बेहद जरूरी है।

डिजिपब का बयान

डिजिटल न्यूज वेबसाइटों का समूह डिजिपब है जिसका सदस्य द वायर है। इसने कहा कि वह द वायर की वेबसाइट को ब्लॉक किए जाने की कड़ी निंदा करता है। इसमें कहा गया है:

डिजिपब के संस्थापक सदस्य द वायर ने शुक्रवार, 9 मई को एक बयान जारी किया है जिसमें कहा गया है कि सरकारी आदेशों के बाद कुछ इंटरनेट सेवा प्रदाताओं द्वारा उनकी वेबसाइट के एक्सेस को ब्लॉक कर दिया गया है। एक आईएसपी का कहना है कि ब्लॉक करने का यह मामला सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा आईटी अधिनियम, 2000 के तहत किया गया है।

यदि भारत सरकार ने वास्तव में द वायर के एक्सेस को ब्लॉक किया है तो यह प्रेस की स्वतंत्रता पर बड़ा हमला है। स्वतंत्र मीडिया को चुप कराना लोकतंत्र की रक्षा नहीं करता-यह इसे कमजोर करता है।

बयान में कहा गया है कि यह "राष्ट्र के लिए अहम समय है और इस तरह की कार्रवाई तर्कसंगत सोच को बाधित करती है। युद्ध की तात्कालिकता और भयावहता का इस्तेमाल स्वतंत्र पत्रकारिता को चुप कराने के बहाने के रूप में नहीं किया जा सकता है।"

इसमें कहा गया है कि स्वतंत्र मीडिया गलत सूचना और फर्जी खबरों का सबसे प्रभावी उपाय है और आगे कहा गया है:

“हम ऐसी सेंसरशिप को तत्काल वापस लेने की मांग करते हैं, जिसके आदेश अभी तक सार्वजनिक भी नहीं किए गए हैं। भारत सरकार को स्वतंत्र अभिव्यक्ति के संवैधानिक मूल्यों को बनाए रखना चाहिए और स्वतंत्र मीडिया तक बेरोकटोक पहुंच बहाल करनी चाहिए, क्योंकि मौन में लोकतंत्र जिंदा नहीं रह सकता।”



Related

न कमजोर हैं, न मौन हैं: भाजपा सांसद दुबे की टिप्पणी पर सुप्रीम कोर्ट ने सजा के बजाय सिद्धांत को चुना और संवैधानिक संतुलन की अपनी भूमिका को फिर से स्पष्ट किया

बाकी ख़बरें