मध्यप्रदेश में भाजपा सरकार को जनता से जुड़े मुद्दों की अनदेखी लगातार मुश्किल में डालती जा रही है। मालवा-निमाड़ में पहले ही किसानों, व्यापारियों और सवर्णों की नाराजगी से भाजपा नेता परेशान हैं, ऊपर से इस इलाके की 14 विधानसभा सीटों पर विस्थापन भी मुख्य मुद्दा बन गया है जिसके कारण भाजपा को जवाब देते नहीं बन रहा है।
डूब प्रभावित लोगों में सरकार के प्रति गहरी नाराजगी है और 15 सालों से भाजपा के सत्ता में रहने के कारण उनकी सबसे ज्यादा नाराजगी भाजपा से ही है। डूब प्रभावितों की सरकार से नाराजगी इस बात को लेकर भी है कि वह कानून का ही पालन नहीं कर रही है।
नईदुनिया के अनुसार, नर्मदा पट्टी में इंदिरा सागर, ओंकारेश्वर, महेश्वर बांध बने हैं। इसी तरह गुजरात के सरदार सरोवर बांध से निमाड़ के 192 गांव डूब प्रभावित हुए हैं। भीकनगांव में अपर वेदा बांध से भी कई गांव डूब प्रभावित हुए हैं। किसी भी बांध परियोजना के प्रभावितों का न तो पूरी तरह से पुनर्वास हुआ और न ही सरकार के वादों के अनुसार सुविधाएं किसी को मिलीं।
खंडवा जिले के हरसूद के लोग रोजगार-विहीन हो गए हैं तो धार जिले के निसरपुर के लोग आज भी पुनर्वास की जगह पर बुनियादी सुविधाओं को तरस रहे हैं। ओंकारेश्वर बांध के तो कई गांव तो अभी तक खाली ही नहीं कराए जा सके। महेश्वर बांध परियोजना में लगभग एक साल पहले मुआवजा दिया गया लेकिन अभी पुनर्वास स्थल ही तय नहीं हो सका है कि इन लोगों को अब कहां बसाया जाना है।
चुनावी का मौका देख नर्मदा बचाओ आंदोलन के नेता भी ज्यादा सक्रिय हो गए हैं। कोशिश की जा रही है कि प्रत्याशियों को एक मंच पर बुलाकर उनसे सवाल-जवाब किए जाएंगे। भाजपा नेताओं की इस बात से जान सूखी जा रही है।
डूब प्रभावित लोगों में सरकार के प्रति गहरी नाराजगी है और 15 सालों से भाजपा के सत्ता में रहने के कारण उनकी सबसे ज्यादा नाराजगी भाजपा से ही है। डूब प्रभावितों की सरकार से नाराजगी इस बात को लेकर भी है कि वह कानून का ही पालन नहीं कर रही है।
नईदुनिया के अनुसार, नर्मदा पट्टी में इंदिरा सागर, ओंकारेश्वर, महेश्वर बांध बने हैं। इसी तरह गुजरात के सरदार सरोवर बांध से निमाड़ के 192 गांव डूब प्रभावित हुए हैं। भीकनगांव में अपर वेदा बांध से भी कई गांव डूब प्रभावित हुए हैं। किसी भी बांध परियोजना के प्रभावितों का न तो पूरी तरह से पुनर्वास हुआ और न ही सरकार के वादों के अनुसार सुविधाएं किसी को मिलीं।
खंडवा जिले के हरसूद के लोग रोजगार-विहीन हो गए हैं तो धार जिले के निसरपुर के लोग आज भी पुनर्वास की जगह पर बुनियादी सुविधाओं को तरस रहे हैं। ओंकारेश्वर बांध के तो कई गांव तो अभी तक खाली ही नहीं कराए जा सके। महेश्वर बांध परियोजना में लगभग एक साल पहले मुआवजा दिया गया लेकिन अभी पुनर्वास स्थल ही तय नहीं हो सका है कि इन लोगों को अब कहां बसाया जाना है।
चुनावी का मौका देख नर्मदा बचाओ आंदोलन के नेता भी ज्यादा सक्रिय हो गए हैं। कोशिश की जा रही है कि प्रत्याशियों को एक मंच पर बुलाकर उनसे सवाल-जवाब किए जाएंगे। भाजपा नेताओं की इस बात से जान सूखी जा रही है।