स्वास्थ्य विभाग और एनएचएम द्वारा टीकाकरण के लिए आउटसोर्स किये गए सैकड़ों एएनएम कर्मियों और पैरामेडिकल टीकाप्रदाताओं को प्रतिदिन के हिसाब से 500 रूपये का भुगतान किया जाना था। लेकिन वास्तविकता यह है कि उनमें से 75% से अधिक अभी भी भुगतान पाने की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
भोपाल: मध्यप्रदेश के राजगढ़ जिले के नरसिंहपुर इलाके में एक सहायक उपचारिका दाई (एएनएम) के पद पर कार्यरत 29 वर्षीय अर्चना कारपेंटर की 23 अक्टूबर को दिल का दौरा पड़ने से तब मौत हो गई, जब वे आस-पास के गांवों में घर-घर जाकर कोविड-19 टीका लगाने के लिए दौरे पर गई हुई थीं।
कारपेंटर के 33 वर्षीय पति चित्रेश ओझा का आरोप है कि उसके उपर काम का भारी बोझ था। 23 जनवरी के बाद से उसे न तो एक भी छुट्टी दी गई थी और न ही सरकार द्वारा वादे के मुताबिक किसी प्रकार का पारिश्रमिक या प्रोत्साहन राशि ही प्रदान की गई थी।
एक किराने की दुकान चलाने वाले ओझा का कहना था, “उसे काफी तनाव के बीच में रहते हुए काम करना पड़ रहा था, और जब से टीकाकरण की शुरुआत हुई थी तबसे वह हर रोज देर रात घर लौट रही थी। अक्सर कागजी कार्यवाई को पूरा करने में व्यस्त रहने के कारण उसे रात के 2 बज जाते थे। अपनी मृत्यु से पहले वाली रात को वह सुबह 3 बजे सो पाई थी और सुबह 8 बजे के आसपास उसे टीकाकरण अभियान के लिए भागकर जाना पड़ा था, लेकिन इसी क्रम में वह निढाल पड़ गई और तत्पश्चात उसकी मृत्यु हो गई।”
अर्चना की तरह ही तकरीबन 90,000 से भी अधिक की संख्या में स्वास्थ्य कर्मी हैं जिनके कन्धों पर 7.21 करोड़ कोविड टीके (12 नवंबर तक) लगाने में महत्वपूर्ण भूमिका रही है, जिसके चलते मध्यप्रदेश देश में पांचवा सबसे अधिक टीकाकरण वाला प्रदेश बन गया है। ये कार्यकर्त्ता सुबह से शाम तक दौड़धूप में जुटे रहते हैं, और यहाँ तक कि अपने न्यायोचित हकों को पाने की चाह में उन्हें विरोध प्रदर्शनों के दौरान लाठीचार्ज तक का सामना करना पड़ता है। उनमें से कुछ को तो नाममात्र का भुगतान कर दिया गया है, जबकि हजारों को अभी भी अपने भुगतान का इंतजार है।
सरकारी आदेशानुसार 84,000 से अधिक मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता (आशा) कर्मियों को, जिनके द्वारा भीड़ को टीका केन्द्रों पर लाने का काम किया गया, को प्रतिदिन 200 रूपये दिए जाने का वादा किया गया था। इसके अलावा, स्वास्थ्य विभाग और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन द्वारा जिन सैकड़ों एएनएम एवं पैरामेडिकल टीका-प्रदाताओं को टीके लगाने के लिए आउटसोर्स किया गया था, को प्रतिदिन के हिसाब से 500 रूपये का भुगतान किया जाना था, लेकिन उनमें से 75% से अधिक अभी भी भुगतान
इस सबके अलावा, वैकल्पिक वैक्सीन डिलीवरी (एवीडी) कर्मचारी जिनका काम कोल्ड स्टोरेज से केन्द्रों तक टीकों को ले जाने की है, के द्वारा प्रति टीके के डिब्बे को गंतव्य तक पहुंचाने पर 90 रूपये का भुगतान किया जाता है, जिसमें प्रति व्यक्ति के लिए एक दिन में अधिकतम 10 डिब्बे ले जाने की अनुमति दी गई है। हालाँकि, आशा और एएनएम कर्मियों की तरह ही उनका बकाया भी अगस्त से अब तक चुकता नहीं किया गया है।
राज्य स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के मुताबिक, 14,000 से अधिक की संख्या में एएनएम कर्मचारियों को, जो या तो ठेके पर हैं या उन्हें आउटसोर्स किया गया है, के द्वारा 8,498 केन्द्रों पर टीकाकरण किया जा रहा है। पिछले दो महीने से एएनएम के द्वारा आशा कर्मियों की मदद से लोगों को घर-घर जाकर टीका लगाया जा रहा है।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, मध्य प्रदेश द्वारा 28 जनवरी, 2021 को सभी जिलों के मुख्य चिकित्सा स्वास्थ्य अधिकारीयों और जिला टीकाकरण अधिकारियों को जारी किये गए एक पत्र में कहा गया है कि सभी आशा कर्मियों को उनके मौजूदा मासिक 2000 रूपये वेतन के अलावा लोगों को कोविड टीकाकरण के लिए जुटाने के लिए अलग से प्रतिदिन 200 रूपये का भुगतान किया जायेगा। इसके अलावा, टीका प्रदाताओं को जिन्हें इस काम के लिए आउटसोर्स किया गया है, को प्रतिदिन 500 रूपये की दर से भुगतान किया जायेगा।
इसके अतिरिक्त, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सभी कोविड फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं को 10,000 रूपये की प्रोत्साहन राशि दिए जाने की भी घोषणा की थी। लेकिन इन स्वास्थ्य कर्मियों को न तो वादे के मुताबिक पारिश्रमिक ही चुकाया गया है और न ही प्रोत्साहन राशि ही चुकता की गई है।
अपनी मांगों पर दबाव बनाने के लिए पिछले आठ महीनों से जूनियर डाक्टरों सहित स्वास्थ्य कर्मियों ने भोपाल में दर्जनों दफा विरोध प्रदर्शन किये हैं। इसके अलावा जिलाधिकारियों और वरिष्ठ स्वास्थ्य अधिकारियों को अनेकों बार ज्ञापन सौंपे जा चुके हैं, लेकिन इन सबका कोई फायदा नहीं हुआ है।
स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की यह दयनीय दुर्दशा एक ऐसे समय में हो रही है जब भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली मध्यप्रदेश सरकार 16 जनवरी, 2021 के बाद से 100 करोड़ से अधिक कोविड टीके लगाने पर भारत की ‘ऐतिहासिक’ उपलब्धि का जश्न मनाने में व्यस्त है, और इस उपलब्धि का सारा श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को दिया जा रहा है।
स्वास्थ्य कर्मियों को मानदेय एवं अन्य प्रोत्साहन राशि का भुगतान न किये जाने के मुद्दे पर बात करते हुए एएनएम यूनियन नेता आकांक्षा दुबे अफ़सोस जताते हुए कहती हैं, “खाली बातों से पेट नहीं भरा करते।”
कोविड टीकों को लगाने के क्रम में एएनएम कार्यकर्ताओं के दैनंदिन के संघर्ष पर दुबे ने कहा कि 16 जनवरी, 2021 (जब से टीकाकरण की शुरुआत हुई थी) के बाद से एएनएम और आशा कर्मी सुबह 9 बजे से देर रात तक 15 घंटे से अधिक काम कर रही हैं, जबकि परिवहन या सुरक्षा के संबंध में जिला प्रशासन की तरह से उन्हें कोई सहयोग नहीं मिल रहा है।
उन्होंने बताया, “जब टीकाकरण अभियान की शुरुआत की जा रही थी और प्रशासन को जनबल की जरूरत थी तो हमसे सूरज और चाँद तक का वादा किया गया था। उनकी ओर से न सिर्फ उच्च वेतन की पेशकश की गई थी, बल्कि ग्रामीणों तक पहुँचने के लिए हमारी यात्रा के लिए वाहनों तक की पेशकश की गई थी, लेकिन ये सभी वादे बाद में जाकर खोखले साबित हुए हैं।”
दुबे का दावा था कि जब पेट्रोल के दाम आसमान छू रहे थे, तो ऐसे में एएनएम कर्मियों को दूर-दराज के इलाकों में अपने-अपने साधनों से यात्रा करनी पड़ रही थी। उनका कहना था “हमारी सरकारी छुट्टियों को रद्द कर दिया गया जिसमें हमें दिवाली और भाई दूज में भी काम करने के लिए मजबूर किया गया।”
एएनएम कर्मियों की यूनियन के अध्यक्ष राहुल जैन का कहना था: “सभी एएनएम के लिए एक दिन में औसतन 400-500 टीकाकरण करने का लक्ष्य रखा गया था। कईयों ने ड्यूटी के दौरान अपनी जानें कुर्बान कर दी हैं, जबकि कुछ लोगों की टीकाकरण के लिए राह चलते सड़क दुर्घटनाओं में मौत हो गई है। लेकिन इतना सब कुछ करने के बावजूद, सरकार उनका भुगतान करने तक से मुँह मोड़ रही है और सारा श्रेय खुद बटोर रही है।”
दो बच्चों की माँ अर्चना कारपेंटर ने 5 जनवरी, 2020 को नरसिंहपुर में एएनएम के बतौर काम करना शुरू किया था। उनके पास कोविड की दोनों लहरों के दौरान 15 से अधिक गाँवों में घर-घर जाकर सर्वेक्षण करने का कार्यभार था। सरकार द्वारा वेतन के तौर पर 12,000 रूपये के भुगतान को छोड़कर उन्हें पीपीई (व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण), मास्क या सेनेटाइजर में से कोई भी चीज मुहैय्या नहीं कराई गई थी।
उनके पति का इस बारे में कहना है कि “वे बिन बंदूक वाली एक सैनिक थीं जिसने दूसरों को बचाने की खातिर अपने प्राणों की बलि दे दी। उसने अपनी जान को दांव पर लगा रखा था और टीकाकरण अभियान के दौरान अपने दोनों बच्चों को लगभग अपने से दूर कर रखा था। लेकिन इतना सब करने का क्या सिला मिला? वे कहते हैं “न तो उसे कोविड योद्धा के तौर पर मान्यता दी गई है और न ही परिवार को किसी प्रकार की कोई वित्तीय सहायता ही प्रदान की गई है। दो साल की बेटी सहित उसके दोनों बच्चों की अब देख-रेख कौन करेगा?”
कोविड टीकाकरण अभियान की सफलता के लिए एएनएम, आशा और सीएचओ की पीठ थपथपाते हुए राष्ट्रीय स्वस्थ्य मिशन की निदेशक प्रियंका दास ने कहा: “सिर्फ इनकी कड़ी मेहनत की बदौलत ही हम कुछ महीनों के भीतर ही 7.11 करोड़ से अधिक टीके लगाने में सफल रहे हैं। आशा कर्मियों ने जहाँ लोगों को इकट्ठा करने का काम किया, वहीँ एएनएम और सीएचओ के द्वारा टीका लगाया गया और यह समीकरण बेहद सफल तरीके से काम करता है।”
वादे के मुताबिक पैसे का भुगतान न किये जाने के प्रश्न पर उन्होंने कहा: “मैंने हाल ही में एनएचएम निदेशक के तौर पर पदभार ग्रहण किया है। इसलिए, मुझे उनके साथ किये गए वायदों के बारे में ज्यादा मालूमात नहीं है।”
आशा कर्मियों द्वारा भोपाल में एक व्यापक स्तर पर विरोध प्रदर्शन करने के बाद 29 अप्रैल को तत्कालीन मध्य प्रदेश निदेशक छवि भारद्वाज ने सभी जिलों के मुख्य चिकित्सा स्वास्थ्य अधिकारियों को आशा कार्यकर्ताओं के टीकाकरण प्रोत्साहन राशि को जारी करने के संबंध में पत्र लिखा था, लेकिन इसका कोई नतीजा नहीं निकला।
टीकाकरण के लिए लोगों को जुटाने वाली आशा कर्मियों द्वारा किये गये कार्यों पर प्रकाश डालते हुए आशा कर्मियों की एक स्वतंत्र संस्था, एमपी आशा सहयोगिनी संघ की प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मी कौरव का कहना था: “कोविड की पहली लहर के दौरान, हमें तीन महीनों के लिए घर-घर जाकर सर्वेक्षण करने के बदले में प्रति माह 1,000 रूपये प्रदान करने और मुख्यमंत्री द्वारा प्रोत्साहन राशि के तौर पर एकमुश्त 10000 रूपये दिए जाने का वादा किया गया था। जब टीकाकरण की बारी आई तो हम सभी इसके संगठनकर्ता के बतौर काम कर रहे हैं और इसके लिए 200 रूपये प्रतिदिन प्राप्त करने के हकदार हैं। लेकिन, आधे दर्जन विरोध प्रदर्शनों के बावजूद हममें से केवल 20% को ही भुगतान मिल पाया है।
इसके अलावा, घर-घर जाकर सर्वेक्षण करने के दौरान वायरस से संक्रमित हो जाने के बाद कोविड जटिलताओं की वजह से असमय मृत्यु की शिकार कई आशा कार्यकर्ताओं में से मुश्किल से एक या दो को ही 50 लाख रूपये का भुगतान किया गया, जैसा कि मुख्यमंत्री द्वारा वादा किया गया था।
जब राज्य टीकाकरण अधिकारी, डॉ. संतोष शुक्ला के समक्ष भुगतान न किये जाने का मुद्दा रखा गया तो उनका कहना था कि विभाग ने किसी को भी मानदेय या प्रोत्साहन राशि देने का वादा नहीं किया है। “सरकार पहले से ही उन्हें उनके काम के बदले में तनख्वाह दे रही है। ऐसे में मानदेय दिए जाने की जरूरत ही क्या है? विभाग की ओर से ऐसा कोई आदेश जारी नहीं किया गया है जिसमें सरकारी कर्मचारियों के लिए प्रोत्साहन या मानदेय दिए जाने का वादा किया गया हो। जहाँ तक आउटसोर्स स्वास्थ्य कर्मियों का संबंध है, उन्हें हम भुगतान कर रहे हैं।”
जब उनसे मुख्यमंत्री चौहान के जून 2020 के उस बयान के बाबत पूछा गया जिसमें उन्होंने कोविड के दौरान काम करने पर प्रत्येक फ्रंटलाइन स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता को प्रोत्साहन के तौर पर 10,000 रूपये दिए जाने का वादा किया था, पर उन्होंने कहा: “विभाग सिर्फ शब्दों के सहारे नहीं काम करता है। इस संबंध में ऐसा कोई आदेश जारी नहीं किया गया है।”
इसे ‘अन्यायपूर्ण’ करार देते हुए जन स्वास्थ्य अभियान के प्रदेश संयोजक अमूल्य निधि का कहना था: “जब सरकार को जनशक्ति की जरूरत थी तो उन्होंने प्रोत्साहन राशि और मानदेय देने का वादा किया था, लेकिन जमीन पर काम करने वाले लोगों को अभी भी कई महीनों से भुगतान नहीं किया गया है। यह अन्याय है। उनके साथ जो वादा किया गया था, उन्हें उसका भुगतान किया जाना चाहिए।”
उन्होंने कहा “जिस सरकार के पास चुनाव वाले जिलों में विकास संबंधी परियोजनाओं के लिए और बड़े-बड़े आयोजनों के लिए धन की कोई कमी नहीं है, उसे फ्रंटलाइन स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की न्यायोचित मागों को हर हाल में पूरा करना चाहिए।”
इस संबंध में हमारे बार-बार प्रयास के बावजूद स्वास्थ्य मंत्री प्रभुराम चौधरी के साथ संपर्क स्थापित नहीं हो सका है।
(Kashif Kakvi की रिपोर्ट न्यूजक्लिक से साभार)
भोपाल: मध्यप्रदेश के राजगढ़ जिले के नरसिंहपुर इलाके में एक सहायक उपचारिका दाई (एएनएम) के पद पर कार्यरत 29 वर्षीय अर्चना कारपेंटर की 23 अक्टूबर को दिल का दौरा पड़ने से तब मौत हो गई, जब वे आस-पास के गांवों में घर-घर जाकर कोविड-19 टीका लगाने के लिए दौरे पर गई हुई थीं।
कारपेंटर के 33 वर्षीय पति चित्रेश ओझा का आरोप है कि उसके उपर काम का भारी बोझ था। 23 जनवरी के बाद से उसे न तो एक भी छुट्टी दी गई थी और न ही सरकार द्वारा वादे के मुताबिक किसी प्रकार का पारिश्रमिक या प्रोत्साहन राशि ही प्रदान की गई थी।
एक किराने की दुकान चलाने वाले ओझा का कहना था, “उसे काफी तनाव के बीच में रहते हुए काम करना पड़ रहा था, और जब से टीकाकरण की शुरुआत हुई थी तबसे वह हर रोज देर रात घर लौट रही थी। अक्सर कागजी कार्यवाई को पूरा करने में व्यस्त रहने के कारण उसे रात के 2 बज जाते थे। अपनी मृत्यु से पहले वाली रात को वह सुबह 3 बजे सो पाई थी और सुबह 8 बजे के आसपास उसे टीकाकरण अभियान के लिए भागकर जाना पड़ा था, लेकिन इसी क्रम में वह निढाल पड़ गई और तत्पश्चात उसकी मृत्यु हो गई।”
अर्चना की तरह ही तकरीबन 90,000 से भी अधिक की संख्या में स्वास्थ्य कर्मी हैं जिनके कन्धों पर 7.21 करोड़ कोविड टीके (12 नवंबर तक) लगाने में महत्वपूर्ण भूमिका रही है, जिसके चलते मध्यप्रदेश देश में पांचवा सबसे अधिक टीकाकरण वाला प्रदेश बन गया है। ये कार्यकर्त्ता सुबह से शाम तक दौड़धूप में जुटे रहते हैं, और यहाँ तक कि अपने न्यायोचित हकों को पाने की चाह में उन्हें विरोध प्रदर्शनों के दौरान लाठीचार्ज तक का सामना करना पड़ता है। उनमें से कुछ को तो नाममात्र का भुगतान कर दिया गया है, जबकि हजारों को अभी भी अपने भुगतान का इंतजार है।
सरकारी आदेशानुसार 84,000 से अधिक मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता (आशा) कर्मियों को, जिनके द्वारा भीड़ को टीका केन्द्रों पर लाने का काम किया गया, को प्रतिदिन 200 रूपये दिए जाने का वादा किया गया था। इसके अलावा, स्वास्थ्य विभाग और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन द्वारा जिन सैकड़ों एएनएम एवं पैरामेडिकल टीका-प्रदाताओं को टीके लगाने के लिए आउटसोर्स किया गया था, को प्रतिदिन के हिसाब से 500 रूपये का भुगतान किया जाना था, लेकिन उनमें से 75% से अधिक अभी भी भुगतान
इस सबके अलावा, वैकल्पिक वैक्सीन डिलीवरी (एवीडी) कर्मचारी जिनका काम कोल्ड स्टोरेज से केन्द्रों तक टीकों को ले जाने की है, के द्वारा प्रति टीके के डिब्बे को गंतव्य तक पहुंचाने पर 90 रूपये का भुगतान किया जाता है, जिसमें प्रति व्यक्ति के लिए एक दिन में अधिकतम 10 डिब्बे ले जाने की अनुमति दी गई है। हालाँकि, आशा और एएनएम कर्मियों की तरह ही उनका बकाया भी अगस्त से अब तक चुकता नहीं किया गया है।
राज्य स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के मुताबिक, 14,000 से अधिक की संख्या में एएनएम कर्मचारियों को, जो या तो ठेके पर हैं या उन्हें आउटसोर्स किया गया है, के द्वारा 8,498 केन्द्रों पर टीकाकरण किया जा रहा है। पिछले दो महीने से एएनएम के द्वारा आशा कर्मियों की मदद से लोगों को घर-घर जाकर टीका लगाया जा रहा है।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, मध्य प्रदेश द्वारा 28 जनवरी, 2021 को सभी जिलों के मुख्य चिकित्सा स्वास्थ्य अधिकारीयों और जिला टीकाकरण अधिकारियों को जारी किये गए एक पत्र में कहा गया है कि सभी आशा कर्मियों को उनके मौजूदा मासिक 2000 रूपये वेतन के अलावा लोगों को कोविड टीकाकरण के लिए जुटाने के लिए अलग से प्रतिदिन 200 रूपये का भुगतान किया जायेगा। इसके अलावा, टीका प्रदाताओं को जिन्हें इस काम के लिए आउटसोर्स किया गया है, को प्रतिदिन 500 रूपये की दर से भुगतान किया जायेगा।
इसके अतिरिक्त, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सभी कोविड फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं को 10,000 रूपये की प्रोत्साहन राशि दिए जाने की भी घोषणा की थी। लेकिन इन स्वास्थ्य कर्मियों को न तो वादे के मुताबिक पारिश्रमिक ही चुकाया गया है और न ही प्रोत्साहन राशि ही चुकता की गई है।
अपनी मांगों पर दबाव बनाने के लिए पिछले आठ महीनों से जूनियर डाक्टरों सहित स्वास्थ्य कर्मियों ने भोपाल में दर्जनों दफा विरोध प्रदर्शन किये हैं। इसके अलावा जिलाधिकारियों और वरिष्ठ स्वास्थ्य अधिकारियों को अनेकों बार ज्ञापन सौंपे जा चुके हैं, लेकिन इन सबका कोई फायदा नहीं हुआ है।
स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की यह दयनीय दुर्दशा एक ऐसे समय में हो रही है जब भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली मध्यप्रदेश सरकार 16 जनवरी, 2021 के बाद से 100 करोड़ से अधिक कोविड टीके लगाने पर भारत की ‘ऐतिहासिक’ उपलब्धि का जश्न मनाने में व्यस्त है, और इस उपलब्धि का सारा श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को दिया जा रहा है।
स्वास्थ्य कर्मियों को मानदेय एवं अन्य प्रोत्साहन राशि का भुगतान न किये जाने के मुद्दे पर बात करते हुए एएनएम यूनियन नेता आकांक्षा दुबे अफ़सोस जताते हुए कहती हैं, “खाली बातों से पेट नहीं भरा करते।”
कोविड टीकों को लगाने के क्रम में एएनएम कार्यकर्ताओं के दैनंदिन के संघर्ष पर दुबे ने कहा कि 16 जनवरी, 2021 (जब से टीकाकरण की शुरुआत हुई थी) के बाद से एएनएम और आशा कर्मी सुबह 9 बजे से देर रात तक 15 घंटे से अधिक काम कर रही हैं, जबकि परिवहन या सुरक्षा के संबंध में जिला प्रशासन की तरह से उन्हें कोई सहयोग नहीं मिल रहा है।
उन्होंने बताया, “जब टीकाकरण अभियान की शुरुआत की जा रही थी और प्रशासन को जनबल की जरूरत थी तो हमसे सूरज और चाँद तक का वादा किया गया था। उनकी ओर से न सिर्फ उच्च वेतन की पेशकश की गई थी, बल्कि ग्रामीणों तक पहुँचने के लिए हमारी यात्रा के लिए वाहनों तक की पेशकश की गई थी, लेकिन ये सभी वादे बाद में जाकर खोखले साबित हुए हैं।”
दुबे का दावा था कि जब पेट्रोल के दाम आसमान छू रहे थे, तो ऐसे में एएनएम कर्मियों को दूर-दराज के इलाकों में अपने-अपने साधनों से यात्रा करनी पड़ रही थी। उनका कहना था “हमारी सरकारी छुट्टियों को रद्द कर दिया गया जिसमें हमें दिवाली और भाई दूज में भी काम करने के लिए मजबूर किया गया।”
एएनएम कर्मियों की यूनियन के अध्यक्ष राहुल जैन का कहना था: “सभी एएनएम के लिए एक दिन में औसतन 400-500 टीकाकरण करने का लक्ष्य रखा गया था। कईयों ने ड्यूटी के दौरान अपनी जानें कुर्बान कर दी हैं, जबकि कुछ लोगों की टीकाकरण के लिए राह चलते सड़क दुर्घटनाओं में मौत हो गई है। लेकिन इतना सब कुछ करने के बावजूद, सरकार उनका भुगतान करने तक से मुँह मोड़ रही है और सारा श्रेय खुद बटोर रही है।”
दो बच्चों की माँ अर्चना कारपेंटर ने 5 जनवरी, 2020 को नरसिंहपुर में एएनएम के बतौर काम करना शुरू किया था। उनके पास कोविड की दोनों लहरों के दौरान 15 से अधिक गाँवों में घर-घर जाकर सर्वेक्षण करने का कार्यभार था। सरकार द्वारा वेतन के तौर पर 12,000 रूपये के भुगतान को छोड़कर उन्हें पीपीई (व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण), मास्क या सेनेटाइजर में से कोई भी चीज मुहैय्या नहीं कराई गई थी।
उनके पति का इस बारे में कहना है कि “वे बिन बंदूक वाली एक सैनिक थीं जिसने दूसरों को बचाने की खातिर अपने प्राणों की बलि दे दी। उसने अपनी जान को दांव पर लगा रखा था और टीकाकरण अभियान के दौरान अपने दोनों बच्चों को लगभग अपने से दूर कर रखा था। लेकिन इतना सब करने का क्या सिला मिला? वे कहते हैं “न तो उसे कोविड योद्धा के तौर पर मान्यता दी गई है और न ही परिवार को किसी प्रकार की कोई वित्तीय सहायता ही प्रदान की गई है। दो साल की बेटी सहित उसके दोनों बच्चों की अब देख-रेख कौन करेगा?”
कोविड टीकाकरण अभियान की सफलता के लिए एएनएम, आशा और सीएचओ की पीठ थपथपाते हुए राष्ट्रीय स्वस्थ्य मिशन की निदेशक प्रियंका दास ने कहा: “सिर्फ इनकी कड़ी मेहनत की बदौलत ही हम कुछ महीनों के भीतर ही 7.11 करोड़ से अधिक टीके लगाने में सफल रहे हैं। आशा कर्मियों ने जहाँ लोगों को इकट्ठा करने का काम किया, वहीँ एएनएम और सीएचओ के द्वारा टीका लगाया गया और यह समीकरण बेहद सफल तरीके से काम करता है।”
वादे के मुताबिक पैसे का भुगतान न किये जाने के प्रश्न पर उन्होंने कहा: “मैंने हाल ही में एनएचएम निदेशक के तौर पर पदभार ग्रहण किया है। इसलिए, मुझे उनके साथ किये गए वायदों के बारे में ज्यादा मालूमात नहीं है।”
आशा कर्मियों द्वारा भोपाल में एक व्यापक स्तर पर विरोध प्रदर्शन करने के बाद 29 अप्रैल को तत्कालीन मध्य प्रदेश निदेशक छवि भारद्वाज ने सभी जिलों के मुख्य चिकित्सा स्वास्थ्य अधिकारियों को आशा कार्यकर्ताओं के टीकाकरण प्रोत्साहन राशि को जारी करने के संबंध में पत्र लिखा था, लेकिन इसका कोई नतीजा नहीं निकला।
टीकाकरण के लिए लोगों को जुटाने वाली आशा कर्मियों द्वारा किये गये कार्यों पर प्रकाश डालते हुए आशा कर्मियों की एक स्वतंत्र संस्था, एमपी आशा सहयोगिनी संघ की प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मी कौरव का कहना था: “कोविड की पहली लहर के दौरान, हमें तीन महीनों के लिए घर-घर जाकर सर्वेक्षण करने के बदले में प्रति माह 1,000 रूपये प्रदान करने और मुख्यमंत्री द्वारा प्रोत्साहन राशि के तौर पर एकमुश्त 10000 रूपये दिए जाने का वादा किया गया था। जब टीकाकरण की बारी आई तो हम सभी इसके संगठनकर्ता के बतौर काम कर रहे हैं और इसके लिए 200 रूपये प्रतिदिन प्राप्त करने के हकदार हैं। लेकिन, आधे दर्जन विरोध प्रदर्शनों के बावजूद हममें से केवल 20% को ही भुगतान मिल पाया है।
इसके अलावा, घर-घर जाकर सर्वेक्षण करने के दौरान वायरस से संक्रमित हो जाने के बाद कोविड जटिलताओं की वजह से असमय मृत्यु की शिकार कई आशा कार्यकर्ताओं में से मुश्किल से एक या दो को ही 50 लाख रूपये का भुगतान किया गया, जैसा कि मुख्यमंत्री द्वारा वादा किया गया था।
जब राज्य टीकाकरण अधिकारी, डॉ. संतोष शुक्ला के समक्ष भुगतान न किये जाने का मुद्दा रखा गया तो उनका कहना था कि विभाग ने किसी को भी मानदेय या प्रोत्साहन राशि देने का वादा नहीं किया है। “सरकार पहले से ही उन्हें उनके काम के बदले में तनख्वाह दे रही है। ऐसे में मानदेय दिए जाने की जरूरत ही क्या है? विभाग की ओर से ऐसा कोई आदेश जारी नहीं किया गया है जिसमें सरकारी कर्मचारियों के लिए प्रोत्साहन या मानदेय दिए जाने का वादा किया गया हो। जहाँ तक आउटसोर्स स्वास्थ्य कर्मियों का संबंध है, उन्हें हम भुगतान कर रहे हैं।”
जब उनसे मुख्यमंत्री चौहान के जून 2020 के उस बयान के बाबत पूछा गया जिसमें उन्होंने कोविड के दौरान काम करने पर प्रत्येक फ्रंटलाइन स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता को प्रोत्साहन के तौर पर 10,000 रूपये दिए जाने का वादा किया था, पर उन्होंने कहा: “विभाग सिर्फ शब्दों के सहारे नहीं काम करता है। इस संबंध में ऐसा कोई आदेश जारी नहीं किया गया है।”
इसे ‘अन्यायपूर्ण’ करार देते हुए जन स्वास्थ्य अभियान के प्रदेश संयोजक अमूल्य निधि का कहना था: “जब सरकार को जनशक्ति की जरूरत थी तो उन्होंने प्रोत्साहन राशि और मानदेय देने का वादा किया था, लेकिन जमीन पर काम करने वाले लोगों को अभी भी कई महीनों से भुगतान नहीं किया गया है। यह अन्याय है। उनके साथ जो वादा किया गया था, उन्हें उसका भुगतान किया जाना चाहिए।”
उन्होंने कहा “जिस सरकार के पास चुनाव वाले जिलों में विकास संबंधी परियोजनाओं के लिए और बड़े-बड़े आयोजनों के लिए धन की कोई कमी नहीं है, उसे फ्रंटलाइन स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की न्यायोचित मागों को हर हाल में पूरा करना चाहिए।”
इस संबंध में हमारे बार-बार प्रयास के बावजूद स्वास्थ्य मंत्री प्रभुराम चौधरी के साथ संपर्क स्थापित नहीं हो सका है।
(Kashif Kakvi की रिपोर्ट न्यूजक्लिक से साभार)