दस में से चार से ज्यादा आरटीआई आवेदनों को अन्य श्रेणी में बता कर खारिज कर दिया गया है। इस तरीके का सबसे ज्यादा इस्तेमाल करने वाले विभागों में सबसे आगे प्रधानमंत्री कार्यालय यानी पीएमओ है।
मोदी सरकार अपने और अपने मंत्रियों के ऊपर आयकरदाताओं के खर्च हो रहे पैसे के हिसाब-किताब से जुड़े सवालों का जवाब देने से लगातार इनकार करती रही है। सरकार की ओर से बजटीय आवंटन और ऑडिट के बारे में आरटीआई के तहत पूछे गए सवालों का इसने जवाब नहीं दिया है। केंद्रीय सूचना आयोग और दूसरे रजिस्टर्ड सार्वजनिक प्राधिकरणों ने आरटीआई के तहत वर्ष 2015-16 के दौरान 9.76 लाख आवेदन प्राप्त किए हैं। यह वर्ष 2014-15 की तुलना में 3.8 फीसदी अधिक है।
सीआईसी की सूचना के मुताबिक यह बेहद चौंकाने वाला तथ्य है कि आरटीआई आवेदनों में से सबसे ज्यादा खारिज किए गए आवेदन उस श्रेणी के नहीं थे जिन्हें धारा, 8,9,11 और 24 के तहत खारिज किया जा सकता था। बल्कि उन्हें ‘अन्य’ श्रेणी में रख कर बड़े ही रहस्यमयी अंदाज में खारिज कर दिया गया है। दस में से चार से ज्यादा आरटीआई आवेदनों को अन्य श्रेणी में बता कर खारिज कर दिया गया है। इस तरीका का सबसे ज्यादा इस्तेमाल करने वाले विभागों में सबसे आगे प्रधानमंत्री कार्यालय यानी पीएमओ है। मंत्रालयों के आधार पर पड़ताल यहां हो सकती है। (see ministry-wise findings here).
सूचना का अधिकार, 2005 (आरटीआई एक्ट) को लागू किए जाने संबंधी केंद्रीय सूचना आयोग की वार्षिक रिपोर्ट उनकी वेबसाइट पर पढ़ी जा सकती है। रिपोर्ट के तथ्य इस प्रकार हैं –
- राष्ट्रपति सचिवालय ने 2014-15 की तुलना में 2015-16 में 123 ज्यादा आरटीआई आवेदन हासिल किए। 2015-16 में आवेदन खारिज करने की संख्या 9.30 फीसदी से घट कर 1.2 फीसदी हो गई। खारिज किए जाने वाले आवेदनों के मामले में कमी एक सकारात्मक कदम है।
- वर्ष 2015-16 में पीएमओ को ओर आरटीआई आवेदनों को खारिज करने की दर 20.10 फीसदी रही। 2014-15 में यह 22.10 फीसदी थी। हालांकि धारा 8 का हवाला देते हुए 7 आरटीआई आवेदन खारिज किए गए। सबसे ज्यादा 2227 आवेदन ‘अन्य’ श्रेणी में डाल कर खारिज कर दिए। लेकिन 2014-15 में इस श्रेणी में रख कर खारिज किए गए आवेदनों की संख्या 2781 थी। हालांकि खारिज किए जाने वाले आवेदनों की संख्या में गिरावट आई है। फिर भी यह एक चिंताजनक पहलू को सामने लाता है।
- सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2015-16 में 2014-15 की तुलना में 21.1 फीसदी कम आरटीआई आवेदन खरिज किया। 2014-15 की तुलना में 2015-16 में इसे सिर्फ छह आरटीआई आवेदन ज्यादा मिले। दिल्ली हाई कोर्ट ने भी 2015-16 में एक फीसदी कम आरटीआई आवेदन खारिज किए। जबकि आवेदनों की संख्या में 127 की बढ़ोतरी हुई थी।
- सीएजी को 2015-16 में 716 आरटीआई आवेदन मिले। जबकि 2014-15 में इन आवेदनों की संख्या 796 थी। खारिज किए जाने का अनुपात 6.3 से बढ़ कर 17.2 फीसदी पर पहुंच गया। इस वजह की गहरी पड़ताल जरूरी है।
- केंद्रीय चुनाव आयोग की ओर आरटीआई आवेदन खारिज करने की रफ्तार स्थिर है। यह दर 0.1 फीसदी है। जबकि 2015-16 में कम आरटीआई आवेदन प्राप्त हुए थे। यह संख्या थी 539।
- कैबिनेट सचिवालय की ओर से भी 2015-16 में आरटीआई आवेदन खारिज करने की तादाद बढ़ी। 2014-15 में आरटीआई आवेदनों को खारिज करने की दर 4.30 फीसदी थी जो 2015-16 में बढ कर 6.65 फीसदी पर पहुंच गई। हालांकि 2015-16 में इसके पिछले साल की तुलना में 73 ज्यादा आवेदन प्राप्त हुए थे।
- कार्मिक प्रशिक्षण मंत्रालय की ओर से आरटीआई आवेदन खारिज करने की संख्या घटी है। 2015-16 में आवेदन खारिज करने की दर 3.4 फीसदी रही जबकि 2014-15 में यह दर 9.4 फीसदी रही। जबकि 2015-16 में 9000 ज्यादा आरटीआई आवेदन प्राप्त हुए। मंत्रालय की ओर से आवेदन खारिज करने की संख्या में कमी एक सकारात्मक रुझान है।
- दिल्ली पुलिस ने 2015-16 में वर्ष 2014-15 की तुलना में 648 आरटीआई आवेदन ज्यादा प्राप्त किए। लेकिन खारिज किए जाने की दर घट कर 0.4 फीसदी पर आ गई।
- जहां तक मंत्रालयों की बात है तो उनकी ओर से भी आरटीआई आवेदन खारिज करने की तादाद घटी है। रक्षा मंत्रालय में यह संख्या 2015-16 में यह दर 15.90 फीसदी थी जबकि 2014-15 में यह 11.5 फीसदी थी। वित्त मंत्रालय में भी आवेदन खारिज करने की दर घट कर 18.30 फीसदी पर आ गई। विदेश मंत्रालय में यह दर घट कर 5.74 पर आ गई। हालांकि गृह मंत्रालय में आवेदन को खारिज करने की दर 2015-16 में 0.1 फीसदी बढ़ गई। 2015-16 में इसे 1143 आरटीआई आवेदन मिले थे।
- सीआईसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि इसने 10.52 लाख रुपये का जुर्माना लगाया है। जिसमें से 9.41 लाख रुपये प्रधान सूचना अधिकारियों की ओर से भरे गएहैं। अन्य मामलों में 1.25 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया है, जिन्हें विभिन्न कोर्टों की ओर से स्टे कर दिया गया है।
- सीआईसी की रिपोर्ट के मुताबिक फीस और पेनाल्टी में 2015-16 के दौरान 12.31 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। हालांकि पेनाल्टी लगाने की दर में गिरावट हुई। फीस में भी कमी दर्ज हुई। 2014-15 में फीस से 1.14 करोड़ रुपये आए जबकि 2016-17 में फीस के मद में 1.07 करोड़ रुपये आए। हालांकि यह रुझान आरटीआई आवेदन खारिज करने के अनुपात से मेल नहीं खाता। इसका मतलब यह कि अगर ज्यादा लोगों को सूचना मिल रही है तो फीस में भी इजाफा होना चाहिए था। इस प्रवृति की पड़ताल होनी चाहिए।
- सीआईसी में रजिस्टर्ड जिन सार्वजनिक प्राधिकरणों को अपने आरटीआई आंकड़ों का खुलासा करना होता है उनकी संख्या 1903 है। यह 2012-13 की तुलना की 2333 की तुलना में 1903 है। सीआईसी की लगातार कोशिश के बावजूद 400 प्राधिकरणों ने खुद को इससे रजिस्टर्ड नहीं किया। हालांकि पिछले 12 साल के दौरान रजिस्टर्ड प्राधिकरणों की ओर से आंकड़ों की रिपोर्ट करने की तादाद 94 फीसदी बढ़ी है। हालांकि सीआईसी रिपोर्ट में यह नहीं बताया गया कि कितने प्राधिकरणों ने खुद का रजिस्ट्रेशन नहीं कराया है। इसलिए 2012-13 के आंकड़ों से इनकी तुलना नहीं की जा सकी है।
- पेयजल स्वच्छता और ओवरसीज इंडियन अफेयर्स मंत्रालय ने सीआईसी के साथ रजिस्टर्ड होने के बावजूद आरटीआई के आंकड़े नहीं दिए हैं। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय से जुड़े सिर्फ 33 फीसदी सार्वजनिक प्राधिकरणों ने ही सीआईसी को अपने आरटीआई आंकड़े भेजे हैं। हालांकि सरकार के मंत्रालयों और विभागों की से सीआईसी को आंकड़े भेजने के मामले 60 से 100 फीसदी भी रहे हैं।