मोदी जी, ये आधा गिलास हवा से भरा नहीं, बल्कि “नीरव मोदी” जैसों की वजह से आधा खाली है... “आधा गिलास हवा से भरा” वाले बयान को मैं अकल्पनीय आशावादिता का उदाहरण मानता हूं. मैंने तब भी कहा था कि अतिमहात्वकांक्षा की तरह अतिआशावादिता भी कम खतरनाक नहीं होता. सवाल है कि आधा गिलास हवा से क्यों भरा है? उसमें पानी क्यों नहीं है? कौन है आधे गिलास पानी का चोर?
बावजूद इस सब के, नीरव मोदी प्रकरण को मैं नरेन्द्र मोदी की नहीं, भारतीय व्यवस्था की नाकामी की कहानी मानता हूं. भारतीय लोकतंत्र के 70 साला इतिहास में नरेन्द्र मोदी 16वीं लोकसभा के पीएम है. इनसे पहले दर्जन भर पीएम आए, इनके बाद भी दर्जन भर पीएम आएंगे और उसके बाद भी पीएम आते रहेंगे. इसलिए, मेरे लिए मोदी-राहुल-नेहरू-पटेल महत्वपूर्ण नहीं है.
मेरे लिए ये जानना जरूरी है कि आखिर वो कौन सी व्यवस्था है, जो जीप घोटाला होने के बाद भी मेनन को नेहरू का प्यारा बनाए रखता है. वो कौन सी व्यवस्था है, जिसमें कांग्रेस के समय में एक क्रिकेट प्रशासक आईपीएल के जरिए भ्रष्टाचार की नींव डालता है और भाजपा के राज में विदेश भाग जाता है. वो कौन सी व्यवस्था है, जिसमें कांग्रेस के समय बैंक नीरव मोदी को लेटर ऑफ अंडरटेकिंग जारी कर देता है और भाजपा के समय वो विदेश भाग जाता है.
नीरव मोदी को ले कर ज्यादा उत्साहित मत होईए. ये उस अन्धेरी सुरंग का एक बहुत ही छोटा रहस्य है, जिसके भीतर हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था ने हजारों ऐसे नीरव मोदी को शानदार प्रोटेक्शन दिया हुआ है. घोटालों और लूट के तरीकों के बारे में आपके मेरे जैसा इंसान कल्पना भी नहीं कर सकता. दिल पर हाथ रख कर बोलिए कि अब से पहले कितनी बार सुना था कि कोई आदमी लेटर ऑफ अंडरटेकिंग के जरिए भी हजारों करोड ले कर फरार हो सकता है.
आखिर, सरकार, बैंक, आरबीआई या मीडिया की वह कौन सी मजबूरी है जिसकी वजह से बैंक विलफुल डिफॉल्टर्स का नाम सार्वजनिक करने से हिचकती हैं. विलफुल डिफॉल्टर्स मतलब, जो जानबूझ कर बैंक का कर्ज नहीं चुकाते. क्या आप ये नहीं जानना चाहेंगे कि किस राज्य के किस बैंक के किस ब्रांच से किसने कितना पैसा लूटा गया. सरकार और बैंक आपको कभे एनहीं बताएगी.
थोडी मेहनत कीजिए. सिबिल डॉट कॉम नाम का एक वेबसाइट है. इस वेबसाइट को खंगालिए. suit.cibil.com पर तकरीबन 6 हजार ऐसी विलफुल डिफॉल्टर कम्पनियां हैं, जिनके पास बैंकों का करीब 1 लाख करोड़ से अधिक का कर्ज बाकी है. ध्यान रखिए, ये विलफुल डिफॉल्टर है. एनपीए इससे कहीं ज्यादा है. इन 6 हजार कंपनियों ने करीब-करीब प्रत्येक राज्य में, प्रत्येक बैंक की प्रत्येक ब्रांच से पैसे लिए हैं.
उदाहरण के लिए, पथेजा ब्रदर्स नाम की एक कंपनी है. इसने अलग-अलग राज्यों के अलग-अलग बैंकों की अलग-अलग शाखाओं से सौ, दो सौ करोड़ का लोन लिया और धीरे-धीरे यह लोन हज़ारों करोड़ का हो गया. सिबिल वेबसाइट पर इसके नाम से कर्ज़ की क़रीब 200 डिटेल हैं. ऐसे ही अगर आप सिबिल वेबसाइट को खंगालेंगे तो कई बडे नाम आपके सामने होंगे, जिन्होंने देश भर के बैंकों की विभिन्न शाखाओं से 100-200 करोड कर के हजारों करोड का लोन लिया और बाद में विलफुल डिफॉलटर्स बन गए.
नीरव मोदी अकेला नहीं है. हजारों नीरव मोदी है. अकेले मोदी उपनाम के बहाने नरेन्द्र मोदी पर निशाना साधने से कुछ नहीं होने वाला है. हां, नीरव मोदी, विजय माल्या और अब ये रोटोमैक पेन वाला, इन जैसे मामलों से इतना जरूर साफ हो जाता है कि सवाल राहजनी का नहीं, रहबरी का है. सवाल हवा से भरे आधे ग्लास का है...
मैं जानता हूं प्रधानमंत्री जी कि आप भी 5 साल में समझ गए होंगे कि गुजरात और देश चलाने में क्या फर्क होता है? एक बार फिर दुहरा रहा हूं...मनमोहन सिंह जैसे गैर राजनीतिक व्यक्ति भे एभारतीय लोकतंत्र में 10 साल प्रधानमंत्री रह गए...आप तो फुलटाइमर है...10 साल पीएम रह जाए...क्या फर्क पडेगा...अगर आप उस व्यवस्था को न बदल सके, जो हर दौर में गिलास का आधा पानी चुरा लेता है और उसे हवा से भर देता है...
(लेखक पत्रकार हैं. यह आर्टिकल उनकी फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है.)
बावजूद इस सब के, नीरव मोदी प्रकरण को मैं नरेन्द्र मोदी की नहीं, भारतीय व्यवस्था की नाकामी की कहानी मानता हूं. भारतीय लोकतंत्र के 70 साला इतिहास में नरेन्द्र मोदी 16वीं लोकसभा के पीएम है. इनसे पहले दर्जन भर पीएम आए, इनके बाद भी दर्जन भर पीएम आएंगे और उसके बाद भी पीएम आते रहेंगे. इसलिए, मेरे लिए मोदी-राहुल-नेहरू-पटेल महत्वपूर्ण नहीं है.
मेरे लिए ये जानना जरूरी है कि आखिर वो कौन सी व्यवस्था है, जो जीप घोटाला होने के बाद भी मेनन को नेहरू का प्यारा बनाए रखता है. वो कौन सी व्यवस्था है, जिसमें कांग्रेस के समय में एक क्रिकेट प्रशासक आईपीएल के जरिए भ्रष्टाचार की नींव डालता है और भाजपा के राज में विदेश भाग जाता है. वो कौन सी व्यवस्था है, जिसमें कांग्रेस के समय बैंक नीरव मोदी को लेटर ऑफ अंडरटेकिंग जारी कर देता है और भाजपा के समय वो विदेश भाग जाता है.
नीरव मोदी को ले कर ज्यादा उत्साहित मत होईए. ये उस अन्धेरी सुरंग का एक बहुत ही छोटा रहस्य है, जिसके भीतर हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था ने हजारों ऐसे नीरव मोदी को शानदार प्रोटेक्शन दिया हुआ है. घोटालों और लूट के तरीकों के बारे में आपके मेरे जैसा इंसान कल्पना भी नहीं कर सकता. दिल पर हाथ रख कर बोलिए कि अब से पहले कितनी बार सुना था कि कोई आदमी लेटर ऑफ अंडरटेकिंग के जरिए भी हजारों करोड ले कर फरार हो सकता है.
आखिर, सरकार, बैंक, आरबीआई या मीडिया की वह कौन सी मजबूरी है जिसकी वजह से बैंक विलफुल डिफॉल्टर्स का नाम सार्वजनिक करने से हिचकती हैं. विलफुल डिफॉल्टर्स मतलब, जो जानबूझ कर बैंक का कर्ज नहीं चुकाते. क्या आप ये नहीं जानना चाहेंगे कि किस राज्य के किस बैंक के किस ब्रांच से किसने कितना पैसा लूटा गया. सरकार और बैंक आपको कभे एनहीं बताएगी.
थोडी मेहनत कीजिए. सिबिल डॉट कॉम नाम का एक वेबसाइट है. इस वेबसाइट को खंगालिए. suit.cibil.com पर तकरीबन 6 हजार ऐसी विलफुल डिफॉल्टर कम्पनियां हैं, जिनके पास बैंकों का करीब 1 लाख करोड़ से अधिक का कर्ज बाकी है. ध्यान रखिए, ये विलफुल डिफॉल्टर है. एनपीए इससे कहीं ज्यादा है. इन 6 हजार कंपनियों ने करीब-करीब प्रत्येक राज्य में, प्रत्येक बैंक की प्रत्येक ब्रांच से पैसे लिए हैं.
उदाहरण के लिए, पथेजा ब्रदर्स नाम की एक कंपनी है. इसने अलग-अलग राज्यों के अलग-अलग बैंकों की अलग-अलग शाखाओं से सौ, दो सौ करोड़ का लोन लिया और धीरे-धीरे यह लोन हज़ारों करोड़ का हो गया. सिबिल वेबसाइट पर इसके नाम से कर्ज़ की क़रीब 200 डिटेल हैं. ऐसे ही अगर आप सिबिल वेबसाइट को खंगालेंगे तो कई बडे नाम आपके सामने होंगे, जिन्होंने देश भर के बैंकों की विभिन्न शाखाओं से 100-200 करोड कर के हजारों करोड का लोन लिया और बाद में विलफुल डिफॉलटर्स बन गए.
नीरव मोदी अकेला नहीं है. हजारों नीरव मोदी है. अकेले मोदी उपनाम के बहाने नरेन्द्र मोदी पर निशाना साधने से कुछ नहीं होने वाला है. हां, नीरव मोदी, विजय माल्या और अब ये रोटोमैक पेन वाला, इन जैसे मामलों से इतना जरूर साफ हो जाता है कि सवाल राहजनी का नहीं, रहबरी का है. सवाल हवा से भरे आधे ग्लास का है...
मैं जानता हूं प्रधानमंत्री जी कि आप भी 5 साल में समझ गए होंगे कि गुजरात और देश चलाने में क्या फर्क होता है? एक बार फिर दुहरा रहा हूं...मनमोहन सिंह जैसे गैर राजनीतिक व्यक्ति भे एभारतीय लोकतंत्र में 10 साल प्रधानमंत्री रह गए...आप तो फुलटाइमर है...10 साल पीएम रह जाए...क्या फर्क पडेगा...अगर आप उस व्यवस्था को न बदल सके, जो हर दौर में गिलास का आधा पानी चुरा लेता है और उसे हवा से भर देता है...
(लेखक पत्रकार हैं. यह आर्टिकल उनकी फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है.)