मोदी का मुस्लिम प्यार, न्याय मांगने वालों को घसीटा जाता है सड़को पर

Written by Islahuddin Ansari | Published on: November 7, 2016
अपने मंच से मुस्लिम महिलाओं को उनका हक दिलाने की बात करने वाले नरेंद्र मोदी जी के सारे दावों की हवा आज उस वक्त निकल गयी, जब दिल्ली पुलिस नजीब की माँ को घसीटते हुए गिरफ्तार कर के ले गई। वो चीखती रही, वो चिल्लाती रही, मगर उसकी एक ना सुनी गई।

modi and muslims
 
और सुनी भी कैसी जाती, जिसके आंसू से पिछले 22 दिनों से दिल्ली पुलिस का दिल नही पसीजा उसका दिल भला आज कैसे पसीज जाता। नजीब की माँ का हाल देखकर आज एहसास हो गया की उनकी मुस्लिम महिलाओं को हक दिलाने वाली बात भी जुमला मात्र ही थी।
 
क्योंकि नजीब की माँ भी तो आखिरकार एक मुस्लिम महिला ही है। जो अपने जिगर के टुकड़े के लिए पिछले 22 दिनों से JNU की चैखट को अपने आंसुओं से तरबतर कर रही है। क्या मुस्लिम महिलाओं के हक सिर्फ काॅमन सिविल कोड तक ही सीमित है।
 
नजीब की माँ के साथ आखिर ऐसा सुलूक क्यों किया गया? आखिर नजीब की माँ का जुर्म क्या था जो आपकी पुलिस उसे घसीटकर गिरफ्तार करके ले गई।
 
क्या एक माँ का अपने गुमशुदा बेटे को ढूंढना अपराध है? क्या एक माँ का अपने जिगर के टुकड़े के इंतजार मे उस संस्थान की चौखट पर बैठना जहाँ से वो पिछले 22 दिनों से लापता है अपराध है?
 
क्या नजीब की माँ के द्वारा उस निकम्मे विश्वविद्यालय प्रशासन के सामने अपने बेटे को ढूंढने के लिए गुहार लगाना अपराध है? जिसके कानों में अपने संस्थान 22 दिनों लापता एक लापता छात्र के लिए जूं तक ना रेंग रही हो, आखिर क्या मजबूरी है की दिल्ली पुलिस उन छात्रों को जिनसे नजीब का झगड़ा हुआ था उनको गिरफ्तार करने के बजाय नजीब की माँ को गिरफ्तार करके ले जाती है, ये तो सरासर तानाशाही रवैया है।
 
प्रधानमंत्री जी ये सब कुछ जो हो रहा है वो अच्छे संकेत नही हैं। पिछले दिनों दिल्ली पुलिस ने एक आत्महत्या करने वाले सैनिक के परिवार को गिरफ्तार कर लिया।
 
क्यों किया ये नही बताया गया? फिर उसके बाद उसके बाद उस सैनिक परिवार की गिरफ्तारी का विरोध करने पहुंचे राहुल गाँधी और अरविंद केजरीवाल को भी गिरफ्तार कर लिया गया और आज पिछले 22 दिनों से अपने जिगर के टुकड़े को ढूंढती एक माँ को जिस बेदर्दी से गिरफ्तार कर के ले जा गया वो सबने देखा।
 
आखिर ये कौन सी नई परंपरा की शुरुआत हुई है। जहाँ पीड़ित को इंसाफ के बदले गिरफ्तारी का तोहफा दिया जा रहा है। आखिर ये कैसी व्यवस्था आकार ले रही है समझ से परे है। कहीं ऐसा तो नही की हमसे विरोध करने के लोकतांत्रिक तरीके को छीनने का प्रयास किया जा रहा है?

Courtesy: Janta ka Reporter

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