‘सियासत की कैद में बेगुनाह’ सम्मेलन में पीड़ितों ने खोली अखिलेश सरकार की पोल

Published on: January 17, 2017
लखनऊ। कोलकाता के रहने वाले आफताब आलम अंसारी की मां आयशा बेगम ने ‘रिहाई मंच’ नेता मसीहुद्दीन संजरी द्वारा लिखित आतंकवाद के आरोपों से बरी 14 नौजवानों पर आधारित ‘बेगुनाह दहशतगर्द’ किताब का विमोचन किया। यह किताब नहीं बल्कि 14 बेगुनाहों के उत्पीड़न-दमन का जीता जागता सबूत है कि किस तरह सियासत के वे शिकार बने। 

Rihai manch
 
यूपी प्रेस क्लब, लखनऊ में रिहाई मंच द्वारा आयोजित ‘सियासत की कैद में बेगुनाह’ सम्मेलन में ‘बेगुनाह दहशतगर्द’ किताब का विमोचन करते हुए आयशा बेगम ने कहा कि जब वह पहली बार लखनऊ अपने बेटे आफताब की रिहाई के लिए आईं थीं उस मंजर को आज भी सोचकर सिहर जाती हैं और उसे याद नहीं करना चाहती हैं। उस वक्त शुऐब साहब मिले और उनसे मैंने कहा कि मेरा बेटा बेगुनाह है उसे रिहा करवा दीजिए। शुऐब साहब ने मुकदमा लेने में कोई ना-नुकुर नहीं की। उस दरम्यान बेटे से मिलने के लिए जेल के पास की चाय की दुकानों पर वक्त कटा और जब मैं वापस गई और मालूम चला कि बेटा रिहा होने वाला है और पुलिस के लोग कहने लगे की वो उनके बेटे को घर छोड़ देंगे तो मैंने शुऐब भाई से बात की कि भाई आप उसे अपने पास रख लीजिएगा नहीं तो वे किसी दूसरे केस में न उसे फंसा दें। 
 
पुस्तक के लेखक और रिहाई मंच नेता मसीहुद्दीन संजरी ने कहा कि उत्तर प्रदेश में आतंकवाद के आरोपों से बरी अन्य नौजवानों के बारे में तथ्यों और दस्तावेजी आधार पर बहुत कुछ लिखे जाने की योजना है। क्योंकि इनकी कहानियां सिर्फ किसी व्यक्ति की नहीं बल्कि एक पूरे समाज, राज्य मशीनरी से लेकर न्यायपालिका तक में व्याप्त फासीवादी मानसिकता को कटघरे में खड़ा करती हैं।
 
आजमगढ़ का होने के कारण जिसे आंतकवाद की नर्सरी के बतौर खुफिया विभाग और मीडिया का एक हिस्सा प्रचारित करता रहा है, मैने इसे अपनी जिम्मेदारी समझा की इस निर्मित धारणा को तोड़ा जाए जिसका परिणाम यह पुस्तक है। उन्होंने कहा कि पुस्तक का नाम ‘बेगुनाह दहशतगर्द’ इसलिए रखा कि राज्य ने इनपर दहशतगर्दी का जो ठप्पा लगाया वो उनके रिहा होने के बावजूद भी नहीं हटा और इसीलिए उनकी रिहाई के बाद जब उनको जमानतदारों की जरूरत होती है तो शुऐब साहब जैसे लोगों को अपनी पत्नी और साले को जमानतदार के बतौर खड़ा करना पड़ता है।
 
कोलकाता से आए आफताब ने 27 दिसंबर 2007 को कोलकाता से उठाए जाने की अपनी दास्तान को बताते हुए कहा कि आतंकवाद के आरोपों से घिरे वो 22 दिन इतने डरवाने रहे हैं कि उसे जिंदगी भर नहीं भूल सकता। जब मुझे एक लोन गारंटर की शिनाख्त के बहाने कोलकाता से सीआईडी ने उठाया और यूपी एसटीएफ के हाथों दिन रात मारा पीटा गया, मैं कहता रहा कि आतंकवाद से मेरा कोई संबन्ध नहीं है पर वे मानते नहीं थे। पर 23 नवंबर 2007 का एक मेडिकल सर्टीफिकेट मेरी बेगुनाही का प्रमाण बना जिसके बाद मैं रिहा हो सका। मैं उस दर्द को आज भी नहीं भूल सकता कि इस आतंक के कंलक की वजह से मेरी बहन की शादी टूट गई।
 
आतंकवाद के मामलों में फंसाए गए बेगुनाहों के वकील रणधीर सिंह सुमन ने कहा कि पिछले 10 सालों में ऐसे मुकदमें देखने के तजुर्बे से मैं कह सकता हूं कि आतंकवाद के नाम पर न सिर्फ बेगुनाहों को फंसाया जाता है बल्कि आतंकी घटनाएं भी राज्य मशीनरी और साम्प्रदायिक तत्व ही मिलकर कराते हैं। जिनकी अगली मंशा यही होती है किसी भी तरह डरा-धमका कर वकीलों को इन मुकदमों की पैरवी से दूर रखा जाए। यह सब एक योजना का हिस्सा होता है। इसीलिए हम लोगों के ऊपर लखनऊ, फैजाबाद से लेकर बाराबंकी ही नहीं देश के दूसरे हिस्सों में हमले होते हैं। लिहाजा यह जरूरी हो जाता है कि ऐसे मुकदमों के साथ ही जनता के बीच भी आंदोलन हों ताकि हम वकीलों के पक्ष में भी समाज का जनमत बने। रिहाई मंच और मसीहुद्दीन संजरी ने ये काम बखूबी किया है। 
 
रिहाई मंच अध्यक्ष एडवोकेट मो. शुऐब ने कहा कि इन 10 सालों में आतंकवाद के नाम पर गढ़े गए हिंदुत्ववादी धारणा को तोड़ने और उसका काउंटर नैरेटिव निर्मित करने की हमारी कोशिश रही है। इसमें हम कितना सफल हुए हम नहीं जानते ये तय करना आवाम का काम है। उन्होंने कहा कि हमने आवाम से जो वादे किए उनपर कायम रहे और आज भी इंसाफ के लिए लड़ रहे हैं लेकिन सरकार लगातार आवाम से वादाखिलाफी कर रही है। अखिलेश सरकार ने बेगुनाहों को छोड़ने का वादा तो नहीं निभाया उल्टे जो लोग अदालतों से बरी हुए उनके खिलाफ अपील में जाकर उन्हें फिर जेल भेजने की साजिश रच रही है। रिहाई मंच इस साजिश को एक बार फिर जनता के सहयोग से नाकाम करेगा। मो. शुऐब ने कहा कि आज इस पुस्तक का विमोचन करने के लिए हमने आफताब आलम अंसारी की मां आयशा बेगम को इसीलिए बुलाया है ताकि अपने बच्चों के इंसाफ के लिए लड़ने वाली मांओं का हम सम्मान करें और रोहित वेमुला जिनकी हत्या का भी कल एक साल होने जा रहा है उनकी मां और नजीब की संघर्षरत मां के साथ अपनी एकजुटता दर्शा सकें। इन्हीं मांओं का संघर्ष नए समाज और देश का निर्माण करेगा।

Courtesy: National Dastak

 

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