मोदी सरकार के तीन साल पूरे पर रोजगार बढ़ाने में नाकाम रही सरकार

Written by Savera | Published on: May 12, 2017
मैन्यूफैक्चरिंग, निर्माण, व्यापार, परिवहन, आवास और रेस्तरां, आईटी-बीपीओ, शिक्षा और स्वास्थ्य- सेक्टरों में दो करोड़ लोगों को रोजगार मिला हुआ है। इन सेक्टरों में 2.3 लाख नौकरियां पैदा होने का मतलब सिर्फ 1.1 फीसदी की रोजगार बढ़ोतरी हुई है।



मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर गैर कृषि अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी है और इसके आठ चुनिंदा सेक्टरों में देश के लगभग आधे कामगार काम करते हैं। इस सेक्टर में एक फीसदी की रोजगार वृद्धि ऊंट के मुंह में जीरे के समान है।
 
मोदी सरकार में बेरोजगारों की फौज बढ़ती जा रही है। सरकार की ही एक हालिया  रिपोर्ट के मुताबिक पिछले साल के दौरान आठ प्रमुख गैर कृषि सेक्टरों में सिर्फ 2.3 लाख नौकरियां पैदा हुईं। ये सेक्टर हैं- मैन्यूफैक्चरिंग, निर्माण, व्यापार, परिवहन, आवास और रेस्तरां, आईटी-बीपीओ, शिक्षा और स्वास्थ्य। इन सभी सेक्टरों में दो करोड़ लोगों को रोजगार मिला हुआ है। इस हिसाब से 2.3 लाख नौकरियां सिर्फ 1.1 फीसदी बैठती हैं।
 
आपको याद होगा नरेंद्र मोदी और उनके मंत्रियों ने देश के लोगों से वादा किया था रोजगार सृजन उनकी सरकार की सबसे बड़ी प्राथमिकता होगी। उन्होंने अपने बहु प्रचारित योजनाओं- मेक इन इंडिया, स्किल इंडिया और स्टार्ट-अप योजनाओं के जरिये रोजगार सृजन का जोर-शोर से प्रचार किया था। मोदी ने कहा था कि वह देश के लिए बड़ी समस्या बन चुकी बेरोजगारी को खत्म कर समृद्धि बढ़ाएंगे। उन्होंने विदेशी निवेशकों को लुभाने की पूरी कवायद की। उनका कहना था कि देश में विदेशी निवेश से रोजगार बढ़ेंगे।
 
लेकिन सरकार के तीन साल पूरे होने को हैं और साफ दिख रहा है कि यह वादा हवा हो गया है। न तो मोदी और न जेटली और न मंत्रिमंडल के उनके सहयोगी रोजगार सृजन की बात कर रहे हैं। नौकरियां पैदा करने की सभी स्कीमें भुला दी गई हैं। उनका सारा ध्यान चुनाव जीतने और वीआईपी की कारों से लाल बत्तियां हटाने या फिर मंदिरों के दर्शन जैसे जनता को मूर्ख बनाने के कामों में लगा है।
 
देश के लोग यह सवाल पूछ रहे हैं कि आखिर मोदी सरकार ने लोगों से करोड़ों नौकिरयां पैदा करने का जो वादा किया था उसका क्या हुआ। ग्रामीण इलाकों में रोजगार की गारंटी देने वाली स्कीम मनरेगा की रिपोर्टों से पता चलता है कि बेरोजगारी न सिर्फ बढ़ती जा रही है बल्कि रोजगार सृजन के क्षेत्र में हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं।
 
मोदी के पीएम रहते सरकार के पहले साल में 4.6 करोड़ गृहस्थों ने मनरेगा स्कीम के तहत काम की मांग की। अगले साल यानी 2015-16 में यह तादाद 15 फीसदी बढ़ कर 5.35 करोड़ पर पहुंच गई। इसके अगले साल यानी 2016-17 में रोजगार की मांग में छह फीसदी का इजाफा हुआ और रोजगार की मांग करने वाले गृहस्थों की संख्या 5.69 करोड़ तक पहुंच गई। मनरेगा जैसी कम पारिश्रमिक वाली स्कीमों में मनरेगा में रोजगार की मांग में बढ़ोतरी के बावजूद 10 से 11 फीसदी आवेदकों को रोजगार नहीं मुहैया कराया जा सका। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल मनरेगा स्कीम के तहत रोजगार की मांग करने आए 58 लाख गृहस्थों को खाली हाथ लौटा दिया गया।
 
मौजूदा वित्त वर्ष यानी 2017-18 में एक महीने से भी ज्यादा का वक्त बीत गया है और रोजगार की मांग करने वालों गृहस्थों की संख्या बढ़ कर 1.38 करोड़ हो गई है। इस तथ्य के बावजूद कि पिछले साल मानसून पहले से बेहतर रहा था।
 
हालिया रिपोर्ट के मुताबिक नई नौकरियों में बढ़ोतरी की रफ्तार न सिर्फ बेहद धीमी रही है। बल्कि यह असंतुलित ही रही है। उदाहरण के लिए 2.1 लाख नौकरियां में से सिर्फ आधी हेल्थ सेक्टर में पैदा की जा सकीं। एजुकेशन और हेल्थ सेक्टर में 1.1 लाख नई नौकरियां पैदा हुईं।
 
मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर की नई नौकरियों में 1 फीसदी से कम इजाफा हुआ। और वह भी 2016 की आखिरी तिमाही में इसमें अचानक आई बढ़ोतरी के बावजूद। इस तिमाही में भी रोजगार में इजाफा हुआ होगा, इसमें शक है क्योंकि इस दौरान देश में नोटबंदी की मार चल रही थी। भारी तादाद में लोगों की नौकरियां गई थीं।

दरअसल मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर गैर कृषि अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी है और इसके आठ चुनिंदा सेक्टरों में देश के लगभग आधे कामगार काम करते हैं। इस सेक्टर में एक फीसदी की रोजगार वृद्धि ऊंट के मुंह में जीरे के समान है।
 
दरअसल भारत में उद्यमी मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में निवेश करने में नाकाम रहे हैं। विदेशी निवेशक भी हिचकिचा रहे हैं। इसका मतलब यह है कि न सिर्फ नई नौकरियां कम हो रही हैं बल्कि मौजूदा नौकरियां भी घट रही हैं। इससे न सिर्फ रोजगार सृजन की स्थिति खराब हो रही है बल्कि अर्थव्यवस्था की स्थिति भी डगमगा रही है। हाल की कुछ रिपोर्टों में कहा गया है कि आईटी, टेलीकॉम, बैंकिंग और वित्तीय सेक्टर जो हाल के वर्षों में रोजगार सृजन के प्रमुख सेक्टरों के तौर पर उभरे थे उनमें छंटनी शुरू हो गई है। एक रिपोर्ट में एक-डेढ़ साल में इन सेक्टरों से 10 लाख लोगों की छंटनी होगी। टेलीकॉम कंपनियों में विलय और अधिग्रहण का दौर चल रहा है। ऑटोमेशन का जोर है। मोदी जिस स्टार्ट-अप सेक्टर की तारीफ करते नहीं अघाते थे वे अपना बोरिया बिस्तरा समेटते नजर आ रहे हैं। यहां तक मोदी की तारीफ करने वाले विदेशी वित्तीय विश्लेषक भी अब रोजगार सृजन और देश की अर्थव्यवस्था को लेकर चिंता जताने लगे हैं।
 
भले ही सरकार अपनी पीठ थपथपा रही हो लेकिन अर्थव्यवस्था की चूलें हिली हुई हैं। यही वजह है कि नए रोजगार नहीं पैदा हो रहे हैं। हाल के औद्योगिक उत्पादन सूचकांक यानी आईआईपी आंकड़े इसके गवाह हैं। जनवरी 2015 से लेकर जनवरी 2017 के बीच इसमें सिर्फ एक फीसदी का इजाफा हुआ है। आरबीआई के आंकड़ों के मुताबिक इस दौरान बैंकों की ओर से उद्योगों को मिलने वाले कर्ज में 0.3 फीसदी का इजाफा हुआ हैं। वास्तविक उत्पादन को मापने वाले पैमाने बेसिक मूल्यों पर जीवीए में इजाफा घट गया है। 2015-16 में 7.8 फीसदी था जबकि 2016-17 में यह घट कर 6.7 फीसदी पर आ गया। अर्थव्यवस्था में गिरावट का यह एक और बड़ा सबूत है। यही वजह है कि मोदी सरकार के शासन में रोजगार में लगातार गिरावट आती जा रही है।
 
सौजन्य – मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी
 

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