कर्नाटक: CAA का विरोध दबाने के लिए देशद्रोह (सेडिशन) कानून का दुरूपयोग

Written by एल. एस. हरदेनिया | Published on: February 26, 2020
इस समय हमारे देश में देशद्रोह (सेडिशन) कानून का जबरदस्त दुरूपयोग हो रहा है। ऐसा ही एक मामला हाल में कर्नाटक में हुआ है। कर्नाटक के बीदर नामक नगर के एक स्कूल में एक नाटक खेला गया था। नाटक में नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) की आलोचना की गई थी। इस मुद्दे को लेकर स्कूल और उसके शिक्षकों पर सेडिशन कानून जड़ दिया गया और कई शिक्षकों और छात्रों के अभिभावकों को गिरफ्तार कर लिया गया। जिन्हें गिरफ्तार किया गया उनमें 9 वर्ष की एक छात्रा की मां नजमुनीसा भी शामिल थी। 



नजमुनीसा को सिर्फ इसलिए गिरफ्तार किया गया क्योंकि उसकी 9 साल की बेटी ने नाटक में सीएए के खिलाफ कुछ बातें कहीं थीं। स्कूल की प्रधानाध्यापिका फरीदा बेगम भी गिरफ्तार की गईं। दोनों को 17 दिन बाद जेल से रिहा किया गया। इन 17 दिनों के दौरान इस बच्ची को अपनी मां से अलग रहना पड़ा। बच्ची के पिता नहीं हैं इसलिए उसका लालन-पालन उसकी मां ही करती है। नजमुनीसा अपनी बेटी के साथ एक किराए के मकान में रहती है। इन सत्रह दिनों के दौरान यह बच्ची मकान मालिका के कमरे में सोती थी। बच्ची ने पत्रकारों को बताया कि इन सत्रह दिनों में वह एक भी रात सो नहीं पाई। ‘’मैं रात भर रोती रहती थी और सोचती रहती थी कि मेरी मां क्या कभी भी जेल से छूट पाएगी। जिस दिन मुझे पता लगा कि मेरी मां जेल से छूटने वाली है उस दिन मैं सोचती रही कि ज्योंहि मेरी मां बाहर आएगी मैं उसे गले लगाऊंगी और उसे खूब चूमूंगी।“ उसने बताया।‘‘

इस घटनाक्रम का एक दुःखद पक्ष और है। वह यह कि स्कूल के बच्चों से पुलिस ने नाटक और उससे संबंधित घटनाक्रम के बारे में पूछताछ की। सबसे आश्चर्यजनक और निंदनीय बात यह थी कि पुलिस पूछताछ के दौरान यूनीफार्म में थी और उसने जिन बच्चों से पूछताछ की उनकी उम्र 9 से 12 वर्ष के बीच थी। इस गंभीर मुद्दे को लेकर कर्नाटक हाईकोर्ट में याचिकाएं दायर की गईं। याचिकाओं पर विचार करते हुए हाईकोर्ट ने एडवोकेट जनरल से जानना चाहा कि क्या यह सच है कि पुलिस ने यूनीफार्म पहने हुए स्कूल के बच्चों से पूछताछ की। हाईकोर्ट की जिस बेंच में इस प्रकरण की सुनवाई हुई उसकी अध्यक्षता मुख्य न्यायाधीश कर रहे थे।

याचिकाकर्ताओं ने कहा कि इस घटनाक्रम का बच्चों के कोमल मनों पर विपरीत प्रभाव पड़ा इसलिए उनकी क्षतिपूर्ति की जाए। एक वरिष्ठ अधिवक्ता के अनुसार जिस ढंग से स्कूल के बच्चों से पूछताछ की गई उससे उनके मानवाधिकारों का उल्लंघन हुआ है। अधिवक्ता ने यह राय स्कूल के अधिकारियों, अभिभावकों, बच्चों व पुलिस अधिकारियों से बातचीत एवं सीसीटीवी फुटेज के परीक्षण के आधार पर दी। अधिवक्ता ने यह भी कहा कि जब इन बच्चों से पूछताछ की जा रही थी तब उनके अभिभावक भी उनके साथ नहीं थे।

हाईकोर्ट के अतिरिक्त बच्चों के अधिकारों के संरक्षण के लिए गठित आयोग ने भी पुलिस की कार्य करने के तरीके की कड़े शब्दों में आलोचना की। आयोग के अध्यक्ष ने सभी संबंधित पक्षों को पत्र लिखकर कहा कि पुलिस ने बच्चों के मानवाधिकारों का उल्लंघन किया है। आयोग ने यह भी माना कि पूछताछ के दौरान पुलिस ने आतंक का वातावरण बना दिया था। स्कूल के बच्चे डर गए थे। पूछताछ के बाद अनेक अभिभावकों ने अपने बच्चों को स्कूल भेजना बंद कर दिया।

यह संपूर्ण घटनाक्रम संपूर्ण देश के लिए शर्मनाक है। घटनाक्रम इतना शर्मनाक है कि राज्य सरकार द्वारा गठित आयोग तक ने उसकी निंदा की है। निंदा का मुख्य कारण यह है कि जो कुछ हुआ वह न सिर्फ देश के कानून की भावना के खिलाफ है वरन् अंतर्राष्ट्रीय कानूनों और परंपराओं के भी खिलाफ है।

यहां यह उल्लेखनीय है कि भारत ने बच्चों के अधिकार संबंधी दस्तावेज पर सन् 1992 में हस्ताक्षर किए थे। संयुक्त राष्ट्रसंघ ने सन् 1989 में इसे स्वीकार किया था। इस दस्तावेज के अनुसार जहां तक बच्चों के हितों का सवाल है हर मामले में उनके हितों की रक्षा की जानी चाहिए। संयुक्त राष्ट्रसंघ ने इस संबंध में दिशानिर्देश जारी किए हैं। बीदर के मामले में इन दिशा निर्देशों का उल्लंघन किया गया है जिसकी सारे देश और दुनिया में निंदा हो रही है।

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