तुलसीदास ने कहा-
मुखिया मुखु सो चाहिऐ खान पान कहुँ एक ।
पालइ पोषइ सकल अंग तुलसी सहित बिबेक |
Image: Indian Express
पर हमारा राजा शब्दों का जादूगर है। वह नसीबदार भी है। राजा के मुकुट धारण करते ही वैश्विक मंदी के कारण पेट्रोलियम पदार्थ के दाम गिरे। भक्त प्रजा आसाढ़ में सूखे पड़े खेत में गिरी पहली बारिश की तरह तृप्त हुई। राजा का जय जयकार करने लगी। राजा मोगैम्बो की तरह खुश हुआ। कुछ अभक्तों ने बताया कि यह राजा का कोई कमाल नहीं, यह तो महज संयोग है। राजा चिढ़ गया। वह चिल्लाया- देखा मेरा नसीब!, राजमुकुट पहनते ही डीजल पेट्रोल के भाव कम हुए। कुछ राजद्रोही मेरे नसीब को इसका कारण बता रहे हैं। यदि मेरा नसीब इतना तगड़ा है तो मुझे राजगद्दी पर बने रहना चाहिए कि नहीं बने रहना चाहिए मितरों....!!!
भोली जनता शब्दों में फंस गई ,कहा- राजा तो ठीक कह रहा है।
समय बीता, पेट्रोलियम पदार्थ महंगे हुए। आम आदमी के उपयोग की चीजें महंगी होने लगीं। प्रजा में खुसफुसाहट शुरू हो गयी। राजा चालाक था, बोला- सेना ही सबकुछ है।
भक्त प्रजा खुश हुई,- बोली, राजा की वाणी पत्थर की लक़ीर। महंगाई का क्या है !! यह तो राजद्रोहियों द्वारा फैलाया हुआ चोंचला है। भारत माता की जय।
जय से याद आया ,एक बच्ची भात मांगते हुए भूखी मार गयी। भात नहीं मिला। भात गोदामों में सड़ रहा है। राजा का निर्देश है भात उन्हीं को मिले जो पहचान रखते हैं। याद रहे, भूखे को नहीं,पहचान रखने वाले को। पहचान उन्हीं के पास है जो सम्पन्न है। बिना पहचान के दलित होते हैं, आदिवासी होते हैं, सड़क पर सोने वाले लोग होते हैं। ये भूखे और नंगे भी होते हैं। यही भात मांगते हैं ,पर इन्हें नहीं पता कि राजा का सपना डिजिटल इंडिया का है। डिजिटल इंडिया में भात मांगने वालों की, भूखे नंगों की कोई जगह नहीं।
राजा कहता है- न खाऊंगा, न खाने दूंगा। पर खाने वाले खा रहे हैं। राजा के सामने ही सिंहासन डालकर बैठे हैं और वहीं खा रहे हैं। वे राजा की जय कहते हैं और काजू की बर्फी का एक टुकड़ा मुंह मे रख लेते हैं। राजा लाचार है। वह जय कहने वाले को नहीं रोक सकता । खाने वाले अमित मात्रा में खा रहे हैं। वे एक बर्फी से शुरू करते हैं और देखते देखते पूरा डिब्बा खा जाते हैं। नीचे राजा के जूते के पास बच्चा भात, भात करता रहता है। राजा उसे अनदेखा कर काला चश्मा डाल कहीं दूसरी जगह निकल जाता है।
पहले राजा भेष बदलकर प्रजा का हाल जानने राज्यों में निकल जाया करते थे। उन्हें राज्य में बसने वालों की फिक्र होती थी। अब भी राजा भेष बदलकर निकलता है। कभी फकीर का तो कभी सैनिक का, पर प्रजा का हाल जानने नहीं, जनता का मिजाज समझने। वह उत्तरी प्रदेश की जनता का मिजाज भांप लेता है और कहता है- गौ माँ है। मेरे मुकुट पहनते ही कत्लखाने बंद होंगे।
वह पूर्वी प्रदेश की जनता का मिजाज जान जाता है और उसके चेले कहते हैं- यहां हमारा राजा नियुक्त होने पर गौमांस सस्ता होगा।
भक्त प्रजा किंकर्तव्यविमूढ़ सी खड़ी है। वह सोच रही है कि क्या प्रतिक्रिया दें। मैं देख रहा हूँ , राजा भी मुस्कुरा रहा है। भक्तों की मासूमियत पर ,उनके भोलेपन पर। सबकुछ जानते हुए भी जुबान पर लगे ताले पर।
पालइ पोषइ सकल अंग तुलसी सहित बिबेक |
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पर हमारा राजा शब्दों का जादूगर है। वह नसीबदार भी है। राजा के मुकुट धारण करते ही वैश्विक मंदी के कारण पेट्रोलियम पदार्थ के दाम गिरे। भक्त प्रजा आसाढ़ में सूखे पड़े खेत में गिरी पहली बारिश की तरह तृप्त हुई। राजा का जय जयकार करने लगी। राजा मोगैम्बो की तरह खुश हुआ। कुछ अभक्तों ने बताया कि यह राजा का कोई कमाल नहीं, यह तो महज संयोग है। राजा चिढ़ गया। वह चिल्लाया- देखा मेरा नसीब!, राजमुकुट पहनते ही डीजल पेट्रोल के भाव कम हुए। कुछ राजद्रोही मेरे नसीब को इसका कारण बता रहे हैं। यदि मेरा नसीब इतना तगड़ा है तो मुझे राजगद्दी पर बने रहना चाहिए कि नहीं बने रहना चाहिए मितरों....!!!
भोली जनता शब्दों में फंस गई ,कहा- राजा तो ठीक कह रहा है।
समय बीता, पेट्रोलियम पदार्थ महंगे हुए। आम आदमी के उपयोग की चीजें महंगी होने लगीं। प्रजा में खुसफुसाहट शुरू हो गयी। राजा चालाक था, बोला- सेना ही सबकुछ है।
भक्त प्रजा खुश हुई,- बोली, राजा की वाणी पत्थर की लक़ीर। महंगाई का क्या है !! यह तो राजद्रोहियों द्वारा फैलाया हुआ चोंचला है। भारत माता की जय।
जय से याद आया ,एक बच्ची भात मांगते हुए भूखी मार गयी। भात नहीं मिला। भात गोदामों में सड़ रहा है। राजा का निर्देश है भात उन्हीं को मिले जो पहचान रखते हैं। याद रहे, भूखे को नहीं,पहचान रखने वाले को। पहचान उन्हीं के पास है जो सम्पन्न है। बिना पहचान के दलित होते हैं, आदिवासी होते हैं, सड़क पर सोने वाले लोग होते हैं। ये भूखे और नंगे भी होते हैं। यही भात मांगते हैं ,पर इन्हें नहीं पता कि राजा का सपना डिजिटल इंडिया का है। डिजिटल इंडिया में भात मांगने वालों की, भूखे नंगों की कोई जगह नहीं।
राजा कहता है- न खाऊंगा, न खाने दूंगा। पर खाने वाले खा रहे हैं। राजा के सामने ही सिंहासन डालकर बैठे हैं और वहीं खा रहे हैं। वे राजा की जय कहते हैं और काजू की बर्फी का एक टुकड़ा मुंह मे रख लेते हैं। राजा लाचार है। वह जय कहने वाले को नहीं रोक सकता । खाने वाले अमित मात्रा में खा रहे हैं। वे एक बर्फी से शुरू करते हैं और देखते देखते पूरा डिब्बा खा जाते हैं। नीचे राजा के जूते के पास बच्चा भात, भात करता रहता है। राजा उसे अनदेखा कर काला चश्मा डाल कहीं दूसरी जगह निकल जाता है।
पहले राजा भेष बदलकर प्रजा का हाल जानने राज्यों में निकल जाया करते थे। उन्हें राज्य में बसने वालों की फिक्र होती थी। अब भी राजा भेष बदलकर निकलता है। कभी फकीर का तो कभी सैनिक का, पर प्रजा का हाल जानने नहीं, जनता का मिजाज समझने। वह उत्तरी प्रदेश की जनता का मिजाज भांप लेता है और कहता है- गौ माँ है। मेरे मुकुट पहनते ही कत्लखाने बंद होंगे।
वह पूर्वी प्रदेश की जनता का मिजाज जान जाता है और उसके चेले कहते हैं- यहां हमारा राजा नियुक्त होने पर गौमांस सस्ता होगा।
भक्त प्रजा किंकर्तव्यविमूढ़ सी खड़ी है। वह सोच रही है कि क्या प्रतिक्रिया दें। मैं देख रहा हूँ , राजा भी मुस्कुरा रहा है। भक्तों की मासूमियत पर ,उनके भोलेपन पर। सबकुछ जानते हुए भी जुबान पर लगे ताले पर।
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