जीएसटी की एक और मार, 1 जुलाई से महंगी दवाएं खरीदने के लिए तैयार रहें

Published on: June 14, 2017
गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स यानी जीएसटी लागू होने के बाद कई  जरूरी और जीवनरक्षक दवाओं के दाम बढ़ जाएंगे। सरकार ने ज्यादातर जरूरी दवाओं पर 12 फीसदी टैक्स का प्रावधान किया है। इस वक्त इन पर 9 फीसदी टैक्स लगता है। सिरदर्द, जुकाम  और बुखार में इस्तेमाल करीब 700 से ज्यादा दवाइयों पर जीएसटी में बढ़ी टैक्स दरों पर असर पड़ेगा। जाहिर है अब ये महंगी हो जाएंगी।



दरअसल, 30 जून 2017 तक जो दवा 100 रुपये में बिक रही है, उस पर लोकल टैक्स पांच रुपये लग रहा है। इस तरह यह दवा 105 रुपये की बैठती है। जीएसटी में नए फॉर्मूले से एमआरपी की 65 फीसदी पर 6 फीसदी एक्साइज ड्यूटी घटेगी। पांच फीसदी लोकल टैक्स घटेगा। इस तरह रीवाइज्ड प्राइस होगी 95.095 रुपये। इस पर 12 फीसदी जीएसटी होगा 11.41 रुपये। अब नई एमआरपी 107.31 रुपये होगी, जो पहले 105 रुपये थी।

नेशनल फार्मास्यूटिकल्स प्राइसिंग अथॉरिटी (एनपीपीए) का कहना है कि टैक्स बढ़ाने के बावजूद कंपनियां दवाओं की कीमत नहीं बढ़ाएगी। लेकिन दवा कंपनियों की लॉबी शायद ही सरकार की बात मानेगी। खास कर जीवनरक्षक और जरूरी दवाएं बनाने वाली कंपनियों के बीच कीमतें बढ़ाने के लेकर सुगबुगाहट शुरू हो गई है। सरकार ने इंसुलिन पर टैक्स घटा कर पांच फीसदी कर दिया है। लेकिन इंसुलिन पहले ही महंगे हैं।

भारत जेनेरिक दवा बनाने वाला सबसे बड़ा बाजार है। अमेरिका में कई दवाओं के पेटेंट खत्म होने के बाद भारतीय जेनेरिक दवा कंपनियों को एक बड़ा बाजार मिल गया था। लेकिन हाल के दिनों में एफडीए की ओर से गुणवत्ता मानकों को कड़ा करने के बाद कुछ भारतीय दवा कंपनियों को सप्लाई बंद करनी पड़ी है। भारतीय कंपनियां इस वक्त दबाव में हैं। उनका मुनाफा घटा है। एक वक्त पर भारतीय शेयर बाजार में दवा कंपनियों के शेयर काफी अच्छा प्रदर्शन कर रहे थे। लेकिन अब इनकी कीमतें लगातार गिरावट का दौर झेल रही हैं।  भले ही भारतीय बाजार में जरूरी दवाओं पर मूल्य नियंत्रण है लेकिन अगर जीएसटी बढ़ा तो लागत में इजाफे की वसूलीसीधे उपभोक्ताओं से ही होगी। सरकार को जरूरी दवाओं पर टैक्स बढ़ाने के बजाय कम करना चाहिए था। इंसुलिन पर सरकार ऐसा कर चुकी है। उसे जरूरी और जीवनरक्षक दवाओं पर भी टैक्स कम करना चाहिए था। ताकि गरीब और जरूरतमंद लोगों को सस्ती दवाइयां मिल सके। लेकिन सबका साथ और सबका विकास का नारा देने वाली सरकार दवाओं के दाम घटाने में नाकाम होती दिख रही है।
 

बाकी ख़बरें