आदमी सिर्फ स्त्री विरोधी नहीं होता, वह जातिवादी, नस्लभेदी, साम्प्रदायिकता का कॉम्बो पैक होता है...

Written by Mithun Prajapati | Published on: November 7, 2020
साधो, एक चीज बड़ी कचोट रही है आजकल। किसी भी मामले में लोगों का बयान दे देना। लोग बयान देकर चर्चा में आ जाते हैं और मुख्य मुद्दे गायब हो जाते हैं। 



साधो अभी हाल ही में शक्तिमान जी का एक बयान चर्चा में है जो कि मी टू मूवमेंट से संबंधित है। उन्होंने जो कहा है उसका सार ये है कि महिलाएं जबसे घर से निकलकर काम करने लगी हैं तब से इस तरह की बातें सामने आने लगी हैं। महिलाएं पुरुषों से बराबरी करना चाहती हैं यही सबकी जड़ है। उन्होंने यहां तक कह दिया कि महिलाओं के बाहर निकलकर काम करने से बच्चे सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं।

साधो इसकी चर्चा करके मुख्य मुद्दे से भटक रहा हूँ। आज के दिन के लिए चर्चा के बहुत से विषय थे। बीती रात लखनऊ में सामाजिक कार्यकर्ता जैनब सिद्दीकी के यहां पुलिसिया दमन हुआ है। सुनने में आया कि उनके घर पुलिस वालों ने जाकर पूछा कि आपकी बेटी CAA NRC आंदोलन में है ? परिवार की तरफ से जवाब दिया गया कि वह महिला संगठन में काम करती है। इसके कुछ ही घण्टे बाद उनके घर पुलिस का तांडव हुआ।  

साधो, किसी बिल का विरोध करना, सरकार की वह नीति या फैसला जिससे हम असहमत हैं उसका विरोध करना, अपने हक के लिए या दूसरों को न्याय दिलाने लिए प्रदर्शन करना असंवैधानिक नहीं होता। यह भारत गणराज्य में न्याय पाने का तरीका है। गांधीवाद है यह। पर हम देख रहे हैं जबसे CAA NRC का विरोध शुरू हुआ है तबसे न जाने कितने लोगों को न सिर्फ असंवैधानिक तरीके से जेल में डाला गया बल्कि उनको प्रताड़ित किया गया है। कोरोना के कारण CAA NRC के आंदोलन इस समय रोक दिए गए हैं। पर सरकारों का दमन चुन चुन का जारी है। उत्तर प्रदेश सरकार ने दमन के नाम पर कीर्तिमान हासिल किया है। 

साधो यह आज के  चर्चा का विषय होना था पर सबके अपने विषय हैं। कोई अमरीकी चुनाव में व्यस्त है कोई एक एंकर की गिरफ्तारी पर चुटकुले बना रहा है। मुझे चिल्लाने धमकाने वाले एंकर से कोई सहानुभूति नहीं है। पर मैं इस गिरफ्तारी को अलग नजरिए से देखता हूँ। यह गिरफ्तारी एक पुराने मामले में हुई है यह सत्य है। इसमें  पोलिटिकल एंगल भी है इसे नकारा नहीं जा सकता। उसकी गिरफ्तारी से एक पक्ष में रोष है तो दूसरा चुटकुले बना रहा। मैं भविष्य के बारे में सोच रहा हूँ जब इस तरह की चीजें पक्ष विपक्ष खुलकर खेलने लगेंगे और उसकी ज़द में वे पत्रकार आएंगे जो ईमानदारी से पत्रकारिता कर रहे हैं। ईमानदारी से पत्रकारिता करने वालों पर तो अब भी कार्यवाहियां हो रही हैं। अभिसार शर्मा, प्रसून वाजपेयी जैसे बड़े नाम वाले चेहरे चैनल से कैसे बाहर हुए यह कौन नहीं जानता। छोटे शहरों, गांवों , कस्बों में ईमानदारी से बेहतरीन पत्रकारिता करने वाले पत्रकारों के साथ आये दिन मारपीट की खबर सुनने को मिलती रहती है। ये मारने पीटने वाले इतनी हिम्मत कहाँ से लेते हैं? जाहिर है सत्तासीन पार्टी से। 

तो साधो, बात मैं मुकेश खन्ना उर्फ शक्तिमान जी की कर रहा था जो कि नहीं करनी चाहिए पर उनकी बात में पूरे एक समाज की मानसिकता दिखती है तो बात कहनी है। शक्तिमान ने जो मी टू के बारे में कहा है वह बस महिलाओं के बारे में ही नहीं है। वह दलितों के बारे में है, आदिवासियों के बारे में है, हर तरह के माइनोरिटीज के बारे में है..... 

दरअसल हर वे लोग जो पिछड़े हैं, हासिये पर हैं, और आगे आ रहे समाज में बराबरी कर अपना अधिकार मांग रहे, हासिल कर रहे वो सब इस तरह की मानसिकता वालों को खटकते हैं। 

कहेंगे- देखो ,पहले तो नहीं दलित आंदोलन करते थे, पहले तो नहीं आदिवासी सड़कों पर आते थे। ये जब से पढ़ने लिखने लगे हैं तब से इन्हें हर चीज उत्पीड़न नजर आने लगी है। फला आदमी दलित था। हमारे हल जोते, टट्टी उठाई, जानवर फेंके कभी बुरा न लगा उसे। हमारे फादर तो गाली तक दे देते थे पर मजाल हो कि कभी फला ने सिर उठाया हो फादर के सामने।  आज उसका लड़का चार अच्छर पढ़ क्या लिया बराबरी की बात करने लगा। 

साधो, बोलती स्त्रियां, दलित, मजदूर... भला किस प्रिविलेज धारी को अच्छे लगेंगे ? 

" आदमी सिर्फ स्त्री विरोधी नहीं होता, वह जातिवादी, साम्प्रदायिक, नस्लभेदी.... एक साथ होता है। यह कॉम्बो पैक है एक साथ आता है। एक जाता है तो सब जाने लगते हैं।"

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