कैद में कश्मीर: बंद और विरोध के 52 दिन, जारी है सिलसिला

Written by Mahendra Mishra | Published on: September 27, 2019
दिल्ली से सुबह 5.20 बजे उड़ान भर कर हमारा विमान तकरीबन पौने सात बजे श्रीनगर एयरपोर्ट पर पहुंच गया। विमान की परिचारिका ने तापमान के 12 डिग्री सेल्सियस होने की घोषणा की तो लगा कि घाटी बहुत सर्द है। लेकिन न तो स्थायी तौर पर यह मौसम के लिए सच था और न ही घाटी के मौहाल के लिहाज से। श्रीनगर एयरपोर्ट से बाहर आने पर शहर जाने के लिए महंगी प्रीपेड टैक्सी के अलावा हमारे पास कोई दूसरा चारा नहीं था। क्योंकि सरकार चाहे जितनी स्थितियों के सामान्य होने का दावा करे लेकिन सच्चाई यही है कि 52 दिन बाद भी घाटी में अभी पब्लिक ट्रासपोर्ट नहीं शुरू हो सका है। लिहाजा शहर जाने के लिए न तो कोई बस थी और न ही कोई दूसरा साधन।



चप्पे-चप्पे पर जवानों की तैनाती अगर कोई मुहावरा है तो उसे यहां सच होते देखा जा सकता है। एयरपोर्ट से श्रीनगर शहर के बीच की दूरी तकरीबन 9 किमी की है। शहर के रास्ते में शायद ही कोई मोड़ या फिर गली पड़ी हो जहां तीन से चार जवान तैनात न रहे हों। इसके अलावा हर आधे फर्लांग पर एक बुलेट प्रूफ जैकेटधारी हाथों में मशीन गन लिए खड़ा था। जिसकी निगाहें चौकस थीं और वह हर आती-जाती चीज पर पैनी नजर बनाए हुए था।

तमाम बातों के अलावा मोदी सरकार को एक बात का श्रेय तो जरूर दिया जाना चाहिए कि उसने समय को भी पीछे धकेल दिया। इंटरनेट, मोबाइल और दूर संचार की दूसरी सेवाओं को ठप कर घाटी को उस दौर में पहुंचा दिया जब लोगों के पास संचार के लिए डाक का ही सहारा हुआ करता था। शुरू में लैंडलाइन भी बंद थी लेकिन बाद में उसे खोल दिया गया। लेकिन वह इसलिए कारगर साबित नहीं हो रही है क्योंकि लोगों के पास है ही नहीं। क्योंकि मोबाइल आने के बाद ज्यादातर लोगों ने उसे हटा दिया है। लिहाजा सब कुछ कबूतरों के चिट्ठी के दौर में पहुंच गया है। बहरहाल पहले से हुई बातचीत के आधार पर दो कश्मीरी पत्रकारों के बताए स्थान प्रेस क्लब पर हम आधे घंटे बाद ही पहुंच गए। और 11 बजे उनसे मुलाकात के पूर्वनिर्धारित समय का इंतजार करते रहे। इस बीच इधर-उधर देखने पर लालचौक के पास पोलो व्यू इलाके में स्थित क्लब के सामने बिल्कुल सुबह-सुबह कुछ खुली दुकानों को देखकर बेहद आश्चर्य हुआ।


उनमें से एक कपड़े की दुकान के मालिक से बात करने पर पता चला कि कुछ दिन पहले ही उन लोगों ने कुछ दुकानों को सुबह 7 से लेकर 9 बजे तक खोलने का फैसला किया है। हालांकि इनकी संख्या बहुत कम है। उनका कहना था कि (सुरक्षा कारणों से नाम नहीं बताया जा रहा) “ऐसा हमने लोगों की जरूरत को ध्यान में देखते हुए किया है। इससे जरूरतमंद लोग सामानों की खरीदारी कर सकते हैं। दुकान खोलने के पीछे एक दूसरा मकसद भी है। ऐसा करने से दुकानों में पड़े सामानों में फ्रेश हवा लग जाती है जिससे सामानों के खराब होने का खतरा टल जाता है।” ये सभी दुकानें 9 बजे सुबह ही बंद हो जाती हैं और फिर पूरा दिन और आगे तक बंद रहती हैं। दुकानों के बंदी का यह सिलसिला 5 अगस्त के बाद ही शुरू हो गया था जब केंद्र ने अनुच्छेद 370 हटाने का फैसला किया था। तब से यह बंद अब तक जारी है।

दिलचस्प बात यह है कि इसका न तो किसी ने आह्वान किया है। और न ही किसी ने अलग से कोई निर्देश दिया। जनता की ओर से लिए गए इस फैसले को सबका सक्रिय समर्थन हासिल है। श्रीनगर के लाल चौक से लेकर डाउनटाउन के विभिन्न इलाकों समेत सौरा तक की सभी दुकानें पिछले 52 दिनों से बंद हैं। पूरा काम काज ठप है। लोगों को अपनी दुकानों के सामने बैठे हुए या फिर कहीं आस-पास ताश खेलते या किसी दूसरे मनोरंजन के साधन के साथ देखा जा सकता है।

ब्रीफकेस और सामानों को प्रेस क्लब के बगल में स्थित होटल में रखने के बाद हम लोगों ने दोनों पत्रकार मित्रों के साथ सबसे पहले डाउनटाउन इलाके में जाने का फैसला किया। डाउनटाउन श्रीनगर का सबसे पुराना इलाका है। तकरीबन 3 वर्ग किलोमीटर में फैले इस इलाके के ज्यादातर मकान पुराने हैं। यही इलाका कश्मीर में सभी आंदोलनों का केंद्र रहा है। वह अलगाववादी हो या कि जनता के किसी मुद्दे पर खड़ा हुआ राजनीतिक आंदोलन। यह इलाका अगर मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रुबिया सईद के अपहरण और फिर आतंकियों के बदले उसके छोड़े जाने का गवाह रहा है। तो इसने मौलवी उमर फारूक की हत्या और फिर उनके जनाजे के जुलूस पर सुरक्षा बलों की गोली चलने होने वाली 50 से ज्यादा लोगों की मौतों को अपनी बिल्कुल नंगी आंखों से देखा है।

नौहट्टा में स्थित जामा मस्जिद न केवल बहुत पुरानी और सबसे बड़ी है बल्कि धार्मिक लिहाज से भी इसका बेहद महत्व है। तकरीबन 500 साल पुरानी इस मस्जिद का निर्माण सुल्तान सिकंदर ने करवाया था। आक्रोश के भड़कने की आशंका का यह नतीजा ही है कि प्रशासन ने लोगों को अभी इस मस्जिद में नमाज पढ़ने की इजाजत नहीं दी है। लिहाजा आज भी मस्जिद बंद है और उसके चारों तरफ सुरक्षा बलों के जवानों की तैनात कर दिया गया है। मस्जिद के सामने समेत डाउनटाउन की सभी दीवारों पर सरकार और भारत विरोधी नारे लिखे देखे जा सकते हैं।

इस बीच एक खास बात यह हुई है कि उन नारों को सुरक्षा बलों के जवानों ने या तो मिटा दिया है या फिर उसमें कुछ ऐसी तब्दीली कर दी है जिससे उसका मतलब बिल्कुल बदल जाए। मसलन अगर अंग्रेजी में “गो इंडिया ” लिखा है तो उसे बदलकर “गुड इंडिया” कर दिया गया है।

यहां इन इलाकों में वीडियो शूट करना या फिर कैमरे से तस्वीरें लेना किसी खतरे से खाली नहीं है। ऐसा करने पर सुरक्षा बल के जवान एतराज जताने के साथ ही गिरफ्तारी तक कर सकते हैं। या फिर ऐसा करने वाला शख्स पहले से ही मीडिया से नाराज जनता के रोष का शिकार बन सकता है। हालांकि हम वीडियो शूट करने में कामयाब रहे। जिसे यहां देखा भी जा सकता है। उसके बाद जब हम लोग सामने मौजूद कुछ लोगों से बात कर रहे थे। उसी समय कुछ दूर से पत्थरबाजी शुरू हो गयी। हालांकि हम लोगों में से कोई उसकी चपेट में नहीं आया और न ही किसी दूसरे को चोट लगी। इस घटना के साथ ही सुरक्षा बलों के जवान सक्रिय हो गए और उन्होंने वज्र वाहन से पेट्रोलिंग शुरू कर दी। और पूरी फुर्ती से पूरे इलाके को कार्डन ऑफ कर दिया। पत्थरबाजी शुरू होते ही हम लोग उससे दूर भागे। और वहां से कुछ पीछे आकर खड़े हो गए।

जहां मौजूद लोगों ने बताया कि उसी गली से तकरीबन 25 युवकों को हिरासत में लिया गया है। और उनका अभी तक कोई पता नहीं चल सका है। स्थानीय लोगों का कहना था कि यह पत्थरबाजी उसी रोष का नतीजा है। लोगों में सरकार के खिलाफ गुस्सा किस कदर बढ़ गया है उसका एक दूसरा उदाहरण भी देखने को मिला। जब मोटरसाइकिल पर अपने पीछे बैठाए चार साल के अपने बच्चे की ओर इशारा करते हुए एक शख्स ने कहा कि “इससे पूछा जाए कि क्या चाहता है तो यह भी आजादी बोलेगा।”


…..जारी

(श्रीनगर से लौटकर जनचौक के संपादक महेंद्र मिश्र की रिपोर्ट।)

बाकी ख़बरें