"अप्पासाहेब पवार, जो 'पारधी समुदाय' से ताल्लुक रखते हैं, एक दशक से अधिक समय से जिले में 'पक्का' घर बनाने को 'जमीन के अधिकार' के लिए लड़ रहे थे। रविवार को उनका निधन हो गया। इस घटना के बाद सरकार और प्रशासन जागा। कलेक्टर ने पत्र जारी कर कहा कि एनजीओ, जिला परिषद, रोटरी और लायंस क्लब के सहयोग से जमीन की खरीद शुरू की जाएगी। वहीं, मौत के एक दिन राज्य सरकार ने कहा है कि मामले की जांच के लिए एक समिति का गठन किया जाएगा। उधर महाराष्ट्र के ही सोलापुर जिले में भूख हड़ताल के दौरान एक दिव्यांग बच्चे की मौत हो गई।"
महाराष्ट्र के बीड जिले में कलेक्टर कार्यालय के बाहर भूख हड़ताल पर बैठे एक 50 वर्षीय आदिवासी शख्स अप्पासाहेब पवार की मौत हो गई। ये शख्स ‘पक्का’ घर बनाने के लिए जमीन के अधिकार की मांग कर रहा था। आदिवासी हलकों का प्रमुख न्यूज पोर्टल मैं भी भारत MBB की एक रिपोर्ट के अनुसार, अप्पासाहेब पवार की मृत्यु के दो दिन पहले ही उनकी पत्नी ने एक पत्र में प्राधिकरण को उनकी बिगड़ती स्वास्थ्य स्थिति के बारे में चेतावनी दी थी लेकिन शासन प्रशासन नहीं जागा। उसकी मौत के एक दिन बाद राज्य सरकार ने कहा है कि इस मामले की जांच के लिए एक समिति का गठन किया जाएगा। वहीं, घटना के बाद कलेक्टर ने पत्र जारी कर कहा है कि एनजीओ, जिला परिषद, रोटरी और लायंस क्लब के सहयोग से जमीन की खरीद शुरू की जाएगी। पत्र में कहा गया कि इसके लिए ‘डिप्टी कमिश्नर की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की जाएगी।’
अप्पासाहेब पवार, जो ‘पारधी समुदाय’ से ताल्लुक रखते हैं, एक दशक से अधिक समय से जिले में ‘पक्का’ घर बनाने के लिए जमीन के अधिकार के लिए लड़ रहे थे। 30 से अधिक वर्षों से पवार और उनका परिवार एक दूरदराज के इलाके में एक अस्थायी झोपड़ी में रह रहा है। बाद में ग्राम पंचायत ने सबरी आदिवासी घरकुल योजना के तहत घर बनाने के लिए आवेदन करने के लिए आवश्यक दस्तावेज जारी किए।
महिला किसान अधिकार मंच के अशोक लक्ष्मण तंगड़े ने बताया, “योजना के तहत पक्का घर बनाने के लिए उन्हें पहली किश्त भी मिली थी। उस पैसे से उन्होंने सीमेंट और बालू भी मंगवा लिया था लेकिन जैसे ही उन्होंने निर्माण शुरू किया स्थानीय लोगों ने विरोध शुरू कर दिया। उन्होंने दावा किया कि जमीन किसी और की है और इसके बाद निर्माण का काम रोक दिया।”
पक्के घर के लिए जमीन के अधिकार को भूख हड़ताल कर रहे अप्पासाहेब पवार की मौत ने सभी को झकझोर दिया। विपक्ष ने भी पूरे मामले पर शिंदे सरकार को आड़े हाथ लिया। एनसीपी नेता सुप्रिया सुले ने ट्वीट किया, “यह बड़े आक्रोश की बात है कि एक गरीब व्यक्ति जो हक के लिए घर मांगता है और उसे सरकार के दरवाजे पर अपनी जान गंवानी पड़ रही है। कहा, "मैं मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे से विनम्रतापूर्वक अनुरोध करती हूं कि कृपया मामले की उच्च स्तरीय जांच कराएं और उनकी मौत के लिए जिम्मेदार प्रशासन के लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करें।”
डीनोटिफाइड आदिवासी है महाराष्ट्र का पारधी समुदाय
खास है कि पारधी समुदाय डीनोटिफाइड आदिवासी समुदायों की श्रेणी में आता है। यानि ब्रिटिश राज में इस समुदाय को अपराधी प्रवृति के लोगों का समुदाय माना गया था। 1952 में भारत सरकार ने इस तरह के सभी आदिवासी समुदायों को डीनोटिफाइड घोषित कर दिया। यानि अब औपचारिक तौर पर इन समुदायों को जन्मजात अपराधी नहीं माना जा सकता था। लेकिन इन समुदायों के साथ पहले अगर नोटिफाइड ट्राइबल का टैग जुड़ा था तो अब इन्हें डीनोटिफाइड ट्राइबल कहा जाता है। लेकिन इस घटना से साफ है कि समाज और सरकार का रवैया इन समुदायों के प्रति अभी भी बदला नहीं है।
यही सब कारण है कि जहां पर ये समुदाय रहते हैं उसके आस-पास इन्हें रोज़गार मिलना बेहद मुश्किल होता है। इस समुदाय में शिक्षा का स्तर कमज़ोर होने की भी सबसे बड़ी वजह, समाज के प्रति इनके बारे में पूर्वाग्रह है। MBB टीम के अनुसार, वह महाराष्ट्र के ऐसे ही एक समुदाय कातकरी के कुछ परिवारों से मिली थी। यहाँ उन्हें बताया गया कि उनके पास खेती लिए बेहद छोटे खेत हैं। आस-पास के बाज़ारों में उन्हें रोज़गार नहीं मिलते हैं। क्योंकि बाज़ार में दुकानदार यही मानते हैं कि कातकरी चोरी करते हैं।
महाराष्ट्र: सोलापुर में भूख हड़ताल के दौरान दिव्यांग बच्चे की मौत
बीड जिले में आदिवासी की मौत के साथ महाराष्ट्र के सोलापुर जिले में एक और घटना हुई जिसने सभी को सोचने को मजबूर कर दिया। सोलापुर जिले में भूख हड़ताल के दौरान एक दिव्यांग बच्चे की मौत हो गई। यहां बरशी तालुका के मौजे चिखरदे में 15 नवंबर से ग्राम पंचायत द्वारा विकलांगों को दी गई राशि का भुगतान नहीं होने पर कब्रिस्तान में भूख हड़ताल चल रही थी। इस भूख हड़ताल के दौरान एक युवा दिव्यांग बालक संभव रामचंद्र कुर्ले (10) की मौत हो गई जिससे पूरे सोलापुर में हड़कंप मच गया।
जिला परिषद सीईओ दिलीप स्वामी ने बरसी तालुका पंचायत समिति के समूह विकास अधिकारियों को अनिवार्य अवकाश पर भेजने का आदेश दिया है। इसके साथ ही तहसीलदार सुनील शेरखाने ने लिखित आश्वासन दिया है कि तीन सदस्यीय कमेटी द्वारा एक माह के अंदर जांच पूरी कर संबंधित अधिकारियों व कर्मचारियों पर आरोप पत्र दाखिल किया जायेगा। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इस लिखित आश्वासन के बाद कुरुले परिवार ने करीब 28 घंटे के बाद विकलांग बच्चे के शव का चिकरदे गांव के कब्रिस्तान में अंतिम संस्कार कर दिया।
चिकरदे गांव में अनशन के दौरान रविवार शाम करीब चार बजे दिव्यांग संभव रामचंद्र कुरुले (10) की मौत हो गई। मौत के बाद लड़के के पिता रामचंद्र कुरुले और अनशनकारियों ने स्टैंड लिया कि वे सरकारी अधिकारियों के खिलाफ गैर-इरादतन हत्या का मामला दर्ज किए बिना दाह संस्कार नहीं करेंगे। इसको लेकर बरशी तालुका में भारी गहमागहमी हो गई। सोमवार सुबह प्रहार संगठन के जिलाध्यक्ष संजीवनी बारंगुले ने पुलिस के सामने अपने शरीर पर डीजल की बोतल उड़ेल कर आत्मदाह का प्रयास किया, जबकि प्रशासन कुरुले परिवार के घर के सामने चर्चा कर रहा था। इस बार महिला पुलिस ने उन्हें रोक लिया और एक बड़ा हादसा टल गया।
कुर्ले परिवार के घर के सामने भारी पुलिस बल तैनात
रविवार शाम चार बजे के बाद कानून व्यवस्था के दृष्टिगत कुर्ले परिवार के घर के सामने पुलिस बल तैनात कर दिया। इस दौरान जिलाधिकारी हेमंत निकम, तहसीलदार सुनील शेरखाने, पुलिस उपनिरीक्षक जलिंदर नलकुल, पुलिस निरीक्षक अन्नासाहेब मांजारे, वैराग, पंगरी, बरसी तालुका थानाधिकारी व पुलिस कर्मी बड़ी संख्या में मौजूद रहे। वहीं, बीडीओ को अनिवार्य अवकाश पर भेज दिया गया और जांच शुरू हो गई। जिला परिषद सीईओ दिलीप स्वामी द्वारा बारशी तालुका में पदस्थापित समूह विकास अधिकारी को तत्काल अनिवार्य अवकाश पर भेज दिया गया है। तहसीलदार सुनील शेरखाने ने लिखित आश्वासन दिया है कि तीन सदस्यीय कमेटी द्वारा एक माह के अंदर जांच पूरी कर संबंधित अधिकारियों व कर्मचारियों पर आरोप पत्र दाखिल किया जायेगा।
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महाराष्ट्र के बीड जिले में कलेक्टर कार्यालय के बाहर भूख हड़ताल पर बैठे एक 50 वर्षीय आदिवासी शख्स अप्पासाहेब पवार की मौत हो गई। ये शख्स ‘पक्का’ घर बनाने के लिए जमीन के अधिकार की मांग कर रहा था। आदिवासी हलकों का प्रमुख न्यूज पोर्टल मैं भी भारत MBB की एक रिपोर्ट के अनुसार, अप्पासाहेब पवार की मृत्यु के दो दिन पहले ही उनकी पत्नी ने एक पत्र में प्राधिकरण को उनकी बिगड़ती स्वास्थ्य स्थिति के बारे में चेतावनी दी थी लेकिन शासन प्रशासन नहीं जागा। उसकी मौत के एक दिन बाद राज्य सरकार ने कहा है कि इस मामले की जांच के लिए एक समिति का गठन किया जाएगा। वहीं, घटना के बाद कलेक्टर ने पत्र जारी कर कहा है कि एनजीओ, जिला परिषद, रोटरी और लायंस क्लब के सहयोग से जमीन की खरीद शुरू की जाएगी। पत्र में कहा गया कि इसके लिए ‘डिप्टी कमिश्नर की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की जाएगी।’
अप्पासाहेब पवार, जो ‘पारधी समुदाय’ से ताल्लुक रखते हैं, एक दशक से अधिक समय से जिले में ‘पक्का’ घर बनाने के लिए जमीन के अधिकार के लिए लड़ रहे थे। 30 से अधिक वर्षों से पवार और उनका परिवार एक दूरदराज के इलाके में एक अस्थायी झोपड़ी में रह रहा है। बाद में ग्राम पंचायत ने सबरी आदिवासी घरकुल योजना के तहत घर बनाने के लिए आवेदन करने के लिए आवश्यक दस्तावेज जारी किए।
महिला किसान अधिकार मंच के अशोक लक्ष्मण तंगड़े ने बताया, “योजना के तहत पक्का घर बनाने के लिए उन्हें पहली किश्त भी मिली थी। उस पैसे से उन्होंने सीमेंट और बालू भी मंगवा लिया था लेकिन जैसे ही उन्होंने निर्माण शुरू किया स्थानीय लोगों ने विरोध शुरू कर दिया। उन्होंने दावा किया कि जमीन किसी और की है और इसके बाद निर्माण का काम रोक दिया।”
पक्के घर के लिए जमीन के अधिकार को भूख हड़ताल कर रहे अप्पासाहेब पवार की मौत ने सभी को झकझोर दिया। विपक्ष ने भी पूरे मामले पर शिंदे सरकार को आड़े हाथ लिया। एनसीपी नेता सुप्रिया सुले ने ट्वीट किया, “यह बड़े आक्रोश की बात है कि एक गरीब व्यक्ति जो हक के लिए घर मांगता है और उसे सरकार के दरवाजे पर अपनी जान गंवानी पड़ रही है। कहा, "मैं मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे से विनम्रतापूर्वक अनुरोध करती हूं कि कृपया मामले की उच्च स्तरीय जांच कराएं और उनकी मौत के लिए जिम्मेदार प्रशासन के लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करें।”
डीनोटिफाइड आदिवासी है महाराष्ट्र का पारधी समुदाय
खास है कि पारधी समुदाय डीनोटिफाइड आदिवासी समुदायों की श्रेणी में आता है। यानि ब्रिटिश राज में इस समुदाय को अपराधी प्रवृति के लोगों का समुदाय माना गया था। 1952 में भारत सरकार ने इस तरह के सभी आदिवासी समुदायों को डीनोटिफाइड घोषित कर दिया। यानि अब औपचारिक तौर पर इन समुदायों को जन्मजात अपराधी नहीं माना जा सकता था। लेकिन इन समुदायों के साथ पहले अगर नोटिफाइड ट्राइबल का टैग जुड़ा था तो अब इन्हें डीनोटिफाइड ट्राइबल कहा जाता है। लेकिन इस घटना से साफ है कि समाज और सरकार का रवैया इन समुदायों के प्रति अभी भी बदला नहीं है।
यही सब कारण है कि जहां पर ये समुदाय रहते हैं उसके आस-पास इन्हें रोज़गार मिलना बेहद मुश्किल होता है। इस समुदाय में शिक्षा का स्तर कमज़ोर होने की भी सबसे बड़ी वजह, समाज के प्रति इनके बारे में पूर्वाग्रह है। MBB टीम के अनुसार, वह महाराष्ट्र के ऐसे ही एक समुदाय कातकरी के कुछ परिवारों से मिली थी। यहाँ उन्हें बताया गया कि उनके पास खेती लिए बेहद छोटे खेत हैं। आस-पास के बाज़ारों में उन्हें रोज़गार नहीं मिलते हैं। क्योंकि बाज़ार में दुकानदार यही मानते हैं कि कातकरी चोरी करते हैं।
महाराष्ट्र: सोलापुर में भूख हड़ताल के दौरान दिव्यांग बच्चे की मौत
बीड जिले में आदिवासी की मौत के साथ महाराष्ट्र के सोलापुर जिले में एक और घटना हुई जिसने सभी को सोचने को मजबूर कर दिया। सोलापुर जिले में भूख हड़ताल के दौरान एक दिव्यांग बच्चे की मौत हो गई। यहां बरशी तालुका के मौजे चिखरदे में 15 नवंबर से ग्राम पंचायत द्वारा विकलांगों को दी गई राशि का भुगतान नहीं होने पर कब्रिस्तान में भूख हड़ताल चल रही थी। इस भूख हड़ताल के दौरान एक युवा दिव्यांग बालक संभव रामचंद्र कुर्ले (10) की मौत हो गई जिससे पूरे सोलापुर में हड़कंप मच गया।
जिला परिषद सीईओ दिलीप स्वामी ने बरसी तालुका पंचायत समिति के समूह विकास अधिकारियों को अनिवार्य अवकाश पर भेजने का आदेश दिया है। इसके साथ ही तहसीलदार सुनील शेरखाने ने लिखित आश्वासन दिया है कि तीन सदस्यीय कमेटी द्वारा एक माह के अंदर जांच पूरी कर संबंधित अधिकारियों व कर्मचारियों पर आरोप पत्र दाखिल किया जायेगा। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इस लिखित आश्वासन के बाद कुरुले परिवार ने करीब 28 घंटे के बाद विकलांग बच्चे के शव का चिकरदे गांव के कब्रिस्तान में अंतिम संस्कार कर दिया।
चिकरदे गांव में अनशन के दौरान रविवार शाम करीब चार बजे दिव्यांग संभव रामचंद्र कुरुले (10) की मौत हो गई। मौत के बाद लड़के के पिता रामचंद्र कुरुले और अनशनकारियों ने स्टैंड लिया कि वे सरकारी अधिकारियों के खिलाफ गैर-इरादतन हत्या का मामला दर्ज किए बिना दाह संस्कार नहीं करेंगे। इसको लेकर बरशी तालुका में भारी गहमागहमी हो गई। सोमवार सुबह प्रहार संगठन के जिलाध्यक्ष संजीवनी बारंगुले ने पुलिस के सामने अपने शरीर पर डीजल की बोतल उड़ेल कर आत्मदाह का प्रयास किया, जबकि प्रशासन कुरुले परिवार के घर के सामने चर्चा कर रहा था। इस बार महिला पुलिस ने उन्हें रोक लिया और एक बड़ा हादसा टल गया।
कुर्ले परिवार के घर के सामने भारी पुलिस बल तैनात
रविवार शाम चार बजे के बाद कानून व्यवस्था के दृष्टिगत कुर्ले परिवार के घर के सामने पुलिस बल तैनात कर दिया। इस दौरान जिलाधिकारी हेमंत निकम, तहसीलदार सुनील शेरखाने, पुलिस उपनिरीक्षक जलिंदर नलकुल, पुलिस निरीक्षक अन्नासाहेब मांजारे, वैराग, पंगरी, बरसी तालुका थानाधिकारी व पुलिस कर्मी बड़ी संख्या में मौजूद रहे। वहीं, बीडीओ को अनिवार्य अवकाश पर भेज दिया गया और जांच शुरू हो गई। जिला परिषद सीईओ दिलीप स्वामी द्वारा बारशी तालुका में पदस्थापित समूह विकास अधिकारी को तत्काल अनिवार्य अवकाश पर भेज दिया गया है। तहसीलदार सुनील शेरखाने ने लिखित आश्वासन दिया है कि तीन सदस्यीय कमेटी द्वारा एक माह के अंदर जांच पूरी कर संबंधित अधिकारियों व कर्मचारियों पर आरोप पत्र दाखिल किया जायेगा।
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