मध्य प्रदेश: 'बग़ैर नोटिस' चला दलितों के घर बुलडोज़र, तीन कमरे में रहने को मजबूर 10 परिवार

Written by रवि शंकर दुबे | Published on: June 23, 2023
सागर में प्रशासन की ओर से करीब 10 दलित परिवारों के घर पर बुलडोज़र चला दिया गया। लगातार हो रही बरसात के बीच उन्हें स्कूल के तीन कमरों में ठहराया गया है, जहां खाने-पीने का इंतज़ाम भी मुश्किल हो रहा है।



एक ओर विदेश में जाकर प्रधानमंत्री कहते हैं कि हमारा देश लोकतांत्रिक प्रक्रिया से चलता है, हमारे यहां जाति, धर्म, नस्ल या किसी भी तरह का भेदभाव नहीं किया जाता है, जबकि दूसरी ओर देश में दलितों और अल्पसंख्यकों को घरों पर लगातार बुलडोज़र की कार्रवाई उनके इस दावे को कठघरे में खड़ा करती है।

इसका एक उदाहरण मध्यप्रदेश के सागर ज़िले में देखने को मिला। दरअसल बीते 21 जून को पुलिस प्रशासन, राजस्व विभाग और वन विभाग ने मिलकर मध्यप्रदेश के सागर ज़िले में अतिक्रमण के नाम पर कार्रवाई की और सुरखी विधानसभा क्षेत्र में बने 10 परिवारों के घर गिरा दिए। बताया जा रहा है कि जिन लोगों के घरों पर कार्रवाई की गई है, वो सभी परिवार दलितों के थे।



कार्रवाई को लेकर पता चला है कि ये सभी परिवार यहां पिछले करीब 20-22 सालों से रह रहे थे, यहीं अपना काम करते थे और ये घर इन्हें प्रधानमंत्री आवास के तहत दिए गए थे। आरोप है कि बग़ैर किसी नोटिस के इन लोगों को बेघर कर दिया गया।

इस मामले में हमने दलित परिवारों से बात करने की कोशिश की तो पता चला कि उन्हें फिलहाल एक स्कूल में ठहराया गया है।

हमने इस मामले की ज्यादा जानकारी के लिए दशरथ अहिरवार से बातचीत की, जिनका घर भी गिरा दिया गया है। दशरथ बताते हैं कि 21 जून को दोपहर 2 बजे करीब 40-50 पुलिसवालों के साथ कई अधिकारी आए, और बग़ैर किसी इजाज़त के हमें घर से बाहर निकालने लगे। हमें हमारा सामान भी बाहर निकालने नहीं दिया। जब हम लोग घर से बाहर इकट्ठा हुए तब इन लोगों ने घरों पर बुलडोज़र चलाना शुरु कर दिया, और आधे घंटे के भीतर पूरा इलाका मैदान में तब्दील हो गया।

जब हमने मुआवजे को लेकर पूछा तब दशरथ ने बताया कि किसी तरह का कोई आश्वासन नहीं दिया गया है, जबकि लगातार यहां बरसात हो रही है, और लोग खुली छत के नीचे जीने को मजबूर हैं।

इसके बाबत हमने बात की पीड़ित उमेश से, जिनका घर भी इस कार्रवाई में गिराया गया है। उन्होंने न्यूज़क्लिक को बताया कि घर गिराने के बाद जब हमने आवाज़ उठाई तब हमें एक स्कूल में ले जाकर ठहरा दिया गया, लेकिन यहां पर रहना बहुत मुश्किल है, क्योंकि स्कूल में महज़ तीन कमरे हैं और करीब 12 परिवार हैं, जिसमें करीब 20-22 बच्चे हैं, दो दिनों से भूखे हैं, खाने का कोई इंतज़ाम नहीं है। बारिश लगातार हो रही है, ऐसे में बच्चे भी बीमार होना शुरू हो गए हैं।

हमने सवाल किया कि कोई आया था, आपकी मदद के लिए... तो उमेश ने बताया कि विधायक आते हैं और भाषण देकर चले जाते हैं, लेकिन हमारे और बच्चों के रहने की, खाने की व्यवस्था कोई नहीं कर रहा है।

उमेश ने घर गिराते वक्त क्या हुआ इसका ज़िक्र भी किया, उन्होंने बताया कि जब हमने वीडियो बनाने की कोशिश की तो पुलिसवालों ने हमारे फोन छीन लिए।

वन विभाग का ये लैटर जिस कच्ची तरह से पीड़ितों के लिए बनाया गया है, उससे साफ पता चलता है कि पीड़ितों की ज़ुबानी बिल्कुल सही है। यानी लैटर में जो दावा किया जा रहा है कि रहने की व्यवस्था होने तक खाने-पीने-रहने की व्यवस्था शासन की ओर से की जाएगी, ये पूरी तरह से झूठ है।

हालांकि अब इस मामले में कांग्रेस पीड़ितों के साथ आई है। कार्रवाई के तुरंत बाद कांग्रेस के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ख़ुद घटना स्थल पर पहुंचे और पीड़ितो के साथ धरने पर बैठ गए।



दिग्विजय सिंह ने कहा कि ये मकान परिवहन और राजस्व मंत्री गोविंद सिंह राजपूत के निर्देश पर गिराए गए हैं। उन्होने सवाल किया कि क्या भाजपा नेताओं के मकान सरकारी जमीन पर नहीं बने हैं। दिग्विजय सिंह ने कहा कि सागर ज़िले के सुरखी विधानसभा के ग्राम रेपुरा के लगभग 10 अहिरवार समाज अनुसूचित जाति के प्रधानमंत्री आवास योजना में निर्मित मकान मंत्री गोविंद राजपूत के निर्देश पर गिराए गए। क्यों? क्योंकि ये मंत्री से डरते नहीं हैं।

वहीं मंत्री राजपूत ने कांग्रेस के आरोपों को अनर्गल बताते हुए कहा है कि जिनके मकान गिराए गए हैं उन्हें मुख्यमंत्री आवास योजना के तहत पट्टे दिए जाएंगे।



हालांकि मंत्री जी की सफाई, पीड़ितों की ज़ुबानी से बिल्कुल भी मेल नहीं खा रही है, यानी मकान तोड़ने के बाद उनके रहने-खाने की कोई सुनिश्चित व्यवस्था नहीं की गई है।

फिलहाल अभी सभी पीड़ित स्कूल में ही रह रहे हैं, और कांग्रेस इस मुद्दे पर आक्रमक है। दिग्विजय सिंह लगातार पीड़ितों से मुलाकात कर रहे हैं, और भाजपा नेताओं और प्रशासन पर निशाना साध रहे हैं।

साभार- न्यूजक्लिक

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