कर्नाटक हाईकोर्ट के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अंतर-धार्मिक विवाह के मसले पर सुनवाई करते हुए कहा कि यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता का मामला है, इसमें किसी भी तरह का बाहरी हस्तक्षेप करना ग़लत है. कोर्ट ने एक हिन्दू युवती को उसके मुसलमान पति से मिलाते हुए कहा है कि “कोई भी बालिग़ महिला बिना रोकटोक के अपनी शर्तों पर जिन्दगी जीने, कहीं भी आने-जाने या कहीं रहने के लिए स्वतंत्र है”. हिंदुस्तान टाईम्स की ख़बर के अनुसार जस्टिस पंकज नकवी और विवेक अग्रवाल ने युवती के पति की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह फ़ैसला सुनाया है. उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा अंतरधार्मिक विवाह को लेकर शुरू किए गए घमाशान के बीच इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह फ़ैसला उतरप्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध कानून पर कई सवाल खड़े करता है.
असल में विरोध अंतर-धार्मिक विवाह का है
भारत में पहले से ही लागू धर्मांतरण विरोधी कानून जो किसी भी व्यक्ति को सीधे या अन्य तरीके से किसी अन्य व्यक्ति को 'जबरन' या 'धोखाधड़ी' के जरिए धर्म परिवर्तित करने का प्रयास करने से रोकते हैं. यह कानून सर्वप्रथम 1967 में ओडिशा राज्य में लागू किया गया था बाद में मध्यप्रदेश सहित कई अन्य राज्यों ने इसे लागू किया. बावजूद इसके योगी सरकार द्वारा बनाया गया कानून लव जिहाद की आड़ में साम्प्रदायिक राजनीति के ख़तरनाक एजेंडे को फ़ैलाने का एक मात्र हथियार जान पड़ता है. भारत में धर्मांतरण विरोधी कानून पहले से ही है लेकिन इसमें विवाह की बात नहीं की गयी जो उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा बनायीं गयी कानून की अनोखी बात है. भारतीय संविधान में यह प्रावधान है कि दो धर्म के बालिग़ युवक युवती शादी करके बिना एक दुसरे का धर्म परिवर्तन किए एक साथ रह सकते हैं. कानून में वर्णित स्पेशल मेरेज एक्ट के तहत यह प्रावधान किया गया है. असल बात यह है कि उतर प्रदेश सरकार सहित तमाम मनुवादी, रुढ़िवादी विचारधारा के लोगों द्वारा अंतर-धार्मिक विवाह को रोकना मुख्य एजेंडा है.
धर्मान्तरण करना कोई बंधन नहीं है
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा लाया गया कानून यह मानकर बनाया गया है कि दुसरे धर्म के व्यक्ति से शादी करने पर धर्म स्वतः बदल जाता है जबकि धर्म परिवर्तन करना किसी भी व्यक्ति की कोई मज़बूरी नहीं है. धर्मान्तरण चाहत से और विचार से किया जाता है शरीर से नहीं. धर्मान्तरण कोई केमिकल रिएक्शन भी नहीं है जिसे एक बार परिवर्तित करने के बाद बदला न जा सके. जब भी इन्सान विचार कर ले वह अपने पुराने धर्म को धारण कर सकता है. रही बात किसी आर्थिक नुकसान या छलावे की तो इसके लिए वो पुलिस में शिकायत कर सकते हैं. इसके लिए समाज में सांप्रदायिक रंग देकर समाज के सौहार्द को बिगाड़ना राजनीति से प्रेरित है. जो लोग यह कुतर्क करते हैं कि इस्लाम स्वीकार करने पर ख़तना कराना पड़ता है और शरीर में हो गए इस परिवर्तन को बदला नहीं जा सकता है तो उसकी जानकारी में यह होना जरुरी है कि ख़तना कराना प्रचलित है पर अनिवार्य नहीं है. जबरन धर्म परिवर्तन कराना कानूनन जुर्म है और इस बिषय पर कोई विवाद भी नहीं है. जबरन धर्मान्तरण की स्थिति में अनेक अपराध शामिल होते हैं जैसे किसी को बंधक बना कर रखना (आईपीसी धारा 342), बलप्रयोग (आईपीसी धारा 352), घमकाना (आईपीसी धारा 506), और दैवीय प्रकोप की धमकी देना (आईपीसी धारा 508) आदि. ध्यान देने की बात यह है कि 1967 में ओड़िशा राज्य से शुरू हुए और अन्य कई राज्यों में लागू करवाए गए धर्मान्तरण विरोधी कानून में कहीं भी विवाह का जिक्र नहीं था और न ही सुप्रीम कोर्ट ने भी उस पर कोई टिपण्णी की थी ऐसे में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा घर्म को निशाना बना कर लाया गया कानून संविधानसम्मत कम और राजनीतिक हित साधने के लिए लाया गया ज्यादा प्रतीत होता है. आसान शब्दों में कहें तो सरकार के समर्थन प्राप्त कुछ लोग और संगठन अन्तर धार्मिक विवाहों के नाम पर देशभर में कानून व्यवस्था को बिगाड़ने में जुटे हुए हैं.
कानून में बदनीयति की भरमार
उतर प्रदेश में किसी खास धर्म को परेशान करने के लिए बनाया गया यह कानून इस बात की इजाज़त नहीं देता है कि सामूहिक धर्म परिवर्तन किया जाए. कानून की धारा 2 (च) में कहा गया है कि अगर 2 या इससे ज्यादा लोग एक साथ धर्म परिवर्तन करते हैं तो वो इस कानून की श्रेणी में आते हैं यानि कि माता-पिता के साथ उसकी वयस्क संतान ने भी यदि धर्म परिवर्तन कर लिया तो वह अपराध की श्रेणी में आ जाएगा. कानून की धारा 2(झ) में कहा गया है कि ‘धर्म परिवर्तक’ को भी इस कानून के हिसाब से दोषी करार दिया जाएगा जबकि धर्म परिवर्तन के लिए किसी परिवर्तक की मौजूदगी की अनिवार्यता नहीं होती है. ‘धर्म परिवर्तक’ शब्द का आविष्कार महज इसलिए ही किया गया है कि अधिक से अधिक लोगों को इस कानून के तहत फंसाया जा सके. उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा लाए गए कानून के धारा 3 में दो नयी चीजों को जोड़ा गया है जो पहले बनाए गए धर्मान्तरण विरोधी कानून में उल्लिखित नहीं हैं. पहला विवाह द्वारा धर्म परिवर्तन और दूसरा धर्म परिवर्तन करने के लिए उत्प्रेरित करना, विश्वास दिलाना, या षड्यंत्र करना निषिद्ध किया गया है. इसका मतलब यह हुआ कि अगर किसी चौराहे पर 5 लोग बैठ कर धर्म के बारे में बातें कर रहे हों तो छठा व्यक्ति यह शिकायत कर सकता है कि यहाँ धर्म परिवर्तन करवाने की कोशिश हो रही है. इससे साफ़ जाहिर होता है कि सरकार की नीयत क्या है. इसके अलावा भी इस कानून में वर्णित अन्य धाराएं तर्क और न्याय की कसौटी पर खड़े नहीं उतरते हैं.
कानून उच्च न्यायालयों के फ़ैसलों और संविधान के विरुद्ध
क़ानूनी मसलों के साथ ही लव जिहाद का मामला राजनीतिक गलियारों की ओर तेजी से रुख कर चूका है जहाँ बयानबाजियों की होड़ सी लग गयी है. योगी आदित्यनाथ के आक्रोशित बयान के बाद भारत के उप राष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने कहा था कि भारतीय न्यायपालिका कई मामलों में अपने अधिकार क्षेत्रों के दायरे से आगे बढती नज़र आ रही है. विपक्ष के नेताओं में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का मानना है कि लव जिहाद देश को बाँटने के लिए बीजेपी द्वारा लाया गया एक शब्द है. विवाह व्यक्तिगत स्वतंत्रता का मामला है और इसे रोकने के लिए एक कानून का लाना पूरी तरह से असंवैधानिक है”. पूर्व गृह मंत्री पी चिदम्बरम कहते हैं कि “लव जिहाद का कानून एक छलावा है. यह बहुसंख्यकों के एजेंडे का हिस्सा है. भारतीय कानून के तहत विभिन्न धर्मों के बीच विवाह की अनुमति है यहाँ तक कि कुछ सरकारों द्वारा इसे प्रोत्साहित भी किया जाता रहा है. कुछ राज्य सरकारों द्वारा इसके खिलाफ कानून लाना असंवैधानिक है यह कानून अदालतों में टिक नहीं पाएगा”.
इलाहाबाद, कर्नाटक और दिल्ली हाईकोर्ट के फ़ैसले के बाद यह उम्मीद की जा सकती है कि संविधान विरोधी उत्तर प्रदेश के कानून को संविधान सम्मत न्यायिक प्रक्रिया के तहत रद्द किया जा सकता है. लव जिहाद शब्द की कोई क़ानूनी मान्यता नहीं है और न ही अब कानून के तहत इसे परिभाषित किया गया है. उत्तर प्रदेश में यह कानून अगर महज़ धर्मान्तरण को रोकने की मंशा से बनायीं गयी होती तो देश के न्यायलय का सहारा लिया जा सकता था, धर्मान्तरण किए व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के सामने बयान दिलवाया जा सकता था जो हमारे देश की महत्वपूर्ण संस्था है. इस कानून में न्याय, तर्क और संविधान के विरुद्ध प्रावधान किया गया है जिसे लव जिहाद का नाम और सांप्रदायिक रंग देकर राजनीति का हथियार बनाया जा रहा है.
असल में विरोध अंतर-धार्मिक विवाह का है
भारत में पहले से ही लागू धर्मांतरण विरोधी कानून जो किसी भी व्यक्ति को सीधे या अन्य तरीके से किसी अन्य व्यक्ति को 'जबरन' या 'धोखाधड़ी' के जरिए धर्म परिवर्तित करने का प्रयास करने से रोकते हैं. यह कानून सर्वप्रथम 1967 में ओडिशा राज्य में लागू किया गया था बाद में मध्यप्रदेश सहित कई अन्य राज्यों ने इसे लागू किया. बावजूद इसके योगी सरकार द्वारा बनाया गया कानून लव जिहाद की आड़ में साम्प्रदायिक राजनीति के ख़तरनाक एजेंडे को फ़ैलाने का एक मात्र हथियार जान पड़ता है. भारत में धर्मांतरण विरोधी कानून पहले से ही है लेकिन इसमें विवाह की बात नहीं की गयी जो उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा बनायीं गयी कानून की अनोखी बात है. भारतीय संविधान में यह प्रावधान है कि दो धर्म के बालिग़ युवक युवती शादी करके बिना एक दुसरे का धर्म परिवर्तन किए एक साथ रह सकते हैं. कानून में वर्णित स्पेशल मेरेज एक्ट के तहत यह प्रावधान किया गया है. असल बात यह है कि उतर प्रदेश सरकार सहित तमाम मनुवादी, रुढ़िवादी विचारधारा के लोगों द्वारा अंतर-धार्मिक विवाह को रोकना मुख्य एजेंडा है.
धर्मान्तरण करना कोई बंधन नहीं है
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा लाया गया कानून यह मानकर बनाया गया है कि दुसरे धर्म के व्यक्ति से शादी करने पर धर्म स्वतः बदल जाता है जबकि धर्म परिवर्तन करना किसी भी व्यक्ति की कोई मज़बूरी नहीं है. धर्मान्तरण चाहत से और विचार से किया जाता है शरीर से नहीं. धर्मान्तरण कोई केमिकल रिएक्शन भी नहीं है जिसे एक बार परिवर्तित करने के बाद बदला न जा सके. जब भी इन्सान विचार कर ले वह अपने पुराने धर्म को धारण कर सकता है. रही बात किसी आर्थिक नुकसान या छलावे की तो इसके लिए वो पुलिस में शिकायत कर सकते हैं. इसके लिए समाज में सांप्रदायिक रंग देकर समाज के सौहार्द को बिगाड़ना राजनीति से प्रेरित है. जो लोग यह कुतर्क करते हैं कि इस्लाम स्वीकार करने पर ख़तना कराना पड़ता है और शरीर में हो गए इस परिवर्तन को बदला नहीं जा सकता है तो उसकी जानकारी में यह होना जरुरी है कि ख़तना कराना प्रचलित है पर अनिवार्य नहीं है. जबरन धर्म परिवर्तन कराना कानूनन जुर्म है और इस बिषय पर कोई विवाद भी नहीं है. जबरन धर्मान्तरण की स्थिति में अनेक अपराध शामिल होते हैं जैसे किसी को बंधक बना कर रखना (आईपीसी धारा 342), बलप्रयोग (आईपीसी धारा 352), घमकाना (आईपीसी धारा 506), और दैवीय प्रकोप की धमकी देना (आईपीसी धारा 508) आदि. ध्यान देने की बात यह है कि 1967 में ओड़िशा राज्य से शुरू हुए और अन्य कई राज्यों में लागू करवाए गए धर्मान्तरण विरोधी कानून में कहीं भी विवाह का जिक्र नहीं था और न ही सुप्रीम कोर्ट ने भी उस पर कोई टिपण्णी की थी ऐसे में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा घर्म को निशाना बना कर लाया गया कानून संविधानसम्मत कम और राजनीतिक हित साधने के लिए लाया गया ज्यादा प्रतीत होता है. आसान शब्दों में कहें तो सरकार के समर्थन प्राप्त कुछ लोग और संगठन अन्तर धार्मिक विवाहों के नाम पर देशभर में कानून व्यवस्था को बिगाड़ने में जुटे हुए हैं.
कानून में बदनीयति की भरमार
उतर प्रदेश में किसी खास धर्म को परेशान करने के लिए बनाया गया यह कानून इस बात की इजाज़त नहीं देता है कि सामूहिक धर्म परिवर्तन किया जाए. कानून की धारा 2 (च) में कहा गया है कि अगर 2 या इससे ज्यादा लोग एक साथ धर्म परिवर्तन करते हैं तो वो इस कानून की श्रेणी में आते हैं यानि कि माता-पिता के साथ उसकी वयस्क संतान ने भी यदि धर्म परिवर्तन कर लिया तो वह अपराध की श्रेणी में आ जाएगा. कानून की धारा 2(झ) में कहा गया है कि ‘धर्म परिवर्तक’ को भी इस कानून के हिसाब से दोषी करार दिया जाएगा जबकि धर्म परिवर्तन के लिए किसी परिवर्तक की मौजूदगी की अनिवार्यता नहीं होती है. ‘धर्म परिवर्तक’ शब्द का आविष्कार महज इसलिए ही किया गया है कि अधिक से अधिक लोगों को इस कानून के तहत फंसाया जा सके. उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा लाए गए कानून के धारा 3 में दो नयी चीजों को जोड़ा गया है जो पहले बनाए गए धर्मान्तरण विरोधी कानून में उल्लिखित नहीं हैं. पहला विवाह द्वारा धर्म परिवर्तन और दूसरा धर्म परिवर्तन करने के लिए उत्प्रेरित करना, विश्वास दिलाना, या षड्यंत्र करना निषिद्ध किया गया है. इसका मतलब यह हुआ कि अगर किसी चौराहे पर 5 लोग बैठ कर धर्म के बारे में बातें कर रहे हों तो छठा व्यक्ति यह शिकायत कर सकता है कि यहाँ धर्म परिवर्तन करवाने की कोशिश हो रही है. इससे साफ़ जाहिर होता है कि सरकार की नीयत क्या है. इसके अलावा भी इस कानून में वर्णित अन्य धाराएं तर्क और न्याय की कसौटी पर खड़े नहीं उतरते हैं.
कानून उच्च न्यायालयों के फ़ैसलों और संविधान के विरुद्ध
क़ानूनी मसलों के साथ ही लव जिहाद का मामला राजनीतिक गलियारों की ओर तेजी से रुख कर चूका है जहाँ बयानबाजियों की होड़ सी लग गयी है. योगी आदित्यनाथ के आक्रोशित बयान के बाद भारत के उप राष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने कहा था कि भारतीय न्यायपालिका कई मामलों में अपने अधिकार क्षेत्रों के दायरे से आगे बढती नज़र आ रही है. विपक्ष के नेताओं में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का मानना है कि लव जिहाद देश को बाँटने के लिए बीजेपी द्वारा लाया गया एक शब्द है. विवाह व्यक्तिगत स्वतंत्रता का मामला है और इसे रोकने के लिए एक कानून का लाना पूरी तरह से असंवैधानिक है”. पूर्व गृह मंत्री पी चिदम्बरम कहते हैं कि “लव जिहाद का कानून एक छलावा है. यह बहुसंख्यकों के एजेंडे का हिस्सा है. भारतीय कानून के तहत विभिन्न धर्मों के बीच विवाह की अनुमति है यहाँ तक कि कुछ सरकारों द्वारा इसे प्रोत्साहित भी किया जाता रहा है. कुछ राज्य सरकारों द्वारा इसके खिलाफ कानून लाना असंवैधानिक है यह कानून अदालतों में टिक नहीं पाएगा”.
इलाहाबाद, कर्नाटक और दिल्ली हाईकोर्ट के फ़ैसले के बाद यह उम्मीद की जा सकती है कि संविधान विरोधी उत्तर प्रदेश के कानून को संविधान सम्मत न्यायिक प्रक्रिया के तहत रद्द किया जा सकता है. लव जिहाद शब्द की कोई क़ानूनी मान्यता नहीं है और न ही अब कानून के तहत इसे परिभाषित किया गया है. उत्तर प्रदेश में यह कानून अगर महज़ धर्मान्तरण को रोकने की मंशा से बनायीं गयी होती तो देश के न्यायलय का सहारा लिया जा सकता था, धर्मान्तरण किए व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के सामने बयान दिलवाया जा सकता था जो हमारे देश की महत्वपूर्ण संस्था है. इस कानून में न्याय, तर्क और संविधान के विरुद्ध प्रावधान किया गया है जिसे लव जिहाद का नाम और सांप्रदायिक रंग देकर राजनीति का हथियार बनाया जा रहा है.