जहांगीरपुरी हिंसा पर वाम दलों ने जारी की फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट

Written by Sabrangindia Staff | Published on: April 20, 2022
आज 20 अप्रैल, 2022 को, सुप्रीम कोर्ट ने जहांगीरपुरी इलाके में कथित अतिक्रमणकारियों के खिलाफ उत्तरी दिल्ली नगर निगम द्वारा शुरू किए गए विध्वंस अभियान पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया, जहां पिछले हफ्ते सांप्रदायिक हिंसा हुई थी। हालांकि, दिल्ली पुलिस ने मामला कोर्ट में जाने के बावजूद भी विध्वंस अभियान जारी रखा था। यहां हुई हिंसा और विध्वंस अभियान के बीच वाम दलों की फैक्ट फाइंडिंग टीम की रिपोर्ट पर नजर डालना भी जरूरी है। इस रिपोर्ट में विस्तार से पूरा घटनाक्रम बताया गया है। साथ ही दिल्ली पुलिस के रवैये पर भी सवाल उठाए हैं।


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वाम दलों (सीपीआई (एम), सीपीआई, सीपीआई (एमएल), फॉरवर्ड ब्लॉक) की एक फैक्ट फाइंडिंग टीम ने 17 अप्रैल 2022 को जहांगीरपुरी-सी ब्लॉक के सांप्रदायिक हिंसा प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किया। प्रभावित क्षेत्र के निवासी- दोनों समुदायों के लोगों से बात करने के बाद एक रिपोर्ट तैयार की गई। प्रतिनिधिमंडल ने कम से कम 50 परिवारों से बातचीत की। प्रतिनिधिमंडल ने जहांगीरपुरी थाने क्षेत्र के अतिरिक्त डीसीपी श्री किशन कुमार और थाने के अन्य पुलिस कर्मियों से भी मुलाकात की।

16 अप्रैल को क्या हुआ था ?
तथ्यों के अन्वेषण के लिए जो टीम गई थी उसे सबकी तरफ से एक ही बात पता चली कि हनुमान जयंती/शोभा यात्रा में तेज आवाज में डीजे लगाकर हाथों में हथियार से लैस 150 से 200 लोगों का हुजूम जहांगीरपुरी मोहल्ले की गलियों में नारे लगाते हुए दोपहर से ही जुलूस में घूम रहे थे। लोगों ने बताया कि जुलूस में शामिल लोगों को पिस्तौल और तलवार लहराते हुए उन्होंने देखा, जिसकी पुष्टि विभिन्न टीवी चैनलों पर दिखाए गए वीडियो से होती है। जोरदार और आक्रामक नारे लगाए जा रहे थे। टीम को बताया गया कि यह स्थानीय लोगों द्वारा आयोजित जुलूस नहीं था, बल्कि बजरंग दल की युवा शाखा द्वारा आयोजित किया गया था, जिसमें क्षेत्र के बाहर के अधिकांश लोग शामिल थे।

टीम को बताया गया कि जुलूस के साथ पुलिस की दो जीप थीं- एक जुलूस के सामने और दूसरी सबसे अंत में। हालांकि प्रत्येक जीप में केवल दो पुलिसकर्मी थे। पहला सवाल यह उठता है कि पुलिस ने पर्याप्त इंतजाम क्यों नहीं किए? पुलिस ने जुलूस में खुलेआम हथियारों को ले जाने की अनुमति क्यों दी?

टीम को बताया गया कि जुलूस पहले ही ब्लॉक सी जहांगीरपुरी में उस क्षेत्र के दो चक्कर लगा चुका था, जिसमें प्रमुख रूप से बंगाली भाषी मुसलमान रहते हैं। जुलूस जब तीसरा चक्कर लगा रहा था तब यह घटना हुई। यदि स्थानीय मुस्लिम निवासियों द्वारा जुलूस पर हमला करने की "साजिश" होती, जैसा कि भाजपा नेताओं ने आरोप लगाया था, तो हमले पहले ही हो चुके होते। तथ्य यह है कि घटनाएं उस समय हुईं जब जुलूस एक मस्जिद के बाहर ठीक उसी समय रुक गया जब रोजा रखने वाले मस्जिद में नमाज के लिए जमा हो रहे थे। 

दूसरा सवाल यह है कि जुलूस को वहीं रुकने क्यों दिया गया? मस्जिद के ठीक बाहर नारे लगाने की अनुमति क्यों दी गई? दूसरे शब्दों में, एक सशस्त्र जुलूस को मस्जिद के बाहर नारे लगाते हुए रुकने दिया जाता है, ठीक उसी समय जब रोजा खत्म होना है और जब मुसलमानों की भीड़ जमा हो गई थी। अगर इन घटनाओं को एक साजिश के रूप में विश्लेषित किया जाए - यह वह साजिश है जिसमें पुलिस खुद जिम्मेदार है।

टीम को बताया गया कि पथराव दोनों ओर से शुरू हो गया। टीम को बताया गया कि उस इलाके के आसपास के लोगों में डर था कि जुलूस वाले मस्जिद में घुस जाएंगे और पुलिस कोई कार्रवाई नहीं कर रही है जिस कारण भारी भीड़ इकट्ठी हुई। नाम न बताने की शर्त पर कुछ लोगों ने यह भी कहा कि बाद में अल्पसंख्यक समुदाय के कुछ तत्वों द्वारा हथियार लाए गए। इतनी बड़ी संख्या में स्थानीय निवासी इकट्ठा हो गए कि जुलूस निकालने वाले उनके सामने बहुत कम पड़ गए जिस कारण वे भाग खड़े हुए।

प्रतिनिधिमंडल ने कुछ कारों और एक मोटर बाइक को देखा जो जल गई थीं। एक हिंदू की दुकान को भी लूट लिया गया था। यह भी बताया गया कि मौके पर पहुंची पुलिस क्रॉस पथराव में फंस गई और कुछ को चोटें आईं।

16 अप्रैल की रात पुलिस ने क्षेत्र में छापेमारी कर अंधाधुंध गिरफ्तारी की। महिलाओं ने पुलिस से यह पता लगाने की कोशिश की कि उनके घरों पर छापेमारी क्यों की जा रही है तो पुरुष पुलिस द्वारा उनके पेट में घूंसा मारा गया और मारपीट की गई।

टीम थाने गई। वहां वे यह देखकर हैरान रह गए कि भाजपा अध्यक्ष आदेश गुप्ता, सांसद हंसराज हंस पुलिस अधिकारियों की मौजूदगी में थाना परिसर के अंदर एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे। उनके आसपास जय श्री राम के नारे लगाए जा रहे थे।

तीसरा सवाल यह है कि क्या यह स्पष्ट रूप से पुलिस के पक्षपात को नहीं दर्शाता है? टीम ने पाया कि पूरे इलाके में पुलिस पर कोई भरोसा नहीं रह गया है। लोगों का मानना है कि यह पूरी तरह से एकतरफा, पूर्वाग्रह से ग्रसित जांच थी जो भाजपा नेताओं से प्रभावित थी। यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि भाजपा ने पुलिस की भूमिका की खुले तौर पर प्रशंसा की है। इस संबंध में मुख्य रूप से अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों की पुलिस द्वारा एकतरफा गिरफ्तारी, भले ही भड़काऊ व्यवहार और जुलूस के आक्रामक कार्यों के वीडियो साक्ष्य उपलब्ध हैं, पूरी तरह से अन्यायपूर्ण और प्रेरित है।

प्रतिनिधिमंडल ने अतिरिक्त डीसीपी से बात की और उन्हें मुस्लिम समुदाय के युवाओं के अंधाधुंध उठाने से उत्पन्न पुलिस के पक्षपात पूर्ण रवैये से उत्पन्न भावनाओं के बारे में बताया, जबकि जुलूस के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई थी। प्रतिनिधिमंडल ने पुलिस अधिकारी को पुरुष पुलिसकर्मियों द्वारा महिलाओं से बदसलूकी की शिकायतों की भी जानकारी दी।

टीम ने पाया कि इलाके में रहने वाले लोगों के बीच सांप्रदायिक झड़प की एक भी घटना नहीं हुई है। हिंदू और मुसलमान दशकों से एक साथ रह रहे हैं। इस पुनर्वास कॉलोनी की स्थापना के बाद से कम से कम चार दशकों से बंगाली मुसलमान जहांगीरपुरी में रह रहे हैं। वे मुख्य रूप से स्व-नियोजित परिवार हैं जो स्ट्रीट वेंडिंग, छोटे व्यापार, मछली की बिक्री, कचरा संग्रह आदि में शामिल हैं। यह चौंकाने वाली बात है कि भाजपा मीडिया के जरिए उन्हें "अवैध" या रोहिंग्या शरणार्थी के रूप में प्रचारित कर रही है। जबकि वे दिल्ली के बोनाफ़ाईड नागरिक हैं।

निष्कर्ष: 
टीम ने पाया कि जहांगीरपुरी की घटनाएं संघ परिवार के कुछ सहयोगियों के एजेंडे के एक हिस्से के रूप में धार्मिक अवसरों और त्योहारों को सांप्रदायिक घटनाएं पैदा करने के अवसरों के रूप में इस्तेमाल करने के लिए हुई हैं। दिल्ली के मामले में इसे पहले की घटनाओं के साथ जोड़कर देखा जाना चाहिए। भाजपा से दक्षिण दिल्ली नगर निगम के मेयर ने मांसाहारी भोजन की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की, एबीवीपी ने जेएनयू में शाकाहारी भोजन लागू करने की कोशिश की और विरोध करने वालों पर हमला किया, छावला गांव में एक फार्महाउस के कार्यवाहक राजाराम को गोरक्षकों द्वारा मार डाला गया और इस सब की अगली कड़ी का नवीनतम अध्याय के रूप में जहांगीरपुरी सांप्रदायिक हिंसा है।

खबर है कि मामले की जांच दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच को सौंप दी गई है। यह एक आई वॉश है और यह स्वीकार्य नहीं हो सकता है। उस सच्चाई को उजागर करने के लिए एक न्यायिक जांच का आदेश दिया जाना चाहिए जो समयबद्ध हो। निस्संदेह जांच संघ परिवार द्वारा राजधानी में सांप्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ने के लिए किए जा रहे शैतानी प्रयासों को सामने लाएगा।

वाम दलों की अपील
आम जनता से अपील है कि विभाजनकारी ताकतों के खिलाफ जनता की एकता और लामबंदी ही मात्र विकल्प है। किसी भी तरह आरएसएस-भाजपा के मंसूबों को कामयाब न होने देना ही आज की जरूरत है। देश की आर्थिक बदहाली और जनता के जीवनयापन के संकट से ध्यान हटाने का उनके पास विकल्प है साम्प्रदायिक सौहार्द का खात्मा, हमारा विकल्प है जनमुद्दों और जीवनयापन के संकट से उबरने के लिए जन-एकता को बनाकर साम्प्रदायिकता के खिलाफ जनसंघर्ष।

वाम दलों ने गृह मंत्रालय और राष्ट्रपति से मांग की है कि वे बिना देरी किए दिल्ली पुलिस की पक्षधरता पर अंकुश लगाए। दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ तुरंत कार्यवाही की जाए। वे विभाजनकारी ताकतों के खिलाफ अविलंब कार्यवाही सुनिश्चित करें। ऐसा करने में जितनी देर होगी, सरकार की अविश्वसनीयता उतनी ही सुनिश्चित होगी। दिल्ली के उपराज्यपाल अपनी चुप्पी तोड़ते हुए तुरंत हस्तक्षेप करें।

प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों में शामिल थे:
1) राजीव कुंवर (CPI-M)
2)आशा शर्मा, सचिव, जेएमएस
3)मैमूना मोल्ला, अध्यक्ष, जेएमएस
4) विपिन, एलसी सचिव, उत्तरी जिला, सीपीआई-एम
5) संजीव, उपाध्यक्ष, डीवाईएफआई
6) सुभाष, डीवाईएफआई
7) रवि राय, सचिव, भाकपा-माले
8) श्वेता राज, ऐक्टू
9) प्रसेनजीत, महासचिव, आइसा
10) कमलप्रीत, वकील
11) अमित, फॉरवर्ड ब्लॉक
12) विवेक श्रीवास्तव, भाकपा
13) संजीव राणा, भाकपा

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