रामनवमी हिंसा: जनहित याचिकाओं में SC की निगरानी में जांच, मामलों को NIA को हस्तांतरित करने की मांग

Written by Sabrangindia Staff | Published on: April 19, 2022
देश भर में हुई सांप्रदायिक हिंसा में स्वत: संज्ञान लेने के लिए सुप्रीम कोर्ट के समक्ष याचिकाएं दायर की गईं


Image: PTI
 
हाल ही में रामनवमी और हनुमान जयंती के जश्न के दौरान विभिन्न राज्यों-दिल्ली, गुजरात, मध्य प्रदेश, झारखंड, राजस्थान और पश्चिम बंगाल से सांप्रदायिक झड़पों की खबरें आई थीं। ज्यादातर मामलों में हिंसा तब शुरू हुई जब एक समुदाय का जुलूस दूसरे समुदाय के पड़ोस से होकर गुजरा। अब इन झड़पों का मामला दो जनहित याचिका (PIL) और एक लेटर पिटीशन के जरिए सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है।
 
तीनों याचिकाओं में अलग-अलग राहत की मांग की गई है जिसमें कोर्ट की निगरानी में जांच या जांच को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को हस्तांतरित करना शामिल है।
 
दो जनहित याचिकाएं अधिवक्ता विशाल तिवारी व एड. विनीत जिंदल द्वारा दायर की गई हैं और तीसरी पत्र याचिका अधिवक्ता अमृतपाल सिंह खालसा द्वारा दायर किया गया है। 
 
क्या चाहते हैं याचिकाकर्ता?
 
एडवोकेट विशाल तिवारी की जनहित याचिका
इस जनहित याचिका में इस साल रमजान के महीने में रामनवमी के अवसर पर राजस्थान, दिल्ली, मध्य प्रदेश और गुजरात में हुई धार्मिक झड़पों की जांच करने के लिए अदालत से निर्देश देने की मांग की गई है। इस पूछताछ के लिए एड. विशाल तिवारी ने जनहित याचिका के माध्यम से न्यायालय से भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक न्यायिक जांच आयोग का गठन करने को कहा।
 
जनहित याचिका में मध्य प्रदेश, गुजरात और उत्तर प्रदेश में 'बुलडोजर जस्टिस' की मनमानी कार्रवाई की जांच के लिए एक समान समिति गठित करने का निर्देश देने की भी मांग की गई है।
 
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, "इस तरह के कार्य बिल्कुल भेदभावपूर्ण हैं और लोकतंत्र और कानून के शासन की धारणा में फिट नहीं होते हैं। ऐसा करके संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत जीवन और समानता के अधिकार का उल्लंघन है," याचिकाकर्ता ने तर्क दिया है।
 
एडवोकेट विनीत जिंदल की जनहित याचिका
अधिवक्ता विनीत जिंदल द्वारा दायर जनहित याचिका में अदालत से निर्देश मांगा गया है कि दिल्ली, राजस्थान, गुजरात, झारखंड, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश के साथ-साथ जेएनयू परिसर में हुई सांप्रदायिक झड़पों के सभी मामलों को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को हस्तांतरित किया जाए। 
 
याचिका में कहा गया है कि रामनवमी और हनुमान जयंती के अवसर पर कई राज्यों में जुलूस में शामिल श्रद्धालुओं को पथराव और बंदूक की गोली से निशाना बनाया गया, जिससे श्रद्धालु घायल हो गए और देश भर में सांप्रदायिक तनाव पैदा हो गया।
 
याचिका में यह भी कहा गया है कि चूंकि देश भर में सांप्रदायिक घटनाएं एक श्रृंखला में हुईं, यह पूरे देश में हिंदू समुदाय को लक्षित करने के लिए आईएसआईएस और अन्य राष्ट्र-विरोधी और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के संभावित लिंक के साथ आतंकी फंडिंग का संकेत है।
 
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक याचिका में कहा गया है, "जुलूस के दौरान भक्तों पर फायरिंग और पथराव और सांप्रदायिक तनाव पैदा करने वाले वाहनों पर हमला करने वाले हिंसक कृत्य देश की संप्रभुता के लिए खतरा हैं और हिंदू समुदाय को प्रतिशोध के लिए उकसाते हैं क्योंकि समुदाय के मूल्यों में धर्म इसका सार है।"  
 
अधिवक्ता अमृतपाल सिंह की पत्र याचिका 
अधिवक्ता अमृतपाल सिंह द्वारा पत्र याचिका में जहांगीरपुरी दंगों की कोर्ट की निगरानी में जांच शुरू करने के लिए कोर्ट से निर्देश मांगा और कोर्ट से स्वत: संज्ञान लेने का भी आग्रह किया। याचिका में तर्क दिया गया है कि दिल्ली पुलिस द्वारा अब तक की गई जांच आंशिक, सांप्रदायिक थी और दंगों के अपराधियों को बचा रही है।
 
याचिका में कहा गया है कि निष्पक्ष मीडिया रिपोर्टों से, यह ध्यान में लाया गया है कि हनुमान जयंती शोभा यात्रा जुलूस से संबंधित कुछ सशस्त्र सदस्यों को मस्जिद में प्रवेश करते हुए और भगवा झंडा लगाते हुए देखा गया, जिसके बाद दोनों समुदायों द्वारा पथराव किया गया। इस सांप्रदायिक हिंसा में 7-8 दिल्ली पुलिस के जवान और आम नागरिक गंभीर रूप से घायल हो गए और निजी संपत्ति को भी नुकसान पहुंचा। 

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