हरियाणा की तर्ज पर UP के गांवों में भी किसान विरोधी नेताओं को नहीं मिलेगी एंट्री, पंचायत का ऐलान

Written by Navnish Kumar | Published on: January 14, 2021
मेरठ। हरियाणा के दर्जनों गांवों में भाजपा व जननायक जनता पार्टी के नेताओं की एंट्री पर बैन के पोस्टरों के बाद, उत्तर प्रदेश के गांवों में भी किसान विरोधी नेताओं का विरोध शुरू हो गया है। बागपत के सरूरपुर कलां गांव की पंचायत में ऐलान किया गया है कि किसान विरोधी नेताओं को गांव में नहीं घुसने दिया जाएगा। उन्होंने कहा है कि मुसीबत की घड़ी में भी जो जनप्रतिनिधि किसान की बात नहीं कर रहे हैं, वह कभी किसानों के नेता नहीं हो सकते। 



दिल्ली-सहारनपुर हाईवे स्थित गांव के प्राथमिक विद्यालय में कृषि कानूनों के मुद्दे पर पंचायत का आयोजन किया गया। वक्ता इंद्रपाल सिंह ने कहा कि कृषि कानूनों को वापस लिया जाना चाहिए। सरकार ऐसे कानून क्यों लागू करना चाहती है, जो किसानों के ही हित में नहीं हैं।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार पंचायत में सर्वसम्मति से तय किया गया कि ऐसी मुश्किल घड़ी में भी जो नेता किसान की बात नहीं कर रहे हैं, उनका विरोध किया जाएगा और उन्हें गांव में नहीं घुसने दिया जाएगा। पंचायत की अध्यक्षता हरि सिंह और संचालन चौधरी इंद्रपाल सिंह ने किया। सतवीर सिंह, पीतम सिंह, ओमप्रकाश सिंह, हरवीर सिंह, रामपाल सिंह, सुभाष नैन, मनोज कुमार, इंद्र सिंह, भूरा, शिव कुमार, जगपाल, दीप सिंह, जसवीर सिंह, हरपाल सिंह, बिल्लू और विकास आदि रहे।

दूसरी ओर, हरियाणा में कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे विरोध के बीच  60 से अधिक गांवों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और गठबंधन सहयोगी जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) के नेताओं के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। इसके लिए गांवों के रास्तों पर बाकायदा पोस्टर व बैनर लगाए गए हैं। 

हरियाणा में विभिन्न खापों के अलावा बड़ी संख्या में गांवों के लोगों ने नए कृषि कानूनों का समर्थन करने के लिए भाजपा और जेजेपी के मंत्रियों और विधायकों के बहिष्कार का आह्वान किया है। वैसे भी भाजपा और जेजेपी के नेता हरियाणा में पिछले कई हफ्तों से विरोध प्रदर्शनों का सामना कर रहे हैं।

10 जनवरी को हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के आने से ठीक पहले करनाल के पास 'कृषि कानूनों के लाभ बताने के लिए बुलाई किसान महापंचायत' को सैकड़ों प्रदर्शनकारी किसानों के विरोध के चलते रद्द करना पड़ा था।

किसानों ने कार्यक्रम स्थल पर जमकर तोड़-फोड़ की और सुरक्षा के उद्देश्य से मंच के सामने लगाए गए बैरिकेड्स तक को तोड़ दिया था, मंच पर रखे फूलों के गमले, कुर्सियां और टेबल फेंक दिए। इससे पहले किसानों ने काले झंडे पकड़कर कैमला गांव में अस्थायी हेलीपैड को नुकसान पहुंचाया, जहां खट्टर को उतरना था।

खास बात है कि हरियाणा देश के सबसे प्रमुख कृषि उत्पादक प्रदेशों में है। राज्य के लगभग 65 फीसदी नागरिक ग्रामीण इलाकों में रहते हैं और उनमें से अधिकतर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर अपनी जीविका के लिए कृषि क्षेत्र पर ही निर्भर हैं। दूसरी बात, हरियाणा में बीजेपी-जेजेपी गठबंधन की सरकार है। जहां बीजेपी का प्रभाव क्षेत्र शहरी इलाकों में माना जाता है, वहीं जेजेपी मूलत: ग्रामीण और किसानों की पार्टी है।

जेजेपी का संबंध किसान नेता चौधरी देवीलाल के परिवार से है। इंडियन नेशनल लोकदल में विभाजन के बाद देवीलाल का परिवार दो हिस्सों में बंट चुका है। जहां ओमप्रकाश चौटाला और अभय सिंह चौटाला इंडियन नेशनल लोक दल (आईएनएलडी) में हैं, वहीं अजय सिंह चौटाला और उनके दो पुत्र दुष्यंत और दिग्विजय ने अपनी अलग पार्टी जेजेपी का गठन किया है। 

अब आईएनएलडी हो या जेजेपी, दोनों देवीलाल के ग्रामीण और किसानों के बचे हुए वोट बैंक की लडाई लड़ रहे हैं। जेजेपी अभी तक इस लडाई में आगे दिख रही थी। 2019 के विधानसभा चुनाव में जेजेपी को 10 सीटों पर सफलता मिली थी और आईएनएलडी को सिर्फ एक सीट पर। आईएनएलडी के एकलौते विधायक अभय सिंह चौटाला ने विधानसभा से अपना कंडीशनल त्यागपत्र विधानसभा स्पीकर को भेज दिया है, यह कह कर, कि अगर 26 जनवरी तक किसान आंदोलन का हल नहीं निकला तो 27 जनवरी को उनका इस्तीफा मंजूर कर लिया जाए। अब लगता नहीं है कि किसान आंदोलन का जल्द ही कोई समाधान निकलने वाला है।

अभय चौटाला ने जो पहल की है, उससे अन्य दलों के विधायकों पर दबाव बढ़ गया है, खासकर ग्रामीण निर्वाचन क्षेत्र से चुने जजपा विधायकों पर। इसी सब को लेकर जजपा भी इस मुद्दे पर दोफाड़ है और उसके आधे से ज्यादा विधायक आंदोलन के साथ हैं। इससे परेशान चौटाला इसका जल्द से जल्द समाधान चाहते हैं। कांग्रेस भी किसान आंदोलन को लेकर दबाव बना रही है जिससे जजपा के विधायकों के टूटने का भी खतरा है।

ऐसे में दुष्यंत ने पहले मुख्यमंत्री के साथ मिलकर अमित शाह को सारी स्थिति से अवगत कराया और अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बात की है। सूत्रों के अनुसार, अगर आन्दोलन का जल्द कोई रास्ता नहीं निकलता है, तो दुष्यंत अपनी पार्टी को बचाने के लिए राजग से नाता भी तोड़ सकते हैं। जजपा के 10 विधायक है जिसमें से 7 किसानों के मुददों के साथ हैं।

बता दें कि 90 सदस्यों वाली हरियाणा विधानसभा में भाजपा के 40, कांग्रेस के 30 और JJP के 10 विधायक हैं। JJP और भाजपा मिलकर सरकार चला रहे हैं। कई निर्दलीय पहले ही किसान आंदोलन के समर्थन में हैं। ऐसे में हरियाणा सरकार पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। वहीं, दूसरी ओर, उत्तर प्रदेश के गांवों खासकर जाट बैल्ट में किसान विरोधी नेताओं के विरोध का ऐलान, भाजपा के लिए मुसीबत बढाने वाला है।

बाकी ख़बरें