आंकड़े अक्सर बोरिंग होते हैं. उनमें कोई रस नहीं होता. लेकिन कई बार वे बेहद दिलचस्प और कई बार खौफनाक कहानियां कहते हैं.
आज बात ऐसे ही कुछ आंकड़ों की.
कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य मोतीलाल वोरा ने रेलवे मंत्रालय से एक मासूम सा सवाल पूछा. सवाल यह था कि रेलवे ने पिछले तीन साल में कितने नए कर्मचारियों को नौकरी पर रखा और इस दौरान कितने कर्मचारी रिटायर हो गए.
सरकार ने 11 अगस्त, 2017 को राज्यसभा में जानकारी दी कि पिछले तीन साल में रेलवे में 1,15,003 कर्मचारियों और अफसरों को नौकरी पर रखा और इसी दौरान 1,79,322 कर्मचारी और अफसर रिटायर हो गए.
इसका मतलब है कि रेलवे में इन तीन वर्षों में 64,219 कर्मचारी कम हो गए.
जब कुछ नए कर्मचारी आ रहे थे और उससे ज्यादा कर्मचारी जा रहे थे, उस दौरान एक चीज और हो रही थी. रेलवे अपनी सेवाओं का लगातार विस्तार कर रहा था, नई पटरियां बिछाई जा रही थीं, विद्युतीकरण हो रहा था, नए ट्रेन चलाए जा रहे थे और कई ट्रेनों के फेरे बढ़ाए जा रहे थे.
यह एक खतरनाक स्थिति है. जिस दौरान रेलवे के स्टाफ कम किए जा रहे थे, उसी दौरान उन पर नए कामों का बोझ बढ़ाया जा रहा था. रेलवे स्टाफ को छुट्टियां नहीं मिल रही थीं और वे तनाव और दबाव में काम कर रहे थे. स्थायी प्रकृति के कई काम कम ट्रेंड टेंपररी स्टाफ के हिस्से छोड़ने की मजबूरी पैदा कर दी गई. स्थायी किस्म के कई काम आउटसोर्स कर दिए गए, जहां सही स्किल वाले लोग उपलब्ध नहीं थे.
इसी दौरान देश में रेल दुर्घटनाओं की संख्या बढ़ रही थी और साथ ही बढ़ रही थी रेल दुर्घटनाओं में मरने वालों की संख्या.
रेल एक्सिडेंट्स से हर साल बड़ी संख्या में लोग मर रहे हैं. मिसाल के तौर पर, 2016-17 में रेल दुर्घटनाओं ने कुल 238 लोगों की जान गई. हजारों लोग घायल हुए. एक साल पर रेल दुर्घटनाओं में मरने वालों की संख्या 122 थी. 2016-17 में ट्रेनों के आपस में टकराने की 5 घटनाएं हुईं. ट्रेनें 78 बार पटरी से उतरी और मानव रहित रेलवे क्रॉसिंग पर 20 दुर्घटनाएं हुईं. ( राज्यसभा प्रश्न 3007 का 31 अगस्त, 2017 को दिया गया जवाब). इसके अलावा, 2016 में 24,527 लोग रेल पटरियों पर होने वाली दुर्घटनाओं में मारे गए. (राज्यसभा प्रश्न 3024 का 31 अगस्त, 2017 को दिया गया जवाब).
जाहिर है कि भारतीय रेल यमराज का दूसरा रूप भी है. आधुनिक टेक्नॉलॉजी के इस दौर में इस तरह दुर्घटनाओं में लोगों का मरना सरकार के लिए चिंता का कारण होना चाहिए.
दरअसल, सरकार को इस बारे में काफी पहले ही सचेत कर दिया गया था. 3 मई को रेलवे की ज्वांयट कंसल्टेटिव मशीनरी की बैठक हुई थी. इसमें कर्मचारियों को प्रतिनिधियों ने रेलवे बोर्ड को बताया था कि रेलवे के स्टाफ की संख्या लगातार घटाई जा रही है और साथ ही नई सर्विस शुरू की जा रही है. यह दुर्घटनाओं को खुला निमंत्रण है क्योंकि कम कर्मचारियों पर ज्यादा काम थोपने के अपने खतरे हैं. कर्मचारी संगठनों ने कहा कि नए पदों को भरने पर लगी रोक को हटाया जाए और ऐसा होने तक नई सर्विस शुरू न की जाए. सरकार की तरफ से इस मीटिंग में बताया गया कि नई नियुक्तियों पर कोई रोक नहीं है. यह जरूर है कि नियुक्तियों की प्रक्रिया धीमी है. हालांकि कर्मचारी संगठन सरकार के इस स्पष्टीकरण से संतुष्ट नहीं थे.
उनकी मांग है कि नई ट्रेन या सर्विस शुरू करने के साथ ही उसके लिए अतिरिक्त स्टाफ की व्यवस्था की जाए. वह बोझ मौजूदा स्टाफ पर न डाला जाए.
सरकार ने अगर 3 मई को दी गई चेतावनी पर ध्यान दिया होता, तो उसके बाद 2017 की दुर्घटनाओं को रोकने में मदद मिलती.
सरकार ने अभी भी नए पदों के सृजन और उन्हें भरने की कोई नीति नहीं बनाई है, इसलिए देश को और भी रेल दुर्घटनाओं के लिए तैयार रहना चाहिए.
आज बात ऐसे ही कुछ आंकड़ों की.
कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य मोतीलाल वोरा ने रेलवे मंत्रालय से एक मासूम सा सवाल पूछा. सवाल यह था कि रेलवे ने पिछले तीन साल में कितने नए कर्मचारियों को नौकरी पर रखा और इस दौरान कितने कर्मचारी रिटायर हो गए.
सरकार ने 11 अगस्त, 2017 को राज्यसभा में जानकारी दी कि पिछले तीन साल में रेलवे में 1,15,003 कर्मचारियों और अफसरों को नौकरी पर रखा और इसी दौरान 1,79,322 कर्मचारी और अफसर रिटायर हो गए.
इसका मतलब है कि रेलवे में इन तीन वर्षों में 64,219 कर्मचारी कम हो गए.
जब कुछ नए कर्मचारी आ रहे थे और उससे ज्यादा कर्मचारी जा रहे थे, उस दौरान एक चीज और हो रही थी. रेलवे अपनी सेवाओं का लगातार विस्तार कर रहा था, नई पटरियां बिछाई जा रही थीं, विद्युतीकरण हो रहा था, नए ट्रेन चलाए जा रहे थे और कई ट्रेनों के फेरे बढ़ाए जा रहे थे.
यह एक खतरनाक स्थिति है. जिस दौरान रेलवे के स्टाफ कम किए जा रहे थे, उसी दौरान उन पर नए कामों का बोझ बढ़ाया जा रहा था. रेलवे स्टाफ को छुट्टियां नहीं मिल रही थीं और वे तनाव और दबाव में काम कर रहे थे. स्थायी प्रकृति के कई काम कम ट्रेंड टेंपररी स्टाफ के हिस्से छोड़ने की मजबूरी पैदा कर दी गई. स्थायी किस्म के कई काम आउटसोर्स कर दिए गए, जहां सही स्किल वाले लोग उपलब्ध नहीं थे.
इसी दौरान देश में रेल दुर्घटनाओं की संख्या बढ़ रही थी और साथ ही बढ़ रही थी रेल दुर्घटनाओं में मरने वालों की संख्या.
रेल एक्सिडेंट्स से हर साल बड़ी संख्या में लोग मर रहे हैं. मिसाल के तौर पर, 2016-17 में रेल दुर्घटनाओं ने कुल 238 लोगों की जान गई. हजारों लोग घायल हुए. एक साल पर रेल दुर्घटनाओं में मरने वालों की संख्या 122 थी. 2016-17 में ट्रेनों के आपस में टकराने की 5 घटनाएं हुईं. ट्रेनें 78 बार पटरी से उतरी और मानव रहित रेलवे क्रॉसिंग पर 20 दुर्घटनाएं हुईं. ( राज्यसभा प्रश्न 3007 का 31 अगस्त, 2017 को दिया गया जवाब). इसके अलावा, 2016 में 24,527 लोग रेल पटरियों पर होने वाली दुर्घटनाओं में मारे गए. (राज्यसभा प्रश्न 3024 का 31 अगस्त, 2017 को दिया गया जवाब).
जाहिर है कि भारतीय रेल यमराज का दूसरा रूप भी है. आधुनिक टेक्नॉलॉजी के इस दौर में इस तरह दुर्घटनाओं में लोगों का मरना सरकार के लिए चिंता का कारण होना चाहिए.
दरअसल, सरकार को इस बारे में काफी पहले ही सचेत कर दिया गया था. 3 मई को रेलवे की ज्वांयट कंसल्टेटिव मशीनरी की बैठक हुई थी. इसमें कर्मचारियों को प्रतिनिधियों ने रेलवे बोर्ड को बताया था कि रेलवे के स्टाफ की संख्या लगातार घटाई जा रही है और साथ ही नई सर्विस शुरू की जा रही है. यह दुर्घटनाओं को खुला निमंत्रण है क्योंकि कम कर्मचारियों पर ज्यादा काम थोपने के अपने खतरे हैं. कर्मचारी संगठनों ने कहा कि नए पदों को भरने पर लगी रोक को हटाया जाए और ऐसा होने तक नई सर्विस शुरू न की जाए. सरकार की तरफ से इस मीटिंग में बताया गया कि नई नियुक्तियों पर कोई रोक नहीं है. यह जरूर है कि नियुक्तियों की प्रक्रिया धीमी है. हालांकि कर्मचारी संगठन सरकार के इस स्पष्टीकरण से संतुष्ट नहीं थे.
उनकी मांग है कि नई ट्रेन या सर्विस शुरू करने के साथ ही उसके लिए अतिरिक्त स्टाफ की व्यवस्था की जाए. वह बोझ मौजूदा स्टाफ पर न डाला जाए.
सरकार ने अगर 3 मई को दी गई चेतावनी पर ध्यान दिया होता, तो उसके बाद 2017 की दुर्घटनाओं को रोकने में मदद मिलती.
सरकार ने अभी भी नए पदों के सृजन और उन्हें भरने की कोई नीति नहीं बनाई है, इसलिए देश को और भी रेल दुर्घटनाओं के लिए तैयार रहना चाहिए.