हज सब्सीडी का मिथक, सच और 70 साल मुफ्त की गाली

Written by Mohd Zahid | Published on: January 19, 2018
सालों साल, पहले भारतीय जनसंघ और फिर भारतीय जनता पार्टी के तमाम नेता जैसे लालकृष्ण आडवाणी , मदनलाल खुराना , केदार नाथ साहनी विजय कुमार मलहोत्रा और अटल बिहारी बाजपेयी तथा संघ के 36 नाजायज़ संगठन के तमाम नेता सालों साल चिल्लाते रहे , तुष्टीकरण , तुष्टीकरण , अल्पसंख्यकों का तुष्टीकरण तथा कांग्रेस को सदैव मुस्लिम तुष्टीकरण के लिए जो गालियाँ देते रही है उसमें सबसे बड़ा उदाहरण "हज सब्सीडी" थी , उन्होंने हज सब्सीडी के सहारे मुसलमानों पर आक्रमण करती नफरत फैलाती राजनीति की है कि कांग्रेस सरकार मुसलमानों को हज कराने के लिए सरकारी पैसा देती है।


2012 में जस्टिस आफताब आलम ने जब हज सब्सीडी खत्म करने का आदेश दिया था तब उन्होंने अपने जजमेन्ट में लिखा था कि इस देश में अन्य धर्म के लोगों के धार्मिक आयोजनों में भी सरकार कहीं अधिक पैसे खर्च करती है इसके बावजूद "हज सब्सीडी" खत्म कर देना चाहिए।

यह फैसला जस्टिस आफताब आलम और जस्टिस रंजना प्रकाश की बेंच का था जस्टिस आफताब आलम मुसलमान थे , फैसले का मुसलमानों ने स्वागत किया और उनको किसी ने गद्दार नहीं कहा , आज हज सब्सीडी खत्म हो गयी तो भी देश के मुसलमानों ने मोदी सरकार के इस फैसले का स्वागत किया।

तीन दिन मैंने प्रतिक्षा किया कि देश में केन्द्र सरकार के इस फैसले से शायद कहीं मुसलमान विरोध प्रदर्शन या आलोचना करे परन्तु पूरे देश से एक भी बयान कहीं नज़र नहीं आया।

जस्टिस आफताब आलम और जस्टिस रंजना प्रकाश की बेंच का हज सब्सीडी के अतिरिक्त अन्य धर्म के धार्मिक कार्यों में किए गये सरकारी खर्च पर टिप्पणी महत्वपूर्ण है और इसका आकलन करके यह समझना आवश्यक है कि यह संघी अपने जन्म से ही किस तरह जनता को मुर्ख बनाते रहे हैं , झूठ बोल कर ज़हर फैलाते रहे हैं।

हक़ीकत तो यह है कि इस देश में चाहे कांग्रेस की सरकार रही हो या भाजपा की तुष्टीकरण सिर्फ़ और सिर्फ़ बहुसंख्यकों का ही हुआ है।

यदि हज सब्सीडी जो मुसलमानों को ना देकर एयर इंडिया को दी जाती रही है "तुष्टीकरण" है तो निम्नलीखित धार्मिक कार्यों में किया जाने वाला धन क्या है ?

1- आर्टिकल 290 A के तहत केरल सरकार हर साल ₹ 46•50 लाख त्रावणकोर देवासम फंड को देती है।

2-तमिलनाडु सरकार देती है ₹13•50 लाख देवासम फंड को मंदिरों की देख रेख करने के लिए।

3-भारत सरकार प्रतिवर्ष ₹10 करोड़ अमरनाथ यात्रा का रास्ता बनाने पर खर्च करती है यद्दपि देश में सड़क बनाने का अलग मंत्रालय और व्यवस्था है।

4- 2017-2018 के राजस्थान सरकार के बजट में वसुंधरा राजे की सरकार ने "देवस्थान विभाग" को ₹38•91 करोड़ धार्मिक कार्य कराने के लिए दिए। राजस्थान में धार्मिक यात्रा कराने के लिए एक अलग से मंत्रालय है और एक मंत्रालय गाय के नाम पर करोड़ों उड़ाने के लिए है।

5- कर्नाटक में गिरीजाघर की देख रेख के लिए वहाँ की सरकार ₹16•056 करोड़ देती है।

6- केन्द्र सरकार चार कुम्भ मेलों जो इलाहाबाद , हरिद्वार , उज्जैन और नासिक में होते हैं उनपर हजारों करोड़ रूपये खर्च करती है।

2014 में इलाहाबाद के मेले में केन्द्र सरकार ने ₹1150 करोड़ खर्च किया था। 2019 के अगले कुंभ के लिए अभी ₹766 करोड़ जारी हो गये

नासिक कुम्भ के लिए महाराष्ट्र सरकार ने ₹2500 करोड़ खर्च किए

यूनियन कल्चरल मीनिस्ट्री मध्यप्रदेश सरकार को सिंहस्थ महाकुंभ के लिए ₹100 करोड़ देती है।

भाजपा की शिवराज चौहान सरकार ने ₹3400 करोड़ 2016 में खर्च किए और अगले सिंहस्थ महाकुंभ में यह बजट ₹5000 करोड़ का होने को है

अखिलेश यादव की समाजवादी उत्तर प्रदेश सरकार ने कैलाश मानसरोवर जाने वाले हर यात्री को ₹50000 दिया जिसे योगी जी ने बढ़ा कर ₹1•00 लाख कर दिया है।

इसके अतिरिक्त योगी सरकार ने लद्दाख जाकर सिन्धू दर्शन करने वाले हर तिर्थ यात्री को ₹10 हज़ार देने का फैसला किया है।

इसके अतिराक्त , दिल्ली , गुजरात , छत्तीसगढ़ , उत्तराखंड , मधयप्रदेश इत्यादि देश के सभी राज्य कैलाश मानसरोवर यात्रियों को पैसे देते हैं।

अमरनाथ यात्रा के लिए केन्द्र सरकार भारी फंड उपलब्ध कराती है इसके अतिरिक्त हर तीसरे दिन देश में पड़ने वाले त्योहारों पर सरकार इंतज़ाम करती है करोड़ों करोड़ रूपये खर्च करती है जबकि यह काम नगर निगमों का होता है।

बाकी अयोध्या में योगी जी द्वारा मनाई दिपावली पर हुआ खर्च भी जोड़ लीजिए।

यह सारी रकम जो अन्य धर्म के धार्मिक गतिविधियों पर खर्च होती है वह लगभग ₹25 हज़ार करोड़ है।

हज सब्सीडी मात्र 400 करोड़ की थी जो एयर इंडिया को दी जाती थी।

इसे ऐसे समझिए कि जैसे कोई मेरी मदद करना चाहे तो वह पैसा "मुकेश अंबानी" को दे दे कि यह वह पैसा है जिससे मैंने मुहम्मद ज़ाहिद की मदद की, इसे तुम खा जाओ।

सोचिएगा इस देश में तुष्टीकरण किसका होता है और गाली कौन खाता है ?

श्रोत :- कुछ आँकड़े "द वायर" से

(लेखक सोशल मीडिया एक्टिविस्ट हैं.)

बाकी ख़बरें