किसान सभा ने भारतीय मजदूरों को इज़राइल भेजने के द्विपक्षीय समझौते को समाप्त करने का आह्वान किया

Published on: April 17, 2024


जैसे-जैसे मध्य पूर्व में स्थिति तेजी से अस्थिर होती जा रही है, भारतीय विदेश मंत्रालय सहित कई देशों ने इज़राइल और ईरान में यात्रा करने एवं रहने वाले अपने नागरिकों के लिए यात्रा सलाह जारी की है। हालाँकि, अपने पाखंड का प्रदर्शन करते हुए, सरकार-से-सरकार (जी2जी) समझौते के हिस्से के रूप में मोदी सरकार ने पिछले सप्ताह निर्माण क्षेत्र में काम करने के लिए 60 से अधिक भारतीय मजदूरों के पहले बैच को इज़राइल की यात्रा की सुविधा प्रदान की है। समाचार रिपोर्टों से पता चलता है कि अगले दो महीनों में 6000 और भारतीय मजदूरों को इज़राइल भेजा जाएगा। नर्सिंग और कृषि क्षेत्रों में कमी को पूरा करने के लिए बड़ी संख्या में भारतीय मजदूरों को भेजने की भी योजना है।

मोदी सरकार का यह कृत्य आपराधिक है कि वो भारतीय मजदूरों को ऐसे अत्यंत संवेदनशील माहौल में भेज रही है, जहां न केवल चल रहे युद्ध के कारण उनके जीवन को खतरा है, बल्कि यहूदी नस्लीय श्रेष्ठता में विश्वास करने वाले ज़ायोनी प्रभाव के तहत नस्लीय/जातीय भेदभाव भी है। इजरायलीयों द्वारा फिलिस्तीनियों के  नरसंहार का विरोध करने के बजाय, मोदी सरकार ज़ायोनी युद्ध मशीन को और सक्षम बना रही है, जिससे भारत की विदेश नीति की अपनी पहचान खो रही है, जो कि ऐतिहासिक तौर पर फिलिस्तीनी आत्मनिर्णय के मुद्दे का समर्थन करने के लिए जानी जाती थी।

इज़राइल में भारतीय मजदूरों की आपूर्ति की द्विपक्षीय व्यवस्था ऐसे समय में हुई है जब मोदी सरकार देश के भीतर रोजगार पैदा करने में पूरी तरह से विफल रही है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग ऑफ इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के नवीनतम आंकड़ों से पता चलता है कि 2023-24 में 15 साल से अधिक उम्र के लोगों में बेरोजगारी दर 8 प्रतिशत थी। वर्तमान में लगभग 3 करोड़ 70 लाख लोग सक्रिय रूप से रोजगार की तलाश में हैं। आवधिक श्रम भागीदारी डेटा यह भी इंगित करता है कि वर्तमान रोजगार दरें महामारी-पूर्व अवधि की तुलना में बहुत कम हैं। भारतीय कृषि पर लगातार दबाव बढ़ रहा है, जिसमें एक बड़ी श्रम शक्ति लगी हुई है। हालांकि, वहां भी मजदूरी स्थिर हो गई है, और कृषि आय गिर रही है। मोदी सरकार का 2 करोड़ नौकरियों का वादा सिर्फ एक कल्पना बनकर रह गया है।

घरेलू रोजगार पैदा करने में अपनी पूरी विफलता को छिपाने के लिए, मोदी सरकार 7 अक्टूबर 2023 के बाद गाजा संघर्ष शुरू होने के बाद से, नरसंहार करने वाली इज़राइल सरकार और उसके व्यवसायों के श्रम की कमी को पूरा करने में सक्रिय रूप से मदद कर रही है। इज़राइल द्वार एक लाख से अधिक फ़िलिस्तीनी मजदूरों को परमिट दिया गया था, जिन की आवाजाही पर अब प्रतिबंध लगा दिया गया है। परिणामस्वरूप श्रम की कमी ने इज़राइल व्यापारियों को प्रवासी श्रमिकों की लाने के लिए ग्लोबल साउथ के देशों की ओर देखने के लिए प्रेरित किया है। व्यवसाई -से-व्यवसाई  (बी2बी) तंत्र के हिस्से के रूप में, मुख्य रूप से निर्माण क्षेत्र में काम करने के लिए, पहले से ही 900 भारतीय मजदूर इज़राइल जा चुके हैं। भारत से भर्तियाँ उत्तर भारतीय राज्यों हरियाणा, उत्तर प्रदेश से की गईं और इस में राष्ट्रीय कौशल विकास परिषद द्वारा सुविधा प्रदान की गई।

इसके अलावा भर्ती किए गए मजदूरों को कोई भी सामाजिक सुरक्षाप्रदान नहीं की जाती है, जो संघर्ष क्षेत्रों में काम करने वालों के लिए आवश्यक होती है। मजदूरों को अपनी उड़ान टिकटों का भुगतान भी स्वयं करना होगा और उन्हें इज़राइल पहुंचने पर ही अनुबंध प्राप्त होगा। घर पर रोजगार की कमी के कारण, हताश मजदूरों को इज़राइल में नौकरियों को स्वीकार करने के लिए उच्च वेतन का लालच दिया गया है – उन्हें वहा के जीवनयापन की अत्यधिक उच्च लागत के बारे में पता नहीं है जो उनकी अधिकांश आय को खर्च करवा देगी। इससे पहले भारतीय भवन निर्माण मजदूर यूनियन के एक बयान में इन चिंताओं को उठाया गया था और फिलिस्तीनी मजदूरों के स्थान पर भारतीय मजदूरों को इज़राइल भेजे जाने पर रोक लगाने का आह्वान किया गया था। रिपोटो से पता चलता है कि निर्माण और नर्सिंग उद्योगों के अलावा, लगभग 800 भारतीय मजदूर इज़राइल में खेत मजदूर  के रूप में कृषि क्षेत्र में भी शामिल हो गए हैं। मार्च में, उत्तरी इज़राइल के एक खेत पर मिसाइल हमले में केरल के 31 वर्षीय व्यक्ति निबिन मैक्सवेल की मौत हो गई थी। राज्य के दो अन्य लोग घायल हो गए थे।

आईटीयूसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, गैर-इजरायल मजदूरों द्वारा, कार्य परमिट रद्द करना, अन्यायपूर्ण वेतन कटौती, सुरक्षा मनकों में भेदभाव और नस्लीय भेदभाव के अन्य रूपों का अनुभव किया गया है। निरंतर मीडिया हमले के माध्यम से फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ नरसंहार युद्ध के लिए समाज में लामबंद की जा रही है, ज़ायोनी दक्षिणपंथी राजनीतिक समूहों द्वारा नस्लीय तनाव को और अधिक  भड़कया जा रहा है। ऐसी स्थिति में, भारतीय मजदूरों के साथ उनके नियोक्ताओं या ज़ायोनी समूहों के कैडरों द्वारा भेदभावपूर्ण व्यवहार किया जाना स्वाभाविक है। इससे एक बार फिर उनके जीवन और सम्मान को खतरा पैदा हो गया है।

अखिल भारतीय किसान सभा इन भर्तियों को तत्काल रोकने और भारतीय मजदूरों को  इज़राइल भेजने पर रोक का आह्वान किया है। भारत सरकार को पहले से इज़राइल में भेजे गए भारतीय मजदूरों की सुरक्षा और उन्हें वापस लेन के लिए तत्काल व्यवस्था करनी चाहिए। हिंदुत्ववादी-मोदी और ज़ायोनी-नेतन्याहू सरकारों के बीच द्विपक्षीय समझौते ने गरीब भारतीय मजदूरों  के जीवन और सम्मान को खतरे में डाल दिया है। इन्हें सरकारों को  खत्म करने की जरूरत है। इज़राइल द्वारा फ़िलिस्तीनी लोगों के नरसंहार में भारतीय मजदूर  बलि का बकरा नहीं बन सकते।

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