कॉरपोरेट मीडिया और पत्रकारों का एक बड़ा गर्व मोदी और उनकी सरकार का घोषित प्रवक्ता बन गया है। जो गिने-चुने मीडिया घराने और पत्रकार सवाल उठा रहे हैं उनका मुंह बंद करने की कोशिश हो रही है।
सरकार के आगे बिछने से इनकार करने वाले एनडीटीवी पर शिकंजे की कोशिश का जोरदार विरोध शुरू हो गया है। पहले पठानकोट पर हमले में सेना की लापरवाही उजागर करने वाले इस चैनल की बांहें मरोड़ने की कोशिश और अब इसकी एंकर निधि राजदान और बीजेपी नेता संबित पात्रा के बीच ऑन एयर टकराव के बाद इसके मालिकों के खिलाफ तलाशी अभियान ने साबित कर दिया है कि सरकार असहमति की आवाज दबाने की किस कदर कोशिश कर रही है।शुक्रवार को राजधानी दिल्ली के प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में एनडीटीवी के मालिक प्रणय राय ने अपने चैनल के खिलाफ सीबीआई के आरोपों को हास्यास्पद और मनगढ़ंत तथ्यों पर आधारित करार दिया। उनके साथ आ जुटे कुलदीप नैयर, अरुण शौरी, शेखर गुप्ता, एच के दुआ जैसे वरिष्ठ पत्रकारों और फाली एस नरीमन जैसे कानूनविदों ने कहा कि एनडीटीवी और इसके मालिकों प्रणय राय और राधिका राय के घरों में सीबीआई तलाशी आजाद प्रेस का गला घोंटने की कोशिश है। यह इमरजेंसी के दिनों की याद दिलाता है।
अरुण शौरी ने पीएम नरेंद्र की ओर इशारा करते हुए कहा कि जो आपके सामने गद्दी पर बैठे हैं, उन्हें गुमान हो गया है कि वो खुदा हैं। सरकार जिस तरह आरटीआई और अपने खिलाफ खबरों का गला घोंटने को उतारू है, उसमें पत्रकारों को आगे आकर अपने पाठकों और दर्शकों के सामने सच को उजागर करना चाहिए।
यूं तो 2014 के चुनाव से पहले ही कॉरपोरेट मीडिया ने मोदी के पक्ष में जबरदस्त हवा बनानी शुरू कर दी थी लेकिन सत्ता में आने के बाद वह सरकार का घोषित प्रवक्ता बन गया है। अब विरोध करने वाले गिने-चुने मीडिया घरानों को खत्म करने की कोशिश हो रही है। एनडीटीवी जैसा चैनल जो सरकार के कामकाज पर बारीक निगाह रखता है, उसे परेशान करने का सिलसिला मोदी सरकार के सत्ता में आते ही शुरू हो गया था। चैनल के साथ सरकार ने पूरा असहयोगी रवैया अपना लिया था। एक वक्त में बीजेपी के किसी भी नेता ने इसके चैनल पर जाना छोड़ दिया।
सरकारी विज्ञापन कम कर दिए गए थे और सरकार विरोधी इसके एंकरों के खिलाफ जम कर ट्रोल का खेल खेला जा रहा था। दरअसल, बीजेपी की संस्कृति में असहमति और असुविधाजनक सवाल किए जाने की परंपरा नहीं है। जाहिर है इसकी पार्टी की सरकार मीडिया की ओर से परेशानी का सबब बनने वाले सवालों का खड़ा करना कैसे बर्दाश्त कर सकती थी। यही वजह है कि सच का साथ देने वाले पत्रकारों और मीडिया घरानों को परेशान किया जा रहा है। छत्तीसगढ़ से लेकर दिल्ली तक बेबाक सवाल उठाने वाले पत्रकारों को धमकियां दी जा रही हैं। उन पर हमले करवाए जा रहे हैं और उनका मुंह बंद कराने की कोशिश हो रही है। पत्रकारों का एक बड़ा वर्ग और बड़ी तादाद में कॉरपोरेट मीडिया घरानों ने सच दिखाने और बताने से मुंह मोड़ लिया है। भारत जैसी डेमोक्रेसी के लिए यह कहीं से अच्छा नहीं है।