पिछले सप्ताह देहरादून प्रेस क्लब धार्मिक नेताओं के एक समूह द्वारा आयोजित चौंकाने वाले कार्यक्रम का एक अप्रत्याशित मंच बन गया। वहां उन्होंने अन्य भड़काऊ टिप्पणियों के अलावा मुसलमानों के खिलाफ हिंसा का खुलेआम आह्वान किया।
प्रेस क्लब के मंच से हिंदुओं को हथियारबंद करने और मुसलमानों को बदनाम करने के भड़काऊ भाषण दिए गए। यति रामस्वरूपानंद गिरि ने हिंदुओं से "अपने परिवार की महिलाओं की सुरक्षा" के लिए हथियारबंद होने का आग्रह किया।
पिछले सप्ताह देहरादून प्रेस क्लब धार्मिक नेताओं के एक समूह द्वारा आयोजित चौंकाने वाले कार्यक्रम का एक अप्रत्याशित मंच बन गया। वहां उन्होंने अन्य भड़काऊ टिप्पणियों के अलावा मुसलमानों के खिलाफ हिंसा का खुलेआम आह्वान किया।
न्यूज़लॉन्ड्री की एक रिपोर्ट के अनुसार, मुख्य वक्ताओं में से एक यति रामस्वरूपानंद गिरि ने समाज को बांटने वाला और भड़काऊ भाषण दिया। इसके जरिए उन्होंने हिंदुओं से "अपने परिवार की महिलाओं की सुरक्षा" के लिए हथियारबंद होने का आग्रह किया। रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने कहा था कि, "कुरान पढ़ने और उस पर विश्वास करने वाला हर व्यक्ति आतंकवादी बन जाता है।" इस तरह के कार्यक्रम के जरिए खुलेआम "सनातनी हिंदुओं" के लिए प्रचारित किया गया था।
कार्यक्रम और दिया गया भाषण
भड़काऊ भाषणों के मामले में बार-बार अपराधी रहे रामस्वरूपानंद ने 10 सितंबर के इस कार्यक्रम का इस्तेमाल डर और नफरत फैलाने के लिए किया जिसमें बांग्लादेश में महिलाओं के खिलाफ हिंसा की मनगढ़ंत कहानियों सहित मुसलमानों के बारे में झूठे और भयावह आरोप शामिल थे। उन्होंने दिसंबर में आगामी "विश्व धर्म संसद" की घोषणा भी की जिसमें उत्तराखंड को "इस्लाम-मुक्त" बनाने के तरीकों पर चर्चा करने का संकल्प लिया है।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जैसे प्रमुख लोगों को कार्यक्रम के प्रचार में टैग करने के बावजूद 10 सितंबर को सोशल मीडिया पर साझा किए गए रामस्वरूपानंद के निमंत्रण को शुरू में कोई खास सफलता नहीं मिली। हालांकि, इस कार्यक्रम के वीडियो जल्दी ही वायरल हो गए जिसके बाद डालनवाला पुलिस ने स्वतः संज्ञान लेते हुए कार्रवाई की। रामस्वरूपानंद और उनके साथी महंत गिरि पर भारतीय दंड संहिता 2023 की धारा 196 (दुश्मनी को बढ़ावा देना) और 353 (सार्वजनिक उपद्रव) के तहत आरोप लगाए गए हैं।
देहरादून के एसएसपी अजय सिंह ने सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देशों का हवाला देते हुए, नफरत फैलाने वाले भाषण के मामलों में तत्काल कार्रवाई करने के लिए एफआईआर दर्ज करने के बारे में कहा। उन्होंने लोगों से ऑनलाइन ऐसी नुकसान पहुंचाने वाली सामग्री से न जुड़ने का आग्रह किया और उन्हें ऐसे मामलों पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के बारे में बताया।
बड़ा सवाल यह है कि इस तरह की नफरती वाली बयानबाजी की वकालत करने वाले कार्यक्रम को प्रेस क्लब में मंच कैसे मिला? न्यूज़लॉन्ड्री की रिपोर्ट के अनुसार, देहरादून प्रेस क्लब के अध्यक्ष अजय राणे ने बताया कि हॉल किराए पर सार्वजनिक कार्यक्रमों के लिए उपलब्ध है और क्लब आमतौर पर कार्यक्रमों की सामग्री को स्क्रीन नहीं करता है। जब इस तरह के दुरुपयोग को रोकने के लिए मौजूद दिशा-निर्देशों के बारे में पूछा गया तो राणे ने स्वीकार किया, लेकिन उनकी विशिष्टता या लागू होने पर सफाई देने से इनकार कर दिया।
प्रेस क्लब के एक सदस्य ने यह भी खुलासा किया कि पुलिस द्वारा कार्रवाई किए जाने के बाद क्लब में भाषणों के लिए "क्या करें और क्या न करें" की रूपरेखा तैयार करते हुए एक नोटिस चिपका दिया गया। हालांकि, पूर्व निरीक्षण की कमी एक महत्वपूर्ण मुद्दा बनी हुई है, खासकर जब दिल्ली प्रेस क्लब जैसे अन्य क्लबों से तुलना की जाती है, जहां कार्यक्रम आयोजकों के लिए नफरत फैलाने वाले भाषणों के खिलाफ़ एक वचनबद्धता सहित सख्त प्रोटोकॉल लागू किए जाते हैं।
इन टिप्पणियों की गंभीरता के बावजूद उपस्थित कई पत्रकारों ने सीधे तौर पर संत को चुनौती नहीं दी। कुछ ने सवाल किया कि वे बेरोज़गारी जैसे अन्य ज्वलंत मुद्दों पर बात क्यों नहीं कर रहे हैं, लेकिन रामस्वरूपानंद ने अपने खास तीखे अंदाज़ में जवाब दिया बढ़ती मुस्लिम आबादी के सामने हिंदुओं पर "नपुंसक" बनने का आरोप लगाया जो कि सांप्रदायिक डर को भड़काने के इरादे से किया गया एक निराधार दावा है।
धार्मिक कट्टरता की बढ़ती प्रवृत्ति और सार्वजनिक मंचों की भूमिका:
नितिन सेठी जैसे बड़े पत्रकारों ने इस बात पर आश्चर्य और नाराजगी जाहिर किया कि देहरादून प्रेस क्लब में इस तरह के खुलेआम नफरत भरे भाषण की अनुमति दी गई। उन्होंने कहा कि यह कार्यक्रम उत्तराखंड में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के चल रहे पैटर्न का हिस्सा था। यह एक परेशान करने वाली प्रवृत्ति है जिसने क्लब के प्रबंधन को खतरे में डाल दिया।
न्यूज़लॉन्ड्री की रिपोर्ट के अनुसार सेठी ने टिप्पणी की, "नफरत फैलाने वाले को इस तरह के सार्वजनिक मंच का दुरुपयोग करने की अनुमति देना एक अपराध को बढ़ावा देने के समान है।" उन्होंने कहा कि कार्यक्रम के वक्ताओं के खिलाफ गंभीर कार्रवाई की कमी पुलिस की तथाकथित स्वतः-संज्ञान की कार्रवाई को कमजोर करती है।
स्थानीय पाक्षिक नैनीताल समाचार के प्रधान संपादक राजीव लोचन शाह ने इन्हीं चिंताओं को दोहराया। उन्होंने पत्रकारों से आह्वान किया कि जब ऐसी नफरत की घटना हो तो उसका सामना करने में अधिक सक्रिय भूमिका निभाएं। उन्होंने कहा, "कोई भी व्यक्ति किसी स्थान को बुक कर सकता है और प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सकता है, लेकिन इस तरह के खुलेआम नफरत भरे भाषण के मामले में पत्रकारों को तुरंत ही मामला उठाना चाहिए था।"
यह घटना धार्मिक कट्टरता के बढ़ते चलन को उजागर करती है जो अक्सर बहुत कम प्रतिरोध या जवाबदेही के साथ सार्वजनिक मंचों पर दिखाई देती है और देहरादून प्रेस क्लब जैसी संस्थाएं अपनी जगह का इस्तेमाल नफरत फैलाने के लिए करने से रोकने में विफल रही हैं। कानूनी कार्रवाई किए जाने के बावजूद उत्तराखंड और पूरे देश में इस तरह की घटनाओं का जारी रहना भारत में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण और हिंसा से निपटने की बढ़ती चुनौती का संकेत देता है।
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पिछले सप्ताह देहरादून प्रेस क्लब धार्मिक नेताओं के एक समूह द्वारा आयोजित चौंकाने वाले कार्यक्रम का एक अप्रत्याशित मंच बन गया। वहां उन्होंने अन्य भड़काऊ टिप्पणियों के अलावा मुसलमानों के खिलाफ हिंसा का खुलेआम आह्वान किया।
न्यूज़लॉन्ड्री की एक रिपोर्ट के अनुसार, मुख्य वक्ताओं में से एक यति रामस्वरूपानंद गिरि ने समाज को बांटने वाला और भड़काऊ भाषण दिया। इसके जरिए उन्होंने हिंदुओं से "अपने परिवार की महिलाओं की सुरक्षा" के लिए हथियारबंद होने का आग्रह किया। रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने कहा था कि, "कुरान पढ़ने और उस पर विश्वास करने वाला हर व्यक्ति आतंकवादी बन जाता है।" इस तरह के कार्यक्रम के जरिए खुलेआम "सनातनी हिंदुओं" के लिए प्रचारित किया गया था।
कार्यक्रम और दिया गया भाषण
भड़काऊ भाषणों के मामले में बार-बार अपराधी रहे रामस्वरूपानंद ने 10 सितंबर के इस कार्यक्रम का इस्तेमाल डर और नफरत फैलाने के लिए किया जिसमें बांग्लादेश में महिलाओं के खिलाफ हिंसा की मनगढ़ंत कहानियों सहित मुसलमानों के बारे में झूठे और भयावह आरोप शामिल थे। उन्होंने दिसंबर में आगामी "विश्व धर्म संसद" की घोषणा भी की जिसमें उत्तराखंड को "इस्लाम-मुक्त" बनाने के तरीकों पर चर्चा करने का संकल्प लिया है।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जैसे प्रमुख लोगों को कार्यक्रम के प्रचार में टैग करने के बावजूद 10 सितंबर को सोशल मीडिया पर साझा किए गए रामस्वरूपानंद के निमंत्रण को शुरू में कोई खास सफलता नहीं मिली। हालांकि, इस कार्यक्रम के वीडियो जल्दी ही वायरल हो गए जिसके बाद डालनवाला पुलिस ने स्वतः संज्ञान लेते हुए कार्रवाई की। रामस्वरूपानंद और उनके साथी महंत गिरि पर भारतीय दंड संहिता 2023 की धारा 196 (दुश्मनी को बढ़ावा देना) और 353 (सार्वजनिक उपद्रव) के तहत आरोप लगाए गए हैं।
देहरादून के एसएसपी अजय सिंह ने सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देशों का हवाला देते हुए, नफरत फैलाने वाले भाषण के मामलों में तत्काल कार्रवाई करने के लिए एफआईआर दर्ज करने के बारे में कहा। उन्होंने लोगों से ऑनलाइन ऐसी नुकसान पहुंचाने वाली सामग्री से न जुड़ने का आग्रह किया और उन्हें ऐसे मामलों पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के बारे में बताया।
बड़ा सवाल यह है कि इस तरह की नफरती वाली बयानबाजी की वकालत करने वाले कार्यक्रम को प्रेस क्लब में मंच कैसे मिला? न्यूज़लॉन्ड्री की रिपोर्ट के अनुसार, देहरादून प्रेस क्लब के अध्यक्ष अजय राणे ने बताया कि हॉल किराए पर सार्वजनिक कार्यक्रमों के लिए उपलब्ध है और क्लब आमतौर पर कार्यक्रमों की सामग्री को स्क्रीन नहीं करता है। जब इस तरह के दुरुपयोग को रोकने के लिए मौजूद दिशा-निर्देशों के बारे में पूछा गया तो राणे ने स्वीकार किया, लेकिन उनकी विशिष्टता या लागू होने पर सफाई देने से इनकार कर दिया।
प्रेस क्लब के एक सदस्य ने यह भी खुलासा किया कि पुलिस द्वारा कार्रवाई किए जाने के बाद क्लब में भाषणों के लिए "क्या करें और क्या न करें" की रूपरेखा तैयार करते हुए एक नोटिस चिपका दिया गया। हालांकि, पूर्व निरीक्षण की कमी एक महत्वपूर्ण मुद्दा बनी हुई है, खासकर जब दिल्ली प्रेस क्लब जैसे अन्य क्लबों से तुलना की जाती है, जहां कार्यक्रम आयोजकों के लिए नफरत फैलाने वाले भाषणों के खिलाफ़ एक वचनबद्धता सहित सख्त प्रोटोकॉल लागू किए जाते हैं।
इन टिप्पणियों की गंभीरता के बावजूद उपस्थित कई पत्रकारों ने सीधे तौर पर संत को चुनौती नहीं दी। कुछ ने सवाल किया कि वे बेरोज़गारी जैसे अन्य ज्वलंत मुद्दों पर बात क्यों नहीं कर रहे हैं, लेकिन रामस्वरूपानंद ने अपने खास तीखे अंदाज़ में जवाब दिया बढ़ती मुस्लिम आबादी के सामने हिंदुओं पर "नपुंसक" बनने का आरोप लगाया जो कि सांप्रदायिक डर को भड़काने के इरादे से किया गया एक निराधार दावा है।
धार्मिक कट्टरता की बढ़ती प्रवृत्ति और सार्वजनिक मंचों की भूमिका:
नितिन सेठी जैसे बड़े पत्रकारों ने इस बात पर आश्चर्य और नाराजगी जाहिर किया कि देहरादून प्रेस क्लब में इस तरह के खुलेआम नफरत भरे भाषण की अनुमति दी गई। उन्होंने कहा कि यह कार्यक्रम उत्तराखंड में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के चल रहे पैटर्न का हिस्सा था। यह एक परेशान करने वाली प्रवृत्ति है जिसने क्लब के प्रबंधन को खतरे में डाल दिया।
न्यूज़लॉन्ड्री की रिपोर्ट के अनुसार सेठी ने टिप्पणी की, "नफरत फैलाने वाले को इस तरह के सार्वजनिक मंच का दुरुपयोग करने की अनुमति देना एक अपराध को बढ़ावा देने के समान है।" उन्होंने कहा कि कार्यक्रम के वक्ताओं के खिलाफ गंभीर कार्रवाई की कमी पुलिस की तथाकथित स्वतः-संज्ञान की कार्रवाई को कमजोर करती है।
स्थानीय पाक्षिक नैनीताल समाचार के प्रधान संपादक राजीव लोचन शाह ने इन्हीं चिंताओं को दोहराया। उन्होंने पत्रकारों से आह्वान किया कि जब ऐसी नफरत की घटना हो तो उसका सामना करने में अधिक सक्रिय भूमिका निभाएं। उन्होंने कहा, "कोई भी व्यक्ति किसी स्थान को बुक कर सकता है और प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सकता है, लेकिन इस तरह के खुलेआम नफरत भरे भाषण के मामले में पत्रकारों को तुरंत ही मामला उठाना चाहिए था।"
यह घटना धार्मिक कट्टरता के बढ़ते चलन को उजागर करती है जो अक्सर बहुत कम प्रतिरोध या जवाबदेही के साथ सार्वजनिक मंचों पर दिखाई देती है और देहरादून प्रेस क्लब जैसी संस्थाएं अपनी जगह का इस्तेमाल नफरत फैलाने के लिए करने से रोकने में विफल रही हैं। कानूनी कार्रवाई किए जाने के बावजूद उत्तराखंड और पूरे देश में इस तरह की घटनाओं का जारी रहना भारत में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण और हिंसा से निपटने की बढ़ती चुनौती का संकेत देता है।
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