बाबरी मस्जिद के प्रमुख मुद्दई बोले- मस्जिद के लिए जमीन 67 एकड़ अधिग्रहीत भूमि में से ही दी जाए

Written by sabrang india | Published on: November 12, 2019
अयोध्या: राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में प्रमुख मुद्दई रहे इकबाल अंसारी तथा कुछ मुस्लिम धर्मगुरुओं ने केंद्र सरकार से वर्ष 1991 में अधिग्रहीत की गई भूमि में से मस्जिद के लिए जमीन देन की मांग की है। विवादित ढांचे के आसपास की 67 एकड़ जमीन 1991 में केंद्र सरकार ने अधिग्रहित कर ली थी।



अंसारी ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के आदेशानुसार, अगर सरकार हमें जमीन देना चाहती है तो वह उसी 67 एकड़ हिस्से में से होनी चाहिए, जिसे केंद्र ने अधिग्रहित किया था। हम तभी इसे स्वीकार करेंगे, नहीं तो हम जमीन लेने से इनकार कर देंगे। मौलाना जमाल अशरफ नामक स्थानीय धर्मगुरु ने कहा कि मुस्लिम समुदाय मस्जिद बनाने के लिए अपने पैसे से जमीन खरीद सकते हैं और वे इसके लिए केंद्र सरकार पर निर्भर नहीं हैं।

उन्होंने कहा कि सरकार अगर हमें कुछ तसल्ली देना चाहती है तो उसे 1991 में अधिग्रहित की गई 67 एकड़ भूमि में से ही कोई जमीन देनी चाहिए। उस जमीन पर कई कब्रिस्तान और सूफी संत काजी क़िदवा समेत कई दरगाहे हैं।

मामले के एक अन्य मुद्दई हाजी महबूब ने कहा कि हम झुनझुना स्वीकार नहीं करेंगे। सरकार को साफ तौर पर बताना होगा कि वह हमें कहां जमीन देने जा रही है। जमीअत उलमा-ए-हिंद की अयोध्या इकाई के अध्यक्ष मौलाना बादशाह खान ने कहा कि मुसलमान बाबरी मस्जिद का मुकदमा लड़ रहे थे, न कि किसी जमीन का। हमें मस्जिद के बदले कहीं कोई जमीन नहीं चाहिए, बल्कि हम उस जमीन को भी राम मंदिर निर्माण के लिए दे देंगे।

सामाजिक कार्यकर्ता यूसुफ खान ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद यह मुद्दा खत्म हो गया है। मस्जिद के लिए अतिरिक्त जमीन की जरूरत नहीं। उन्होंने कहा, ‘धार्मिक जरूरतों को पूरा करने के लिए अयोध्या में पर्याप्त मस्जिदें हैं। शीर्ष अदालत ने अपना फैसला राम मंदिर के पक्ष में दिया है। मामला अब खत्म हो चुका है।’

इस बीच, सूत्रों ने बताया कि उत्तर प्रदेश सरकार ने मस्जिद का निर्माण के लिए अयोध्या के अंदर और उसके आसपास जमीन तलाशने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। एक अधिकारी ने गोपनीयता की शर्त पर बताया कि हमसे किसी प्रमुख स्थान पर मस्जिद के निर्माण के लिए जमीन तलाशने को कहा गया है। हालांकि अयोध्या मामले के प्रमुख पक्षकार सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड उत्तर प्रदेश ने जमीन लेने या न लेने के संबंध में आगामी 26 नवंबर को होने वाली अपनी बैठक में निर्णय लेने की बात कही है।

गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 9 नवंबर को अयोध्या मामले में फैसला सुनाते हुए विवादित स्थल पर राम मंदिर का निर्माण कराने और मुसलमानों को मस्जिद बनाने के लिए किसी प्रमुख स्थान पर पांच एकड़ जमीन देने का आदेश दिया था।

फैसले के तहत राम जन्मभूमि न्यास को 2।77 एकड़ ज़मीन का मालिकाना हक़ दे दिया गया है और मंदिर निर्माण के लिए केंद्र सरकार को तीन महीने के अंदर बनाना होगा ट्रस्ट। वहीं सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड को अयोध्या में ही पांच एकड़ ज़मीन दी जाएगी। शीर्ष अदालत ने 1045 पन्नों के फैसले में कहा था, ‘केंद्र सरकार इस फैसले की तारीख से तीन महीने की अवधि के भीतर ‘अयोध्या में कुछ क्षेत्रों के अधिग्रहण से संबंधित अधिनियम, 1993’ के तहत एक योजना बनाएगी।’ उन्होंने कहा था, ‘इस योजना में एक ट्रस्ट के गठन का भी विचार शामिल होगा जिसमें एक न्यासी बोर्ड या अन्य कोई उचित इकाई होगी।’ सर्वोच्च अदालत ने निर्मोही अखाड़ा और शिया वक्फ बोर्ड की याचिका खारिज कर दी थी।

सरकार ने अयोध्या राम मंदिर ट्रस्ट के गठन की प्रक्रिया शुरू की
इधर, केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय के आदेश के अनुसार राम जन्मभूमि मामले में मंदिर निर्माण के लिए ट्रस्ट के गठन की प्रक्रिया शुरू कर दी है और कुछ अधिकारियों की टीम अदालत के फैसले का विस्तृत अध्ययन कर रही है। अधिकारियों ने सोमवार को यह जानकारी दी। उक्त न्यास के गठन पर विधि मंत्रालय और अटॉर्नी जनरल की राय ली जाएगी। यह ट्रस्ट ही अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की रूपरेखा तैयार करेगा।

एक अधिकारी ने बताया कि अधिकारियों के एक दल को शीर्ष अदालत के फैसले का विस्तार से अध्ययन करने को कहा गया है ताकि अदालत के निर्देश के अनुरूप ही ट्रस्ट का गठन किया जाए। उन्होंने कहा कि इस संबंध में परामर्श चल रहा है और अब तक कोई फैसला नहीं हुआ है। एक अन्य अधिकारी ने हालांकि कहा कि अभी यह साफ नहीं है कि क्या अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए बनाए गए ट्रस्ट की नोडल इकाई गृह मंत्रालय या संस्कृति मंत्रालय में से कोई होगा।

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