नवरात्रि शुरू होने से पहले ही फलाहार सामग्री पर महंगाई का मीटर बढ़ने लगा है। कई खाद्य सामग्री ऐसी हैं जिन पर 50 रुपये किलो तक अभी से महंगाई हो गई है। फुटकर दुकानदार बताते हैं कि उनको थोक में जो रेट मिलता है उसी के अनुसार फुटकर में बिक्री करते हैं। फलाहार के सामान से लेकर अब फलों के दामों में भी बढ़ोत्तरी हो गई है।
15 अक्टूबर से शारदीय नवरात्रि शुरू हो रहे हैं। नवरात्रि से पहले ही महंगाई की मार पड़ने लगी है। व्रत में खाने वाले खाद्य पदार्थों की कीमतों में बढ़ोतरी हो गई है। अगर खाली व्रत में खाई जाने वाली सब्जियों की बात करें तो लौकी, टमाटर, आलू, हरी धनिया, नींबू में शुक्रवार से ही दाम बढ़ गए हैं।
अचानक लाल हुआ टमाटर
शुक्रवार को 40 से 45 रुपये किलो बिकने लगा। इसके और भी महंगे होने की उम्मीद है। वहीं कई खाद्य सामग्री तो ऐसी हैं जिन पर 30 से 50 रुपये तक की बढ़ोतरी हुई है। तीन दिन पहले तक टमाटर फुटकर में 20 रुपये किलो तक बिक रहा था लेकिन नवरात्रि की आहट होते ही इसके दाम दो गुने से ज्यादा हो गए हैं।
फलाहार सामग्री हुई महंगी
इसके अलावा, नवरात्रि शुरू होने से पहले ही फलाहार सामग्री पर महंगाई का मीटर बढ़ने लगा है। कई खाद्य सामग्री ऐसी हैं जिन पर 50 रुपये किलो तक अभी से महंगाई हो गई है। फुटकर दुकानदार बताते हैं कि उनको थोक में जो रेट मिलता है उसी के अनुसार फुटकर में बिक्री करते हैं।
ताजा रेट
मखाना जहां 20 दिन पहले 600 रुपये किलो बिक रहा था।
वहीं मखाने की कीमत अब 700 से 750 रुपये किलो हो गई है।
सिंघाड़े का आटा 70 से 90 रुपये किलो बिक रहा था।
कुट्टू का आटा अब 90 से 110 रुपये किलो हो गया है।
साबूदाना 80 से 100 रुपये किलो हो गया है।
फल के दामों में भी होगी बढोत्तरी
कुछ किराना व्यापारियों की माने तो नवरात्रिि में फल के दामों में भी उछाल आने की संभावना है। सेब से लेकर अनार तक के दाम बढ़ सकते हैं।
जान लें दाम
फलाहार सामग्री - पहले - अब
मखाना - 600- 650 700-750
साबूदाना - 70-80 100-120
सिंघाड़े का आटा - 70-80 90
कुट्टू का आटा - 80-90 100
मूंगफली दाना - 100-120 140-160
जीवन के हर क्षेत्र में महंगाई की मार
अगर नवरात्रिों में खाने पीने की महंगाई की बात छोड़ दें तो हर क्षेत्र में महंगाई की मार पड़ रही है।
घरेलू बचत 5 साल के निचले स्तर पर
रिजर्व बैंक द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, भारत की घरेलू बचत दर वित्त वर्ष 2022-23 में पांच दशकों के निचले स्तर पर पहुंच गई। 18 सितंबर को जारी इन आंकड़ों के मुताबिक वित्त वर्ष 2022-23 में देश की शुद्ध घरेलू बचत पिछले साल की तुलना में 19 फीसदी कम रही है। 2021-22 में देश की शुद्ध घरेलू बचत जीडीपी के 7.2 फीसदी पर थी जो इस साल और घटकर सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के लगभग 5 दशक के निचले स्तर 5.1 प्रतिशत पर आ गई है।
दूसरी ओर, भारतीय परिवारों पर अधिक वित्तीय देनदारियों का बोझ बढ़ रहा है। जो गंभीर आय संकट और दबी हुई मांग के कारण महामारी के बाद खपत में वृद्धि का संकेत दे रहा है। 2022-23 में परिवारों की वित्तीय देनदारियां सकल घरेलू उत्पाद का 5.8 प्रतिशत बढ़ गईं, जबकि 2021-22 में यह 3.8 प्रतिशत थी, जिससे यह भी संकेत मिलता है कि खपत का कुछ हिस्सा ऋण द्वारा वित्तपोषित किया जा रहा था।
अब देखा जाए तो ऐसा कहा जाता है कि भारत में कमाने वाले तेजी से बढ़ रहे हैं। लोगों की आमदनी बढ़ रही है। प्रति व्यक्ति आय भी बढ़ रही है। लेकिन सच्चाई यह है कि जो भी कमा रहे हैं, उसे खर्च कर दे रहे हैं, उड़ा रहे हैं। बचत (Saving) में काफी कमी हो गई है। स्थिति यह है कि भारत का घरेलू बचत 50 साल के निचले स्तर पर आ गया है। यह कहना है हाउसहोल्ड एसेट और लायबिलिटीज पर रिजर्व बैंक की एक ताजा रिपोर्ट का।
शिक्षा 12% तो स्वास्थ्य खर्च 14% प्रतिशत तक बढ़ा
इस सबके इतर शिक्षा और स्वास्थ्य के खर्च में इजाफे ने मुश्किलें बढा दी है। जनसत्ता की एक रिपोर्ट के अनुसार, सर्वे में 36 प्रतिशत लोगों ने बढ़ते स्वास्थ्य खर्च, 35 प्रतिशत ने शिक्षा के खर्च में इजाफा को चिंता का कारण बताया है, क्योंकि शिक्षा की महंगाई हर साल 11 से 12 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है, वहीं इलाज हर साल 14 प्रतिशत महंगा हो रहा है। 24 प्रतिशत लोगों ने खराब मेंटल हालात और अपने फिजिकल हेल्थ स्टेटस को लेकर चिंता जताई है। जबकि 23 प्रतिशत लोगों को नौकरी खोने का डर है और 19 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उनके पास न तो पर्याप्त लाइफ और न ही हेल्थ इंश्योरेंस कवर है।
जून 2023 में इस सर्वे को पूरा किया गया है। सर्वे में भाग लेने वालों में 36 फीसदी ने बढ़ते स्वास्थ्य खर्च, 35 फीसदी शिक्षा के खर्च में इजाफा, 27 फीसदी मंदी और उसके प्रभाव, 24 फीसदी खराब मेंटल हालात, 24 फीसदी फिजिकल हेल्थ स्टेट्स, 23 फीसदी नौकरी खोने का डर और 19 फीसदी ने पर्याप्त लाइफ और हेल्थ इंश्योरेंस के नहीं होने को चिंता का कारण करार दिया है।
मनी कंट्रोल के मुताबिक एसबीआई लाइफ इंश्योरेंस ने ये स्टडी डेलॉएट इंडिया के साथ मिलकर किया है जिसमें देश में 41 शहरों में 5000 लोगों से सवाल जवाब किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक जिन लोगों से बात की गई है उन्होंने माना कि इन चुनौतियों से निपटने के लिए जरुरी कदम उठा रहे हैं। सर्वे में भाग लेने वालों ने कहा कि सालाना इनकम का 52 फीसदी लोग अपने वित्तीय सेहत को मजबूत करने पर खर्च कर रहे हैं। जिसमें से 17 फीसदी सेविंग, 11 फीसदी लाइफ इंश्योरेंस और 8 फीसदी लाइफ इंश्योरेंस पर खर्च कर रहे हैं। सर्वे के मुताबिक वित्तीय सेहत को मजबूत करने के लिए और वित्तीय अनिश्चितता से निपटने के लिए 49 फीसदी अपने खर्च को बेहतर तरीके से मैनेज करते हुए म्यूचुअल फंड्स और इक्विटी में निवेश कर रहे हैं। 41 फीसदी इनकम से दूसरे सोर्स को क्रिएट कर रहे हैं। 37 फीसदी लाइफ के साथ साथ हेल्थ इंश्योरेंस कवरेज पर खर्च कर रहे हैं। वहीं 35 फीसदी सोने में निवेश कर रहे हैं। सर्वे में भाग लेने वालों ने माना कि कोविड महामारी के बाद बीमा के महत्व को वे समझने लगे हैं।
10 साल में 85 प्रतिशत महंगा हुआ यूपी रोडवेज का सफर
उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम ने रोडवेज बसों के किराये में 25 पैसे प्रति किलोमीटर की बढ़ोत्तरी की है। इस बढ़ोत्तरी के बाद रोडवेज से प्रति किमी किराया अब 1.05 रुपये से बढ़कर 1.30 रुपये हो गया। पिछले 10 सालों में यह सातवीं बढ़ोत्तरी है। कुल मिलाकर देंखे तो बीते 10 सालों में यूपी रोडवेज का किराया 85 प्रतिशत से ज्यादा बढ़ गया है। इसी वित्तीय वर्ष के शुरू होने से जस्ट पहले फरवरी माह में हुई इस बढ़ोत्तरी को यूपी रोडवेज में सफर करने वाले यात्रियों के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। यूपी राज्य परिवहन निगम के अफसरों के मुताबिक, डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी के चलते बस किराये में इजाफा हुआ है। डीजल के दाम बढ़ने के कारण ऑपरेशनल कॉस्ट में बढ़ोतरी की वजह से निगम द्वारा किराय बढ़ाए जाने का प्रस्ताव तैयार किया गया।
घर बनाना भी हुआ महंगा
बढ़ती महंगाई के बीच सपनों का घर तैयार करने के अरमानों को झटका लगा है, क्योंकि पिछले महीने की तुलना में सीमेंट निर्माता कंपनियों ने इसकी कीमत में 12 से 13 फीसदी तक की बढ़ोतरी की है। सीमेंट की कीमत में बढ़ोतरी का कारण मानसून में आई देरी से बढ़ी लागत को बताया जा रहा है। कुल मिलाकर आम आदमी को उसके सपनों का घर बनाने के लिए, अब पहले की तुलना में ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ रहे हैं।
1 अक्टूबर से दक्षिण और उत्तर भारत में सीमेंट के दाम और बढ़े हैं। दक्षिण में सीमेंट की कीमत 30-40 रुपये प्रति बोरी महंगा हो सकता है। इससे पहले सितंबर की शुरुआत में सीमेंट कंपनियों ने 10-35 रुपये प्रति बोरी दाम बढ़ाए थे। यही नहीं, खास यह है कि बीते महीने यानी अगस्त में भी मासिक आधार पर भाव 1 से 2 फीसदी तक चढ़े थे।
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अचानक लाल हुआ टमाटर
शुक्रवार को 40 से 45 रुपये किलो बिकने लगा। इसके और भी महंगे होने की उम्मीद है। वहीं कई खाद्य सामग्री तो ऐसी हैं जिन पर 30 से 50 रुपये तक की बढ़ोतरी हुई है। तीन दिन पहले तक टमाटर फुटकर में 20 रुपये किलो तक बिक रहा था लेकिन नवरात्रि की आहट होते ही इसके दाम दो गुने से ज्यादा हो गए हैं।
फलाहार सामग्री हुई महंगी
इसके अलावा, नवरात्रि शुरू होने से पहले ही फलाहार सामग्री पर महंगाई का मीटर बढ़ने लगा है। कई खाद्य सामग्री ऐसी हैं जिन पर 50 रुपये किलो तक अभी से महंगाई हो गई है। फुटकर दुकानदार बताते हैं कि उनको थोक में जो रेट मिलता है उसी के अनुसार फुटकर में बिक्री करते हैं।
ताजा रेट
मखाना जहां 20 दिन पहले 600 रुपये किलो बिक रहा था।
वहीं मखाने की कीमत अब 700 से 750 रुपये किलो हो गई है।
सिंघाड़े का आटा 70 से 90 रुपये किलो बिक रहा था।
कुट्टू का आटा अब 90 से 110 रुपये किलो हो गया है।
साबूदाना 80 से 100 रुपये किलो हो गया है।
फल के दामों में भी होगी बढोत्तरी
कुछ किराना व्यापारियों की माने तो नवरात्रिि में फल के दामों में भी उछाल आने की संभावना है। सेब से लेकर अनार तक के दाम बढ़ सकते हैं।
जान लें दाम
फलाहार सामग्री - पहले - अब
मखाना - 600- 650 700-750
साबूदाना - 70-80 100-120
सिंघाड़े का आटा - 70-80 90
कुट्टू का आटा - 80-90 100
मूंगफली दाना - 100-120 140-160
जीवन के हर क्षेत्र में महंगाई की मार
अगर नवरात्रिों में खाने पीने की महंगाई की बात छोड़ दें तो हर क्षेत्र में महंगाई की मार पड़ रही है।
घरेलू बचत 5 साल के निचले स्तर पर
रिजर्व बैंक द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, भारत की घरेलू बचत दर वित्त वर्ष 2022-23 में पांच दशकों के निचले स्तर पर पहुंच गई। 18 सितंबर को जारी इन आंकड़ों के मुताबिक वित्त वर्ष 2022-23 में देश की शुद्ध घरेलू बचत पिछले साल की तुलना में 19 फीसदी कम रही है। 2021-22 में देश की शुद्ध घरेलू बचत जीडीपी के 7.2 फीसदी पर थी जो इस साल और घटकर सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के लगभग 5 दशक के निचले स्तर 5.1 प्रतिशत पर आ गई है।
दूसरी ओर, भारतीय परिवारों पर अधिक वित्तीय देनदारियों का बोझ बढ़ रहा है। जो गंभीर आय संकट और दबी हुई मांग के कारण महामारी के बाद खपत में वृद्धि का संकेत दे रहा है। 2022-23 में परिवारों की वित्तीय देनदारियां सकल घरेलू उत्पाद का 5.8 प्रतिशत बढ़ गईं, जबकि 2021-22 में यह 3.8 प्रतिशत थी, जिससे यह भी संकेत मिलता है कि खपत का कुछ हिस्सा ऋण द्वारा वित्तपोषित किया जा रहा था।
अब देखा जाए तो ऐसा कहा जाता है कि भारत में कमाने वाले तेजी से बढ़ रहे हैं। लोगों की आमदनी बढ़ रही है। प्रति व्यक्ति आय भी बढ़ रही है। लेकिन सच्चाई यह है कि जो भी कमा रहे हैं, उसे खर्च कर दे रहे हैं, उड़ा रहे हैं। बचत (Saving) में काफी कमी हो गई है। स्थिति यह है कि भारत का घरेलू बचत 50 साल के निचले स्तर पर आ गया है। यह कहना है हाउसहोल्ड एसेट और लायबिलिटीज पर रिजर्व बैंक की एक ताजा रिपोर्ट का।
शिक्षा 12% तो स्वास्थ्य खर्च 14% प्रतिशत तक बढ़ा
इस सबके इतर शिक्षा और स्वास्थ्य के खर्च में इजाफे ने मुश्किलें बढा दी है। जनसत्ता की एक रिपोर्ट के अनुसार, सर्वे में 36 प्रतिशत लोगों ने बढ़ते स्वास्थ्य खर्च, 35 प्रतिशत ने शिक्षा के खर्च में इजाफा को चिंता का कारण बताया है, क्योंकि शिक्षा की महंगाई हर साल 11 से 12 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है, वहीं इलाज हर साल 14 प्रतिशत महंगा हो रहा है। 24 प्रतिशत लोगों ने खराब मेंटल हालात और अपने फिजिकल हेल्थ स्टेटस को लेकर चिंता जताई है। जबकि 23 प्रतिशत लोगों को नौकरी खोने का डर है और 19 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उनके पास न तो पर्याप्त लाइफ और न ही हेल्थ इंश्योरेंस कवर है।
जून 2023 में इस सर्वे को पूरा किया गया है। सर्वे में भाग लेने वालों में 36 फीसदी ने बढ़ते स्वास्थ्य खर्च, 35 फीसदी शिक्षा के खर्च में इजाफा, 27 फीसदी मंदी और उसके प्रभाव, 24 फीसदी खराब मेंटल हालात, 24 फीसदी फिजिकल हेल्थ स्टेट्स, 23 फीसदी नौकरी खोने का डर और 19 फीसदी ने पर्याप्त लाइफ और हेल्थ इंश्योरेंस के नहीं होने को चिंता का कारण करार दिया है।
मनी कंट्रोल के मुताबिक एसबीआई लाइफ इंश्योरेंस ने ये स्टडी डेलॉएट इंडिया के साथ मिलकर किया है जिसमें देश में 41 शहरों में 5000 लोगों से सवाल जवाब किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक जिन लोगों से बात की गई है उन्होंने माना कि इन चुनौतियों से निपटने के लिए जरुरी कदम उठा रहे हैं। सर्वे में भाग लेने वालों ने कहा कि सालाना इनकम का 52 फीसदी लोग अपने वित्तीय सेहत को मजबूत करने पर खर्च कर रहे हैं। जिसमें से 17 फीसदी सेविंग, 11 फीसदी लाइफ इंश्योरेंस और 8 फीसदी लाइफ इंश्योरेंस पर खर्च कर रहे हैं। सर्वे के मुताबिक वित्तीय सेहत को मजबूत करने के लिए और वित्तीय अनिश्चितता से निपटने के लिए 49 फीसदी अपने खर्च को बेहतर तरीके से मैनेज करते हुए म्यूचुअल फंड्स और इक्विटी में निवेश कर रहे हैं। 41 फीसदी इनकम से दूसरे सोर्स को क्रिएट कर रहे हैं। 37 फीसदी लाइफ के साथ साथ हेल्थ इंश्योरेंस कवरेज पर खर्च कर रहे हैं। वहीं 35 फीसदी सोने में निवेश कर रहे हैं। सर्वे में भाग लेने वालों ने माना कि कोविड महामारी के बाद बीमा के महत्व को वे समझने लगे हैं।
10 साल में 85 प्रतिशत महंगा हुआ यूपी रोडवेज का सफर
उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम ने रोडवेज बसों के किराये में 25 पैसे प्रति किलोमीटर की बढ़ोत्तरी की है। इस बढ़ोत्तरी के बाद रोडवेज से प्रति किमी किराया अब 1.05 रुपये से बढ़कर 1.30 रुपये हो गया। पिछले 10 सालों में यह सातवीं बढ़ोत्तरी है। कुल मिलाकर देंखे तो बीते 10 सालों में यूपी रोडवेज का किराया 85 प्रतिशत से ज्यादा बढ़ गया है। इसी वित्तीय वर्ष के शुरू होने से जस्ट पहले फरवरी माह में हुई इस बढ़ोत्तरी को यूपी रोडवेज में सफर करने वाले यात्रियों के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। यूपी राज्य परिवहन निगम के अफसरों के मुताबिक, डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी के चलते बस किराये में इजाफा हुआ है। डीजल के दाम बढ़ने के कारण ऑपरेशनल कॉस्ट में बढ़ोतरी की वजह से निगम द्वारा किराय बढ़ाए जाने का प्रस्ताव तैयार किया गया।
घर बनाना भी हुआ महंगा
बढ़ती महंगाई के बीच सपनों का घर तैयार करने के अरमानों को झटका लगा है, क्योंकि पिछले महीने की तुलना में सीमेंट निर्माता कंपनियों ने इसकी कीमत में 12 से 13 फीसदी तक की बढ़ोतरी की है। सीमेंट की कीमत में बढ़ोतरी का कारण मानसून में आई देरी से बढ़ी लागत को बताया जा रहा है। कुल मिलाकर आम आदमी को उसके सपनों का घर बनाने के लिए, अब पहले की तुलना में ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ रहे हैं।
1 अक्टूबर से दक्षिण और उत्तर भारत में सीमेंट के दाम और बढ़े हैं। दक्षिण में सीमेंट की कीमत 30-40 रुपये प्रति बोरी महंगा हो सकता है। इससे पहले सितंबर की शुरुआत में सीमेंट कंपनियों ने 10-35 रुपये प्रति बोरी दाम बढ़ाए थे। यही नहीं, खास यह है कि बीते महीने यानी अगस्त में भी मासिक आधार पर भाव 1 से 2 फीसदी तक चढ़े थे।
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