आम आदमी के सिर चढ़कर बोल रही महंगाई: खाने पीने के साथ शिक्षा-स्वास्थ्य के खर्च में इजाफे से लोग परेशान

Written by Navnish Kumar | Published on: September 16, 2023
"खाद्य पदार्थों और रोजमर्रा में इस्तेमाल होने वाली चीजों की कमरतोड़ महंगाई ने लोगों की मुश्किलें बढ़ा रखी हैं। लेकिन शिक्षा पर होने वाले खर्च में बढ़ोतरी के साथ बीमारियों के सीजन में स्वास्थ्य पर बढ़ता खर्चा भी परेशानी का सबब बनता जा रहा है। आलम यह है कि शाकाहारी थाली सवा चौबीस फीसदी महंगी हो गई है। कुल मिलाकर महंगाई आम आदमी के सिर चढ़कर बोलने लगी है।" 



सब्जियों, दालों, अनाजों और मसालों सहित खाने पीने के सामानों और रोजमर्रा में इस्तेमाल होने वाली चीजों की कमरतोड़ महंगाई ने लोगों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। साथ ही स्वास्थ्य और शिक्षा पर होने वाले खर्च में बढ़ोतरी भी परेशानी का सबब बनती जा रही है। एसबीआई लाइफ इंश्योरेंस के फाइनेंशियल इम्यूनिटी स्टडी के मुताबिक, देश में 59 प्रतिशत लोग बढ़ती खाद्य महंगाई से परेशान हैं, जिसमें दाल-मसाले और सब्जियों के बढ़े दाम से सबसे ज्यादा परेशानी बढ़ी है। वहीं 43 प्रतिशत लोगों ने माना कि रोजाना खपत वाली चीजों की कीमतों में बढ़ोतरी उनकी चिंता का प्रमुख कारण है। 

शिक्षा 12% तो स्वास्थ्य खर्च 14% प्रतिशत तक बढ़ा 

इस सबके इतर शिक्षा और स्वास्थ्य के खर्च में इजाफे ने मुश्किलें बढा दी है। जनसत्ता की एक रिपोर्ट के अनुसार, सर्वे में 36 प्रतिशत लोगों ने बढ़ते स्वास्थ्य खर्च, 35 प्रतिशत ने शिक्षा के खर्च में इजाफा को चिंता का कारण बताया है, क्योंकि शिक्षा की महंगाई हर साल 11 से 12 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है, वहीं इलाज हर साल 14 प्रतिशत महंगा हो रहा है। 24 प्रतिशत लोगों ने खराब मेंटल हालात और अपने फिजिकल हेल्थ स्टेटस को लेकर चिंता जताई है। जबकि 23 प्रतिशत लोगों को नौकरी खोने का डर है और 19 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उनके पास न तो पर्याप्त लाइफ और न ही हेल्थ इंश्योरेंस कवर है। 

जून 2023 में इस सर्वे को पूरा किया गया है। सर्वे में भाग लेने वालों में 36 फीसदी ने बढ़ते स्वास्थ्य खर्च, 35 फीसदी शिक्षा के खर्च में इजाफा, 27 फीसदी मंदी और उसके प्रभाव, 24 फीसदी खराब मेंटल हालात, 24 फीसदी फिजिकल हेल्थ स्टेट्स, 23 फीसदी नौकरी खोने का डर और 19 फीसदी ने पर्याप्त लाइफ और हेल्थ इंश्योरेंस के नहीं होने को चिंता का कारण करार दिया है।

मनी कंट्रोल के मुताबिक एसबीआई लाइफ इंश्योरेंस ने ये स्टडी डेलॉएट इंडिया के साथ मिलकर किया है जिसमें देश में 41 शहरों में 5000 लोगों से सवाल जवाब किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक जिन लोगों से बात की गई है उन्होंने माना कि इन चुनौतियों से निपटने के लिए जरुरी कदम उठा रहे हैं। सर्वे में भाग लेने वालों ने कहा कि सालाना इनकम का 52 फीसदी लोग अपने वित्तीय सेहत को मजबूत करने पर खर्च कर रहे हैं। जिसमें से 17 फीसदी सेविंग, 11 फीसदी लाइफ इंश्योरेंस और 8 फीसदी लाइफ इंश्योरेंस पर खर्च कर रहे हैं। सर्वे के मुताबिक वित्तीय सेहत को मजबूत करने के लिए और वित्तीय अनिश्चितता से निपटने के लिए 49 फीसदी अपने खर्च को बेहतर तरीके से मैनेज करते हुए म्यूचुअल फंड्स और इक्विटी में निवेश कर रहे हैं। 41 फीसदी इनकम से दूसरे सोर्स को क्रिएट कर रहे हैं। 37 फीसदी लाइफ के साथ साथ हेल्थ इंश्योरेंस कवरेज पर खर्च कर रहे हैं। वहीं 35 फीसदी सोने में निवेश कर रहे हैं। सर्वे में भाग लेने वालों ने माना कि कोविड महामारी के बाद बीमा के महत्व को वे समझने लगे हैं।

24 फीसदी महंगी हुई शाकाहारी थाली 

रेटिंग फर्म 'क्रिसिल' की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि अगस्त 2022 की तुलना में अगस्त 2023 में शाकाहारी थाली की कीमत 24.26 प्रतिशत बढ़कर 33.8 रुपये हो गई। वहीं मांसाहारी थाली की कीमत 12.54 प्रतिशत बढ़कर 67.3 रुपये हो गई। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इसका मतलब है कि पांच लोगों के परिवार में एक दिन में दोपहर के भोजन या रात के खाने के लिए शाकाहारी थाली तैयार करने के लिए 33 रुपये और मांसाहारी थाली के लिए 37.5 रुपये ज्यादा खर्च करना पड़ा रहा है। यदि दोपहर और रात दोनों वक्त के लिए खाना तैयार करना हो, तो पांच सदस्यों वाले परिवार को प्रति माह अतिरिक्त 1980 रुपये शाकाहारी थाले के लिए और 2250 रुपये नॉनवेज थाली के लिए खर्च करना होगा।

आरबीआई (Reserve Bank of India) के आंकड़ों के मुताबिक, 2022 में भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में पुरुष खेतिहर मजदूर को औसत रोजाना 323.2 रुपये मिल जाता था। यदि वे महीने में 20 दिन काम करते, तो उनकी मासिक कमाई लगभग 6500 रुपये हो जाती। यदि किसी घर में दो कमाने वाले सदस्य हैं, तो वेतन का 78 प्रतिशत हिस्सा महीने के लिए शाकाहारी थाली (दोपहर का भोजन और रात का खाना दोनों) तैयार करने में खर्च होगा। इसके बाद कमाई का मात्र 22 प्रतिशत बचेगा, जिससे शिक्षा, स्वास्थ्य, कपड़ा, यात्रा और बिजली का खर्च चलना होगा। ऐसे में परिवारों को अपने रोजाना के भोजन की क्वालिटी और वैरायटी से समझौता करना होगा। परिवार के बजट को कंट्रोल में रखने के लिए भोजन के खर्चों में कटौती करनी होगी।

मौसम की चौतरफा मार कर रही कोढ़ में खाज का काम 

कुल मिलाकर महंगाई आम लोगों के सिर चढ़कर बोलने लगी है। रही सही कसर इस साल कहीं बाढ़ कहीं सूखे के रूप में पड़ रही मौसम की चौतरफा मार ने पूरी कर दी है। सब्जियों और दालों की महंगाई के बाद अब गेहूं और चावल भी उबलने लगे हैं। देश में पांच साल के सबसे कम के स्तर पर आया चावल का स्टॉक परेशानी का सबब बनता जा रहा है तो गेहूं के स्टॉक पर भी सरकार ने निगरानी बढ़ा दी है।

दलहन का रकबा 8.6 प्रतिशत घटा 

देश में मानसून की बारिश में 11 प्रतिशत की कमी आने से चालू खरीफ सत्र में दलहन की बुआई का रकबा 8.58 प्रतिशत घटकर 119.91 लाख हैक्टेयर रह गया। कृषि मंत्रालय की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक, धान की बुआई का कुल रकबा 403.41 लाख हैक्टेयर रहा, जो पिछले साल की समान अवधि में 392.81 लाख हैक्टेयर था। दालों की बढ़ती महंगाई को देखते हुए केंद्र सरकार दालों की सप्लाई बढ़ाने के लिए कदम उठा सकती है। पहले ही सरकार ने कई दाल पर स्टॉक लिमिट लगा रखी है और कुछ दालों के आयात पर छूट दी है। अब त्योहारी सीजन को देखते हुए सरकार अपने स्टॉक से दालों की सप्लाई बढ़ा सकती है। एक महीने में ही अरहर, उड़द, मूंग और चने की कीमतों में 3 प्रतिशत से 10 प्रतिशत तक की तेजी देखने को मिली है। उपभोक्ता मंत्रालय के सचिव ने कहा, कनाडा से मसूर दाल और अफ्रीकी देशों से तुअर दाल का आयात बढ़ा है। घरेलू उत्पादन घटने की आशंका से भारत कनाडा व ऑस्ट्रेलिया से दाल का आयात कर रहा है। 

चावल का दाम 9 फीसदी तक चढ़ा 

देश के ज्यादातर राज्यों में इस बार बारिश 15 से 25% तक कम हुई है। इसके असर से फसलों की पैदावार घटने की आशंका है, इसलिए खाने-पीने की चीजों के दाम तेजी से बढ़े हैं। सबसे ज्यादा असर दालों पर दिखा है। तुअर की दाल 37% तक महंगी हो गई है तो चावल के दाम 9% तक बढ़ गए हैं।

बेशक पिछले एक हफ्ते से कुछ राज्यों में अच्छी बारिश हो रही है, लेकिन इससे भी हालात में खास सुधार नहीं होता दिख रहा। बैंक ऑफ बड़ौदा की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, इसलिए महंगाई की दर 5.5% से नीचे बनाए रखने में RBI को मुश्किल आएगी। भले ही इस सीजन में अनाजों का उत्पादन बढ़ने का अनुमान पेश किया गया है, लेकिन मौसम की मार से उत्पादन प्रभावित होगा। सोयाबीन के अलावा सभी तरह के खाद्यान्नों के दाम तेजी से बढ़ सकते हैं।

चावल का स्टॉक 5 साल में सबसे कम 

केंद्र सरकार के सेंट्रल पूल में 31 अगस्त को चावल का स्टॉक 2.43 करोड़ मीट्रिक टन था। यह अगस्त 2018 के बाद यानी 5 साल में सबसे कम है। अगस्त 2022 में स्टॉक 2.8 करोड़, अगस्त 2021 में 2.91 करोड़, अगस्त 2020 में 2.53 करोड़ और अगस्त 2019 में 2.75 करोड़ मीट्रिक टन था।

दाम स्थिर रखने के लिए चावल, दाल और चीनी के निर्यात पर रोक 

केंद्र सरकार ने दाम स्थिर रखने के लिए चावल, दाल और चीनी के निर्यात पर रोक लगाई है। दालों की डिमांड पूरी करने के लिए आयात को बढ़ाकर दोगुना कर दिया गया है। सरकार ने खरीफ सीजन में 16 करोड़ मीट्रिक टन उत्पादन का अनुमान लगाया है। हालांकि, यह तभी संभव है जब फसल को नुकसान न हो, लेकिन कम बारिश से नुकसान हो रहा है।

एक महीने में गेहूं की कीमतों में 10 प्रतिशत उछाल, एफसीआई ने मिलों में स्टॉक जांचना शुरू किया 

एक महीने में गेहूं की कीमतों में लगभग 10% का उछाल दर्ज किया गया है। ऐसे में एफसीआई जांच रहा है कि क्या आटा मिलों के पास घोषित मात्रा से अधिक गेहूं है या नहीं। बड़ी संख्या में आटा मिल मालिकों ने ईटी से पुष्टि की कि एफसीआई अधिकारी मिलों में रखे गेहूं के स्टॉक की जांच कर रहे हैं।

एफसीआई घरेलू कीमतों को कम रखने के लिए खुले बाजार बिक्री योजना (OMSS) के तहत आटा मिलों और अन्य थोक उपभोक्ताओं को गेहूं बेचता है। जून में उसने इस योजना के तहत 15 लाख टन गेहूं की पेशकश की थी। रिपोर्ट के अनुसार अगस्त में गेहूं के दाम में 10% का उछाल दर्ज किया गया है। इंडस्ट्री के अधिकारियों ने गेहूं की कीमतों में वृद्धि के कारणों में से एक के रूप में एफसीआई द्वारा साप्ताहिक टेंडर में कम मात्रा की पेशकश का हवाला दिया है। टेंडर प्रक्रिया में भाग लेने वाली मिलों को अपने पास मौजूद स्टॉक की घोषणा करनी होगी। सितंबर और नवंबर के बीच त्योहारी सीजन की मासिक गेहूं की मांग 50-100% बढ़ने की उम्मीद है। ऐसे में यदि पर्याप्त स्टॉक नहीं रहा तो आटा की कीमत और ऊंची हो सकती है।

जल्द राहत नहीं, राजस्थान आदि राज्यों में सूखे से और बिगड़ेगी स्थिति! 

कोढ़ में खाज के तौर पर, ये महंगाई का वो खतरा है जो कि अगस्त में सूखे यानी मानसून की बेरुखी, से फसलें तबाह होने के बाद पैदा हो गया है। दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट के अनुसार, हाल ये है कि पूरे देश में रिकॉर्ड तोड़ दलहन और तिलहन उत्पादन के मामले में पहले स्थान पर रहने वाले राजस्थान के 20 से ज्यादा जिलों में अकाल और सूखे की स्थिति है।

कृषि विशेषज्ञों के अनुसार इस बार राजस्थान में मूंग की पैदावार 15 से 25%, मूंगफली की पैदावार 10 से 15% और कपास उत्पादन 25 से 30% से ज्यादा नहीं होगा। यही हाल मोठ, ग्वार और बाजरा के अलावा खरीफ की दूसरी फसलों का है। इससे जहां बड़े पैमाने पर फसलों का उत्पादन (पैदावार) घटेगा वहीं अनाजों यानी उपज की क्वालिटी पर भी असर पड़ना तय माना जा रहा है। याद रहे उत्पादन बढ़ने/घटने का सीधा संबंध, जहां किसानों के नफे नुकसान से है वहीं, कम उत्पादन का सीधा असर कीमतों पर पड़ता है। कम उत्पादन से सप्लाई डिमांड बढ़ेगी, खर्चे की कैपेसिटी घटेगी, दामों में बढ़ोतरी यानी महंगाई और बढ़ेगी।

एग्रीकल्चर एक्सपर्ट बीआर कड़वा के अनुसार राजस्थान में 70 फीसदी खेती मानसून पर ही निर्भर करती है। पहले बिपरजॉय की तूफानी बारिश के बाद शुरुआती बढ़िया मानसून के चलते इस वर्ष प्रदेश में 163.01 लाख हैक्टेयर क्षेत्र में बुआई की गई थी। अनाज की बुआई 63.67 लाख हैक्टेयर क्षेत्र, दलहन की बुआई 35.30 लाख हैक्टेयर क्षेत्र और तिलहन की बुआई 24.37 लाख हैक्टेयर क्षेत्र में की गई थी। अब सूखे के चलते इस बार यहां उत्पादन में भारी गिरावट रहेगी। न सिर्फ राजस्थान बल्कि देश भर के दलहन और तिलहन उत्पादन में इसका असर पडेगा। इसके चलते मार्केट में सप्लाई डिमांड बढ़ेगी। दाम बढ़ने से लोगों के खर्चे की केपेसिटी घटेगी और महंगाई बढ़ने से बचत पर भी असर पडे़गा। नतीजतन कर्ज भार भी पडे़गा। और ओवरऑल देखे तो किसान से लेकर हर वर्ग को इस खराबे का नुकसान झेलना पडेगा।

आर्थिक विशेषज्ञ एसएस सोमरा के अनुसार कोविड महामारी के बाद लोन लेने वाले प्रदेशों में राजस्थान सबसे आगे रहा। राज्य में कई योजनाओं को लागू करने के बाद सरकार पहले से ही आर्थिक दबाव झेल रही है। अब कम उत्पादन के चलते महंगाई से राहत मिलने के भी कोई आसार नहीं हैं। पहले से ही कर्जे में झूल रहा किसान एक बार फिर आर्थिक नुकसान के चलते कर्ज के भंवर में उलझ जाएगा और उसकी आय भी घटेगी। इसका सीधा-सीधा असर राज्यों की जीडीपी ग्रोथ पर भी पडे़गा।

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